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01 जुलाई 2014

मोदी ने किया जुर्म, पर शिकायत में देरी के चलते नहीं होगी एफआईआर'




 
 
नई दिल्ली. अहमदाबाद की एक अदालत ने विधानसभा चुनाव में नामांकन भरते समय अपनी पत्नी के बारे में जानकारी छुपाने के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपराधी तो करार दिया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि शिकायत में देर होने की वजह से उनके खिलाफ मुकदमा कायम नहीं किया जा सकता है। 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए पर्चा दाखिल करते समय मोदी ने पत्नी वाले कॉलम को खाली छोड़ दिया था। कोर्ट ने यह माना है कि मोदी ने कॉलम को खाली छोड़कर कानून तोड़ा है, लेकिन इस मामले में शिकायत में चाह महीने की देरी के चलते एफआईआर दर्ज करवाने की अपील ठुकरा दी। 
 
कोर्ट का फैसला
अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एम. एम. शेख ने अपने फैसले में कहा, 'तथ्य छुपाकर जनप्रतिधिनित्व कानून की धारा 125(ए) (3) के तहत अपराध किया गया है। क्रिमिनल प्रोसीजर एक्ट की धारा 468(2) (बी) के तहत इस तरह के अपराध के लिए शिकायत एक साल के भीतर करनी होती है। कथित अपराध के एक साल चार महीने के बाद शिकायत दर्ज कराई गई है, इसलिए एफआईआर दर्ज करवाने का आदेश नहीं दिया जा सकता है।' 
 
किसने किया था केस
मोदी के खिलाफ एफआईआर की मांग करने वाली याचिका आम आदमी पार्टी के नेता निशांत वर्मा की ओर से दाखिल की गई थी। वर्मा ने कहा था मोदी ने अपने हलफनामे में अपनी वैवाहिक स्थिति के बारे में अहम तथ्य छुपाए थे। वर्मा के वकील ने कहा है कि वे कोर्ट के फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती दे सकते हैं। 
 
लेकिन किसी कोर्ट द्वारा अपराधी घोषित किए जाने या किसी न्यायिक कमिशन द्वारा दोषी करार दिए जाने के बावजूद कानून की पेचीदगियों या अन्य कारणों से देश-दुनिया के कई मशहूर नेता बिना किसी सजा या कई बार हल्की सजा काटकर बच निकले।

गोपाल सुब्रमण्यम को लेकर केंद्र सरकार के रवैये से नाराज हुए चीफ जस्टिस लोढ़ा


गोपाल सुब्रमण्यम को लेकर केंद्र सरकार के रवैये से नाराज हुए चीफ जस्टिस लोढ़ा
 
 
नई दिल्ली. कॉलेजियम द्वारा सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश के पद पर नियुक्ति के लिए सुझाए गए चार लोगों में शामिल पूर्व सॉलीसिटर जनरल गोपाल सुब्रह्मण्यम के नाम को हटाने पर चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा ने केंद्र सरकार की निंदा की है। एक कार्यक्रम के दौरान जस्टिस लोढ़ा ने कहा कि मेरी सहमति के बिना सरकार ने ऐसा किया है। उन्होंने कहा, 'कार्यपालिका ने यह कदम मेरी जानकारी और सहमति के बिना उठाया है।' 
 
क्या है मामला
हाल में पूर्व सॉलिसिटर जनरल और सीनियर एडवोकेट गोपाल सुब्रमण्यम ने सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर अपनी  उम्मीदवारी वापस ले ली थी। उन्होंने इस बाबत मुख्य न्यायधीश को  पत्र लिखा था। सुब्रमण्यम ने कहा था कि सरकार चाहती है कि ऐसा व्यक्ति जज बने जो उसे बाधा नहीं पहुंचाए, कष्ट न दे। सरकार को जज नहीं मित्र चाहिए। एक न्यूज चैनल से बातचीत में सुब्रमण्यम ने कहा था कि 'उन्हें एनडीए सरकार के उस फैसले से निराशा हुई जिसमें कॉलेजियम से उनके नाम पर पुनर्विचार करने  कहा गया। जबकि तीन अन्य की उम्मीदवारी के प्रस्ताव स्वीकार कर लिए गए।' 56 वर्षीय सुब्रमण्यम यूपीए सरकार के वक्त सॉलिसिटर जनरल रह चुके हैं।
 
क्या है विवादः 
गोपाल सुब्रमण्यम का नाम उस पैनल में था जिनमें से सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया जाना था। विवाद तब गहराया, जब एनडीए सरकार ने सत्ता में आते ही चीफ जस्टिस से सुब्रमण्यम के नाम पर दोबारा विचार करने के लिए कहा। दरअसल, सुब्रमण्यम की नियुक्ति यूपीए सरकार ने की थी और वे सोहराबुद्दीन केस से भी जुड़े रहे हैं, ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार खासकर मोदी सुब्रमण्यम की नियुक्ति के पक्ष में नहीं है। हालांकि सरकार ने तीन अन्य नामों पर अपनी सहमति दे दी, जिनमें कोलकाता हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अरुण मिश्रा, उड़ीसा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और सीनियर एडवोकेट रोहिंटन नारिमन शामिल हैं।
 
क्या है विरोध का कारण 
सुब्रमण्यम के नाम पर आपत्ति दर्ज कराने के पीछे सोहराबुद्दीन फर्जी एनकाउंटर केस है। दरअसल, सुब्रमण्यम इस केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एमिकस क्यूरी नियुक्त किए गए थे। सुब्रमण्यम की रिपोर्ट पर ही कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे। इस मामले में नरेंद्र मोदी के खासमखास अमित शाह पर उंगलियां उठी थीं।
इसके अलावा सीबीआई की रिपोर्ट भी सुब्रमण्यम पर उंगली उठाती है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में सुब्रमण्यम के कुछ कंपनियों से पेशेवर रिश्ते थे, जबकि वे उस वक्त सरकार के अटार्नी नियुक्त थे। हालाकि सूत्रों का कहना है कि 2011 में सुब्रमण्यम ने तत्कालीन कानून मंत्री कपिल सिब्बल को पत्र लिखकर खुद पर लगे तमाम आरोपों से इनकार किया

ई-रिक्‍शों पर बैन हटाकर अपनी कंपनी का फायदा करना चाहते हैं नितिन गडकरी?

ई-रिक्‍शों पर बैन हटाकर अपनी कंपनी का फायदा करना चाहते हैं नितिन गडकरी?
 
नई दिल्‍ली. केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कुछ वक्‍त पहले कहा था कि सरकार राजधानी दिल्‍ली में ई-रिक्‍शा पर लगे बैन को खत्‍म करने के लिए कानून में बदलाव करेगी और  'दीन दयाल योजना' लाएगी, जिसके तहत  ई-रिक्‍शा खरीदने वालों को 3 पर्सेंट के ब्‍याज दर पर लोन दिया जाएगा। एक अंग्रेजी अखबार ने दावा किया है कि गडकरी की इस कवायद से दिल्‍ली के एक लाख  र्इ-रिक्‍शा चालकों के परिवारों के अलावा गडकरी के परिवार से जुड़ी एक कंपनी को भी फायदा होगा। 
 
गडकरी की कंपनी बनाती है ई-रिक्‍शा
द इंडियन एक्‍सप्रेस की खबर के मुताबिक, पूर्ति ग्रीन टेक्‍नोलॉजीस (पीजीटी) प्राइवेट लिमिटेड गडकरी द्वारा स्‍थापित पूर्ति ग्रुप की कई कंपनियों में से एक है। यह कंपनी 2011 में रजिस्‍टर्ड हुई थी और खुद गडकरी 2011 तक इस कंपनी के चेयरमैन थे। खबर के मुताबिक, पीजीटी उन 7 कंपनियों में से एक है, जिसे काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ने बैटरी ऑपरेटेड रिक्‍शा बनाने और बेचने का लाइसेंस 2012 में दिया था। 
 
नियमों में बदलाव का इंतजार कर रही है कंपनी 
पीजीटी के डायरेक्‍टर और गडकरी के रिश्‍तेदार अशोक उर्फ राजेश तोतडे ने अखबार को बताया कि उनकी कंपनी मोटर के पावर को लेकर दी जाने वाली राहत का इंतजार कर रहे हैं, ताकि वे बैटरी से चलने वाले रिक्‍शे का उत्‍पादन शुरू कर सकें। राजेश के मुताबिक, 'केंद्र मोटर व्हीकल एक्‍ट में बदलाव करने की तैयारी में है और हम भी अपना प्रोडक्‍ट बाजार में उतारने के लिए तैयार हैं।'
 
नियम बदलने का वादा किया था गडकरी ने 
अखबार के मुताबिक, राजेश उसी राहत के संबंध में कह रहे हैं, जिसका जिक्र गडकरी ने 17 जून को राजधानी में आयोजित ई-रिक्‍शा चालकों की रैली में किया था। गडकरी ने कहा था, '650 वॉट मोटर क्षमता वाले ई-रिक्‍शों को गैर मोटर क्षमता वाली गाड़ी माना जाएगा। ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट और ट्रैफिक पुलिस उनका चालान नहीं कर पाएगी।' गडकरी ने यह वादा भी किया था कि मोटर व्हीकल एक्‍ट 1988 में बदलाव किया जाएगा, क्‍योंकि वर्तमान में इस एक्‍ट के तहत 250 वॉट मोटर क्षमता और अधिकतम 25 किमी प्रति घंटा रफ्तार वाले वाहनों को ही गैर मोटर श्रेणी का समझा जाता है। 
 
क्‍या कहा गडकरी ने? 
अखबार ने ई-मेल के जरिए गडकरी से पूछा कि उन‍के मंत्री पद पर रहते हुए कंपनी को ई-रिक्शों के उत्‍पादन की मंजूरी मिलना क्‍या कन्‍फ्लिक्‍ट ऑफ इंटरेस्‍ट (हितों के टकराव) का मामला नहीं है? गडकरी ने कहा है कि इन ई-रिक्‍शों को बहुत सारी कंपनियां बना रही हैं और किसी एक कंपनी की मोनोपोली नहीं है और न ही किसी पर कोई रोक लगाई गई है। गडकरी ने कहा, 'जहां तक ई-रिक्‍शा मालिकों को 3 प्रतिशत दर पर लोन लेने के लिए बैंकों को प्रोत्‍साहित करने का मामला है, मैं इस बारे में पीएम नरेंद्र मोदी और वित्‍त मंत्री अरुण जेटली को लिख चुका हूं।'

शशि थरूर, गुलाम नबी आजाद के दबाव में बदली थी सुनंदा पुष्कर की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट


शशि थरूर, गुलाम नबी आजाद के दबाव में बदली थी सुनंदा पुष्कर की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट
नई दिल्ली. पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर की रहस्यमय मौत के सिलसिले में नया खुलासा हुआ है। एम्स के डॉक्टर सुधीर गुप्ता ने दावा किया है कि स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद और थरूर के दबाव में पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट बदली गई थी। सुनंदा का पोस्टमॉर्टम करने वाली डॉक्टरों की टीम के प्रमुख डॉ. गुप्ता ने सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (कैट) में हलफनामा दाखिल किया है। उनका दावा है कि आजाद ने उन्हें गैर-पेशेवर तरीके से काम करने का दबाव डाला। ताकि मामले को रफा-दफा किया जाए।
 
एक वेबसाइट पर प्रकाशित रिपोर्ट में डॉ. गुप्ता के हलफनामे का हवाला दिया गया है। डॉ. गुप्ता ने इसमें कहा है कि आजाद और थरूर बेहद ताकतवर व्यक्ति हैं। इस वजह से वे उस समय खुलकर अपनी बात नहीं रख पाए। डॉ. गुप्ता ने दावे के समर्थन में एम्स के डायरेक्टर और थरूर के बीच हुए ई-मेल्स के आदान-प्रदान का ब्योरा भी दिया है। हालांकि, डॉ. गुप्ता के खिलाफ भी कदाचार और साहित्यिक चोरी के आरोप लग रहे हैं।
 
रहस्यमय परिस्थितियों में हुई थी सुनंदा की मौत 
 
जनवरी में सुनंदा का शव रहस्यमय परिस्थितियों में दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में मिला था। इससे ठीक पहले ट्विटर पर उनका पाकिस्तानी जर्नलिस्ट मेहर तरार से झगड़ा हुआ था। सुनंदा को शक था कि मेहर और उनके पति का अफेयर चल रहा है। हालांकि, तरार ने इन आरोपों को खारिज कर दिया था। सुनंदा की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक तनाव कम करने वाली दवाई ज्यादा खा लेने से उनकी मौत हुई थी। हालांकि, विसरा रिपोर्ट में इसकी पुष्टि नहीं हुई है। इसी वजह से मार्च तक एम्स के डॉक्टर फॉरेंसिक विशेषज्ञों से सवालों के जवाब मांगते रहे। आखिरी रिपोर्ट में कहा कि सुनंदा की मौत प्राकृतिक थी। लेकिन अप्राकृतिक हालात में। विरोधाभासी रिपोट्र्स की वजह से मामला उलझा रहा है।

क़ुरआन का सन्देश

 
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