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02 जुलाई 2014

शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो निहायत मेहरबान और रहम वाला है

शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो निहायत मेहरबान और रहम वाला है

अल्ला हुम्मा सल्ली अला मोहम्मद व आले मोहम्मद

मेरे अल्लाह मुझे अपने अज़ाब में गिरफ्तार न कर और मुझे अपनी कुदरत के साथ ना आज़मा, मुझे कहाँ से भलाई हासिल हो सकरी है मेरे पालने वाले, जबकि वो तेरे सिवा कहीं और मौजूद नहीं की जहां से निजात मिल सकेगी जबकि इस पर तेरे सिवा किसी को कुदरत नहीं, ना ही क्योंकि करने में तेरी मदद और रहमत से बे-नियाज़ है और ना ही कोई बुराई करने वाला, तेरे सामने जुर्रत करने वाला और तेरी रज़ाजोई ना करने वाला तेरे काबू से बाहर है, ऐ पालने वाले, ऐ पालने वाले, ऐ पालने वाले, मैंने तेरे ही ज़रिये तुझे पहचाना, तूने अपनी तरफ मेरी रहनुमाई की, और मुझे अपनी तरफ बुलाया है, और अगर तू मुझे ना बुलाता तो मैं समझ ही नहीं सकता था की तू कौन है, हम्द है इस खुदा के लिए जिसे मै पुकारता हूँ तो जवाब देता है अगर्चेह जब वोह मुझे पुकारता है तो मै सुस्ती करता हूँ, हम्द है इस अल्लाह के लिए के जिस से माँगता हूँ तो मुझे अता करता है, अगर्चेह वोह मुझ से क़र्ज़ का तालिब हो तो कंजूसी करता हूँ, हम्द है इस अल्लाह के लिए के जब चाहूँ इसे आपनी हाजत के लिए पुकारता हूँ और जब चाहूँ तन्हाई में बगैर किसी सिफारिश के इस से राज़ व नियाज़ करता हूँ तो वोह मेरी हाजत पूरी करता है, हम्द है इस अल्लाह के लिए की जिस के सिवा मै किसी को नहीं पुकारता और अगर इस के गैर से दुआ करूँ तो वो मेरी दुआ कबूल नहीं करेगा, हम्द है इस अल्लाह के लिए जिस के गैर से मै उम्मीद नहीं रखता और अगर उम्मीद रखूं भी तो वो मेरी उम्मीद पूरी न करेगा, हम्द है इस अल्लाह के लिए जिस ने अपनी सुपुर्दगी में लेकर मुझे इज्ज़त दी और मुझे लोगों के सुपुर्द न किया की मुझे ज़लील करते, हम्द है इस अल्लाह के लिए जो मुझे से मुहब्बत करता है अगर्चेह वो मुझ से बे-नियाज़ है, हम्द है इस अल्लाह के लिए जो मुझ से इतनी नरमी करता है जैसे मै ने कोई गुनाह ना किया हो, बस मेरा रब मेरे नज़दीक हर शै से ज्यादा तारीफ के काबिल है और वो मेरी हम्द का ज्यादा हक़दार है, ऐ माबूद! मई अपने मकासिद की राहें तेरी तरफ खुली हुई पाता हूँ, और उम्मीदों के चश्मे तेरे यहाँ भरे पड़े हैं, हर उम्मीदवार के लिए तेरे फज़ल से मदद चाहने की आजादी है और फरयाद करने वालों की दुआओं के लिए तेरे दरवाज़े खुले हैं, और मैं जानता हूँ की तू उम्मीदवारों की जाए क़बूलियत है, तू मुसीबत ज़दों के लिए फरयाद रसी की जगह है, मै जानता की तेरी सखावत की पनाह लेना और तेरे फैसले पर राज़ी रहना कंजूसों की रोक टोक से बचने और खुदगर्ज़ मालदारों से महफूज़ रहने का ज़रिया है, नीज़ यह की तेरी तरफ आने वाले की मंजिल करीब है और तू अपनी मखलूक से ओझल नहीं है मगर इनके बुरे अमाल ने ही इन्हें तुझ से दूर कर रखा है , मै अपनी तलब लेकर तेरी बारगाह में आया और अपनी हाजत के साथ तेरी तरफ मुतावाज्जः हुआ हूँ, मेरी फरयाद तेरे हुज़ूर में है, मेरी दुआ का वसीला तेरी ही ज़ात है, जबकि मई इसका हक़दार नहीं के तू मेरी सुने, और न ही इस काबिल हूँ की तू मुझे माफ़ करे, अलबत्ता मुझे तेरे करम पर भरोसा और तेरे सच्चे वादे पर ऐतेमाद है! तेरी तौहीद पर ईमान मेरी पक्की सच्ची पनाह है, और तेरे बारे में मुझे अपनी मग्फेरत पर यकीन है, तेरे सिवा मेरा कोई पालने वाला नहीं और तू ही सिर्फ यगाना है, तेरे कोई शरीक नहीं, ऐ माबूद यह तेरा फरमान है और तेरा कहना दुरुस्त और तेरा वादा सच्चा है की अल्लाह से इस का फज़ल मांगो, बेशक अल्लाह तुम पर बड़ा मेहरबान है, और ऐ मेरे सरदार यह बात तेरी शान से ब 'ईद है की तू मांगने का हुक्म दे और तू अता न फरमाए, तू अपनी ममलेकत के बाशिंदों को बहुत बहुत अता करने वाला है और अपनी मेहरबानी व नरमी से इनकी तरफ मुतावाज्जः है, ऐ अल्लाह! जब मै बछा था तूने मुझे अपनी नेमत और एहसान के साथ पाला और जब मै बड़ा हुआ तो तूने शोहरत अता की, बस ऐ वो ज़ात जिस ने दुन्या में मुझे अपने एह्साने नेमत और अता से पाला और आखेरत में मुझे अपने अफु व करम का इशारा दिया है, ऐ मेरे मौला! मेरी मग्फेरत ही तेरी तरफ मेरी रहनुमा है और मेरी तुझ से मुहब्बत तेरे सामने मेरी सिफारिश है, और मुझे तेरी तरफ ले जाने वाले अपने इस रहबर पर भरोसा और तेरे हुज़ूर शिफा'अत करने वाले अपने शफ़ी पर इत्मीनान है, ऐ मेरे सरदार! मई तुझे इस ज़बान से पुकारता हूँ जो ब'वजह गुनाह के लुक्नत करती है , पालने वाले मै इस दिल से राज़ गोई करता हूँ जिसे इसके जुर्म ने तबाह कर दिया, ऐ पालने वाले ! मै तुझे पुकारता हूँ लेकिन सहमा हुआ, डरा हुआ, चाहता हुआ, उम्मीद रखता हुआ, ऐ मेरे मौला! जब मै अपने गुनाहों को देखता हूँ तो घबराता हूँ, और तेरे करम पर निगाह डालता हूँ तो आरज़ू बढती है, बस अगर तू मुझे माफ़ करे, तू बेहतरीन रहम करने वाला है अज़ाब दे तो भो ज़ुल्म करने वाला नहीं, ऐ अल्लाह! जो काम तुझे नापसंद हैं वो अंजाम देने का बा-वजूद तुझ से सवाल करने की जुर्रत में तारा जुदो करम ही मेरी हुज्जत है, और हया की कमी के बा-वजूद सख्ती के वक़्त में मेरा सहारा तेरी ही मेहरबानी व नर्म रवी है, और मै उम्मीद रखता हूँ की ऐसी वैसी बातों के होते हुए भी तू मुझे मायूस न करेगा, बस मेरी उम्मीद बर ला और मेरी दुआ सुन ले, ऐ पुकारे जाने वालों में सबसे बेहतर! और जिन से उम्मीद की जाती है इनमे सबसे बुलंदतर, ऐ मेरे आका मेरी आरज़ू बड़ी और मेरा अमल बुरा है, बस अपने अफू से काम ले कर मेरी आरज़ू पूरी फरमा, और बुरे अमल पर मेरी गिरफ्त ना कर क्योंकि तेरा करम गुनाहगारों की सज़ाओं से बहुत बुलंद व बाला है और तेरा हलम कोताही करने वालों की सज़ाओं से अजीमतर है, और ऐ मेरे सरदार! मै तेरे खौफ से भाग कर तेरे फज़ल की पनाह लेता हूँ मै चाहता हूँ की जिस ने तुझ से अच्छा गुमान रखा है इस से दर गुज़र का वादा पूरा फरमा, ऐ मेरे परवरदिगार! मै क्या और मेरी औकात क्या, तुही अपने फज़ल से मुझे बख्श दे और अपने अफु से मुझ पर इनायत फरमा, ऐ मेरे रब! मुझे अपनी परदापोशी से ढांप और अपने ख़ास करम से मेरी सरज़निश टाल दे, अगर आज तेरे सिवा कोई दूसरा मेरे गुनाह को जान लेता तो मै यह कभी ना करता और अगर मुझे जल्द सज़ा मिलने का खौफ होता तो ज़रूर गुनाह से दूर रहता लेकिन इसकी वजह यह नहीं की तू देखने वालों में कमतर और जानने वालों में कम रूतबा है, बल्कि इसकी वजह यह है ऐ परवरदिगार की तू बेहतरीन परदापोश, सबसे बड़ा हाकिम, और सबसे ज़्यादा करम करने वाला। ऐबों को ढापने वाला गुनाहों को माफ़ करने वाला छुपी बातों का जान्ने वाला है, तू अपने करम से गुनाह को ढांपता और अपनी नरम खुई से सज़ा में ताखीर करता है, बस हम्द है तेरे लिए की जानते हुए नरमी से काम लेता है, तेरी हमद है की तू तवाना होते हुए माफ़ करता है और वो मेरे साथ तेरी नर्म रवी है जिस ने मुझे तेरी ना-फ़रमानी पर आमादा किया है तेरा मेरी परदापोशी करना मुझ में हया की कमी की मोवजिब बना है, और तेरी वसी रहमत और अज़ीम अफु के मग्फेरत के बैस मै तेरे हराम किये हुए कामों की तरफ जल्दी करता हूँ, ऐ नर्म खू , ऐ मेहरबान, ऐ ज़िंदा, ऐ निगहबान, ऐ गुनाह माफ़ करने वाले, ऐ तौबा कबूल करने वाले, ऐ अज़ीम अता वाले, ऐ क़दीम एहसान वाले, कहाँ है तेरी बेहतरीन परदापोशी कहाँ है तेरा बुलंद टार अफू, कहाँ है तेरी करीबतर कशाइश, कहाँ है तेरी फौरी फरयाद रसी, कहाँ है तेरी वसी टार रहमत, कहाँ है तेरी बेहतरीन अताएँ कहाँ है तेरी खुशगवार बखशिशें कहाँ है तेरे शानदार इनामात, कहाँ है तेरा बा-अजमत फज़ल, कहाँ है तेरी अज़ीम बख्शीश, कहाँ है तेरा क़दीम एहसान, कहाँ है तेरी मेहरबानी, ऐ मेहरबान अपनी मेहरबानी से, मोहम्मद (स:अ:वव) व आले मोहम्मद (अ:स) के सदके में मुझे अज़ाब से निकाल और अपनी रहमत से मुझे इससे रिहाई दे, ऐ नेकोकार, ऐ खुश सिफात, ऐ नेमत देने वाले, ऐ बुलंदी देने वाले, तेरी सज़ा से बचने में मुझे अपने अमाल पर कुछ भी भरोसा नहीं बल्कि तेरे फज़ल का सहारा है जो हम पर है क्योंकि तू गुनाह से बचा लेने वाला और बख्श देने वाला है तू एहसान के साथ नेमतों का आगाज़ करता है और मेहरबानी करते हुए गुनाहों की माफ़ी देता है बस हम नहीं जानते की किस बात पर शुक्र करें आया तेरी नेकी ज़ाहिर करने पर, या बुराई की परदापोशी पर या बहुत बड़ी गम ख्वारी और अताये नेमत पर शुक्र करें या बहुत चीज़ों से तेरे निजात अता करने और अमन देने पर शुक्र करें ऐ इसके दोस्त जो तुझ से दोस्ती करें और ऐ इसका नूरे चश्म जो तेरी पनाह ले सुर सबसे कट कर तेरा ही हो जाए, तू भलाई करने वाला और हम बुराई करने वाले हैं बस औ पालने वाले अपनी भलाई से काम लेते हुए हमारी बुराई से दर गुज़र फरमा ऐ पालने वाले वो कौन सी नादानी है जिस पर तेरा करम वुस'अत ना रखता हो या वो कौन सा ज़माना है जो तेरी मोहलत से दराज़ हो और तेरी नेमतों के सामने हमारे अमाल की क्या वक'अत है किस तरह से हम अपने अमाल में इजाफा करें की इन्हें तेरे करम के सामने ला सकें बल्कि तेरी वो रहमत गुनाहगारों पर कैसे तंग हो जाएगी जो इन पर छाई हुई है ऐ वसी बख्शीश वाले ऐ मेहरबानी से बहुत ज्यादा देने वाले बस तेरी इज्ज़त की क़सम ऐ मेरे आक़ा! तू धुत्कारे तब भी मै तेरे दरवाज़े से न हटूंगा चिंकी मुझे तेरे जूदो करम की मग्फेरत है इसलिए मै अपनी ज़बान को तेरी तारीफ व तौसीफ से ना रोकूंगा, तू जो चाहे कर गुज़रता है जिसे चाहे, जिस चीज़ से चाहे और जैसे चाहे अज़ाब देता है और जिस पर चाहे जिस चीज़ से चाहे और जैसे चाहे रहम करता है, तेरे फज़ल पर पूछ गुछ नहीं की जा सकती, तेरी सल्तनत पर झगडा नहीं हो सकता और तेरे काम में कोई शरीक नहीं, तेरे हुक्म में कोई ज़िददियत नहीं, और तेरी तदबीर में कोई एहतियात नहीं कर सकता, तेरे ही लिए पैदा करना और हुक्म फरमाना बा-बरकत है वो अल्लाह जो जहानों का पालने वाला है, ऐ परवरदिगार! यह है इस स्शाख्स का मुकाम जिसने तेरी पनाह ली, तेरे सायाए करम में आया, और तेरे ही एहसान और नेमतों का ख्वाहाँ हुआ है, और तू ऐसा सखी है की तेरा दामान अफू और तंग नहीं होता, तेरे फज़ल में कमी नहीं आती, और तेरी रहमत में कमी नहीं पड़ती, हम ने एतेमाद किया है तुझ पर, तेरी दरीना दर गुज़र अज़ीम तर फज़ल व करम और तेरी कुशादा तर रहमत के साथ, तू ऐ मेरे पालने वाले! क्या तू हमारे अच्छे गुमान के खिलाफ करेगा या हमारी कोशिश नाकाम बनाएगा! नहीं, ऐ मेहरबान! तुझ से हम यह गुमान नहीं रखते और ना तुझ से हमारी यह ख्वाहिश थी! ऐ पालने वाले! बेशक तेरी बारगाह से हमारी बहुत सी लम्बी उम्मीदें हैं, बेशक हम तेरी बारगाह से बड़ी बड़ी आरजूएं रखते हैं, हम तेरी ना फ़रमानी करते हैं तो भी हमें आस है तू हमारी परदापोशी करेगा और हम तुझ से दुआ मांगते हैं तो उम्मीद करते हैं की तू हमारी दुआ कबूल करेगा, बस ऐ हमारे मौला हमारी उम्मीदें पूरी फरमा अगर्चेह हम जानते हैं की हमारे अमाल की सज़ा क्या है लेकिन तेरा इल्म हमारे बारे में है और हमें इसका इल्म है की तू हमें अपने यहाँ से पलटायेगा नहीं, चाहे हम तेरी रहमत के हक़दार ना भी हुए, बस तू इसका अहल है की हम पर और दुसरे गुनाहगारों पर अपने वसी तर फज़ल से दाद व दहश करे, बस हम पर ऐसा एहसान फरमा की जिस का तू अहल है, और सखावत कर क्योंकि हम तेरे इनाम के मोहताज हैं, ऐ बख्शने वाले तेरे ही नूर से हमें हिदायत मिली, तेरे फज़ल से हम मालामाल हुए और तेरी नेमत के साथ हम सुबह व शाम करते हैं, हमारे गुनाह तेरे सामने हैं, ऐ अल्लाह! हम तुझ से इनकी बख्शीश चाहते हैं, और तेरे हुज़ूर तौबा करते हैं, तू नेमतों के ज़रिये हम से मोहब्बत करता है, और इसके मुकाबिल हम तेरी ना फ़रमानी करते हैं, तेरी भलाई हमारी तरफ आ रही है, और हमारी बुराई तेरी तरफ जा रही है, तू हमेशा हमेशा के लिए इज्ज़त वाला बादशाह है, तेरे पास हमारे बुरे अमाल जाते हैं तो भी तुझे हम पर अपनी नेमतों के बारिश से रोक नहीं सकते, और तू हम पर अपनी अताएँ बढाता रहता है, बस तो पाक तर है, कैसा बुर्दबार है कितना अज़ीम है कितना मो'अजज़ीज़ है, इब्तदाई करने और पलटाने में तेरे नाम पाक तर हैं हमें तेरी सनाई बरतर है और तेरी नेमतें और तेरे काम बुलंद तर हैं, ऐ माबूद! तू फज़ल में वुस'अत वाला और बुर्दबारी में अजीमतर है इस से की तू मेरे फेल और खता के बारे में कयास करे, बस माफ़ी दे, माफ़ी दे , माफ़ी दे मेरे सरदार, मेरे सरदार, मेरे सरदार! ऐ अल्लाह! हमें अपने ज़िक्र में मशगूल रख, हमें अपनी नाराज़गी से पनाह दे, हमें अपने अज़ाब से अमां दे, हमें अपनी अताओं से रिजक दे, हमें अपने फज़ल से इनाम दे, हमें अपने घर (काबा) का हज नसीब फरमा, और हमें अपने नबी (स:अ:व:व) के रौज़े की ज्यारत करा, तेरा दरूद, तेरी रहमत, तेरी बख्शीश और तेरी राजा हो तेरे नबी (स:अ:व:व) के लिए और इनके अहलेबैत (अ:स) के लिए, बेशक तू नज़दीक तर कबूल करने वाला है! और हमें अपनी इबादत बजा लाने की तौफीक दे, हमें अपनी मिल्लत और ओने नबी (स:अ:व:व) की सुन्नत पर मौत दे, इनपर (स:अ:व:व) और इनकी आल (अ:स) पर खुदा त'आला की रहमत हो, ऐ माबूद मुझे बल्ह्श दे और मेरे माँ बाप को भी और दोनों पर रहम कर जैसा इन्होने बचपन में मुझे पाला है, ऐ अल्लाह! इन्हें एहसान का बदला एहसान और गुनाहों के बदले बख्शीश अता फरमा! ऐ माबूद! बख्श दे मोमिन मर्दों और मोमिना औरतों को जो इनमें ज़िंदा और मुर्दा हैं, सभी को बख्श दे, और इनके और हमारे दरम्यान नेकियों के ज़रिये ता'अल्लुक़ बना दे,! ऐ माबूद! बख्श दे हमारे ज़िंदा, मुर्दा, हाज़िर, गायब, और मर्द व औरत, खुर्द व बुज़ुर्ग, और हमारे आज़ाद और गुलाम सभी को बख्श दे!खुदा से फिर जाने वाले झूठे हैं, वो गुमराह गुमराही में दूर निकल गए हैं और वो नुकसान उठाने वाले हैं, खुला नुकसान! ऐ माबूद! हज़रत मोहम्मद (स:अ:व:व) और आले मोहम्मद (अ:स) पर रहमत नाजिल फरमा और मेरा खात्मा बखैर फरमा! और दुन्या व आखेरत में मेरे अहम् कामों में मेरी हिमायत फरमा और मुझ पर इसे मुसल्लत न कर जो मुझ पर रहम ना करे और मेरे लिए अपनी तरफ से बाक़ी रहने वाला निगहबान करार दे, अपनी दी हुई अच्छी नेमतें मुझ से छीन न ले और मुझे अपने फज़ल से रोज़ी अता कर जो कुशादा हलाल और पाक हो! ऐ माबूद! मुझे अपनी पासदारी में ज़ेरे निगाह रख और अपनी हिफाज़त में महफूज़ फरमा, अपनी हिमायत में मुझे अमान दे, और मुझे हमारे इस साल और आइन्दा सालों में भी अपने बैत'अल-हराम काबा का हज नसीब फरमा और अपने नबी (स:अ:व:व) व अ'इम्मा (अ:स) की ज्यारत नसीब फरमा, की इन सब पर सलाम हो! ऐ परवरदिगार! इन बुलंद मर्तबा बारगाहों और इन बा-बरकत मुकामात से मुझे बर-किनार ना रख! ऐ माबूद! मुझे ऐसी तौबा की तौफीक दे के फिर तेरी ना-फ़रमानी ना करूँ! मेरे दिल में नेकी व अमल का जज्बा बहा दे और जब तक मुझे ज़िंदा रखे दिन रात अपना खौफ मेरे कलब में डाले रख ऐ जहानों के पालने वाले! ऐ माबूद! जब भी मई कहता हूँ की मई आमादा व तैयार हूँ और तेरे हुज़ूर नमाज़ गुज़ारने को खडा होता हूँ और तुझ से मुनाजात करता हूँ तो मुझे ऊंघ आ लेती है जबकि मै नमाज़ में होता हूँ और जब मई तुझ से राज़ व नयाज़ करने लगूँ तो इस हाल में बरक़रार नहीं रहता, मुझे क्या हो गया मै कहता हूँ की मेरा बातिन साफ़ है मई तौबा करने वालों की सोहबत में बैठता हूँ ऐसे में कोई आफत आ पड़ती है जिससे मेरे क़दम डगमगा जाते हैं और मेरे और तेरे हुजूरी के दरम्यान कोई चीज़ आड़ बन जाती है! मेरे सरदार! शायद की तूने मुझे अपनी बारगाह से हटा दिया है, और अपनी खिदमत से दूर कर दिया है, या शायद के तू यह देखता है की मैं तेरे हक को सुबुक समझता हूँ बस, मुझे एक तरफ कर दिया या शायद तूने देखा की मैं तुझ से रो'गरदा हूँ तूने मुझे बुरा समझ लिया या शायद तूने देखा की मैं झूटों में से हूँ तो मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया या शायद तू देखता है की में तेरी नेमतों का शुक्र अदा नहीं करता तो मुझे महरूम कर दिया या शायद की तूने मुझे इल्माई की मजालिस में नहीं पाया तो इस बिना पर मुझे ज़लील कर दिया है या शायद तूने मुझे गाफिल देखा तो इस पर मुझे अपनी रहमत से मायूस कर दिया है, या शायद तूने मुझे बेकार बातें करने वालों में देखा तो मुझे इन्हीं में रहने दिया या शाययद तू मेरी दुआ को सुनना पसंद नहीं किया तो मुझे दूर कर दिया या शायद तूने मुझे मेरे जुर्म और गुनाह का बदला दिया है या शायद मैं ने तुझ से हया करने में कमी की तो मुझे यह सज़ा मिली है, बस ऐ परवरदिगार! मुझे माफ़ कर दे की मुझ से पहले तूने बहुत से गुनाहगारों को माफ़ फरमाया है इसलिए के ऐ पालने वाले तेरी बख्शीश कोताही करने वालों से बुज़ुर्गतर है, और मैं तेरे फज़ल की पनाह ले रहा हूँ, और तुझ से तेरी ही तरफ भागा हूँ, तेरे वादे की वफ़ा चाहता हूँ की जो तुझ से अच्छा गुमान रखता है इसे माफ़ कर दे, मेरे माबूद! तेरा फज़ल वसी तर और तेरी बुर्दबारी अजीम्तर है इस से की तू मुझे मेरे अमल के साथ तौले या मेरे गुनाह के बाईस मुझे गिरा दे, और ऐ मेरे आक़ा! मैं क्या और मेरी औकात क्या! मुझे अपने फज़ल से बख्श दे मेरे सरदार और अपने अफु के सदके में मुझे अपने परदे में लेले और अपने ख़ास करम से मुझे सरज़निश से माफ़ रख, मेरे सरदार! मैं वोही बच्चा हूँ जिसे तूने पाला मैं वोही कोरा हूँ जिसे तूने इल्म दिया, मैं वोही गुमराह हूँ जिसे तूने राह दिखाई, मैं वो पस्त हूँ जिसे तूने बुलंद किया, मैं वो खौफ्ज़दाह हूँ जिसे तूने अमन दिया, मैं वोह भूका हूँ जिसे तूने सेर किया, और वो प्यासा हूँ जिसे तूने सैराब किया, मैं वो उरयाँ हूँ जिसे तूने लिबास दिया, मैं वो मोहताज हूँ जिसे तूने गनी बनाया, मैं वो कमज़ोर हूँ जिसे तूने कुव्वत बख्शी, मैं वो पस्त हूँ जिसे तूने इज्ज़त अता फरमाई, मैं वो बीमार हूँ जिसे तूने सेहत अता फरमाई, मैं वो सायेल हूँ जिसे तूने बहुत कुछ अता किया, मैं वो गुनाहगार हूँ जिसे तूने ढांप लिया, मैं वो खताकार हूँ जिसे तूने माफ़ किया, मैं वो कमतर हूँ जिसे तूने बढ़ा दिया है, मैं वो कमज़ोर हूँ जिस की तूने मदद की, और मैं वो निकाला हुआ हूँ जिसे तूने पनाह दी! ऐ परवरदिगार! मैं वोही हूँ जिस ने खिलवत में तुझ से हया नहीं की और जलूत में तेरा लिहाज़ नहीं रखा, मैं बहुत भारी मुसीबतों वाला हूँ, मैं वो हूँ जिसने अपने सरदार पर जुर्रत की, मैं वो हूँ जिस ने इसकी ना'फ़रमानी की जो आसमानों पर मुसल्लत है, मैं वो हूँ जिस ने रब्बे जलील की ना'फ़रमानी के लिए रिश्वत दी, मैं वो हूँ जब मुझे इसकी खुशखबरी मिली तो मैं दौड़ता हुआ इसकी तरफ गया! मैं वो हूँ जिसे तूने ढील दी तो होश में ना आया और तूने मेरी परदापोशी की तो मैंने हया से काम ना लिया और गुनाहगारों में हद से गुज़र गया! तूने मुझे नज़रों से गिराया तो मैंने कुछ परवाह नहीं की बस तूने अपनी नरमी से मुझे ढील दी और अपने हिजाब से मेरी परदापोशी की, जैसा की तू मेरी तरफ से बे'खबर है! तूने मुझे ना'फरमानियों की सज़ाओं से ब़र'किनार रखा गोया तू मुझ से शर्म खाता है! मेरे माबूद! जब मैंने तेरी नं'फ़रमानी की तो वो इस लिए नहीं की के मैं तेरी पर्वार्दिगारी से इनकारी था या तेरे हुक्म को सुबुक समझ दिया था या खुद को तेरे अज़ाब के तरफ खींच रहा था या तेरे डरावे को कमतर समझता था, बल्कि हकीकत यह थी की ख़ता यूँ उभरी की मेरे नफस ने मेरे लिए माज़ेन कर दिया था, मेरी ख्वाहिश मुझ पर ग़ालिब आ गयी थी, मेरी बद'बख्ती ने इसपर मेरा साथ दिया, तेरी परदापोशी ने मुझे मगरूर कर दिया यूं मैं तेरी ना'फ़रमानी और तेरे हुक्म की मुखालिफत में कोशां हुआ, बस अब मुझे तेरे अज़ाब से कौन रिहाई देगा, कल को मुझे दुश्मनों के हाथों से कौन छुड़ाएगा और अगर तूने अपनी रस्सी मुझ से काट दी तो फिर मैं किस की रस्सी को थामुंगा, हाय अफ़सोस के तेरी किताब में मेरे ऐसे ऐसे अमाल दर्ज हो गए की अगर मैं तेरे फज़ल व करम और तेरी वासी रहमत का उम्मीदवार न होता और ना'उम्मीदी से तेरी मुमानेअत को ना जानता तो जब मैं अपने अमाल को याद करता तो ज़रूर ना'उम्मीद हो जाता, ऐ पुकारे जाने वालों में बेहतरीन और उम्मीद किये जाने वालों में बरतर, ऐ माबूद! मैं इस्लाम की पनाह में तुझ को अपना वसीला बनाता हूँ, एहतराम कुरान के साथ मुझे तुझ पर भरोसा है, और मैं तेरे नबी (स:अ:व:व) उम्मी कुरैशी हाशमी अरबी, तहामी, मक्की, मदनी से मोहब्बत के वास्ते से तेरे तक़र्रुब का उम्मीदवार हूँ, बस मेरी इस इमानी उन्सियत को वहशत में ना डाल और मेरे सवाब को अपने गैर के इबादत गुज़ार का सवाब ना करार दे क्योंकि एक गिरोह ज़बानी कलामी मोमिन है ताकि इस के ज़रिये इनका खून महफूज़ रहे तो इन्होंने अपना मकसद पा लिया, लेकिन हम जो तुझ पर अपनी ज़बानों और दिलों से ईमान लाये हैं ताकि तू हमें माफ़ का दे, बस हमारी उम्मीद पूरी फरमा और अपनी आरज़ू हमारे सीनों में बसा दे! और हमारे दिलों को टेढा ना फरमा इसके बाद की जब तूने हमें हिदायत दी है और अपनी तरफ से हम पर रहमत फरमा की बेशक तू बहुत देने वाला है! बस क़सम है तेरी इज्ज़त की के अगर तू मुझे झिड़क दे तो भी मई तेरी बारगाह से ना हटूँगा, और तेरी तौसीफ करने से ज़बान ना रोकूंगा क्योंकि मेरा दिल तेरे फज़ल व करम और तेरी वसी रहमत की मग्फेरत से भरा हुआ है, तो गुलाम अपने मौला व आका के सिवा किस की तरफ जा सकता है और मखलूक को अपने खालिक के इलावा कहाँ पनाह मिल सकती है, मेरे अल्लाह! अगर तूने मुझे जंजीरों में जकड दिया और देखती आँखों मुझ से अपना फैज़ रोक दिया और लोगों के सामने मेरी रुस्वाइयां अयाँ कर दी और मेरे जहन्नुम का हुक्म सादिर कर दिया और तू मेरे और नेक लोगों के दरम्यान हायेल हो जाए तो भी मैं तुझ से उम्मीद ना तोडूंगा, तुझ से अफु व दरगुज़र की उम्मीद रखने से बाज़ ना आऊँगा और मेरे दिल से तेरी मोहब्बत ख़तम ना होगी, मैं दुन्या में दी गयी तेरी नेमतों और गुनाहों पर तेरी परदापोशी को हरगिज़ नहीं भूल सकता मेरे आका! मेरे दिल से दुन्या की मोहब्बत निकाल दे, और मुझे अपनी मखलूक में सबसे बेहतर नबियों के खातिम मोहम्मद मुस्तफा (स:अ:व:व) और इनकी आल (अ:स) के कुर्ब में जगह इनायत फरमा और मुझे अपने हुज़ूर तौबा के मुकाम की तरफ पलटा दे और मुझे खुद अपने आप पर रोने की तौफीक दे क्योंकि मैं ने अपनी उम्र ताल मटोल और झूटी आरजूओं में गंवा दी! और अब मैं अपनी बहबूदी से मायूस हो जाने को हूँ तो मुझ से बुरा हाल और किस का हिगा! अगर मैं इस हाल के साथ ही अपनी कब्र में उतार दिया जाऊं जबकि मैंने कब्र के लिए कुछ सामान नहीं किया और नेक अमाल का बिस्तर नहीं बिछाया के आराम पाऊँ, ऐसे में क्यों ज़ारी ना करूँ के मुझे नहीं मालूम मेरा अंजाम क्या होगा, मैं देखता हूँ की नफस मुझे धोका देता है और हालात मुझे फरेब देते हैं और अब मौत ने मेरे सर पर अपने पर फैलाए हैं तो कैसे गिरया ना करूँ, मैं जान के निकल जाने पर गिरया करता हूँ, कब्र की तारीकी और इसके पहलू की तंगी पर गिरया करता हूँ, मुनकीर नकीर के सवालात के डर से गिरया करता हूँ, ख़ास कर इसलिए गिरया करता हूँ के मुझे कब्र से उठना है की उरयानी व ख्वारी के साथ अपने गुनाहों का बार लिए हुए दायें बाएं देखूंगा जब दुसरे लोग ऐसे हाल में होंगे जो मेरे हाल से मुख्तलिफ होगा, इनमें से हर शख्स दूसरों से बेखबर अपने हाल में मगन होगा! इस रोज़ बाज़ के चेहरे कुशादा खन्दां और खुश होंगे और बाज़ चेहरे ऐसे होंगे जिन पर गर्द व गुबार और तंगी व ज़िल्लत का गलबा होगा, मेरे सरदार! तू ही मेरा सहारा है तुही मेरी टेक है तुही मेरी उम्मीदगाह है, तुझी पर मुझे भरोसा है और तेरी रहमत से तअल्लुक है, तू जिसे चाहे रहमत से नवाजता है और जिसे तू पसंद करे इसको अपनी मेहरबानी की राह दिखाता है, बस हमद तेरे ही लिए है की तूने मेरे दिल को शिर्क से पाक किया! तेरे ही लिए हमद है की तूने मेरी ज़बान को गोया किया, आया मैं इस कज-ज़बान से तेरा शुक्र अदा कर सकता हूँ या अमल में कोशिश करके तुझे राज़ी कर सकता हूँ, ऐ परवरदिगार तेरी हमद के बराबर मेरी ज़बान की क्या हैसियत है और तेरी नेमतों और एहसानों के सामने मेरे अमल का क्या वजन है! मरे माबूद! तेरी सखावत ने मेरी आरज़ू को बढाया और तेरी कद्रदानी ने मेरे अमल को कबूल फरमाया है, मेरे सरदार मेरी रगबत तेरी तरफ, उम्मीद तेरी ज़ात से है और खौफ भी तुझी से है, और यह मुझे तेरे हुज़ूर खींच लायी है, ऐ खुदाए यकता मेरी हिम्मत तेरे हुज़ूर पहुँच के ख़तम हो गयी और मेरी रगबत तेरे खजाने के गिर्द घूम रही है, मेरी उम्मीद और मेरा खौफ ख़ास तेरे लिए है, मेरी मोहब्बत तेरे साथ लगी हुई है मेरे हाथ ने तेरा दामन थाम रखा है, मेरे खौफ ने मुझे तेरी इता'अत की तरफ बढ़ाया है, ऐ मेरे आका! मेरा दिल तेरे ज़िक्र से ज़िंदा है और तेरी मुनाजात के ज़रिये मैंने अपना खौफ दूर किया है, बस औ मेरे मौला! और मेरी उम्मीद्गाह, ऐ मेरे सवाल की इन्तेहा मुझे अपनी इता'अत में लगा कर मुझे गुनाह से रोक दे और मेरे गुनाह के दरम्यान जुदाई डाल दे, बस मैं तुझ से अजली उम्मीद और बड़ी ख्वाहिश रखते हुए सवाल करता हूँ, इस मेहरबानी और इनायत का जो तूने अपनी ज़ात पर वाजिब की हुई है, बस हुक्म तेरा ही है, तू यकता है, तेरा कोई सानी नहीं है और साड़ी मखलूक तेरा कुनबा है जो तेरे अख्त्यार में है और हर चीज़ तेरे सामने झुकी हुई है, तू बा-बरकत है ऐ जहानों के पालने वाले! मेरे अल्लाह! मुझ पर रहम फरमा जब मेरे पास उज़्र्र ना रहे, तेरे हुज़ूर बोलने में मेरी ज़बान गुंग हो जाए और तेरे सवाल पर मेरी अक्ल गूम हो जाए, बस मेरी सबसे बड़ीउम्मीदगाह मुझे इस वक़्त ना-उम्मीद ना कर जब मेरी हाजत सख्त हो मुझे नादानी पर दूर ना फरमा, मेरी कम सबरी पपर महरूम ना रख मेरी हाजत में मुताबिक अता कर और मेरी कमजोरी पर रहम फरमा! मेरे सरदार! तुही मेरा आसरा है, तुझ पर भरोसा है तुझी से उम्मीद है, तुझी पर तवक्कुल और तेरी रहमत से त'अल्लुक़ है, तेरी ड्योढ़ी पर डेरा डाले हुए हूँ तेरी सखावत से अपनी हाजत बर'आरी चाहता हूँ! ऐ मेरे रब! तेरे करम से अपनी दुआ की इब्तेदा करता हूँ, तुझ से तंगी दूर करने की उम्मीद करता हूँ तेरे खजाने से अपनी उसरत दूर कराना चाहता हूँ, तेरी अफु के साए में आया खडा हूँ, मेरी निगाहें तेरी अता व सखावत की तरफ उठती हैं और हमेशा तेरे एहसान की तरफ नज़र जमाये रखता हूँ! बस मुझे जहन्नुम में ना जलाना की तू मेरी उम्मीद का मरकज़ है और मुझी हावियाह दोज़ख में ना ठहराना क्योंकि तू मेरी आँखों की ठंडक है, ऐ मेरे आका! तेरे एहसान और भलाई से मुझे जो गुमान है इसको ना झुटला क्योंकि तुही मेरी जाए एतमाद है और मुझे अपनी तरफ के सवाब से महरूम ना फरमा तो मेरी मोहताजी से वाकिफ है! मेरे अल्लाह! अगर मेरी मौत करीब आ गयी है और मेरे अमल ने तुझे मेरे नज़दीक नहीं किया तो मैं अपने गुनाहों के इकरार को तेरे हुज़ूर अपने गुनाहों का उज़र करार देता हूँ, मेरे माबूद! अगर तू माफ़ कर दे तो कौन तुझ से ज़्यादा माफ़ करने वाला है, और अगर तू अज़ाब दे तो कौन है जो फैसला करने में तुझ से ज़्यादा आदिल है , इस दुन्या में मेरी बेकसी पर रहम फरमा, और मौत के वाकत मेरी तकलीफ पर और काबे में मेरी तन्हाई और पहलूए कब्र में मेरी खौफ्ज़दगी पर रहम फरमा, जब मैं हिसाब के लिए उठाया जाऊं तो अपने हुज़ूर मेरे ब्यान को नरम फरमा, मेरे अमाल में से जो लोगों से मख्फी हैं इनपर माफ़ी फरमा, मेरी जो परदापोशी की है इसे दायमी कर दे, और इस वक़्त रहम फरमा जब मेरे दोस्त बिस्तर पर मेरे पहलू बदल रहे होंगे इस वक़्त रहम फरमा जब मेरे नेक हमसाये तख्ता-इ-गुसल पर मुझे इधर से उधर करते होंगे, इस वक़्त मेहरबानी फरमा जब मेरे रिश्तेदार मेरा जनाज़ा चारो तरफ से उठाये हुए ले जायेंगे, और मुझ पर इस वक़्त बख्शीश कर जब तेरे हुज़ूर आऊँगा और कब्र में तनहा हूंगा, और इस नए घर में मेरी बे कासी पर रहम व करम फरमा यहाँ तक की तेरे सिवा किसी और से ना लगाव हो! ऐ मेरे आका! अगर तूने मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया तो मैं तबाह हो जाऊंगा। मेरे सरदार! अगर तूने खता ना माफ़ की तो किस से मदद मांगूं, अगर इस मुसीबत में मुझ पर तेरी इनायत न हुई तो किस्से फरयाद करूँ और अगर मेरी तंगी दूर न करे तो किसे अपना हाल सुनाऊं! मेरे सरदार! अगर तू मुझ पर रहम न करे तो फिर मेरा कौन है जो मुझ पर रहम करेगा! अगर इस ज़रुरत के दिन मुझ पर तेरा करम न हो तो किस से इस की उम्मीद करूँ, जब मेरा वक़्त ख़तम हो जाए तो गुनाहों से भाग कर किस के पास जाऊं! मेरे सरदार! मुझे अज़ाब न देना की मैं उम्मीद ले कर आया हूँ! मेरे अल्लाह! मेरी उम्मीद पूरी फरमा और खौफ से अमां दे, बस गुनाहों की कसरत में तेरे अफु के सिवा मुझे किसी से उम्मीद नहीं! मेरे आका! मैं तुझ से वो कुछ माँगता हूँ जिस का हक़दार नहीं हूँ और तू ढांपने वाला और बख्शने वाला है, बस मुझे बख्श दे तू अपने नज़रे करम से मुझे ऐसा लिबास दे की जो मेरी खताओं को छुपा ले, तू वो खताएं माफ़ कर दे की इनपर बाज़-पुर्स न हो, बेशक तू क़दीमी नेमत वाला, बड़ा दर-गुज़र करने वाला, और मेहरबान माफ़ी देने वाला है! मेरे अल्लाह! तू वो है जो सवाल न करने वालों और अपने रुबूबियत के मुकिर लोगों को भी अपने फैज़ व करम से नवाजता है तो मेरे सरदार! क्योंकर वो महरूम रहेगा जो तुझ से माँगता है और यकीन रखता है की पैदा करना और हुक्म देना ख़ास तेरे ही लिए है, बा-बरकत और बुलन्द्तर है तू ऐ जहानों के पालने वाले, ऐ मेरे आका ! तेरा बन्दा हाज़िर है जिसे इसकी नेकी ने तेरे दरवाज़े पर ला खडा किया है वो अपनी दुआ के जरिया तेरे एहसान का दरवाज़ा खटखटा रहा है, बस अपनी ज़ात के वास्ते मुझे अपनी तवज्जह से महरूम न फरमा और मेरी अर्ज़ कबूल करले, मैंने इस दुआ के ज़रिये तुझे पुकारा है और उम्मीद रखता हूँ की तू इसे रेड न करेगा क्योंकि मुझे मेहरबानी और रहमत के मग्फेरत है, मेरे माबूद! तू वो है जिस से सायेल को इसरार नहीं करना पड़ता और अता करने से तुझ में कमी नहीं आती, तू ऐसा है जैसा तू बताता है और इस से बुलंद है जैसा हम कहते हैं, ऐ माबूद! मैं माँगता हूँ तुझ से बेहतरीन सब्र जल्द्तर कशाइश, सच बोलने की तौफीक, और बेशतर सवाब की अताय्गी! ऐ परवरदिगार! मैं तुझ से हर भलाई का सवाली हूँ जिसे तुन जानता है और मैं नहीं जानता! ऐ अल्लाह! मैं तुझ से वो चीज़ माँगता हूँ जो तेरे नेक बन्दे तुझ से मांगते हैं, ऐ बेहतरीन मसूल और अता करने वालों में बेहतरीन, मैं अपने लिए अपने कुनबे, अपने वालदैन के लिए, अपनी औलाद, त'अल्लुक्दारों और दीनी भाइयों के लिए जो चाहता हूँ अता फरमा और मेरी ज़िन्दगी बेहतरीन मेरी अच्छाई ज़ाहिर और मेरे तमाम हालात को सुधार दे! और मुझे उन लोगों में करार दे जिन को तूने लम्बी उम्र दी, इनके अमल को नेक गर्दाना इनको अपनी बहुत से नामतें अता की, और तू इनसे राज़ी हो गया और इनको पाकीज़ा ज़िन्दगी बख्शी जिसमें वो सदा खुश रहे इनको इज्ज़तदार बनाया, और रोज़गार को मुकम्मल फरमा, क्योंकि खुद तू जो चाहे करता है और जो तेरा गैर चाहे तू वो हो नहीं सकता, वक्तों और दिन के गोशों में जिस अमल से तेरा तक़र्रुब चाहता हूँ इसमें मेरी तरफ से रिया और तारीफ की ख्वाहिश खुद्सताई और बड़ाई का एहसास न आने दे और मुझे इनमें करार दे जो तुझ से डरते हैं! ऐ माबूद! मुझे रोज़ी में कशाइश वतन में अमन और मेरे रिश्तेदारों और मेरी औलाद के बारे में खुनकी चश्म फरमा और अपनी नेमतों में मुझे खुसूसी हिस्सा, बदन में सेहत व तंदरुस्ती व तवानाई दे और दीं माँ सलामती इनायत फरमा, और मुझे ऐसे अमल की तौफीक दे के मैं तेरी बंदगी और तेरे रसूल हज़रत मोहम्मद (स:अव:व) की फरमाबरदारी में रहूँ जब तक तू मुझे ज़िंदा रखे, मुझे अपने बन्दों में करार दे जिनका हिस्सा तेरे यहाँ इन भलाइयों में बहुत ज्यादा है जो तूने नाजिल की और नाजिल करता है। माह रमजान में, शब् कद्र में, और जो तू हर साल के दौरान नाजिल करता है यानी वोह रहमत जिसे तू फैलाता है, वोह आराम जो तू देता है, वो सख्ती जिसे तू दूर करता है, वो नेकियाँ जो तू कबूल करता है, और वो गुनाह जो तू माफ़ फरमाता है, और मुझे बैतूल हराम काबा का हज इस साल और आइन्दा सालों में भी नसीब फरमा और मुझ को अपने वुस'अत वाले फज़ल से कुशादा रिजक दे, और ऐ मेरे सरदार बुरी चीज़ों को मुझ से दूर रख मेरे क़र्ज़ और नाहक ली हुई चीज़ों को मेरे तरफ से लौटा दे, हत्ता की मुझ पर ईज़ा न रहे और मेरे दुश्मनों, हासिदों और मुखालिफों के काना और आँखें मेरी तरफ से बंद कर दे, और इनके मुकाबिल मेरी मदद फरमा, मेरी आँखें ठंडी कर और मेरे दिल को फरहत दे, मेरी तकलीफ और परेशानी के दूर हो जाने का ज़रिया पैदा कर दे, तेरी सारी मख्लूकात में से जो जो मेरे लिए बुरा इरादा रखता है इसे मेरे पांव तले दाल दे, और शैतान व सुलतान के शर और बुरे माल से बचने में मेरी मदद फरमा और मुझे सब गुनाहों से पाक साफ़ कर दे! अपनी दर-गुज़र के साथ मुझे जहन्नुम से पनाह दे अपनी रहमत से मुझे जन्नत में दाखिल कर, अपने फज़ल व करम से हुर्रुल-ऐन को मेरी बीवी बना दे, और मुझे अपने प्यारों और नेकोकारों के साथ जगह दे जो हज़रत मुहम्मद (स:अ:अ:व:) और इनकी खुश'इतवार आल (अ:स) हैं और पाकीज़ा शफ्फाफ और पाक दिल हैनं, इनपर, इनके जिस्मों पर और इनकी रूहों पर रहमत फरमा और इनपर (अ:स) रहमते खुदा और इसकी बरकतें हों, मेरे अल्लाह! मेरे आका! तेरी इज्ज्ज़त व जलाल की क़सम की अगर तू मेरे गुनाहों की बाज़-पुरस करेगा तो मैं तेरे अफु की ख्वाहिश करूंगा, अगर तूने मेरे पस्ती पर पूछ गुच्छ की तो मई तेरी मेहरबानी की तमन्ना करूँगा, अगर तू मुझे दोज़ख में डालेगा तो मैं वहाँ के लोगों को बताऊंगा की मैं तुझ से मोहब्बत करता रहा हूँ! मेरे माबूद! मेरे सरदार! अगर तू ने अपने प्यारों और फरमा'बारदारों के सिवा किसी तो माफ़ी न दी तो गुनाहगार लोग किस से फरयाद कर सकेंगे अगर तू सिर्फ अपने वफादारों को इज्ज़त अता फरमाएगा तो खताकार लोग किस से दाद फरयाद करेंगे, और क़सम-ब-खुदा की मैं यह जानता हूँ की तुझे अपने दुश्मन की ख़ुशी की निस्बत अपने नबी (स:अ:व:व) की ख़ुशी मंज़ूर है, मेरे माबूद अगर तू मुझे जहन्नुम में डालेगा तो इसमें तेरे दुश्मनों को ही ख़ुशी होगी और अगर तूने मुझे जन्नत में दाखिल किया तो इस में तेरे नबी (स:अ:व:व) को मुसर्रत होगी! ऐ अल्लाह! मैं सवाली हूँ तुझ से की मेरे दिल को अपनी मोहब्बत से ओने रोब से, और पानी किताब की तस्दीक से भर दे, नीज मेरे दिल को ईमान खौफ और शौक़ से पुर कर दे, ऐ बुज्रुर्गी और इज्ज़त के मालिक! मेरे लिए अपनी हुजूरी महबूब बना और मुझ से मुलाक़ात को महबूब रख, और मेरे लिए अपनी मुलाक़ात को खुश कुशादगी और फख्र व इज्ज़त का ज़रिया बना, ऐ माबूद मुझे गुज़रे हुए नेक लोगों से मुल्हाक फरमा दे और मौजूदा नेक लोगों में शामिल कर दे, मेरे लिए नेकोकारों का रास्ता मुक़र्रर कर दे, और मेरे नफस के बारे में मेरी मदद कर जैसे तू अपने नेक बन्दों की इनके नफ्सों पर मदद फरमाता है, मेरे अमल का अंजाम खैर के साथ कर, और अपनी रहमत से इसके सवाब में मुझे जन्नत अता फरमा और जो नेक अमल तूने मुझे अता किया है इसपर मुझ को साबित क़दम रख! ऐ पालने वाले! और जिस बुराई से मुझे निकाला है इसकी तरफ न पलटा, ऐ जहानों के परवरदिगार, ऐ माबूद मैं तुझ से वो ईमान माँगता हूँ जो तेरे हुज़ूर मेरी पेशी से पहले ख़तम न हो, मुझे ज़िंदा रखता है तो इसपर ज़िंदा रख और मौत देनी है तो इसी पर मौत दे, जब मुझे उठाये तो इसी पर उठा खडा कर और मेरे दिल को दीन में दिखा दे, शक और सताइश तलबी से पाक रख, यहाँ तक की मेरा अमल तेरे लिए ख़ास हो जाए, ऐ माबूद, मुझे अपने दीन की पहचान अपने हुक्म की समझ और अपने इल्म की सूझ बूझ इनायत फरमा और मुझे अपनी रहमत के दोनों हिस्से दे और ऐसी परहेज़गारी दे जो मुझे तेरी नाफ़रमानी से रोके और मेरे चेहरे को अपने नूर से रौशन फरमा, मेरी चाहत इसमें करार दे जो तेरे पास है, और मुझे अपनी राह में और अपने रसूल साल-अल्लाहो अलैहि व आलिहि! ऐ माबूद! मैं सुस्ती, बाद-दिली, परेशानी, बुजदिली, कंजूसी, गफलत, संगदिली, ख्वारी और फ़िक्र व फाका से तेरी पनाह लेता हूँ और तमाम सख्तियों और बे-हयाई के के ज़ाहिर और पोशीदा कामों से तेरी पनाह लेता हूँ, और तेरी पनाह लेता हूँ सैर न होने वाले नफस पर न होने वाले शिकं पर, न डरने वाले दिल, सुनी न जाने वाली दुआ, और फायेदा न देने वाले काम से, उअर तेरी पनाह लेता हूँ ऐ पालने वाले अपने नफस, अपने दीं, अपने माल, और जो तूने मुझे दिया है इसमें रांदे हुए शैतान से, बेशक तो सुनने जाने वाला है, ऐ माबूद ! सच तो यह है की तुझ से मुझे कोई पनाह नहीं दे सकता न ही तेरे सिवा कोई पनाहगाह पाता हूँ बस मेरे नफस को अपनी तरफ के किसी अज़ाब में न दाल, और न मुझे किसी तबाही की तरफ पलटा , और न मुझे दर्दनाक अज़ाब की तरफ रवाना कर! ऐ माबूद! मेरा अमल कबूल फरमा, मेरे ज़िक्र को बुलंद कर, मेरे मोकाम को ऊंचा कर और मेरे गुनाह मिटा दे, मुझे मेरे गुनाहों के साथ याद न फरमा! और मेरे बैठने का सवाब, मेरी गुफ्तगू का सवाब, मेरी दुआ का सवाब अपनी खुशनूदी व जन्नत के शक्ल में दे, और ऐ पालने वाले! वो सब कुछ दे जो मैंने माँगा है और अपने फज़ल से इसमें इज़ाफा कर दे, बेशक मई तेरी चाहत रखता हूँ ऐ जहानों के पालने वाले! ऐ माबूद! बेशक तूने अपनी किताब में यह हुक्म नाजिल किया है की जो हम पर ज़ुल्म करें इसे माफ़ कर दें ज़रूर हमने अपने नफ्सों पर ज़ुल्म किया तो हमें माफ़ फरमा, यकीनन तू हम से ज्यादा इसका अहल है, तूने हमें हुक्म दिया की हम सवाली को ओने दरवाजों से न हटायें और मैं तेरे हुज़ूर सवाली बन के आया हूँ बस मुझे दूर न कर मगर जब मेरी हाजत पूरी कर दे! तूने हमें हुक्म दिया की जो अफराद हमारे गुलाम हैं हम इनपर एहसान करें! और हम तेरे गुलाम हैं बस हमारी गर्दनें आग से आज़ाद फरमा! ऐ वक्ते मुसीबत मेरी पनाहगाह, ऐ सख्ती के हंगाम, मेरे फरयाद रस तुझ से फरयाद करता हूँ और तुझ से दाद ख्वाह हूँ मैं पनाह चाहता हूँ तेरी, न किसी और की और सिवाए तेरे किसी से कशाइश का तालिब नहीं हूँ, बस मेरी फरयाद सुन और रिहाई दे ऐ वो जो कैदी को छुड़ाता है और बहुत सारे गुनाह माफ़ करता है, मेरे थोड़े अमल को कबूल फरमा और मेरे बहुत सारे गुनाह माफ़ कर दे, बेशक तू बहुत रहम करने वाला बहुत बख्शने वाला है! ऐ माबूद! मैं तुझ से ऐसा ईमान व यकीन माँगता हूँ जो मेरे दिल में जमा रहे यहाँ तक की मैं समझूं की मुझे कोई चीज़ नहीं पहुँचती सिवाए इसके जो तूने मेरे लिए लिखी है और मुझे इस जिंदगी पर शाद रख जो तूने मेरे लिए करार दी, ऐ सब से ज्यादा रहम करने वाले!

अल्ला हुम्मा सल्ली अला मोहम्मद व आले मोहम्मद

यह दुआ बोहोत प्यारी है , इसको सुकून से पढ़ो

यह दुआ बोहोत प्यारी है , इसको सुकून से पढ़ो
और दिल में आमीन कहो हो सकता है के दुसरे लोगो की
आमीन से अपनी दुआ कबूल हो जाये ( आमीन )
ऐ अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ,
ऐ सारी कायनात के शहंशाह ,
ऐ सारी मख्लूक़ के पालने वाले ,
ऐ ज़िन्दगी और मौत का फैसला करने वाले ,
ऐ आसमानो और ज़मीनो के मालिक ,
ऐ पहाड़ों और समन्दरों के मालिक ,
ऐ इन्शानो और जिन्नातों के माबूद ,
ऐ अर्श -ए -आज़म के मालिक ,
ऐ फरिश्तों के माबूद ,
ऐ इज़्ज़त और ज़िल्लत के मालिक ,
ऐ बिमारियों से शिफ़ा देने वाले ,
ऐ बादशाहों के बादशाह .
ऐ अल्लाह हम तेरे गुनाहगार बन्दे हैं ,
तेरे ख़ताकार बन्दे हैं ,
हमारे गुनाहों को माफ़ फरमा ,
हमारी ख़ताओं को माफ़ फरमा ,
ऐ अल्लाह हम अपने अगले पिछले,सगीरा,कबीरा, छोटे, बड़े सभी गुनाहों और खताओं की और ना -फरमानियों की माफ़ी मांगते हैं ...
ऐ अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त हम अपने गुनाहों
से तौबा करते हैं .हमारी तौबा क़ुबूल करले ..
ऐ अल्लाह हम गुनाहगार हैं ,
सियाकार हैं ,
बदकार हैं ,
तेरे हुक्मो के ना -फरमान हैं ,
ना -शुकरे हैं लेकिन मेरे माबूद तेरे नाम लेवा बंदे
हैं तेरी तौहिद की गवाही देते हैं .
तेरे सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं है .
तेरे सिवा कोई बंदगी के लायक नहीं है .
तेरे सिवा कोई ताऱीफ के लायक नहीं है .
हमारे माबूद हमारे गुनाह तेरी रेहमत से बड़े नहीं हैं .
तू अपनी रहमत से हमें माफ़ करदे
ऐ अल्लाह पाक आप हमें गुमराही के रास्ते से हटा कर सिरातल मुस्तक़ीम के रास्ते पे चलने वाला बना दे
ऐ अल्लाह ऐसी नमाज़ पढ़ने की तौफ़ीक़ अत कर जिस नमाज़ से तू राज़ी हो जाये ,
ज़िंदगी में ऐसे नेक अमल करने कि तौफ़ीक़ अता कर जिन अमालोंसे तू राज़ी हो जाये .
हमें ऐसी ज़िन्दगी गुज़ारने की तौफ़ीक़ अता कर जिस ज़िंदगी से तू राज़ी हो जाये .
ईमान पे ज़िंदा रख और ईमान पे ही मौत अता कर .
ऐ अल्लाह हमें तेरे हुक्मों की फ़र्माबरदारी करने वाला बना ..
और तेरे प्यारे हबीब जनाबे मोहम्मद रसूलुल्लाह (सलल्लाहो
ता 'आला अलैहि वस्सल्लम ) के नेक और पाकीज़ा तरीकों को अपनी ज़िन्दगी में लाने वाला बना .
ऐ अल्लाह हमारी परेशानियों को दूर करदे ,
ऐ अल्लाह जो बीमार हैं उन्हें शिफ़ा -कामिला अता फरमा .
ऐ अल्लाह जो क़र्ज़ के बोझ से दबे हुए हैं उनका क़र्ज़ जल्द से जल्द अदा करवा दे ,
ऐ अल्लाह शैतान से हमारी हिफाज़त फरमा
ऐ अल्लाह हलाल रिज़्क़ कमाने कि तौफ़ीक़ अता फरमा ,
ऐ परवर्दिगार- ए -आलम हमें माँगना नहीं आता लेकिन तुझे देना आता है तू हर चीज़ पे क़ादिर है ..
ऐ अल्लाह जो मांगा वो भी अता फरमा जो मांगने से रह गया वो भी इनायत फरमा ...
हमारी दुआ अपने रहम से अपने करम से क़ुबूल फरमा .और जिसने ये दुआ भेजी है और इसे आगे बढ़ा रहा है उसकी सारी परेशानियों,तकलीफ़ों,बिमारियों को दूर फरमा और सेहत तंदरूस्ती अता
कर .आमीन आमीन आमीन

दोस्तों कोटा में कांग्रेस की डर्टी पॉलिटिक्स से कांग्रेस कार्यकर्ता बेहद खफा और हताश है

दोस्तों कोटा में कांग्रेस की डर्टी पॉलिटिक्स से कांग्रेस कार्यकर्ता बेहद खफा और हताश है ,,कांग्रेस में डर्टी पोलटिक्स परस्पर एक दूसरे गुटों को नीचा दिखाने के लिए हमले कर रही है इससे कांग्रेस हाड़ोती से खत्म हो गयी है ,,,,,इस मामले में राहुल गांधी को व्यक्तिगत रूप से यहां कांग्रेस की बर्बादी का क़िस्सा याद है ,,,,सचिन पायलेट की जानकारी में है लेकिन कांग्रेस शद्धीकरण के लिए कचरा साफ़ कर कांग्रेस को गंदगी मुक्त करने के लिए संगठन ने सभी तथ्य और सुबूत ,,मोबाईल पर वॉइस रिकॉर्डिंग के बाद भी कोई क़दम नहीं उठाया है दिग्गजों के खिलाफ कार्यवाही से कांग्रेस डरती है और इसीलिए कांग्रेस में डर्टी पॉलिटिक्स पनपती है ,,
कांग्रेस का पॉलिटिकल ड्रामा कोटा के कोंग्रेसियों के लिए एक बार फिर अभिशाप बन गया ,,कांग्रेस कोटा जिला प्रमुख पद के चुनाव में २३ के मुकाबले १३ वोट लेकर तीन वोटों से बहुमत में थी लेकिन इस ड्रामेबाज़ी और गुटबाज़ी के कारण कांग्रेस एक बार फिर बहुमत में होने पर भी अल्पमत भाजपा से क्रॉस वोटिंग के कारन जिलाप्रमुख का चुनाव हार गई है ,,,कल भाजपा के अच्छे दिनों का जवाब कांग्रेस के प्रत्याक्षी ने भाजपा के जिला प्रमुख प्रत्याक्षी को ४०० वोटों से हराकर दिया था ,,लेकिन भाजपा ने आज फिर हारी हुई बाज़ी जीत में बदल कर अपने अच्छे दिन बरक़रार रखे है ,,,,,आज पर्वेक्षक ने कांग्रेस के नईमुद्दीन गुड्डू का जिलाप्रमुख टिकिट सदस्यों की बहुमत से इच्छा होने पर फाइनल कर दिया था ,,लेकिन अचानक एक विशेष गुट के तीन सदस्यों को उनके नेता ने अपने साथ लिया और सचिन पॉयलट कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष को साफ़ कहा के अगर गुड्डू को जिलाप्रमुख का टिकिट दिया तो फिर यह तीनों कांग्रेस से बगावत करेंगे ,,सचिन पायलेट की समझाइश का जब कोई असर नहीं हुआ तो उन्होंने नईमुद्दीन गुड्डू से वार्ता कर टिकिट लौटाने का आग्रह किया इस पर नईमुद्दीन गुड्डू ने कांग्रेस की साख बचाने के लिए रेखा शर्मा का नाम प्रस्तावित किया जिसे टिकिट देकर आवेदन भरवाया गया ,,फोटु खिंचवाए गए ,,,समर्थकों ने नारे लगाये ,,इसी बीच पासा प्लाट गया रेखा शर्मा के एक विशेष गुट के सामने नतमस्तक होने से कुछ सदस्य नाराज़ हो गए ,,, फिर मान मुनव्वल का दौर चला इस बार सचिन पायलेट ने भरत सिंह को समझाइश के लिए कहा ,,गुड्डू और उनके समर्थक तो साथ रहे लेकिन इसी बीच दो वोट जो दूसरे गुट के थे खिसक गए और क्रॉस वोटिंग कर हारी हुई भाजपा को जीता दिया और कांग्रेस की जीती हुई बाज़ी हार में बदल दी ,,,इस तरह से कांग्रेस की आपसी फुट का हाई वोल्टेज ड्रामा भाजपा के लिए वरदान और अच्छे दिन बरक़रार रखने का फार्मूला साबित हो गया ,,,,,,,,,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

इल्म को बढ़ने से नही रोका जा सकता।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की शादी
पैग़म्बरे इस्लाम(स.) जब पच्चीस साल के हुए तो उन्होंने जनाबे ख़दीजा की पेश कश पर उनसे शादी की। जनाबे ख़दीजा एक मालदार औरत थीं और आपकी ज़ात में ज़ाहिरी व बातिनी तमाम ख़ूबिया पायी जाती थीं। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की बेसत के बाद उन्होंने अपनी पूरी दौलत इस्लाम पर कुरबान कर दी। उन्होंने पूरी ज़िन्दगी पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का दिल व जान से साथ दिया। वह इस दुनिया से उस वक़्त रुख़सत हुईं जब मस्जिदुल हराम में सिर्फ़ तीन इंसान नमाज़ पढ़ते थे, पैग़म्बरे इस्लाम (स.) हज़रत अली अलैहिस्सलाम और जनाबे ख़दीजा अलैहा अस्सलाम।
इस शादी के नतीजे में हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा इस दुनिया में तशरीफ़ लाईं, जो आगे चलकर हज़रत अली अलैहिस्सलाम की ज़ोजा और ग्यारह मासूम इमामों की माँ बनी। हमारा दरूद व सलाम हो पैग़म्बरे इस्लाम और आपकी औलाद पर।
इस मक़ाले के आख़िर में पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की एक सौ हदीसें लिख रहें हैं, जिन पर अमल कर के हम अपनी दीनी व दुनयवी ज़िन्दगी को कामयाब बना सकते हैं।
1. आदमी जैसे जैसे बूढ़ा होता जाता है उसकी हिरस व तमन्नाएं जवान होती जाती हैं।
2. अगर मेरी उम्मत के आलिम व हाकिम फ़ासिद होंगे तो उम्मत फ़ासिद हो जायेगी और अगर यह नेक होंगें तो उम्मत नेक होगी।
3. तुम सब, आपस में एक दूसरे की देख रेख के ज़िम्मेदार हो।
4. माल के ज़रिये सबको राज़ी नही किया जा सकता, मगर अच्छे अख़लाक़ के ज़रिये सबको ख़ुश रखा जा सकता है।
5. नादारी एक बला है, जिस्म की बीमारी उससे बड़ी बला है और दिल की बीमारी (कुफ़्र व शिर्क) सबसे बड़ी बला है।
6. मोमिन हमेशा हिकमत की तलाश में रहता है।
7. इल्म को बढ़ने से नही रोका जा सकता।
8. इंसान का दिल, उस “ पर ” की तरह है जो बयाबान में किसी दरख़्त की शाख़ पर लटका हुआ हवा के झोंकों से ऊपर नीचे होता रहता है।
9. मुसलमान, वह है, जिसके हाथ व ज़बान से मुसलमान महफ़ूज़ रहें।
10. किसी की नेक काम के लिए राहनुमाई करना भी ऐसा ही है, जैसे उसने वह नेक काम ख़ुद किया हो।
12. माँ के क़दमों के नीचे जन्नत है।
13. औरतों के साथ बुरा बर्ताव करने में अल्लाह से डरों और जो नेकी उनके शायाने शान हो उससे न बचो।
14. तमाम इंसानों का रब एक है और सबका बाप भी एक ही है, सब आदम की औलाद हैं और आदम मिट्टी से पैदा हुए है लिहाज़ तुम में अल्लाह के नज़दीक सबसे ज़्यादा अज़ीज़ वह है जो तक़वे में ज़्यादा है।
15. ज़िद, से बचो क्योंकि इसकी बुनियाद जिहालत है और इसकी वजह से शर्मिंदगी उठानी पड़ती है।
16. सबसे बुरा इंसान वह है, जो न दूसरों की ग़लतियों को माफ़ करता हो और न ही दूसरों की बुराई को नज़र अंदाज़ करता हो, और उससे भी बुरा इंसान वह है जिससे दूसरे इंसान न अमान में हो और न उससे नेकी की उम्मीद रखते हों।
17 ग़ुस्सा न करो और अगर ग़ुस्सा आ जाये, तो अल्लाह की क़ुदरत के बारे में ग़ौर करो।
18 जब तुम्हारी तारीफ़ की जाये, तो कहो, ऐ अल्लाह ! तू मुझे उससे अच्छा बना दे जो ये गुमान करते है और जो यह मेरे बारे में नही जानते उसको माफ़ कर दे और जो यह कहते हैं मुझे उसका मसऊल क़रार न दे।
19 चापलूस लोगों के मूँह पर मिट्टी मल दो। (यानी उनको मुँह न लगाओ)
20 अगर अल्लाह किसी बंदे के साथ नेकी करना चाहता है, तो उसके नफ़्स को उसके लिए रहबर व वाइज़ बना देता है।
21 मोमिन हर सुबह व शाम अपनी ग़लतियों का गुमान करता है।
22 आपका सबसे बड़ा दुश्मन नफ़्से अम्मारह है, जो ख़ुद आपके अन्दर छुपा रहता है।
23 सबसे बहादुर इंसान वह हैं जो नफ़्स की हवा व हवस पर ग़ालिब रहते हैं।
24 अपने नफ़्स की हवा व हवस से लड़ो, ताकि अपने वुजूद के मालिक बने रहो।
25 ख़ुश क़िस्मत हैं, वह लोग, जो दूसरों की बुराई तलाश करने के बजाये अपनी बुराईयों की तरफ़ मुतवज्जेह रहते हैं।
26 सच, से दिल को सकून मिलता है और झूट से शक व परेशानियाँ बढ़ती है।
27 मोमिन दूसरों से मुहब्बत करता है और दूसरे उससे मुहब्बत करते हैं।
28 मोमेनीन आपस में एक दूसरे इसी तरह वाबस्ता रहते हैं जिस तरह किसी इमारत के तमाम हिस्से आपस में एक दूसरे से वाबस्ता रहते हैं।
29 मोमेनीन की आपसी दोस्ती व मुब्बत की मिसाल जिस्म जैसी है जब ज़िस्म के एक हिस्से में दर्द होता है तो पर बाक़ी हिस्से भी बे आरामी महसूस करते हैं।
30 तमाम इंसान कंघें के दाँतों की तरह आपस में बराबर हैं।
31 इल्म हासिल करना तमाम मुसलमानों पर वाजिब है।
32 फ़कीरी, जिहालत से, दौलत, अक़्लमंदी से और इबादत, फ़िक्र से बढ़ कर नही है।
33 झूले से कब्र तक इल्म हासिल करो।
34 इल्म हासिल करो चाहे वह चीन में ही क्योँ न हो।
35 मोमिन की शराफ़त रात की इबादत में और उसकी इज़्ज़त दूसरों के सामने हाथ न फैलाने में है।
36 साहिबाने इल्म, इल्म के प्यासे होते है।
37 लालच इंसान को अंधा व बहरा बना देता है।
39 परहेज़गारी, इंसान के ज़िस्म व रूह को आराम पहुँचाती है।
40 अगर कोई इंसान चालीस दिन तक सिर्फ़ अल्लाह के लिए ज़िन्दा रहे, तो उसकी ज़बान से हिकमत के चश्मे जारी होंगे।
41 मस्जिद के गोशे में तन्हाई में बैठने से ज़्यादा अल्लाह को यह पसंद है, कि इंसान अपने ख़ानदान के साथ रहे।
42 आपका सबसे अच्छा दोस्त वह है, जो आपको आपकी बुराईयों की तरफ़ तवज्जोह दिलाये।
43 इल्म को लिख कर महफ़ूज़ करो।
44 जब तक दिल सही न होगा, ईमान सही नही हो सकता और जब तक ज़बान सही नही होगी दिल सही नही हो सकता।
46 तन्हा अक़्ल के ज़रिये ही नेकी तक पहुँचा जा सकता है लिहाज़ा जिनके पास अक़्ल नही है उनके पास दीन भी नही हैं।
47 नादान इंसान, दीन को, उसे तबाह करने वाले से ज़्यादा नुक़्सान पहुँचाते हैं।
48 मेरी उम्मत के हर अक़्लमंद इंसान पर चार चीज़ें वाजिब हैं। इल्म हासिल करना, उस पर अमल करना, उसकी हिफ़ाज़त करना और उसे फैलाना।
49 मोमिन एक सुराख़ से दो बार नही डसा जाता।
50 मैं अपनी उम्मत की फ़क़ीरी से नही, बल्कि बेतदबीरी से डरता हूँ।
51 अल्लाह ज़ेबा है और हर ज़ेबाई को पसंद करता है।
52 अल्लाह, हर साहिबे फ़न मोमिन को पसंद करता।
53 मोमिन, चापलूस नही होता।
54 ताक़तवर वह नही,जिसके बाज़ू मज़बूत हों, बल्कि ताक़तवर वह है जो अपने ग़ुस्से पर ग़ालिब आ जाये।
56 सबसे अच्छा घर वह है, जिसमें कोई यतीम इज़्ज़त के साथ रहता हो।
57 कितना अच्छा हो, अगर हलाल दौलत, किसी नेक इंसान के हाथ में हो।
58 मरने के बाद अमल का दरवाज़ा बंद हो जाता है,मगर तीन चीज़े ऐसी हैं जिनसे सवाब मिलता रहता है, सदक़-ए-जारिया, वह इल्म जो हमेशा फ़ायदा पहुँचाता रहे और नेक औलाद जो माँ बाप के लिए दुआ करती रहे।
59 अल्लाह की इबादत करने वाले तीन गिरोह में तक़सीम हैं। पहला गिरोह वह है जो अल्लाह की इबादत डर से करता है और यह ग़ुलामों वाली इबादत है। दूसरा गिरोह वह जोअल्लाह की इबादत इनाम के लालच में करता है और यह ताजिरों वाली इबादत है। तीसरा गिरोह वह है जो अल्लाह की इबादत उसकी मुहब्बत में करता है और यह इबादत आज़ाद इंसानों की इबादत है।
60 ईमान की तीन निशानियाँ हैं, तंगदस्त होते हुए दूसरों को सहारा देना, दूसरों को फ़ायदा पहुँचाने के लिए अपना हक़ छोड़ देना और साहिबाने इल्म से इल्म हासिल करना।
61 अपने दोस्त से दोस्ती का इज़हार करो ताकि मुब्बत मज़बूत हो जाये।
62 तीन गिरोह दीन के लिए ख़तरा हैं, बदकार आलिम, ज़ालिम इमाम और नादान मुक़द्दस।
63 इंसानों को उनके दोस्तों के ज़रिये पहचानों, क्योँकि हर इंसान अपने हम मिज़ाज़ इंसान को दोस्त बनाता है।
64 गुनहाने पिनहनी (छुप कर गुनाह करना) से सिर्फ़ गुनाह करने वाले को नुक़्सान पहुँचाता है लेकिन गुनाहाने ज़ाहिरी (खुले आम किये जाने वाले गुनाह) पूरे समाज को नुक़्सान पहुँचाते है।
65 दुनिया के कामों में कामयाबी के लिए कोशिश करो मगर आख़ेरत के लिए इस तरह कोशिश करो कि जैसे हमें कल ही इस दुनिया से जाना है।
66 रिज़्क़ को ज़मीन की तह में तलाश करो।
67 अपनी बड़ाई आप बयान करने से इंसान की क़द्र कम हो जाती है और इनकेसारी से इंसान की इज़्ज़त बढ़ती है।
68 ऐ अल्लाह ! मेरी ज़्यादा रोज़ी मुझे बुढ़ापे में अता फ़रमाना।
69 बाप पर बेटे के जो हक़ हैं उनमें से यह भी हैं कि उसका अच्छा नाम रखे, उसे इल्म सिखाये और जब वह बालिग़ हो जाये तो उसकी शादी करे।
70 जिसके पास क़ुदरत होती है, वह उसे अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करता है।
71 सबसे वज़नी चीज़ जो आमाल के तराज़ू में रखी जायेगी वह ख़ुश अखलाक़ी है।
72 अक़्लमंद इंसान जिन तीन चीज़ों की तरफ़ तवज्जोह देते हैं, वह यह हैं ज़िंदगी का सुख, आखेरत का तोशा (सफ़र में काम आने वाले सामान) और हलाल ऐश।
73 ख़ुश क़िसमत हैं, वह इंसान, जो ज़्यादा माल को दूसरों में तक़सीम कर देते हैं और ज़्यादा बातों को अपने पास महफ़ूज़ कर लेते हैं।
74 मौत हमको हर ग़लत चीज़ से बे नियाज़ कर देती है।
75 इंसान हुकूमत व मक़ाम के लिए कितनी हिर्स करता है और आक़िबत में कितने रंज व परेशानियाँ बर्दाश्त करता है।
76 सबसे बुरा इंसान, बदकार आलिम होता है।
77 जहाँ पर बदकार हाकिम होंगे और जाहिलों को इज़्ज़त दी जायेगी वहाँ पर बलायें नाज़िल होगी।
78 लानत हो उन लोगों पर जो अपने कामों को दूसरों पर थोपते हैं।
79 इंसान की ख़ूबसूरती उसकी गुफ़्तुगू में है।
80 इबादत की सात क़िस्में हैं और इनमें सबसे अज़ीम इबादत रिज़्क़े हलाल हासिल करना है।
81 समाज में आदिल हुकूमत का पाया जाना और क़ीमतों का कम होना, इंसानों से अल्लाह के ख़ुश होने की निशानी है।
82 हर क़ौम उसी हुकूमत के काबिल है जो उनके दरमियान पायी जाती है।
83 ग़लत बात कहने से कीनाह के अलावा कुछ हासिल नही होता।
85 जो काम बग़ैर सोचे समझे किया जाता है उसमें नुक़्सान का एहतेमाल पाया जाता है।
87 दूसरों से कोई चीज़ न माँगो, चाहे वह मिस्वाक करने वाली लकड़ी ही क्योँ न हो।
88 अल्लाह को यह पसंद नही है कि कोई अपने दोस्तों के दरमियान कोई खास फ़र्क़ रखे।
89 अगर किसी चीज़ को फाले बद समझो, तो अपने काम को पूरा करो, अगर कोई किसी बुरी चीज़ का ख़्याल आये तो उसे भूल जाओ और अगर हसद पैदा हो तो उससे बचो।
90 एक दूसरे की तरफ़ मुहब्बत से हाथ बढ़ाओ क्योँकि इससे कीनह दूर होता है।
91 जो सुबह उठ कर मुसलमानों के कामों की इस्लाह के बारे में न सोचे वह मुसलमान नही है।
92 ख़ुश अख़लाकी दिल से कीनह को दूर करती है।
93 हक़ीक़त कहने में, लोगों से नही डरना चाहिए।
94 अक़लमंद इंसान वह है जो दूसरों के साथ मिल जुल कर रहे।
95 एक सतह पर ज़िंदगी करो ताकि तुम्हारा दिल भी एक सतह पर रहे। एक दूसरे से मिलो जुलो ताकि आपस में मुहब्बत रहे।
96 मौत के वक़्त, लोग पूछते हैं कि क्या माल छोड़ा और फ़रिश्ते पूछते हैं कि क्या नेक काम किये।
97 वह हलाल काम जिससे अल्लाह को नफ़रत है, तलाक़ है।
98 सबसे बड़ा नेक काम, लोगों के दरमियान सुलह कराना।
99 ऐ अल्लाह तू मुझे इल्म के ज़रिये बड़ा बना, बुर्दुबारी के ज़रिये ज़ीनत दे, परहेज़गारी से मोहतरम बना और तंदरुस्ती के ज़रिये खूबसूरती अता कर।

वालदैन की नाफ़रमानी अल्लाह तआला की नाफ़रमानी

वालदैन की नाफ़रमानी अल्लाह तआला की नाफ़रमानी है और उनकी नाराज़गी अल्लाह तआला की नाराज़गी है। आदमी वालदैन को ख़ुश रखे क्योंकि माँ के पैर के नीचे जन्नत है। अगर हम वालदैन को नाराज़ रखेंगे तो हम दुनिया-ओ-आख़िरत में परेशान रहेंगे और अगर माँ बाप को राज़ी नहीं करेंगे तो कोई फ़र्ज़, कोई नफ़िल या कोई अमल ए सालिह अस्लन क़ुबूल ना होगा।

हज़रत माविया इब्ने जाहमा रज़ी० से रिवायत है कि उनके वालिद जाहमा हुज़ूर सैय्यद ए आलम स०अ०व० की ख़िदमत ए अक़्दस में हाज़िर हुए और अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह! मेरा इरादा जिहाद में जाने का है, सरकार से मश्वरा लेने के लिए हाज़िर हुआ हूँ। इरशाद फ़रमाया क्या तेरी माँ ज़िंदा है?। अर्ज़ किया हाँ। आप ( स०अ०व०) ने फ़रमाया उसकी ख़िदमत करो कि जन्नत माँ के क़दमों के तले है।

क़ुरआन का सन्देश

   
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