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07 जुलाई 2014

क़ुरआन का सन्देश

फतवे मानना जरूरी नहीं, न ही शरीयत अदालतों का है कोई कानूनी आधार: सुप्रीम कोर्ट



फतवे मानना जरूरी नहीं, न ही शरीयत अदालतों का है कोई कानूनी आधार: सुप्रीम कोर्ट
 
 
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा है कि शरीयत कोर्ट को कानूनी दर्जा हासिल नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि फतवे की कानूनी मान्यता नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने निर्दोष लोगों के खिलाफ शरिया अदालत द्वारा फैसला दिए जाने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि कोई भी धर्म निर्दोष लोगों को सजा की इजाजत नहीं देता। किसी दारूल कजा को तब तक किसी व्यक्ति के अधिकारों के बारे में फैसला नहीं करना चाहिए जब तक वह खुद इसके लिए नहीं कहता।

दिल्ली के वकील विश्व लोचन मदन ने याचिका दायर कर कहा है कि फतवा जारी करने वाली संस्‍थाएं समानांतर कोर्ट के तौर पर काम करती हैं और मुस्लिमों की धार्मिक और सामाजिक आजादी का निर्धारण करती हैं। याचिका में इसे गैर-कानूनी बताते हुए कहा गया है कि मुस्लिमों की आजादी काजी और मुफ्तियों के फतवों से नियंत्रित नहीं की जा सकती। 
 
 
फरवरी में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को सुरक्षित रखते हुए कहा था कि यह लोगों की आस्था का मामला है। इसी वजह से कोर्ट इसमें दखल नहीं दे सकती।

तत्कालीन यूपीए सरकार ने कोर्ट से कहा था कि वह मुस्लिम पसर्नल लॉ के मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगी। जब तक किसी के मौलिक अधिकारों का हनन न हो।
 
कुछ फतवे, जिन पर हुआ विवाद
2009 में 
जमीयत उलेमा हिंद ने राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम....' को गैर-इस्लामिक करार देते हुए इसके खिलाफ फतवा सुना दिया। यह फतवा जमीयत के राष्ट्रीय अधिवेशन में सुनाया गया। फतवे में कहा गया कि मुसलमानों को वंदे मातरम नहीं गाना चाहिए।   

जनवरी, 2012 में लखनऊ के दारुल उलूम फरंगी महल ने मशहूर और विवादस्पद लेखक सलमान रुशदी के जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में भाग लेने के खिलाफ खिलाफ फतवा जारी कर दिया। फतवे में कहा गया, चूंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और हर किसी को अपनी बात रखने का पूरा हक है इसलिये मुसलमान पैगम्बर की शान में गुस्ताखी करने वाले शख्स (रुश्दी) का जायज तरीके से विरोध करें ताकि उसके नापाक कदम मुल्क की सरजमीं पर नहीं पड़ें। गौरतलब है कि भारी विवाद के चलते सलमान रुशदी ने समारोह में शिरकम नहीं किया था।

सितंबर, 2013 में भारत की प्रमुख इस्लामिक संस्था दारुल उलूम ने फोटाग्राफी को गैर इस्लामिक और गुनाह करार दे दिया। दारुल उलूम के इस फतवे ने मुस्लिम समाज में एक नई बहस छेड़ दी। यह फतवा इंजीनियरिंग के स्नातक के सवाल के जवाब में दिया गया। फतवे में कहा गया, ‘फोटोग्राफी गैरकानूनी और गुनाह है। आप यह कोर्स न करें। अपने इंजीनियरिंग कोर्स के अनुसार कोई मुनासिब नौकरी ढूंढ लें।’ इंजीनियरिंग के जिस छात्र ने यह सवाल पूछा था वह फोटोग्राफी से जुनून की हद तक प्यार करता था और इसे कॅरिअर के तौर पर अपनाना चाहता था।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला: जानिए, क्या होते हैं फतवे, शरिया और दीन




फाइल फोटो: दारूल उलूम देवबंद की परीक्षा के लिए पढ़ाई करते छात्र। 
 
नई दिल्ली. इस्लाम धर्म में फतवे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ऐतिहासिक व्यवस्था दी।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शरियत अदालतों या उनकी तरफ से जारी होने वाले फतवों की कोई कानूनी मान्यता नहीं होती है। कोर्ट ने कहा कि कोई भी कानून फतवों को मान्यता नहीं देता है। कोर्ट ने यह भी कि अगर कोई व्यक्ति धार्मिक मसले पर राय नहीं मांगता है तो दारूल कजा या कोई मुफ्ती फतवा जारी उस शख्स को फतवा मानने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि बेकसूर लोगों को परेशान करने के लिए किसी धर्म या आस्था का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने इमराना केस का उदाहरण देते हुए कहा कि फतवे किसी व्यक्ति के बुनियादी अधिकारों का ऐसा नुकसान करते हैं, जिनकी कभी भी भरपाई नहीं की जा सकती है। 
 
 
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फतवों के रूप में धार्मिक राय के अच्छे मकसद होते हैं, लेकिन फतवे किसी व्यक्ति के बुनियादी अधिकारों का हनन करते हैं तो इन्हें सही नहीं माना जा सकता है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने यह साफ किया है कि अगर कोई व्यक्ति फतवे की मांग करता है तो शरियत कोर्ट फतवे जारी कर सकती हैं, लेकिन उन्हें मानने के लिए कोई कानूनी बंदिश नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने 2005 की जनहित याचिका को लेकर ये बातें कही हैं।
 
याचिका में क्या कहा गया था? 
दिल्ली के पत्रकार विश्व लोचन मदान ने 2005 में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर शरियत अदालतों की वैधता को चुनौती दी थी। याचिका में कहा गया था कि दारूल कजा और दारूल इफ्ता समानांतर अदालत के रूप में काम कर रहे हैं जो मुस्लिम नागरिक के बुनियादी अधिकारों को लेकर फैसले सुनाते हैं। याचिका में कहा गया था कि शरियत अदालत की ओर से नियुक्त काजी और मुफ्ती फतवे जारी कर किसी मुसलमान के बुनियादी अधिकारों को खारिज कर उसकी आजादी को लेकर फैसले नहीं ले सकते हैं। याचिका के मुताबिक दारूल कजा और दारूल इफ्ता ऐसे जिलों में ज्यादा संचालित हैं जहां मुसलमानों की अच्छी खासी तादाद है ताकि लोग फैसलों का विरोध न कर सकें।   
 
क्या रहा है केंद्र का स्टैंड?
इस मामले में केंद्र सरकार की दलील थी कि शरई अदालतों की कानूनी मान्यता नहीं है। इनके आदेश और फतवे लोगों पर बाध्यकारी नहीं है। 
 
क्या है दारूल उलूम देवबंद का रुख? 
मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड और दारूल उलूम देवबंद ने याचिका का विरोध करते हुए दलील दी थी कि शरियत अदालतें समानांतर न्याय व्यवस्था नहीं चला रही हैं बल्कि ये आपसी झगड़ों को अदालत के बाहर निपटाकर अदालतों में मुकदमों का बोझ कम करती हैं। फतवे बाध्यकारी नहीं, महज सलाह होती है। दारूल उलूम देवबंद की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश वकील ने सोमवार को कहा कि शरियत अदालतें ठीक वैसा ही काम कर रही हैं जैसा काम पंचायतें करती हैं। उनका कहना है कि शरियत अदालतें देश की न्याय व्यवस्था का बोझ कम कर रही हैं।  
 
दीन और शरिया 
-इस्लाम धर्म के जानकार वहीदुद्दीन खान का कहना है कि कुरान के मुताबिक इस्लाम के दो हिस्से हैं-दीन और शरिया। खान का कहना है, 'दीन में वे बुनियादी सिद्धांत हैं जो हर जगह लागू होते हैं। इनमें ईमानदारी, आस्था, नैतिक मूल्यों और इबादत से जुड़े वे सबक हैं, जिनका पालन एक मुसलमान को हर हाल में करना चाहिए। ये बातें निजी प्रकृति की हैं इसलिए किसी भी समाज में औरों के लिए मुश्किल पैदा किए बगैर इनका पालन करने में कोई दिक्कत नहीं है। 
-शरिया का ताल्लुक उन सामाजिक नियमों से है जिनका पालन किस तरह से हो, यह उस समाज विशेष की परिस्थितियों पर निर्भर करता है। मुसलमानों के लिए यह जरूरी नहीं है कि वे इन नियमों का शब्दश: पालन करें। वे उस हद तक इनका पालन कर सकते हैं जहां तक समाज इसकी इजाजत देता है। फतवों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला किसी इस्लामी सिद्धांत के उलट नहीं जाता और भारत के मुसलमानों को इसका सम्मान करना चाहिए।' 
 
क्या होता है फतवा? 
फतवा अरबी भाषा का लफ्ज़ है। इसका मतलब होता है, किसी मामले में आलिम-ए-दीन की शरियत के मुताबिक दी गई राय। इस्लाम धर्म के जानकार वहीदुद्दीन खान के मुताबिक फतवा यानी राय जो किसी को तब दी जाती है जब वह अपना कोई निजी मसला लेकर मुफ्ती के पास जाए। फतवे का शाब्दिक अर्थ सुझाव ही है और इसका मतलब यह है कि कोई इसे मानने के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं है। यह सुझाव भी सिर्फ उसी व्यक्ति के लिए होता है और वह भी उसे मानने या न मानने के लिए आजाद होता है। 
 
क्या होती है कजा? 
इस्लाम धर्म के जानकार वहीदुद्दीन खान के मुताबिक कजा का मतलब है कानूनी फैसला। वहीदुद्दीन खान के मुताबिक भारत जैसे देश में किसी भी मुफ्ती को कजा जारी करने की इजाजत नहीं है। कजा राज्य अधिकृत अदालत का अधिकार है और हर कोई इसका पालन करने के लिए बाध्य है। 
 
क्या होती शरिया अदालत? 
इस्लाम धर्म में शरिया अदालत फतवे और कजा के बीच फर्क करती है।  
 
क्या था इमराना केस? 
एक फतवे की शिकार उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की 28 साल की मुस्लिम महिला इमराना भी हुई थी। 2005 में इमराना को उसके ससुर ने हवश का शिकार बनाया था। स्थानीय पंचायत ने अपने फैसले में इमराना से कहा कि वह अपने पति को बेटा माने। पंचायत ने उसकी शादी को रद्द घोषित कर दिया। लेकिन इमराना ने पंचायत के फरमान के बाद भी अपने पति के साथ रहना जारी रखा। यह मामला दारूल उलूम देवबंद के पास पहुंचा। दारूल उलूम ने फतवा जारी कर कहा कि इमराना के ससुर की हरकत के चलते अब उसे अपने पति को बेटा मानना पड़ेगा और वह उसके साथ नहीं रह सकती हैगैर-मुस्लिम से शादी के खिलाफ फतवा

दारूल उलूम, देवबंद ने कुछ समय पहले एक फतवा जारी कर कहा था कि मुसलमान गैर मुस्लिम लड़कियों से तभी शादी करें जब वे अपना धर्म छोड़ इस्लाम अपनाने को राजी हों अन्यथा वह शादी हराम होगी और ऐसे मामले में गैर-मुस्लिम लड़की अपने अधिकार को लेकर कोई दावा नहीं कर सकती।

शराब पीकर तलाक बोलने पर तलाक जायज

दारूल उलेम, देवबंद ने एक फतवे में कहा था कि अगर कोई मुस्लिम शराब पीकर अपनी पत्नी को तीन बार तलाक बोलता है तो वह  तलाक जायज माना जाएगा। जबकि कुरान के अनुसार शराब हराम है।

वंदे मातरम को गाने पर फतवा

जमात-ए-उलेमा ने वंदे मातरम को लेकर फतवा जारी किया था। फतवे के मुताबिक यह गीत इस्लाम के विरुद्ध है और ये मातृ भूमि को पूजने की बात कहता है।  

मस्जिद में नमाज अदा करने पर महिलाओं को मिला फतवा 

असम के हाउली टाउन में कुछ महिलाओं के खिलाफ फतवा जारी किया गया क्योंकि उन्होंने एक मस्जिद के भीतर जाकर नमाज अदा की थी। जिले के दीनी तालीम बोर्ड ऑफ द कम्युनिटी ने इस कदम का विरोध करते हुए कहा कि इस तरीके की हरकत गैरइस्लामी है। बोर्ड ने मस्जिद में महिलाओं द्वारा नमाज करने को रोकने के लिए फतवा भी जारी किया।
 
गले लगाना बना फतवे का कारण 

पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद की लाल मस्जिद के धर्मगुरुओं ने कुछ साल पहले पर्यटन मंत्री नीलोफर बख्तियार के खिलाफ फतवा जारी कर उन्हें तुरंत हटाने की मांग की थी। बख्तियार पर आरोप था कि उन्होंने फ्रांस में पैराग्लाइडिंग के दौरान अपने इंस्ट्रक्टर को गले लगाया। इसकी वजह से इस्लाम बदनाम हुआ है। 
 
टीवी सीरियल में हिंदू देवता बनने पर फतवा
 
अवध के नवाब अमजद अली शाह के वंशज नवाब सैय्यद बदरुल हसन उर्फ पप्पू पोलिस्टर द्वारा कई धार्मिक सीरियलों में भगवान नंदी का किरदार निभाए जाने से कई कट्टरपंथी मौलाना खफा रहे हैं। कुछ मुस्लिम धर्म गुरुओं ने हसन के खिलाफ कलमा पढ़कर दोबारा मुसलमान बनाने का फरमान तक जारी कर चुके हैं। नवाब बदरुल हसन उर्फ पप्पू पोलिस्टर ने कई धार्मिक सीरियलों, जैसे-' ओम नमः शिवाय', ' संतोषी माता', ' जय हनुमान ' और 'सत्यनारायण की कथा' में नंदी का किरदार निभाया है। 

गणेश पूजा को लेकर सलमान खान के खिलाफ फतवा

दारूल उलूम हिजाजिया चिस्ती, मुंबई के प्रमुख मुफ्ती मंजर हसन खान अशरफी मीसबाही ने सलमान खान के पूरे परिवार का धार्मिक बहिष्कार करते हुए इनके खिलाफ फतवा जारी किया था। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सलन लॉ बोर्ड के सदस्य ने भी कहा कि खान और उनका परिवार जब तक गणेश की पूजा बंद करने पर राजी नहीं हो जाते तब तक यह फतवा उनके खिलाफ जारी ही रहेगा। उन्होंने कहा कि इस्लाम में गणपति भक्ति की कोई मंजूरी नहीं है।

बैंक में खाता खुलवाने पर फतवा

दारूल उलूम, देवबंद ने लखनऊ के सलीम चिश्ती के प्रश्न के उत्तर में फतवा जारी किया था कि बैंक से ब्याज लेना या जीवन बीमा कराना इस्लामी कानून या शरियत के खिलाफ है। दारूल उलूम के दो मुफ्तियों के साथ सलाह मश्विरा कर मोहम्मद जफीरूद्दीन ने यह फतवा जारी किया था। आल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड के अनेक सदस्यों ने इसे उचित ठहराया है। उनके अनुसार जीवन बीमा कराने का अर्थ है अल्लाह की सर्वोच्चता को चुनौती देना।
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