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22 जुलाई 2014

इस शिवालय में चढ़े दूध से बनती है खीर, मिटाई जाती है गरीबों की भूख



(जोधपुर के अचलनाथ शिव मंदिर में दूग्धाभिषेक करते लोग जिसके बाद दूध को बच्चों को बांटने और खीर बनाने के लिए रख लिया जाता है)
 
जोधपुर. सावन के दूसरे सोमवार को शहर के शिव मंदिरों में दुग्धाभिषेक हुए। अच्छी खबर यह है कि शिव मंदिरों में अब अभिषेक किए जाने वाला दूध व्यर्थ नहीं बह रहा। कई मंदिरों ने ऐसी व्यवस्था की है कि अभिषेक के लिए आने वाले दूध को एकत्रित कर गरीब बस्ती के बच्चों को उपलब्ध करवाया जा रहा है। कटला बाजार स्थित अचलनाथ मंदिर में अब अभिषेक के दूध को पशु-पक्षियों व गरीब बच्चों के आहार के लिए भिजवाया जाता है। 
 
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य 
2500 से अधिक मंदिर है शहर में 
1.25 लाख लीटर दूध का होता है अभिषेक
50 हजार ली. से अधिक व्यर्थ बह जाता है
02 लाख बच्चों को मिल सकता है आहार
50 लाख रुपए का हो सकता है सदुपयोग
 
अचलनाथ मंदिर में बनती है खीर भी
ट्रस्ट प्रतिदिन पांच लीटर और सोमवार को 11 लीटर दूध से अभिषेक करता है। सावन का महीना चल रहा है। ऐसे में प्रतिदिन 25 से 30 लीटर और सोमवार को 100 लीटर से अधिक दूध से श्रद्धालु अभिषेक करते हैं। दूध को पैरों में व्यर्थ बहता देखकर यह निर्णय लिया गया कि यह दूध व्यर्थ न बहकर किसी के काम आए। बस इसे ड्रम में भरना शुरू किया गया। यह दूध कुत्तों के बाड़ों व गरीब बस्ती के बच्चों के लिए भेजा जाता है। खास मौके पर इस दूध की खीर भी बनाई जाती है। -कैलाश, व्यवस्थापक, अचलनाथ मंदिर ट्रस्ट
 
1531 ई. में बना था मंदिर
अचलनाथ शिव मंदिर लोकप्रिय मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण 1531 ई. में राव गंगा की रानी, नानक देवी ने कराया था। यह मंदिर कई चीजों के लिए फेमस है इस मंदिर में आप एक जलाशय को देख सकते हैं जिसे 'गंगा बावड़ी' के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर परिसर में गर्भगृह के साथ मंडप भवन और भजन -कीर्तन करने के लिए कई हॉल बने हुए हैं। इस मंदिर में की गई नक्काशी देखते ही बनती है।
 
...और मंदिरों ने भी उठाया कदम
शहर के अन्य कुछ मंदिरों में भी ऐसी व्यवस्था की जा रही है। यह दूध अब गरीब बच्चों का आहार बन रहा है। आस्था के रूप में जो दूध व्यर्थ बह जाता था, उसे सहेजने के निर्णय की सराहना की जा रही है।

'लड़का होकर भी नहीं हूं लड़कों जैसा, ऑपरेशन कराया ताकि कमा सकूं पैसा'



(अस्पलात में भर्ती युवक से पूछताछ करती पुलिस।)
 
मोगा. दत्त रोड पर स्थित प्राइवेट अस्पताल में 19 वर्षीय युवक इंद्र का गुप्तांग काटने के मामले में पुलिस ने डॉक्टर, महंत और एक अन्य आरोपी को गिरफ्तार किया है। सोमवार को पुलिस ने तीनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें ज्यूडिशियल रिमांड पर जेल भेज दिया गया।
 
गुप्तांग कटवाने वाले युवक इंद्र ने बताया कि वह लड़का होने के बावजूद भी लड़कों जैसा नहीं है। वह बचपन से ही लड़कियों जैसा था और इसी कारण उसे नाचने और गाने का शौक है। उसने अपनी मर्जी से लिंग कटवा दिया है ताकि वह किन्नर बन सके और नाचकर पैसे कमा सके। 
 
जानकारी मिलते ही पहुंच गई पुलिस
 
उल्लेखनीय है कि बस्सी पठाना निवासी मंजू महंत ने अपने साथ रहने वाले 19 वर्षीय युवक का प्राइवेट अस्पताल में शनिवार सुबह गुप्तांग कटवाया था, जिसकी भनक थाना सिटी 1 पुलिस को मिल गई थी। इस पर पुलिस ने शनिवार को अस्पताल में दबिश देकर युवक को सिविल अस्पताल भर्ती करवाया था। 
 
पुलिस की ओर से इस मामले की जांच के बाद रविवार देर रात्रि अस्पताल के डॉ. प्रेम सिंह धालीवाल, गुप्तांग कटवाने वाले महंत मंजू उसके अन्य साथी जग्गा सिंह के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। इसके बाद महंत ने अपने साथी के साथ रविवार देर शाम पुलिस के सामने समर्पण कर दिया था। 
 
पुलिस ने उच्चाधिकारियों के आदेशों पर मामले की जांच के बाद तीनों के खिलाफ मामला दर्ज किया था। सोमवार को पुलिस ने तीनों को ड्यूटी मजिस्ट्रेट और सिविल जज प्रशांत वर्मा की अदालत में पेश किया गया, जहां से तीनों को ज्यूडिशियल जेल भेज दिया गया है।
डॉक्टर ने रचा बीमार होने का ड्रामा 
 
मामले के आरोपी डॉ. राम सिंह धालीवाल ने खुद को डायरिया होने की बात पुलिस को बताई थी, जिस पर चौकी इंचार्ज एएसआई सतनाम सिंह ने उसे रविवार की रात्रि 11:20 मिनट पर सिविल अस्पताल में भर्ती करवाया था। सुबह 8 बजे डॉक्टर को छुट्टी देने के बाद थाना सिटी में लाया गया था। 
 
एएसआई सतनाम सिंह ने बताया कि सोमवार सुबह ड्यूटी पर तैनात डॉ. मनदीप सिंह ने डा. धालीवाल की ओर से रविवार की रात्रि दाखिल होने उपरांत कोई दवा नहीं लेने के बारे में जानकारी दी और उसे डिस्चार्ज कर दिया। इसके चलते यह पता चला कि डॉक्टर ने ड्रामा ही रचा था।

इंदौर: दहेज के लिए ससुरालवालों ने युवती को सुनाया अग्नि परीक्षा का फरमान



(ससुरालवालों से प्रताड़ित हुई पूनम पूरी घटना बताते हुए)
 
इंदौर. मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में ससुरालवालों ने बहू के चरित्र पर सवाल उठाया। फिर अग्नि परीक्षा से गुजरने का फरमान सुना दिया। युवती ने इनकार किया तो समाज की पंचायत ने उसके परिवार का हुक्का-पानी बंद कर दिया। न्याय के लिए वह कोर्ट पहुंची। यहां कहानी सामने आई कि युवती के साथ यह सब दहेज के लिए किया गया। कोर्ट ने युवती के पति, सास समेत ससुरालपक्ष के चार लोगों के खिलाफ  दहेज प्रताड़ना का केस दर्ज कर लिया। 
 
यह कहानी है इंदौर के कंजर मोहल्ला बियाबानी निवासी 25 वर्षीय पूनम की। पूनम ने पूरे घटनाक्रम को लेकर कोर्ट में परिवाद पेश किया था। न्यायिक मजिस्ट्रेट रेखा आर. चंद्रवंशी ने युवती के परिवाद पर मंगलवार को आदेश दिया।
 
वकील संतोष खोवारे के मुताबिक परिवाद की सुनवाई में पूरे घटनाक्रम के मूल में दहेज का मामला सामने आया। कोर्ट ने युवती के पति कुणाल, सास ताराबाई, मौसी सास लीलाबाई व उसके पुत्र संदीप के खिलाफ धारा 498-ए के तहत केस पंजीबद्ध करते हुए अगली सुनवाई 3 सितंबर तय की। 
 
मेंटेनेंस का भी केस फैमिली कोर्ट में  
 
युवती फिलहाल पति से अलग माता-पिता के पास रहती है। उसने कुछ माह पहले फैमिली कोर्ट में भरण-पोषण के लिए केस दायर किया है। युवती का कहना है पति उससे मिलता रहता है और साथ में रहने की बात करता है किंतु उसके ससुराल वाले, खासतौर पर सास व मौसी सास इसके लिए सहमत नहीं है।ससुराल वालों पर केस दर्ज होने के बाद खुश पूनम और उसकी मां)
 
युवती और उसके परिवार का हुक्का पानी भी बंद कर दिया था
 
> पूनम का विवाह 13 सितंबर 2007 को मुंबई निवासी कुणाल से हुआ था। कुणाल मुंबई ब्यूटीशियन का काम करता था।

> शादी के कुछ समय बाद से ही ससुराल वाले दहेज में दो लाख रुपए की मांग करते हुए मारपीट करते थे। इसकी रिपोर्ट उसने वर्ष 2008 में मुंबई पुलिस में की थी। वहां पुलिस ने दोनों को समझाया और मामला शांत हो गया था। 
 
>वर्ष 2011 में उसके ससुराल वाले इंदौर रहने आ गए। यहां भी दहेज के लिए परेशान करने लगे। पूनम की शिकायत पर थाना छत्रीपुरा ने दहेज प्रताड़ना का केस दर्ज किया था।  
 
> दहेज का केस अदालत पहुंचा तो मौसी सास लीलाबाई ने समझौता करवा दिया। केस खत्म हो गया। 
 
> फिर दहेज की मांग शुरू हुई और सास व मौसी सास ने उसके चरित्र पर शंका शुरू कर दी। सास व मौसी सास व मौसी सास के पुत्र ने उसे कहा कि अगर वह चरित्रवान है तो उसे अग्निपरीक्षा में गुजरना होगा।

> कंजर समाज में प्रभाव व दखल रखने वाली मौसी सास लीलाबाई ने 23 फरवरी 2014 को समाज की बैठक कंजर मोहल्ले में बुलाई। उसमें पूनम ने जाने से इंकार कर दिया। उसके माता-पिता पहुंचे और कहा कि उनकी बेटी अग्नि परीक्षा नहीं देगी, क्योंकि चरित्र साबित करने के लिए ऐसा करना जरूरी नहीं है। इस पर लीलाबाई ने अपने प्रभाव से उसी दिन से पूनम व उसके मायके वालों का हुक्का-पानी बंद करवा दिया।
 
> इसकी शिकायत युवती के परिजनों ने वरिष्ठ पुलिस अफसरों और थाना छत्रीपुरा से की किंतु कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस कारण अदालत का सहारा लेना पड़ा। (जैसा पूनम ने कोर्ट में पेश परिवाद में बताया)
इंदौर में पहले भी हो चुकी अग्नि परीक्षा   
 
अधिवक्ता खोवारे के मुताबिक परिवादी कंजर समाज से है। परिवादी की मां ने जानकारी दी है कि समझौते के लिए पहले पैसे देना पड़ते हैं तब पंच बैठक करते हैं। अग्नि परीक्षा के लिए हथेली पर तेल लगे पत्ते व उसके ऊपर गरम सलाखें रखी जाती हैं। हथेली जली तो गलत और नहीं जलने पर सही माने जाने की पुरानी परंपरा है।

भ्रष्‍ट जज के प्रमोशन मामले पर काटजू ने लाहोटी को लपेटा, मांगे 6 सवालों के जवाब




(फोटो: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कंडेय काटजू।)
 
नई दिल्ली. मनमोहन सरकार बचाने के लिए मद्रास हाईकोर्ट के एक भ्रष्ट जज को प्रमोशन दिलवाने का खुलासा करने के एक दिन बाद सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कंडेय काटजू ने पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया आर.सी. लाहोटी से छह सवाल पूछे हैं। जस्टिस लाहोटी ने कहा था कि उन्‍होंने अपने जीवन में कुछ गलत नहीं किया है। उनके इस बयान पर सफाई मांगते हुए जस्टिस काटजू ने ब्‍लॉग लिख कर उनसे ये बातें पूछी हैं-
 
1. मैंने पहले चेन्नई से उन्हें एक पत्र लिखा था कि मद्रास हाईकोर्ट के एडिशनल जज पर गंभीर आरोप लगे हुए हैं और इसीलिए उनके खिलाफ गुप्त जांच होनी चाहिए। उसके बाद मैं निजी तौर पर जस्टिस लाहोटी से दिल्ली में मिला था और मैंने दोबारा उन एडिशनल जज के खिलाफ आईबी जांच की सिफारिश की थी। यह सच है या नहीं, बताएं?
 
2. क्‍या यह सच नहीं है कि मेरे अनुरोध पर जस्टिस लाहोटी से उन जज के खिलाफ गुप्‍त आईबी जांच का आदेश दिया था? 
 
3. क्‍या यह सही नहीं है कि दिल्‍ली में जस्टिस लाहोटी से निजी तौर पर मिलने के कुछ हफ्ते बाद जब मैं चेन्नई में था, तो उन्होंने मुझे दिल्ली से फोन कर बताया था कि आईबी ने पूरी जांच के बाद पाया है कि वह जज भ्रष्टाचार में लिप्त हैं? 
 
4. ये सच है या नहीं कि एडिशनल जज के खिलाफ आईबी की रिपोर्ट आने के बाद तब के सीजेआई लोहाटी ने तीन जजों के कोलेजियम की बैठक बुलाई थी। इस कोलेजियम में वह खुद, जस्टिस सब्बरवाल और जस्टिस रूमा पाल शामिल थीं। कोलेजियम ने भारत सरकार से यह सिफारिश की थी कि इन एडिशनल जज के दो साल के कार्यकाल को और विस्तार नहीं दिया जाए? 
 
5.  ऐसा है या नहीं कि कोलेजियम के तीन जजों की सिफारिश भारत सरकार को भेजे जाने के बाद जस्टिस लाहोटी ने कोलेजियम के अन्य दो जजों से बिना सलाह किए भारत सरकार को पत्र लिखकर यह कहा था कि इन एडिशनल जज के कार्यकाल को एक साल का विस्तार दिया जाए? 
 
6. आईबी रिपोर्ट में जज को भ्रष्टाचार में लिप्त पाया गया था, तो उन्‍होंने (जस्टिस लाहोटी) एडिशनल जज के कार्यकाल को एक साल का विस्तार दिए जाने की सिफारिश क्‍यों की?  
 
काटजू ने अपने ब्लॉग में लिखा, 'कुछ लोगों ने मेरे बयान की टाइमिंग को लेकर टिप्पणी की। कुछ तमिल लोगों ने मेरे फेसबुक पेज पर टिप्पणी की है कि मैं अपने फेसबुक पेज पर काफी सारे तथ्य पोस्ट कर रहा हूं, तो मुझे मद्रास हाईकोर्ट को लेकर अपने अनुभव भी साझा करने चाहिए। मैंने तभी अपने अनुभव साझा करना शुरू कर दिया और मुझे यह अनुभव भी याद था, इसलिए मैंने इसे पोस्ट किया।'
 
काटजू ने अपने पिछले ब्‍लॉग में लिखा था...

मद्रास हाईकोर्ट के एक एडिशनल जज थे जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे थे। इससे पहले उन्हें तमिलनाडु में सीधे जिला जज के तौर पर नियुक्त किया गया था। उस दौरान उनके खिलाफ मद्रास हाई कोर्ट के अलग-अलग पोर्टफोलियो वाले जजों ने कम-से-कम आठ प्रतिकूल टिप्पणियां की थीं, लेकिन मद्रास हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस ने अपनी कलम की ताकत से सभी टिप्पणियों को खारिज कर दिया था। यही जज आगे चलकर मद्रास हाईकोर्ट में एडिशनल जज बन गए। जब नवंबर 2004 में मैं मद्रास हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस बना,वह तब तक इसी पद पर थे। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि इस जज को तमिलनाडु के एक बहुत ही महत्वपूर्ण राजनीतिक नेता का समर्थन प्राप्त था। मुझे बताया गया कि डिस्ट्रिक्ट जज रहते हुए इन जज ने राज्य के एक बड़े नेता को जमानत दी थी।

इन जज साहब की शिकायत मैंने तत्कालीन मुख्य न्यायधीश आरसी लाहोटी से की और जज के खिलाफ एक गुप्त आईबी जांच कराने की गुजारिश की। कुछ हफ्ते बाद जस्टिस लाहोटी ने कहा कि जज के खिलाफ जो शिकायत मैंने की थी, वे सही पाई गईं। आईबी को इस जज के करप्ट होने के पर्याप्त सबूत मिले।
 
तब मैने सोचा था कि इन (मद्रास हाईकोर्ट के एडिशनल जज) जज को आईबी की रिपोर्ट आने के बाद उनके पद से हटा दिया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और उन्हें अगले एक साल के लिए भी एडिशनल जज नियुक्त कर दिया गया। इस दौरान 6 एडशिनल जज को हाईकोर्ट का परमानेंट जज नियुक्त कर दिया गया।

मैंने इस बात को बाद में समझा कि यह आखिर यह कैसे हुआ। दरअसल सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए एक कॉलेजियम में सुप्रीम कोर्ट के पांच सबसे सीनियर जज होते हैं। जबकि हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए तीन सबसे सीनियर जजों की कॉलेजियम फैसला लेती है।
उस समय सुप्रीम कोर्ट के जज रहे 3 सीनियर जजों में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस लाहोटी,जस्टिस सबरवाल और जस्टिस रूमा पाल शामिल थीं।  उस समय सुप्रीम कोर्ट की इस कॉलेजियम ने उक्त जज के खिलाफ आई आईबी की रिपोर्ट के आधार पर उस जज का दो साल का कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्हें आगे जज के तौर पर नियु्क्त ना किए जाने की सिफारिश केंद्र को भेजी थी।

उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी और कांग्रेस इस गठबंधन सरकार में शामिल सबसे बड़ी पार्टी थी। लेकिन उसके पास लोकसभा में अपना बहुमत नहीं था वह बहुमत के लिए दूसरी छोटी पार्टियों पर निर्भर थी। पार्टी के यह बड़ा सहयोगी दल तमिलनाडू से था जो इस भ्रष्ट जज के समर्थन में रहा। सरकार ने कोलेजियम के 3 जजों की सिफारिश पर सरकार ने फैसला नहीं लिया।

यह जानकारी मुझे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिली जब वे यूएन की सभा में शामिल होने न्यूयॉर्क जा रहे थे। यह मुलाकात दिल्ली एयरपोर्ट पर हुई थी। पीएम ने मुझसे कहा कि तमिलनाडु की इस पार्टी के एक मंत्री उस जज की नियुक्ति को आगे बढ़ाना चाहते हैं। जब प्रधानमंत्री न्यूयॉर्क से लौटे तो तमिलनाडु की इस पार्टी ने उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया। क्योंकि सरकार ने उक्त जज की नियुक्ति को आगे नहीं बढाया था। तमिलनाडु की इस राजनीतिक पार्टी के समर्थन वापस लेने से मनमोहन सरकार संकट में आ गई थी,लेकिन पीएम से कांग्रेस के सीनियर नेताओं से कहा कि वे चिंता न करें। सब कुछ मैनेज कर लिया जाएगा। यही मंत्री चीफ जस्टिस लाहोटी से मिले और उन्हें कहा कि तमिलनाडु के इस एडिशनल जज की नियुक्ती को आगे न बढ़ाए जाने से सरकार का संकट बढ गया है। इसके बाद चीफ जस्टिस लाहोटी ने सरकार को एक पत्र लिखकर इस भ्रष्ट जज के टर्म को 1 साल और आगे बढ़ाए जाने की अनुमति दी थी। मुझे इस बात का आश्चर्य हो रहा था कि सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम की सिफारिश के बावजूद कैसे इस एडिशनल जज का कार्यकाल एक साल और बढ गया जबकि उनके 6 बैचमेट जजों को स्थाई जज बना दिया गया था। इन एडिशनल जज को उनकी नियुक्ति को एक साल और बढ़ाए जाने का लेटर चीफ जस्टिस सबरवाल के कार्यकाल में सौंपा गया था।

अगले चीफ जस्टिस केजी बालाकृष्णन के कार्यकाल में यह स्थाई जज नियुक्त हुए, लेकिन इस जज का ट्रांसफर दूसरे हाईकोर्ट में कर दिया गया था। मैं इन जारी जानकारियों को जोड़कर आपको बताना चाहता हूं कि इस दौरान सिस्टम किस तरह से काम कर रहा था। जबकि आईबी की रिपोर्ट को देखें तो उनके आधार पर इस जज को आगे नियुक्ति नहीं दी जा सकती थी।

कर्नाटक: बलात्‍कार पीड़िता को मेडिकल टेस्ट के लिए बिना कपड़ों के तीन घंटे करवाया इंतजार


कर्नाटक: बलात्‍कार पीड़िता को मेडिकल टेस्ट के लिए बिना कपड़ों के तीन घंटे करवाया इंतजार
बेंगलुरु. बलात्कार पीड़िताओं के इलाज और जांच के लिए सरकार ने इस साल मार्च में नई गाइडलाइंस जारी की थी लेकिन कर्नाटक में इनकी धज्जियां उड़ाई गईं। राज्य के एक सरकारी अस्पताल में रेप पीड़िता को मेडिकल टेस्ट के लिए बिना कपड़ों के तीन घंटे इंतजार करवाया गया।
 
क्या है मामला
मानसिक तौर पर विक्षिप्त 23 वर्षीय रेप पीड़िता को मैसूर के छेलूवांबा सरकारी अस्पताल में मेडिकल जांच के लिए लाया गया था। पीड़िता के परिवार ने आरोप लगाया है कि लड़की को अस्पताल के बेड पर तीन घंटे इंतजार करना पड़ा। इस दौरान उसके तन पर कपड़े तक नहीं थे।मेडिकल स्टाफ ने पीड़िता के परिवार को भी अपमानित किया।  कर्नाटक महिला आयोग की अध्यक्ष मंजुला मनसा ने अपनी जांच में आरोपों को सही पाया है।
 
 
अस्पताल प्रशासन का कहना है, 'रेप पीड़िताओं की मेडिकल जांच के लिए हमारे पास अलग से कोई व्यवस्था नहीं है। उनका मेडिकल टेस्ट लेबर वार्ड में ही कराया जाता है।'
मार्च में सरकार ने बलात्‍कार पीडि़तों की जांच के लिए नए दिशानिर्देश जारी कर 'टू फिंगर' टेस्ट पर रोक लगा दी थी। नए दिशानिर्देश में इसे अवैज्ञानिक बताते हुए गैर-कानूनी करार दिया गया था। अस्पतालों से पीड़ितों की फॉरेंसिक और मेडिकल जांच के लिए अलग से कमरे बनाने के लिए भी कहा गया था। माना जा रहा था कि नए दिशानिर्देश पर अमल सुनिश्चित होने के बाद बलात्‍कार के बाद पीडि़ता की 'मानसिक पीड़ा' बढ़ाने की व्‍यवस्‍था पर रोक लगेगी।

क्‍या-क्‍या है नई गाइडलाइंस में
1. हर अस्पताल को रेप केस में मेडिको-लीगल मामलों (एमएलसी) के लिए अलग से कमरा मुहैया कराना होगा और उनके पास गाइडलाइंस में बताए गए आवश्यक उपकरण होना जरूरी है।
 
2. पीड़ितों को वैकल्पिक कपड़े मुहैया कराने का प्रावधान होना चाहिए और जांच करते समय डॉक्टर के अलावा तीसरा व्यक्ति कमरे में नहीं होना चाहिए।
 
3. यदि डॉक्टर पुरुष है तो एक महिला वहां होनी चाहिए। 
 
4. डॉक्टरों द्वारा किए जाने वाले 'टू फिंगर' टेस्ट को गैर कानूनी बना दिया गया है। नियमावली में माना गया है कि यह वैज्ञानिक नहीं है और इसे नहीं किया जाना चाहिए। 
 
5. डॉक्टरों से 'रेप' शब्द का इस्तेमाल नहीं करने को कहा गया है, क्योंकि यह मेडिकल नहीं कानूनी टर्म है।
 
6. अब तक बलात्कार पीड़ितों की जांच केवल पुलिस के कहने पर की जाती थी, लेकिन अब यदि पीड़ित पहले अस्पताल आती है तो एफआईआर के बिना भी डॉक्टरों को उसकी जांच करनी चाहिए।
 
7. डॉक्टरों को पीड़ित को जांच के तरीके और विभिन्न प्रक्रियाओं की जानकारी देनी होगी और जानकारी ऐसी भाषा में दी जानी चाहिए, जिन्हें मरीज समझ सके।
टू-फिंगर टेस्ट
 
टू-फिंगर टेस्ट में महिला के हायमन (कौमार्य झिल्ली) का मेडिकल इंस्पेक्शन होता है। पिछले साल मई में सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म की पुष्टि के लिए किए जाने वाले टू-फिंगर टेस्ट को पीडि़त की निजता का हनन बताया था। साथ ही सरकार से कहा था कि इस क्रूर, अमानवीय और अपमानजनक तरीके को बदला जाए। जस्टिस बीएस चौहान और एफएमआई कलीफुल्ला की बेंच ने कहा था कि यह टेस्ट सिर्फ यौन संबंधों की पुष्टि करता है। इसमें पुष्टि होने के बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि पीडि़त की सहमति थी या नहीं। बेंच ने कहा कि यौन हिंसा के मामलों से निपटने में चिकित्सकीय प्रक्रियाओं में स्वास्थ्य को सबसे ज्‍यादा महत्व दिया जाए। पीडि़तों को सेवाएं उपलब्ध कराना सरकार का दायित्व है। सुरक्षा के पर्याप्त उपाय किए जाए। उनकी निजता के साथ कोई मनमाना या गैरकानूनी हस्तक्षेप न हो।
 
बलात्‍कार की शिकार पीड़िता को अक्सर ऐसे परीक्षणों से गुजरना पड़ता है, जो किसी को भी अपमानित कर सकता है। कुछ साल पहले तक देश में रेप की पुष्टि के लिए सबसे ज्यादा अपनाया जाने वाला तरीका 'टू फिंगर' टेस्‍ट था। डॉक्टरों के मुताबिक कई बार टू फिंगर टेस्‍ट जांच में यह भी पता नहीं चल पाता था कि पीड़िता के साथ वास्तव में बलात्‍कार किया गया है या नहीं। इस तरीके से केवल यह जाना जा सकता था कि पीड़ित महिला ने पहले किसी के साथ शारीरिक संबंध बनाया है कि नहीं।
 
टू फिंगर टेस्ट के दौरान मैनुअल एग्जामिनेशन का तरीका अपनाया जाता था जो कि बेहद अमानवीय था। दुराचार के मामले की इस तरह की मेडिकल जांच पर सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति जाहिर करते हुए नए नियम बनाने के निर्देश दिए थे। जिसके बाद उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने नए तरीकों को अपनाने के निर्देश दिए थे। इन नए नियमों के जोड़े जाने के बाद लोगों को न्याय मिलने में काफी सहूलियत की उम्मीद जगी थी। लेकिन, इस नियम का सौ फीसदी पालन सुनिश्चित नहीं हो
वैज्ञानिकों ने रेप की पुष्टि के लिए 'टू फिंगर' टेस्ट की जगह कई अन्‍य तरीके खोज निकाले हैं, जो ज्यादा सटीक और संवेदनशील हैं। ऐसा ही एक तरीका है कॉल्पोस्कोपी टेस्ट। कॉल्पोस्कोपी टेस्ट में कोई भी काम मैनुअली नहीं होता है। कई राज्यों ने इस बारे में नियम बनाए हैं। इन नियमों के मुताबिक पीड़िता के कॉल्पोस्कोपी टेस्ट के साथ ही आरोपी की भी जांच कराई जाती है। कॉल्पोस्कोपी टेस्ट के बाद दुराचार के दौरान हुए संघर्ष से हुई चोटों को ही मुख्य सुबूत बनाकर अदालत में पेश किया जाना चाहिए। 
 
कैसे होता है कॉल्पोस्कोपी टेस्ट

कॉल्पोस्कोपी टेस्ट में एक माइक्रोस्कोप की मदद से पीड़िता के निजी अंगों में आई चोटों को चिह्नित किया जा सकता है। रेप की पुष्टि के लिए अपनाए जा रहे नए नियमों को विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानकों के अनुसार तैयार किया गया है जिसमें यह कहा गया है कि किसी भी पीड़िता व पीड़ित के निजी अंगों का परीक्षण करते समय उसके मानवाधिकारों और संवेदनशीलता का पूरा ध्यान रखा जाए। कई राज्यों में ऐसे नियम बनाए गए हैं जिसके तहत पीड़ित महिला और आरोपी पुरुष की अलग-अलग मेडिकल जांच कर उसे दो प्रोफार्मा में भरकर अदालत को देना होगा।

पाकिस्‍तानी गोलीबारी में जवान शहीद: शिवसेना का मोदी सरकार पर हमला, बोली- एक के बदले 10 मारो

पाकिस्‍तानी गोलीबारी में जवान शहीद: शिवसेना का मोदी सरकार पर हमला, बोली- एक के बदले 10 मारो
फोटो: प्रतीकात्‍मक इस्‍तेमाल 
 
जम्मू. पड़ोसी मुल्‍क पाकिस्तान ने एक बार फि‍र सीजफायर (संघर्षविराम) का उल्‍लंघन किया है। पाक सेना ने मंगलवार को अखनूर सेक्टर की चौकियों को निशाना बनाया। इस फायरिंग में भारतीय सेना का एक जवान शहीद हो गया, जबकि दो गंभीर रूप से घायल हो गए। भारतीय सेना ने भी इस फायरिंग का माकूल जवाब दिया। बता दें कि 26 मई को नरेंद्र मोदी द्वारा बतौर पीएम शपथ लेने के बाद से यह संघर्षविराम उल्‍लंघन का 20वां मामला है।  
 
भड़की शिवसेना
एनडीए की सहयोगी शिवसेना ने एलओसी पर पाक सेना की फायरिंग को लेकर मोदी सरकार की जमकर खिंचाई की। शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा  कि सरकार को पाकिस्तान से रिश्ते तुरंत खत्म करने चाहिए। राउत ने कहा कि संसद में चर्चा से कुछ नहीं होने वाला है और हम चर्चा करते रहेंगे और वो हमारे जवानों को मारते रहेंगे। राउत ने ये भी कहा कि अगर पाकिस्तान ने हमारे एक जवान को मारा है तो हमें उनके 10 जवानों को मारना चाहिए।
 
16 जुलाई को भी जवान हुआ था शहीद 
प्राप्‍त जानकारी के अनुसार, मंगलवार दोपहर पाक सेना के जवानों ने अचानक से फायरिंग शुरू कर दी। इससे पहले कि भारतीय जवान अपनी पोजीशन ले पाते, कुछ गोलियां उन्‍हें आ लगीं। इस वजह से एक जवान की मौके पर ही मौत हो गई। शहीद जवान की पहचान एनके मोग चोंग के रूप में हुई है। दो अन्य घायल जवानों को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती किया गया है। बता दें कि 16 जुलाई को आरएस पुरा सेक्टर में भी पाक जवानों ने बीएसएफ की चौकियों को निशाना बनाया था, जिसमें एक जवान शहीद हुआ था और तीन जवानों सहित सात लोग घायल हुए थे। 
 
रक्षा मंत्री बोले, सीजफायर उल्‍लंघन में कोई बढ़ोत्‍तरी नहीं 
रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि मोदी सरकार के गठन के बाद भारत-पाक सीमा पर पाकिस्तान की तरफ से सीजफायर उल्लंघन में कोई बढ़ोत्तरी नहीं देखी गई है। मंगलवार को रक्षा मंत्री राज्य सभा में कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद के उन आरोपों का जवाब दे रहे थे, जिनमें आजाद ने सरकार से पूछा था कि सरकार के बड़े-बड़े दावों के बावजूद पाकिस्तान सीमा पर सीजफायर का उल्लंघन क्यों कर रहा है? जेटली ने अपने जवाब में कहा कि 27 मई से 17 जुलाई तक पाकिस्तान ने 19 बार भारत-पाक सीमा पर सीजफायर का उल्लंघन किया है। जेटली के मुताबिक, यूपीए के कार्यकाल में पाकिस्तान ने 347 बार सीजफायर का उल्लंघन किया था। जेटली ने कहा कि मोदी सरकार के समय पाकिस्तान की ओर से किए गए कथित उल्लंघन पर तुरंत जवाबी कार्रवाई की गई है। 
 
सिर नहीं झुकने देंगे: जेटली 
 अरुण जेटली ने कहा, हमारे सिर झुके नहीं हैं... यह सरकार सिर झुकने भी नहीं देगी। जेटली ने यह बात सदन में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद के सवाल के जवाब में कही। आजाद ने कहा था कि प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी तत्कालीन यूपीए सरकार पर ‘कमजोर’ होने का आरोप लगाते थे, लेकिन अब सरकार क्यों पाकिस्तान के संघर्षविराम उल्लंघन के आगे सिर झुका रही है? 

क़ुरान का सन्देश

 
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