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23 जुलाई 2014

समंदर की सतह प

समंदर की सतह पर एक चिड़िया ढूंढती है प्यास को
अब तो जन - गण - मन के देखो टूटते विश्वास को
वर्फ से कह दो जलते जंगलों की तबाही की गवाही तुम को देनी है
और कह दो साजिशों से सत्य का चन्दन रगड़ कर अपने माथे पर लगा लें
और जितना छल सको तुम छल भी लो
लेकिन समझ लो ऐ जयद्रथ
वख्त का सूरज अभी डूबा नहीं है
एक भी आंसू हमारा आज तक सूखा नहीं है. " --- राजीव चतुर्वेदी

ब्रिटिश इंजीनियर को गंवानी पड़ी थी जान, आज भी होती है टूटे शिवलिंग की पूजा!



(फोटो - गोइलकेरा के महादेवशाल मंदिर में स्थापित खंडित शिवलिंग।)
 
रांची/चक्रधरपुर/गोइलकेरा। झारखंड में सिर्फ देवघर के बाबा वैद्यनाथ धाम ही नहीं बल्कि कई प्राचीन शिवमंदिरों को बाबा धाम के नाम से जाना जाता है। ऐसा ही एक बाबा धाम है पश्चिमी सिंहभूम जिले का महादेवशाल धाम। गोइलकेरा नामक जगह में स्थित महादेवशाल में एक ही शिवलिंग की दो जगहों पर पूजा होती है।

यहां खंडित शिवलिंग का मुख्य भाग मंदिर के गर्भगृह में है, जबकि छोटा हिस्सा मंदिर से दो किमी दूर रतनबुरू पहाड़ी पर स्थापित है। यहां स्थानीय आदिवासी पिछले डेढ़ सौ वर्षों से ग्राम देवी और शिवलिंग की साथ-साथ पूजा करते आ रहे हैं।

शिवलिंग खंडित होने की रोचक कहानी

शिवलिंग के प्रकट और खंडित होने की रोचक गाथा है। जानकार बताते हैं कि गोइलकेरा के बड़ैला गांव के पास बंगाल-नागपुर रेलवे द्वारा कोलकाता (तब कलकत्ता) से मुंबई (तब बॉम्बे) के बीच रेलवे लाइन बिछाने का कार्य चल रहा था। 19 वीं शताब्दी के मध्य में रेलवे लाइन बिछाने के लिए जब स्थानीय आदिवासी मजदूर खुदाई का कार्य कर रहे थे, उसी समय शिवलिंग दिखाई दिया।
 
मजदूरों ने शिवलिंग को देखते ही कार्य बंद कर दिया और नतमस्तक हो गए। लेकिन वहां मौजूद ब्रिटिश इंजीनियर रॉबर्ट हेनरी ने इसे बकवास करार देते हुए फावड़ा उठा लिया और शिवलिंग पर वार कर दिया। शिवलिंग तो दो टुकड़ों में बंट गया, लेकिन काम से लौटते समय रास्ते में ब्रिटिश अभियंता की भी मौत हो गई। इसके बाद शिवलिंग के छोटे हिस्से को रतनबुरू पहाड़ी पर ग्राम देवी के बगल में स्थापित किया गया। खुदाई में जहां शिवलिंग प्रकट हुआ था, वहां आज महादेवशाल मंदिर है।
बदलना पड़ा फैसला

कहते हैं कि शिवलिंग के प्रकट होने के बाद मजदूरों ग्रामीणों ने वहां रेलवे लाइन के लिए खुदाई कार्य का जोरदार विरोध किया। अंग्रेज अधिकारियों के साथ आस्थावान लोगों की कई बार बैठकें भी हुई। ब्रिटिश इंजीनियर रॉबर्ट हेनरी की मौत की गूंज ईस्ट इंडिया कंपनी के मुख्यालय कोलकाता तक पहुंची। आखिरकार ब्रिटिश हुकूमत ने रेलवे लाइन के लिए शिवलिंग से दूर खुदाई कराने का फैसला किया। इसकी वजह से चलते इसकी दिशा बदली गई और दो बड़ी सुरंगों का निर्माण कराना पड़ा।

आज भी मौजूद है अभियंता की कब्र

ब्रिटिश इंजीनियर की रास्ते में हुई मौत के बाद उसके शव को गोइलकेरा लाया गया। यहां पश्चिमी रेलवे केबिन के पास स्थित साइडिंग में शव को दफनाया गया। इंजीनियर की कब्र यहां आज भी मौजूद है, जो डेढ़ सौ साल से ज्यादा पुरानी उस घटना की याद दिलाती है।
दोनों जगहों पर है आस्था

"खुदाई में शिवलिंग मिलने के बाद महादेवशाल में मंदिर बना और नियमित पूजा होने लगी। जबकि रतनबुरू में शिवलिंग का जो हिस्सा है, उसकी पूजा ग्राम देवी के साथ गांव वाले आज भी करते हैं। दोनों ही जगह लोगों की आस्था है। रतनबुरू के बारे में कहा जाता है कि फावड़े से प्रहार के बाद शिवलिंग का छोटा हिस्सा छिटककर यहां स्थापित हो गया था।" - बालमुकुंद मिश्र, पुजारी, गोइलकेरा।

150 वर्षों से हो रही है पूजा

"रतनबुरू में शिवलिंग और ग्राम देवी मां पाउड़ी की पूजा प्रतिदिन होती है। गांव के दिउरी भोलानाथ सांडिल वहां नियमित पूजा-अर्चना करते हैं। परंपरा के अनुसार पहले शिवलिंग और उसके बाद मां पाउड़ी की पूजा की जाती है। यह सिलसिला ब्रिटिश हुकूमत के समय से चल रहा है।" - मंगलसिंह सांडिल, स्थानीय ग्रामीण

चीन में भारतीयों का अपमान, सिख बास्केटबॉल प्लेयर्स की पगड़ी उतारवाई



(अमृतपाल सिंह और एमिजोत सिंह)
 
चंडीगढ़। चीन में हाल ही में हुए एशिया कप में भारतीय बास्केटबॉल टीम के सिख खिलाडिय़ों को पगड़ी उतारने के लिए मजबूर किया गया। आयोजकों ने उन्हें पगड़ी पहनकर खेलने की इजाजत नहीं दी थी। खेल मंत्रालय ने इस घटना पर कड़ा ऐतराज जताया है। उसने अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक समिति (आईओसी) से पत्र लिखकर इस संबंध में दिशानिर्देश स्पष्ट करने को कहा है। ताकि ऐसी घटना दोबारा न हो।

भारतीयों के अपमान का यह मामला 12 जुलाई का है। वुहान में जापान के खिलाफ मुकाबले से पहले भारत के अमृतपाल सिंह और एमिजोत सिंह को पगड़ी उतारने को कहा गया। मैच अधिकारियों ने कहा कि वे पगड़ी पहनकर नहीं खेल सकते। इस कारण उन्हें पगड़ी उतारकर मुकाबले में उतरना पड़ा। एमिजोत ने कहा, ' मैंने पहले भी कई अंतरराष्ट्रीय मैच खेले हैं। पहले कभी ऐसा नहीं हुआ। पता नहीं एशिया कप में ऐसा क्यों हुआ। हमने आयोजकों को पत्र भेजकर पूछा है कि ऐसा क्यों हुआ। हमें जवाब का इंतजार है। जवाब के आधार पर ही हम उचित कार्रवाई कर पाएंगे।
 
बास्केटबॉल फेडरेशन ऑफ इंडिया

यह है नियम :
अंतरराष्ट्रीय बास्केटबॉल महासंघ (फीबा) के आर्टिकल 4.4.2 में इससे संबंधित नियम है। इसके अनुसार खिलाड़ी ऐसा कुछ भी नहीं पहनेगा, जिससे प्रतिद्वंद्वी या साथी खिलाड़ी को चोट लग सकती हो। जैसे कि हेडगेयर, ज्वेलरी आदि। जाहिर है, पगड़ी से चोट लगने की कोई गुंजाइश नहीं।

रोजे में मुस्लिम कर्मचारी के मुंह में रोटी ठूंसने वाले शिवसेना सांसद ने मांगी माफी



फोटो : महाराष्‍ट्र सदन में मुस्लिम कैटरिंग कर्मचारी के मुंह में रोटी ठूंसते शिवसेना सांसद रंजन विचारे।
 
नई दिल्‍ली। शिवसेना सांसदों द्वारा रोजे के दौरान एक मुस्लिम कैटरिंग कर्मचारी को महाराष्‍ट्र सदन में (देखें सदन की तस्‍वीरें) जबर्दस्‍ती रोटी खिलाए जाने का वीडियो (देखें वीडियो) सामने आया है। वीडियो में शिवसेना सांसद राजन विचारे कर्मचारी के मुंह में रोटी ठूंसते दिखाई दे रहे हैं। 
 
सांसद ने मांगी माफी 
मुसलमान कैंटीन स्‍टाफ को जबरदस्‍त‍ी रोटी खिलाने के लिए आलोचना के केंद्र में आए शिवसेना सांसद ने कहा, 'अगर उनके इस कृत्‍य से धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं तो मैं माफी मांगता हूं। मुझे नहीं पता था कि वह मुसलमान है। मैं तो बस इस बात को उठाना चाह रहा था कि खाने की क्‍वालिटी खराब है। महाराष्‍ट्र सदन में परोसे जाने वाला खाना इंसानों के खाने लायक नहीं है।' 
 
संसद में हंगामा 
इस मसले पर बुधवार को संसद के दोनों सदनों में भी जबरदस्‍त हंगामा हुआ और कार्यवाही कई बार स्‍थगित करनी पड़ी। लोकसभा में इस मुद्दे पर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्‍तेहादुल मुसलमीन के सांसद असदुद्दीन ओवैसी और भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी के बीच तीखी बहस हुई। सदन में मौजूद बाकी सदस्‍यों ने उन्‍हें किसी तरह शांत कराया। इस मामले में तमाम पार्टियों के नेताओं के अलावा मुस्लिम धर्मगुरुओं ने भी सांसदों के खिलाफ सख्‍त कार्रवाई की मांग की है। भाजपा के सीनियर नेता लालकृष्‍ण आडवाणी ने भी सांसदों के इस कृत्‍य को गलत बताया है।
 
 
वीडियो सामने आया
रिपोर्टों में कहा गया कि सांसदों को पता था कि कर्मचारी मुस्लिम है, इसके बावजूद उसके साथ ऐसा किया गया। हालांकि, सांसदों का कहना है कि उन्‍हें पता नहीं था कि कर्मचारी किस धर्म का है। 
 
मुस्लिम धर्मगुरु ने की कार्रवाई की मांग
मुस्लिम धर्मगुरु खालिद रशीद फिरंगी ने कहा कि वह इस घटना की पुरजोर निंदा करते हैं और दोषी सांसदों के खिलाफ कानून के दायरे में सख्‍त सजा की मांग करते हैं।
 
पार्टियों ने खोला मोर्चा
मामला सामने आने के बाद तमाम पार्टियों के नेताओं ने शिवसेना सांसदों के खिलाफ सख्‍त कार्रवाई की मांग की। किस पार्टी के नेता ने क्‍या कहा, पढ़ें:

सांसदों को इस घटना पर सार्वजनिक तौर पर माफी मांगनी चाहिए। इस तरह की हरकतों को स्वीकार नहीं किया जा सकता- कांग्रेसी नेता मनीष तिवारी।

अगर इन आरोपों में कोई सच्‍चाई है तो सरकार को तुरंत सख्त कार्रवाई करते हुए सांसदों को अरेस्ट करना चाहिए- बसपा सुप्रीमो मायावती।

यह संविधान और धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है। ऐसा करने वाले सांसदों की सदस्यता खत्म कर दी जानी चाहिए- कांग्रेस नेता राशिद अल्वी।

शिवसेना एक गैर-जिम्मेदार पार्टी है। हमेशा से यह असामाजिक तत्वों का ग्रुप रही है- एनसीपी नेता तारिक अनवर।

यह बिल्कुल गलत है। जो इस मामले को धार्मिक रंग दे रहे हैं, उन्हें सबक सिखाया जाना चाहिए- शिवसेना सांसद संजय राउत।

इस मामले की जांच होनी चाहिए और ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए- एनसीपी नेता माजिद मेमन।
क्या है पूरा मामला?
शिवसेना के 11 सांसदों पर आरोप है कि उन्होंने महाराष्ट्र सदन में परोसे जाने वाले खाने से नाराज होकर रोजा रखे कैटरिंग सुपरवाइजर अरशद जुबैर को रोटी खाने के लिए मजबूर किया। वाकया 17 जुलाई का है। इस घटना के कुछ ही घंटे बाद सांसदों के बर्ताव के विरोध में कैटरिंग का जिम्मा संभाल रही आईआरसीटीसी ने सदन में अपनी सेवाएं बंद कर दीं। आईआरसीटीसी ने महाराष्ट्र के रेजिडेंट कमिश्नर से लिखित में शिकायत की है कि धार्मिक भावनाएं आहत होने से हमारे कर्मचारी अरशद जुबैर को काफी दुख पहुंचा है।

रेजिडेंट कमिश्नर बिपिन मल्लिक को 17 जुलाई को भेजे गए ई-मेल में आईआरसीटीसी के डिप्टी जीएम शंकर मल्होत्रा ने लिखा, 'आज 12-15 सांसदों की नए महाराष्ट्र सदन के प्रेस कॉन्फ्रेंस हॉल में मीटिंग थी। यहां वे सदन में इलेक्ट्रिकल, सिविल, हाउसकीपिंग और कैटरिंग आदि सेवाओं के बारे में शिकायत कर रहे थे।'

मल्होत्रा का कहना है, 'पूरा डेलिगेशन सदन के पब्लिक डाइनिंग हॉल में गया और खाने के सामान को फेंकना शुरू कर दिया। सांसदों ने वहां मौजूद किचन स्टाफ के साथ अभद्र भाषा का भी इस्तेमाल किया और उन्हें धमकी भी दी। अरशद के साथ तो सांसदों ने हद ही कर दी। रोजे पर होने के बावजूद उन्हें जबरदस्‍ती चपाती खिला दी गई।'
 
इन सांसदों पर है आरोप
शिवसेना के जिन 11 सांसदों पर आरोप है उनमें संजय राउत (राज्यसभा), आनंदराव अडसुल (अमरावती), राजन विचारे (ठाणे), अरविंद सावंत (दक्षिण मुंबई), हेमंत गोडसे (नासिक), कृपाल तुमाने (रामटेक), रवींद्र गायकवाड़ (उस्मानाबाद), विनायक राउत (रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग), शिवाजी पाटिल (शिरूर), राहुल शेवाले (दक्षिण-मध्य मुंबई) और श्रीकांत शिंदे (कल्याण) शामिल हैं।

सरकार ने जस्टिस मार्कंडेय काटजू के दावे को सही ठहराया


Supreme-Court-adaalatमद्रास हाई कोर्ट के एक ‘भ्रष्ट जज’ को सरकार द्वारा राजनीतिक दबाव देकर बचाए जाने और प्रमोशन दिलाने के जस्टिस मार्कंडेय काटजू के बयान पर बवाल थमने के नाम नहीं ले रहा है। अब वर्तमान केंद्रीय  सरकार ने भी उनके इस दावे की पुष्टि कर दी है। इस मामले पर संसद में चर्चा के दौरान कानून मंत्री ने कहा कि जून 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ऑफिस ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम से उस जज के नाम पर विचार करने के लिए कहा था। कॉलेजियम द्वारा यह अनुरोध ठुकराए जाने के बाद कानून मंत्रालय ने इस मामले में एक और नोट भेजा था।
जज की नियुक्ति में कथित राजनीतिक दबाव के खिलाफ लोकसभा में लगातार दूसरे दिन भारी हंगामे के बीच क़ानून मंत्री ने माना कि पिछले शासन काल में कॉलेजियम ने उस जज के सेवा विस्तार देने की सिफारिश की थी। इस मुद्दे को लेकर लोकसभा की कार्यवाही शून्यकाल में दो बार स्थगित करनी पड़ी तथा राज्यसभा में भी कार्यवाही बाधित हुई।
लोकसभा में कानून मंत्री की ओर से इस मुद्दे पर बयान देने की मांग पर मंत्री महोदय ने कहा,’वर्ष 2003 में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने कुछ आपत्तियां जताई थीं और कुछ सवाल किए थे। इसके बाद फैसला किया गया कि संबंधित जज के मामले को नहीं लिया जाएगा। लेकिन बाद में रधानमंत्री कार्यालय की ओर से स्पष्टीकरण मांगा गया कि उस जज के बारे में सिफारिश क्यों नहीं की जानी चाहिए। कॉलेजियम ने फिर से कहा कि उनके नाम की सिफारिश होनी ही नहीं चाहिए। बाद में विधि मंत्रालय के न्याय विभाग ने कॉलेजियम को एक नोट लिखा, जिसके बाद उसने कहा कि कुछ विस्तार के लिए जज के मामले पर विचार किया जा सकता है।’
सनासाद में कानून मंत्री ने कहा, ‘वह जज रिटायर हो चुके हैं और अब वह इस दुनिया में भी नहीं हैं। कॉलेजियम के जज भी रिटायर हो चुके हैं और सुप्रीम कोर्ट ने शांति भूषण मामले में भी कहा है कि गुजरे वक्त को लौटाया नहीं जा सकता।’ सदस्यों द्वारा जताई गई चिंता वाजिब है और जजों की नियुक्ति की व्यवस्था में सुधार किए जाने की जरूरत है। उन्होंने इसके साथ ही कहा कि सरकार ऐसी नियुक्तियां करने के लिए राष्ट्रीय न्यायिक आयोग गठित करने को लेकर काफी इच्छुक है।
सदन में लगातार दूसरे दिन यह मुद्दा उठाए जाने पर एक कांग्रेस नेता ने कहा कि संसद में न्यायपालिका और जजों के बारे में चर्चा नहीं हो सकती। इस पर कानून मंत्री ने कहा, ‘मैं किसी जज के आचरण पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहा हूं।’
जानकारी के मुताबिक, 3 अप्रैल 2003 को ही जस्टिस अशोक कुमार को मद्रास हाई कोर्ट का अडिशनल जज बनाया गया था और उस वक्त केंद्र की एनडीए की सरकार को डीएमके का समर्थन था। जस्टिस काटजू ने दावा किया था कि एक जज को (जस्टिस अशोक कुमार) को पहले सीधे जिला जज बनाया गया और बाद में उन्हें हाई कोर्ट का अडिशनल जज बना दिया गया।
काटजू का कहना है कि जब वह नवंबर 2004 में मद्रास हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बनकर आए तो भ्रष्टाचार की शिकायत पर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस आर. सी. लाहोटी से उस जज के खिलाफ आईबी जांच कराने की सिफारिश की थी।
काटजू का कहना है, ‘जांच में आईबी की प्रतिकूल रिपोर्ट और कॉलेजियम की इच्छा के खिलाफ जाकर राजनीतिक दबाव की वजह से जस्टिस लाहोटी ने जज को अडिशनल जज के तौर पर एक और साल का कार्यकाल दे दिया। उसके बाद चीफ जस्टिस बने वाईके सभरवाल ने भी उस जज (जस्टिस अशोक कुमार) को दो साल का एक कार्यकाल और दे दिया। उनके उत्तराधिकारी चीफ जस्टिस के.जी बालकृष्णन ने उस जज को साल 2008 में स्थायी जज के तौर पर नियुक्त करते हुए किसी और हाईकोर्ट (आंध्र प्रदेश) में ट्रांसफर कर दिया था।’
वर्ष 2004 से 2009 तक यूपीए सरकार में कानून मंत्री रहे एचआर भारद्वाज ने यह बात स्वीकार की है कि वर्ष 2003 में एक जिला जज की नियुक्ति मद्रास हाई कोर्ट में बतौर अडिशनल जज हुई थी और बाद में कई प्रतिकूल खुफिया रिपोर्ट्स के बावजूद उसे स्थाई जज के तौर पर नियुक्ति मिल गई, क्योंकि इस जज को महत्वपूर्ण राजनीतिक समर्थन मिला हुआ था।

क़ुरआन का सन्देश

 
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