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26 जून 2014

45 साल में पहली बार आरपीएमटी रद्द, छात्रों से खिलवाड़ करने वालों का निर्णय कब करेगी सरकार?



जयपुर. हाईकोर्ट ने राजस्थान प्री-मेडिकल टेस्ट (आरपीएमटी-2014) को रद्द कर दिया है। साथ ही सरकार की ओर से दुबारा परीक्षा कराने के निर्णय को सही ठहराते हुए कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट की अनुमति से संशोधित कलेंडर के अनुसार दोबारा परीक्षा करा सकती है। अब सरकार 30 सितंबर तक प्रवेश प्रक्रिया पूरी करा सकती है। इस परीक्षा का आयोजन 1969 से हो रहा है। तब के बाद यह पहला मौका है, जब इस परीक्षा को रद्द किया गया है। वर्ष 2007 से इस परीक्षा का आयोजन राजस्थान यूनिवर्सिटी ऑफ हैल्थ साइंस (आरयूएचएस) कर रही है। न्यायाधीश मोहम्मद रफीक ने गुरुवार को यह आदेश अमित कुमार सैनी, रिषभ सक्सेना व अन्य की याचिकाओं को स्वीकार करते हुए तथा परीक्षा में चयनित अभ्यर्थी आदित्य क्षेत्रपाल व अन्य की याचिकाओं को खारिज करते हुए दिए। अदालत ने कहा कि राज्य सरकार को परीक्षा में जो आवेदन आए थे उनकी दोबारा परीक्षा लेने की छूट है। लेकिन, सवाल उठता है कि छात्रों से खिलवाड़ करने वालों का निर्णय कब करेगी सरकार?
 
सुप्रीम कोर्ट ने 23 जून को राज्य सरकार की परीक्षा दुबारा करवाने की अनुमति की अर्जी व फेल स्टूडेंट की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट को मेरिट के आधार पर 27 जून तक लंबित याचिकाओं का निपटारा करने का निर्देश दिया था। इसी के बाद यह निर्णय आया है। दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई 30 जून को होगी। राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 30 सितंबर तक प्रवेश प्रक्रिया पूरी कराने का शपथ-पत्र दे रखा है।

जज ने कहा- परीक्षा और रिजल्ट अवैध
 
परीक्षा में बेस्ट स्टूडेंट का चयन हुआ है ऐसा नहीं कहा जा सकता। हम विशेषज्ञ नहीं हैं लेकिन विशेषज्ञ को भी परसेंटाइल फार्मूले पर संदेह है। यूनिवर्सिटी अपना उद्देश्य पूरा करने में विफल रही है। परीक्षा और परिणाम अवैध व असंवैधानिक है। इसमें समानता के अधिकार का उल्लंघन हुआ है। -न्यायाधीश मो. रफीक

ये सवाल भी उठाए
 
> कोर्ट ने कहा- 86 प्रश्न हटाकर, 62 उत्तर बदलकर और अंत में परसेंटाइल फार्मूले से रिजल्ट देना संदेहपूर्ण है।
> परीक्षा आयोजन एजेंसी ने परसेंटाइल फार्मूले की जानकारी नहीं दी। इस गलती को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
> जब एआईपीएमटी में 6 लाख स्टूडेंट की एक ही प्रश्न पत्र से कराई गई तो इस परीक्षा में एक प्रश्न पत्र क्यों नहीं रहा?

सफल अभ्यर्थी हताश, सुप्रीम कोर्ट जाएंगे

चयनित विद्यार्थियों और परिजनों ने गुरुवार शाम नेहरू गार्डन में बैठक की और नाराजगी जताई। परिजनों ने सुप्रीम कोर्ट में जाने की बात कही है। उनका कहना था कि सरकार की ओर से कोर्ट को भ्रमित किया गया है। जिस पद्धति से अन्य परीक्षाओं के परिणाम निकलते हैं, उसी से परिणाम निकाला गया तो फिर से परीक्षा दोबारा क्यों कराई जाए।

परीक्षा से लेकर रिजल्ट तक गड़बड़ी

परीक्षा में रोल नंबर अलॉटमेंट, स्लॉट एलॉटमेंट से लेकर पेपर बनाने तक में बड़े स्तर पर गड़बड़ी हुई है। सरकार की ओर से गठित जांच कमेटी की रिपोर्ट में भी इसका खुलासा हो चुका है, लेकिन दोषी एक बार फिर बच कर निकलते दिखाई दे रहे हैं।

यह है मामला

अधिवक्ता आरबी माथुर व आरपी सैनी ने बताया कि आरपीएमटी में जिनके अधिक अंक थे उनको परसेंटाइल से कम कर दिया और अधिक अंक वालों को कम अंक व कम अंक वालों को अधिक रैंक दी । याचिकाओं में कहा कि संयुक्तप्रतियोगी परीक्षाओं में समान मापदंड होने चाहिए, लेकिन परीक्षा में ऐसा नहीं हुआ। इसके बाद असफल परीक्षार्थियों ने परीक्षा दुबारा कराने तथा सफल अभ्यर्थियों ने परीक्षा दुबारा नहीं कराने को लेकर याचिकाएं लगाई थीं।
 
कब क्या हुआ
 
> 28 मई से 30 मई तक हुई थी परीक्षा
> 05 जून 2014 को जारी हुआ परिणाम
> 45 हजार परीक्षार्थी हुए थे शामिल
जिम्मेदारों के खिलाफ कोई फैसला नहीं
 
राजस्थान यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साईंस (आरयूएचएस) की ओर से कराई गई आरपीएमटी-2014 में गड़बडिय़ों के लिए जिम्मेदारों के खिलाफ सरकार ने कोई फैसला नहीं सुनाया। हाईकोर्ट इस परीक्षा को असंवैधानिक मानते हुए रद्द कर चुकी है। बड़ी गड़बडिय़ां होने के बावजूद वीसी राजाबाबू पंवार, रजिस्ट्रार अनुप्रेरणा कुंतल और परीक्षा संयोजक डॉ. डीके गुप्ता अपने पद पर बने हुए हैं। जांच कमेटी की रिपोर्ट में आरपीएमटी 2014 में गड़बडिय़ों की पुष्टि हुई है। करीब 45 हजार युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ करने के बाद एक बार फिर दोषी बच कर निकलते नजर आ रहे हैं। वर्ष 2012 आरपीएमटी में गड़बडिय़ां हुई थी। तब भी किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई। पूर्व चिकित्सा मंत्री दिगंबर सिंह कहते हैं कि वीसी ने यूनिवर्सिटी को मजाक बना दिया है। अब तक उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए था।  
 
शुरू से ही खामियां
 
> अलग-अलग बैच में परीक्षा कराई गई। विद्यार्थियों के रोल नम्बर और बैच क्रम कंपनी ने तय किए।
> सबसे पहले दिया गया परिणाम गलत था और गलत प्रश्नों की एवज में बोनस अंक देने की बात कही गई।
> बोनस अंक का विरोध होने पर परसेनटाइल से रिजल्ट दिया गया। यह कैसे दिया गया, नहीं बताया गया।
> जिनके रॉ-मॉक्र्स कम थे, उन्हें पास की रैंक और अधिक अंक वालों को दूर की रैंक दी गई।
> किसी भी स्तर पर गलती नहीं मानी और जांच कमेटी को पूरा बात नहीं बताई गई।
 
गलती दर गलती होती रही, फिर मनमर्जी, पदों पर जमे हैं जिम्मेदार
 
1. गलती कहां ठेके में परीक्षा
 
आरयूएचएस ने बेंगलुरू की मैसर्स इड्यूक्येटी कंपनी को परीक्षा कराने का ठेका दे दिया। इस कंपनी ने ही रोल नम्बर तय किए। स्लॉट तैयार किए कि कौन छात्र किस बैच में परीक्षा देगा।
 
मनमर्जी प्रक्रिया में कंपनी ने मनमर्जी रखी। इस पूरे मामले में आरयूएचएस के किसी भी अधिकारी ने रोल नम्बर व स्लॉट अलॉटमेंट का सिस्टम तक की जांच नहीं की। जांच कमेटी को अफसरों ने नहीं बताया कि ठेका क्यों और किसके कहने पर दिया गया।
 
2. नतीजा 86 सवाल गलत दिए 
 
पेपर में गलतियां सामने आ चुकी हैं और यह भी तय हो चुका है कि 86 सवाल गलत थे। इसके बाद कोई कार्रवाई नहीं की गई। आरयूएचएस के अधिकारियों ने कहा था-हमने जवाब मांगा है।
 
3. किरदार नहीं दिया जवाब
 
20 दिन बीत जाने के बाद भी ना कोई जवाब आया है और ना ही पेपर बनाने वालों पर कार्रवाई हुई। यहां तक कि इन सभी के नाम गुप्त रखे जा रहे हैं। 
 
जिम्मेदार नहीं की कार्रवाई
परीक्षा संयोजक डॉ. डी.के. गुप्ता ने कहा था ऐसे परीक्षकों को ब्लेक लिस्टेट किया जाएगा। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। 
 
4. कैसे काम आए रसूखात
 
आरयूएचएस के वीसी राजाबाबू पंवार: 3 वर्ष पहले तत्कालीन सरकार के चिकित्सा मंत्री एए खान के हस्तक्षेप के बाद कार्यकाल बढ़ा दिया गया। राजाबाबू राज्यसभा सांसद अश्क अली टाक के समधी हैं। 
 
रजिस्ट्रार अनुप्रेरणा कुंतल लंबे समय तक चिकित्सा शिक्षा विभाग की संयुक्त सचिव रही डॉ. राजेश यादव की करीबी रिश्तेदार हैं। 2 साल पहले स्थानान्तरण किया गया लेकिन बाद में तबादला निरस्त कर दिया गया।
 
5. सरकार क्यों नहीं कर रही कार्रवाई?
 
आरयूएचएस के वीसी राजाबाबू पंवार, रजिस्ट्रार अनुप्रेरणा कुंतल और परीक्षा संयोजक डॉ. डी.के. गुप्ता परीक्षा में हुई गड़बड़ी के सीधे-सीधे जिम्मेदार हैं। वर्ष 2012 आरपीएमटी में हुई गड़बडिय़ों के बाद भी सुधार नहीं किया गया और वर्ष 2014 में फिर से वहीं गलतियां दोहराई गई। गलतियों के साबित होने के बाद भी सरकार इन पर कार्रवाई से बच रही है।
 
6. बड़ा घपला तो नहीं? निजी कॉलेजों में सीधे प्रवेश के लिए प्रति सीट त्र75 लाख तक वसूले जा रहे हैं। यह तथ्य इस बात के लिए पर्याप्त है कि परीक्षा में गड़बडिय़ां क्यों हो रही हैं? कई सालों से एम्स और मणिपाल विश्वविद्यालय ऑन लाइन परीक्षा करवा रहा है। 
 
7. अलग-अलग प्रश्नपत्र घपले की कड़ी 
 
चयन के लिए अलग-अलग प्रश्न पत्र दिया जाना भी घपले की आशंका को प्रबल करता है। चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में पद्म पुरस्कार प्राप्त प्रतिष्ठित शिक्षकों के अनुसार अलग-अलग प्रश्न पत्रों के आधार पर चयन करना अभ्यर्थियों के साथ बिलकुल गलत है। एम्स और मणिपाल अभ्यर्थियों का चयन के लिए ऑनलाइन परीक्षा एक सत्र में एक ही प्रश्न पत्र से करते हैं।
 
8. एआईपीएमटी से ही हो मूल्यांकन
 
पिछले साल पूरे देश में केवल एक प्रवेश परीक्षा के आधार पर प्रवेश दिया गया। इस साल फिर से आरपीएमटी से प्रवेश देने का निर्णय किया गया। पिछले कुछ सालों से आरपीएमटी में लगातार घपले सामने आ रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार सरकार को फिर एआईपीएमटी के अंकों के आधार पर ही काउंसलिंग करनी चाहिए।

सरकार के 30 दिन पूरे होने पर बोले मोदी, हमें तो सौ दिन का हनीमून पीरियड भी नहीं मिला




नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के गुरुवार को 30 दिन पूरे हो गए। इस एक महीने के अनुभव को मोदी ने ब्लॉग लिख कर बयां किया। उन्होंने मिल रहे समर्थन पर लोगों को धन्यवाद दिया। पर कहा कि पिछली सरकारों के 67 साल के काम की एक महीने से तुलना करना ठीक नहीं है। उन्होंने कटाक्ष भी किया। बोले, 'हर नई सरकार को कुछ समय मिलता है, जिसे मीडिया के कुछ मित्र हनीमून पीरियड कहते हैं। पुरानी सरकारों ने तो हनीमून पीरियड को 100 दिन और उससे भी ज्यादा बढ़ाया। मुझे तो यह समय भी नहीं मिला।

मोदी ने ब्लॉग पर आगे लिखा, '100 दिन तो छोडि़ए, 100 घंटे के भीतर ही मुझ पर आरोप लगने लगे। लेकिन जब कोई पूरी ताकत के साथ देश सेवा करता है तो उस पर इन आलोचनाओं का कोई असर नहीं होता। मैं काम करता रहा, जिसका मुझे संतोष है।' 
 
भाषा आंदोलनकारियों को अंग्रेजी में जवाब
 
पिछले दिनों मोदी सरकार ने अफसरों से सोशल मीडिया पर हिंदी के इस्तेमाल को तरजीह देने को कहा था। लेकिन खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाषा आंदोलनकारियों की चिट्ठी का जवाब अंग्रेजी में दिया। इससे हिंदी के लिए आंदोलन करने वाले हैरत में हैं। दिल्ली में भाषा आंदोलन के बैनर तले कुछ कार्यकर्ता अप्रैल से धरना दे रहे हैं। उनकी मांग है कि लोकसेवा आयोग की सभी परीक्षाओं के साथ ही न्यायालयों का कामकाज हिंदी और भारतीय भाषाओं में कराया जाए।

भाषा आंदोलन के महासचिव देवसिंह रावत ने गुरुवार को बताया,'हमने अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म करने की मांग की है। इस बारे में हमने प्रधानमंत्री को हिंदी में चिट्ठी लिखी थी। लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय से 16 जून को जवाब अंग्रेजी में आया। हालांकि हमारी मांगों पर विचार करने की बात कही गई। देश में हिंदी को प्रमुखता से लागू करने की बात करने वाले प्रधानमंत्री के कार्यालय में किस स्तर पर काम हो रहा है, इसका अनुमान इसी पत्र से लगाया जा सकता है।'1. पुरानी सरकारों पर 
एक महीने से 67 साल की तुलना नहीं की जा सकती। मैं कहना चाहूंगा कि मेरी टीम ने हर पल लोगों के कल्याण की सोची। हमारा हर एक फैसला राष्ट्रहित को समर्पित था।' 
 
2. अपने काम पर  
'जब हमने सरकार बनाई थी, तो कुछ लोगों का मानना था कि चीजें समझने में मुझे एक साल लगेगा या शायद दो भी लगे। महीनेभर बाद मुझे ऐसा नहीं लगता। मेरा आत्मविश्वास और जज्बा दोनों बढ़ा है।'
 
3. चुनौतियों पर   
'दिल्ली में मेरे लिए एक बड़ी चुनौती है। कुछ लोगों को यह समझाना कि हम इस देश में सकारात्मक बदलाव लाने के प्रति पूरी तरह ईमानदार हैं। ऐसे लोग सरकार के भीतर और बाहर दोनों जगह हैं।'

4. विवादों पर   
'कुछ ऐसी बातें हुई जिनका सरकार से संबंध नहीं था। फिर भी विवाद हुए। मैं किसी पर इल्जाम नहीं लगा रहा पर हमें ऐसी व्यवस्था बनानी होगी जिसमें सही चीजें सही लोगों तक सही वक्त पर पहुंचें।'  
 
5. आपातकाल पर  
'हमारा एक महीना 26 जून को पूरा हुआ है। इसी दिन 1975 में आपातकाल लगा था। अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक लगी थी। वैसे दिन दोबारा न देखने पड़ें, इसके लिए संस्थाओं को मजबूत करना होगा।'

क़ुरआन का सन्देश

 
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