तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
21 जुलाई 2014
गाजा में खून के आंसू रो रही इंसानियत, निशाने पर फलस्तीनी बेगुनाह
इंटरनेशनल डेस्क। गाजा पट्टी में हालात विध्वंसक हो चुके हैं।
इजरायल और इस्लामिक गुट हमास के बीच चल रहे खूनी संघर्ष की कीमत, यहां के
बच्चों को अपनी जान गवांकर चुकानी पड़ रही है। मरने वालों का आंकड़ा 340 को
भी पार कर चुका है। सिलसिला बदस्तूर जारी है।
बीते चार दिन में 60 जानें जा चुकी हैं। संयुक्त राष्ट्र की
रिपोर्ट बताती है कि 340 मौतों में से 70 मासूम शामिल हैं। इनमें ज्यादातर
वैसे मासूम हैं, जिन्हें जरा भी इल्म नहीं था कि उनके घर पर हमला क्यों
किया जा रहा है।
50 हजार लोग बेघर
गाजा के लोगों के मुताबिक, यहां हर सुबह की शुरुआत एकसाथ मस्जिद में
अजान, बंदूकों व टैंकों की आवाज से होती है। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन
नेतन्याहू के आदेश के बाद सेना ने हवाई हमलों के साथ-साथ जमीनी कार्रवाई
को भी तेज कर दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक, इजरायली हवाई हमले के चलते
50,000 से ज्यादा फलस्तीनी बेघर हो चुके हैं।
12 दिनों के संघर्ष के दौरान इजरायल ने गाजा पर 2,000 से भी ज्यादा
हवाई हमले किए हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट कहती है कि जब से दोनों के
बीच खूनी संघर्ष की शुरुआत हुई है, तब से गाजा से पलायन करने वालों की
संख्या में दोगुना इजाफा हुआ है।
1948 में विभाजन के बाद फलस्तीन और इजरायल दो देश बने। 1948 में ही
अरब-इजरायल युद्ध शुरू हो गया, क्योंकि अरब देशों को ये बंटवारा मंजूर नहीं
था। इस दौरान लाखों फलस्तीनी विस्थापित हुए और एक बड़ा हिस्सा इजरायल के
नियंत्रण में आ गया। 1967 में फिर अरब-इजरायल युद्ध हुआ।
66 साल से जल रहा गाजा
इस खूनी संघर्ष का अतीत महज 12 दिन पुराना नहीं है, बल्कि 66 सालों से
ये इलाका इसी तरह हिंसा की आग में झुलस रहा है। गौरतलब है कि द्वितीय
विश्वयुद्ध के बाद यहूदियों के लिए एक अलग देश की मांग उठी। यहूदियों का
कहना था कि सदियों पहले यहूदी धर्म का यहीं जन्म हुआ था। इसी जमीन से
ईसाइयत का जन्म हुआ।
हालांकि, बाद में इस्लाम उदय से जुड़ा इतिहास भी यहीं लिखा गया। अब इस
इलाके में अरब फलस्तीनियों की आबादी बस चुकी थी। 1922 में इलाका ब्रिटिश
शासन के अधीन था। लेकिन यहूदियों व फलस्तीनियों के बीच गृहयुद्ध जारी रहा।
फिर 1947 में संयुक्त राष्ट्र ने इलाके के बंटवारे पर सहमति दे दी। मई 1947
में ब्रिटिश शासन खत्म हो गया।
यासिर अराफात के वक्त शांत था माहौल
1967 में अरब-इजरायल
के बीच हुई लड़ाई में इजरायल ने गाजा पट्टी पर कब्जा कर लिया। हालांकि,
जॉर्डन, मिस्र समेत कई अरब देशों से इजरायल के अलग-अलग समझौतों के बाद गाजा
पर फिर से फलस्तीनियों का अधिकार हो गया। माना जाता है कि जब तक फलस्तीनी
नेता यासिर अराफात जीवित थे, तब तक इलाके में शांति थी, लेकिन उनके जाने के
बाद फिर से जमीन विवाद का संघर्ष शुरू हो गया।
2007 में इस्लामिक गुट हमास ने गाजा पट्टी को अपने कब्जे में ले लिया।
हालांकि, हमास के अलावा एक फलस्तीनी गुट भी है, जो लगातार अधिकार जमाने की
फिराक में है। लेकिन 66 साल पुराने यह किस्सा कब खत्म होगा, यह कहना
मुश्किल होगा। लेकिन जिस तरह से इजरायली सेना गाजा पर कहर बनकर टूट रही है,
जानकारों का कहना है कि हमास का सफाया हो सकता है।
आईएम सरगना की शिकायत- जेल में हो रहा है जानवर से भी बदतर सलूक
(फाइल फोटो: यासीन भटकल)
नई दिल्ली। भारत में कई जगहों पर आतंकवादी हमलों की साजिश रचने
के आरोप में गिरफ्तार आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन के सरगना यासीन भटकल
ने सोमवार को एक स्थानीय अदालत में दावा किया कि तिहाड़ जेल में उससे
जानवरों से भी बदतर सलूक किया जा रहा है। भटकल ने यह आरोप भी लगाया कि
रमजान के महीने में भी उसे ढंग का खाना तक मुहैया नहीं कराया जा
रहा। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश राज कपूर की अदालत में पेश किए गए भटकल के
दावे पर तिहाड़ जेल के अधिकारियों को 23 जुलाई तक रिपोर्ट दाखिल करने के
निर्देश दिए गए हैं।
रमजान के महीने में वक्त पर खाना नहीं : भटकल
अपनी अर्जी में भटकल ने कहा कि अभी उसे तिहाड़ के जेल नंबर-02 में रखा
गया है। भटकल ने दावा किया कि उसे सबसे अलग-थलग रखा जाता है और अपने सेल
से बाहर निकलने की भी इजाजत नहीं दी जाती। उसका आरोप है कि अदालत में पेश
किए जाने के समय को छोड़कर वह कभी सूरज की रोशनी भी नहीं देख पाता। भटकल के
वकील एम. एस. खान के जरिए दायर अर्जी में कहा गया, रमजान का महीना होने की
वजह से आवेदक रोजा रख रहा है। उसे न तो ढंग का खाना दिया जाता है और खाना
भी वक्त पर नहीं मिलता। यह दावा भी किया गया कि भटकल को ताजी हवा में सांस
तक नहीं लेने दिया जा रहा। बता दें कि भटकल और उसके साथी असदुल्ला अख्तर
को राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने पिछले साल 28 अगस्त की रात को भारत-नेपाल सीमा
से गिरफ्तार किया था।
एक दिन में 34 इस्तीफे: असम में खतरे में कांग्रेस सरकार, महाराष्ट्र व घाटी में भी बगावत
फाइल फोटोः एक कार्यक्रम के दौरान महाराष्ट्र के सीएम पृथ्वीराज चव्हाण (दाएं) के साथ उद्योग मंत्री नारायण राणे।
नई दिल्ली. लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस
को सोमवार को सबसे बड़ी बगावत झेलनी पड़ी। असम, जम्मू-कश्मीर और
महाराष्ट्र में पार्टी के 34 नेताओं ने इस्तीफे दे दिए। इनमें से दो ने
तो कांग्रेस पार्टी ही छोड़ दी। पार्टी छोड़ने वालों में असम सरकार के
मंत्री हेमंत बिस्वास शर्मा और उधमपुर (जम्मू-कश्मीर) से दो बार सांसद
रहे चौधरी लाल सिंह हैं। सिंह 2003 और 2008 में सांसद बने थे।
जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस से गठबंधन खत्म करने के फैसले से
नाराज होकर उन्होंने पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।
महाराष्ट्र में उद्योग मंत्री नारायण राणे ने राज्य में नेतृत्व न
बदलने के आलाकमान के फैसले से नाराज होकर मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
उन्होंने कहा, 'पार्टी ने मुझे मुख्यमंत्री बनाने का आश्वासन दिया था।
लेकिन नौ साल हो गए। मैं और इंतजार नहीं कर सकता। उधर, असम में मुख्यमंत्री
तरुण गोगोई के खिलाफ कई दिनों से बढ़ रहा असंतोष सोमवार को चरम पर पहुंच
गया। असम के शिक्षा मंत्री हेमंत बिस्वास शर्मा के नेतृत्व में पार्टी के
कुल 32 विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। शर्मा ने तो
पार्टी की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया।
असम का संकट
असम में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद से ही बागी
विधायक आलाकमान से नेतृत्व बदलने की मांग करते रहे हैं। अब 32 विधायकों के
इस्तीफे के बाद राज्य की तरुण गोगोई सरकार खतरे में आ गई है। असम में
विधानसभा की कुल 126 सीटें हैं। सदन में बहुमत साबित के लिए 84 सीटों की
जरूरत होती है। हेमंत शर्मा का कहना है कि उनके पास कांग्रेस के 78 में से
40 विधायकों का समर्थन है।
हेमंत की अगुवाई में विधायकों ने सीएम की मुखालफत करते हुए राज्यपाल
से भी मुलाकात की। राज्य के कद्दावर मंत्री माने जाने वाले हेमंत ने कहा कि
मैंने अंतर आत्मा की आवाज सुनकर इस्तीफा दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि
वह मुख्यमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं। खबरों के मुताबिक कांग्रेस
उपाध्यक्ष राहुल गांधी
मुख्यमंत्री तरुण गोगोई का समर्थन कर रहे हैं। पार्टी ने पूरे मामले को
सुलझाने के लिए सीपी जोशी और मल्लिकार्जुन खड़गे की कमेटी बनाई है।
महाराष्ट्र में मुश्किल
महाराष्ट्र में लोकसभा चुनावों के तुरंत बाद से नेतृत्व परिवर्तन की मांग उठ रही थी, लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने ऐसा करने से मना कर दिया। यहां लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने काफी खराब प्रदर्शन किया था। इसके बावजूद नेतृत्व परिवर्तन की मांग नहीं माने जाने से नाराज राणे ने सोमवार को इस्तीफे का दांव चल कर पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी कर दी। राणे का कहना है कि आलाकमान ने उन्हें सीएम पद देने का आश्वासन दिया है लेकिन नौ साल के बाद अभी तक उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। अभी तक राणे का इस्तीफा मुख्यमंत्री ने मंजूर नहीं किया है। उन्हें मनाने की कोशिशें जारी हैं।
महाराष्ट्र में लोकसभा चुनावों के तुरंत बाद से नेतृत्व परिवर्तन की मांग उठ रही थी, लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने ऐसा करने से मना कर दिया। यहां लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने काफी खराब प्रदर्शन किया था। इसके बावजूद नेतृत्व परिवर्तन की मांग नहीं माने जाने से नाराज राणे ने सोमवार को इस्तीफे का दांव चल कर पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी कर दी। राणे का कहना है कि आलाकमान ने उन्हें सीएम पद देने का आश्वासन दिया है लेकिन नौ साल के बाद अभी तक उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। अभी तक राणे का इस्तीफा मुख्यमंत्री ने मंजूर नहीं किया है। उन्हें मनाने की कोशिशें जारी हैं।
कुनबे में भी टूट
कांग्रेस की चुनौतियां यहीं खत्म नहीं हुई हैं। पार्टी के सामने यूपीए
के कुनबे से दूर हो रहे सहयोगी दलों को साथ रखना भी बड़ी चुनौती बनी हुई
है। बताया जा रहा है कि कश्मीर के बाद अब महाराष्ट्र में शरद पवार की पार्टी के साथ कांग्रेस का गठबंधन खत्म हो सकता है।
जस्टिस अशोक कुमार थे वह जज जिन्हें मनमोहन सरकार बचाने के लिए किया था प्रमोट: प्रशांत भूषण
फाइल फोटोः मद्रास हाईकोर्ट से बाहर अाते वकील।
नई दिल्ली. वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने सोमवार को संकेत
दिया कि उस जज का नाम जस्टिस अशोक कुमार है, जिनके बारे में सुप्रीम कोर्ट
के पूर्व जज और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन मार्कंडेय काटजू ने
दावा किया है कि मनमोहन सरकार बचाने के लिए उन्हें भ्रष्ट होेने के
बावजूद तरक्की दी गई थी। काटजू के इस दावे पर सोमवार को संसद के दोनों सदनों में हंगामा हुआ और कार्यवाही स्थगित भी करनी पड़ी। काटजू ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि वर्ष 2002 में यूपीए सरकार
को गिरने से बचाने के लिए एक भ्रष्ट जज का कार्यकाल बढ़ाया गया था और
उन्हें मद्रास हाई कोर्ट में प्रमोशन भी दिया गया। काटजू ने लिखा है कि वह
यह खुलासा यह बताने के लिए कर रहे हैं कि देश में सिस्टम कैसे काम करता
है।
सोमवार को जब काटजू से पूछा गया कि उन्होंने जज का नाम क्यों सार्वजनिक नहीं किया और यह बात दस साल बाद क्यों सामने लाई तो काटजू बोले- अंग्रेजी में कहावत है बेटर लेट दैन नेवर। यह महत्वपूर्ण सवाल नहीं है कि दस साल बाद क्यों कहा, महत्वपूर्ण है कि जो बातें मैंने कही हैं वे सही हैं या नहीं? उस भ्रष्ट जज का नाम नहीं बताने के सवाल पर उन्होंने कहा, 'कुछ जिम्मेदारी मीडिया की भी है। मीडिया उस जज का नाम पता करे।'
उधर, प्रशांत भूषण ने एक टीवी चैनल को बताया कि जस्टिस अशोक कुमार को
जज बनाए जाने के विरोध में उन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की
थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब कॉलेजियम से नाम क्लीयर हो गया
तो कुछ नहीं हो सकता। भूषण ने कहा कि अर्जी इसी आधार पर दी गई थी कि जिस जज
के खिलाफ आरोप हैं उसे तरक्की कैसे दी जा सकती है?
काटजू ने ब्लॉग में ये लिखा है...
मद्रास हाईकोर्ट के एक एडिशनल जज थे जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के कई
आरोप लगे थे। इससे पहले उन्हें तमिलनाडु में सीधे जिला जज के तौर पर
नियुक्त किया गया था। उस दौरान उनके खिलाफ मद्रास हाई कोर्ट के अलग-अलग
पोर्टफोलियो वाले जजों ने कम-से-कम आठ प्रतिकूल टिप्पणियां की थीं, लेकिन
मद्रास हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस ने अपनी कलम की ताकत से सभी
टिप्पणियों को खारिज कर दिया था। यही जज आगे चलकर मद्रास हाईकोर्ट में
एडिशनल जज बन गए। जब नवंबर 2004 में मैं मद्रास हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस
बना,वह तब तक इसी पद पर थे। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि इस जज को तमिलनाडु
के एक बहुत ही महत्वपूर्ण राजनीतिक नेता का समर्थन प्राप्त था। मुझे बताया
गया कि डिस्ट्रिक्ट जज रहते हुए इस जज ने राज्य के एक बड़े नेता को जमानत
दी थी।
इन जज साहब की शिकायत मैंने तत्कालीन मुख्य न्यायधीश आरसी लाहोटी से
की और जज के खिलाफ एक गुप्त आईबी जांच कराने की गुजारिश की। कुछ हफ्ते बाद
जस्टिस लहोटी ने कहा कि जज के खिलाफ जो शिकायत मैंने की थी, वे सही पाई
गईं। आईबी को इस जज के करप्ट होने के पर्याप्त सबूत मिले।
दो साल पहले मैने सोचा था कि इन (मद्रास हाईकोर्ट के एडिशनल जज) को
आईबी की रिपोर्ट आने के बाद उनके पद से हटा दिया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ
और उन्हें अगले एक साल के लिए भी एडिशनल जज नियुक्त कर दिया गया। इस दौरान
6 एडशिनल जज को हाईकोर्ट का परमानेंट जज नियुक्त कर दिया गया।
मैंने इस बात को बाद में समझा कि यह आखिर यह कैसे हुआ। दरअसल सुप्रीम
कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए एक कॉलेजियम में सुप्रीम कोर्ट के पांच
सबसे सीनियर जज होते हैं। जबकि हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए तीन
सबसे सीनियर जजों की कॉलेजियम फैसला लेती है।
उस समय सुप्रीम कोर्ट के जज रहे 3 सीनियर जजों में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस लाहोटी,जस्टिस सबरवाल और जस्टिस रूमा पाल शामिल थीं। उस समय सुप्रीम कोर्ट की इस कॉलेजियम ने उक्त जज के खिलाफ आई आईबी की रिपोर्ट के आधार पर उस जज का दो साल का कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्हें आगे जज के तौर पर नियु्क्त ना किए जाने की सिफारिश केंद्र को भेजी थी।
उस समय सुप्रीम कोर्ट के जज रहे 3 सीनियर जजों में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस लाहोटी,जस्टिस सबरवाल और जस्टिस रूमा पाल शामिल थीं। उस समय सुप्रीम कोर्ट की इस कॉलेजियम ने उक्त जज के खिलाफ आई आईबी की रिपोर्ट के आधार पर उस जज का दो साल का कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्हें आगे जज के तौर पर नियु्क्त ना किए जाने की सिफारिश केंद्र को भेजी थी।
उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी और कांग्रेस इस गठबंधन सरकार में
शामिल सबसे बड़ी पार्टी थी। लेकिन उसके पास लोकसभा में अपना बहुमत नहीं था
वह बहुमत के लिए दूसरी छोटी पार्टियों पर निर्भर थी। पार्टी के यह बड़ा
सहयोगी दल तमिलनाडू से था जो इस भ्रष्ट जज के समर्थन में रहा। सरकार ने
कोलेजियम के 3 जजों की सिफारिश पर सरकार ने फैसला नहीं लिया।
यह जानकारी मुझे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
से मिली जब वे यूएन की सभा में शामिल होने न्यूयॉर्क जा रहे थे। यह
मुलाकात दिल्ली एयरपोर्ट पर हुई थी। पीएम ने मुझसे कहा कि तमिलनाडु की इस
पार्टी के एक मंत्री उस जज की नियुक्ति को आगे बढ़ाना चाहते हैं। यह वह
वक्त जब प्रधानमंत्री न्यूयॉर्क से लौटे तो तमिलनाडु की इस पार्टी ने उनकी
सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। क्योंकि सरकार ने उक्त जज की नियुक्ति को
आगे नहीं बढाया था। तमिलनाडु की इस राजनीतिक पार्टी के समर्थन वापस लेने
से मनमोहन सरकार संकट में आ गई थी,लेकिन पीएम से कांग्रेस के सीनियर नेताओं
से कहा कि वे चिंता न करें। सब कुछ मैनेज कर लिया जाएगा। यही मंत्री चीफ
जस्टिस लाहोटी से मिले और उन्हें कहा कि तमिलनाडु के इस एडिशनल जज की
नियुक्ती को आगे न बढ़ाए जाने से सरकार का संकट बढ गया है। इसके बाद चीफ
जस्टिस लाहोटी ने सरकार को एक पत्र लिखकर इस भ्रष्ट जज के टर्म को 1 साल और
आगे बढ़ाए जाने की अनुमति दी थी। मुझे इस बात का आश्चर्य हो रहा था कि
सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम की सिफारिश के बावजूद कैसे इस एडिशनल जज का
कार्यकाल एक साल और बढ गया जबकि उनके 6 बैचमेट जजों को स्थाई जज बना दिया
गया था।इस एडिशनल जज को उनकी नियुक्ति को एक साल और बढ़ाए जाने का लेटर चीफ
जस्टिस सबरवाल के कार्यकाल में सौंपा गया था।
अगले चीफ जस्टिस केजी बालाकृष्णन के कार्यकाल में यह स्थाई जज नियुक्त
हुए लेकिन इस जज का ट्रांसफर दूसरे हाईकोर्ट में कर दिया गया था। मैं इन
जारी जानकारियों को जोड़कर आपको बताना चाहता हूं कि इस दौरान सिस्टम किस
तरह से काम कर रहा था। जबकि आईबी की रिपोर्ट को देखें तो उनके आधार पर इस
जज को आगे नियुक्ति नहीं दी जा सकती थी।
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