आपका-अख्तर खान

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26 जुलाई 2014

पलकें सूख गई हैं उनकी

नदियों को सिसकते देखा है,
पलकें सूख गई हैं उनकी
फसलों का मातम है ,
सूखे पेड़ इंतज़ार में फंदे लटकाए
जमीन छाती फाड़े देख रही है
उपने घाव जो गहराते जा रहे हैं
आसमानी फ़रिश्ते नाराज हैं
आते हैं ..बनाते हैं चित्र काले ..धूसर
जागती है कोई उम्मीद सी
जैसे नन्हा बीज आँख खोलता है
और दम तोड़ देता है प्यास से

हां, नदियाँ सिसक रही है
अरे ज्योतिषियों बाँचो जरा पत्रा
देखो तो ग्रह नक्षत्र नदियों के
कब विदा हो रही हैं ये ..जमीन से
कब उड़ेगी धूल ..भूखी लाशों पर सूखी
सुना है आदमी विकास कर रहा है
जमीन के स्तन नंगे हो गये हैं
पेट तो चीर ही रहे हैं खनिज भूख में
सांस कैसे ले जमीन
धमनियों का रक्त सूखने को है
इन धमनियों को विकास ने दूषित किया है
क्या छोड़ जायेंगे हम ..औलादों के लिए
विष भरी हवा ..कला कीचड़ नदियों में
याद रखो ..इस बार कोई भागीरथ नहीं आएगा
हाँ मरुस्थक खुश हो रहा है ..ठहाके लगा रहा है
सुनो ...नदियों की सिसकियाँ ..मातम कर रही हैं
शब्द मसीहा

स्त्री और पुरुष

स्त्री और पुरुष के बीच परस्पर प्राकृतिक आकर्षण के सम्बन्ध रहे हैं . आदिम युग में आकर्षण नहीं एक पक्षीय अतिक्रमण होता था ...देवता सुन्दर कन्याओं को देख कर और कुछ नहीं बस पुत्रवती होने का आशीर्वाद ही देते थे...वर्जन मेरी क्वारी माँ थीं तो मोहम्मद की महिलाओं के प्रति हरकतें ठीक नहीं थीं . ...सभ्यता का क्रमशः विकास हुआ ...धार्मिक कानूनों की जगह सभी समाज की आकांक्षाओं के अनुरूप समतावादी क़ानून आये ....स्त्री पुरुष के उपभोग की चीज यानी "भोग्या" नहीं रही ...अब स्त्री पुरुष के परस्पर आकर्षणजन्य दैहिक सम्बन्धों को "उपभोग " या "विषय भोग " नहीं "सम्भोग" कहा जाने लगा यानी "भोग की समता" ...यानी राग इधर भी हो उधर भी ...आग इधर भी हो उधर भी . इसके लिए जरूरी थे स्त्री -पुरुष के सामंजस्यपूर्ण रिश्ते ...आकर्षण पैदा करने के नैतिक और भौतिक अवसर .---- क्या हैं ? आज स्त्री और पुरुष परस्पर आकर्षण के अवसरों की तलाश में नहीं एक द्वंद्व में शामिल हैं .... देश के कथित बुद्धिजीवियों ने , व्यथित महिला आंदोलनों ने और पतित पत्रकारों ने स्त्री -पुरुष सामंजस्य और स्वाभाविक आकर्षण की जगह "लिंग युद्ध " यानी Gender War शुरू कर दी . ...स्त्री -पुरुष के बीच परस्पर आकर्षण का वातावरण असंतुलित होने लगा ...."सम्भोग " के लिए आवश्यक स्त्री -पुरुष "समता " जाती रही आदिम युग का स्त्री "उपभोग" चालू हुआ ...स्त्री -पुरुष के बीच लिंग युद्ध यानी gender war की शुरूआत हो चुकी थी ...परस्पर आकर्षण की जगह परस्पर आक्रामकता आ चुकी थी ...समाज में प्रणय निवेदन की जगह प्रणय अतिक्रमण होने लगे " ...आ मेरी गाडी में बैठ जा ..." हन्नी सिंह और टेम्पू -टेक्सी में चीखते भोजपुरी गाने प्रणय निवेदन की जगह प्रणय अतिक्रमण का प्रचार कर रहे थे ...वातावरण बन चुका था ...लिंग युद्ध यानी gender war की रणभेरी गली-गली पूरी गलाजत से गूँज रही थी ...परस्पर आकर्षण और 'सम्भोग' के समीकरण बदल चुके थे अब फिरसे अतिक्रमण और 'उपभोग' की शुरूआत थी . ---- हर बलात्कार की घटना इसका शुरूआती सामाजिक संकेत है . याद रहे पुलिस की भूमिका बलात्कार के बाद शुरू होती है और समाज की भूमिका बलात्कार के पहले, बहुत पहले शुरू हो जाती है . पुलिस को कोसने के पहले हम समाज को क्यों नहीं कोसते ? हम बलात्कार की इन घटनाओं की आड़ में लिंग युद्ध को बढ़ावा न दें ...लिंग युद्ध यानी gender war के कारण ही पुरुष अतिक्रमण बढ़ रहा है जिसका संकेत हैं बलात्कार की बढ़ती वीभत्स घटनाएं ...हमको स्त्री -पुरुष के बीच परस्पर आकर्षण के अवसर और वातावरण को बढ़ाना होगा ताकि प्रणय अतिक्रमण नहीं प्रणय आग्रह हो ." ------ राजीव चतुर्वेदी

महमूद गजनवी ने इस शिवलिंग पर खुदवाया था कलमा




गोरखपुर. सावन के महीने में जहां लोग शिव की भक्ति में रंगे हुए हैं, वहीं एक ऐसी भी जगह है जहां पर शिव वर्षों से मुस्लिमों के भी आराध्‍य हैं। जिले में एक ऐसा स्वयंभू शिवलिंग है जो हिंदुओं के साथ मुस्लिमों के लिए भी उतना ही पूज्‍यनीय है। इस शिवलिंग पर एक कलमा खुदा हुआ है।
 
लोगों के अनुसार महमूद गजनवी ने इसे तोड़ने की कोशिश की थी, मगर वह सफर नहीं हो पाया। इसके बाद उसने इस पर उर्दू में 'लाइलाहाइल्लललाह मोहम्मदमदुर्र् रसूलुल्लाह' लिखवा दिया ताकि हिंदू इसकी पूजा नहीं करें। तब से आज तक इस शिवलिंग की महत्ता बढ़ती गई और हर साल सावन के महीने में यहां पर हजारों भक्‍तों द्वारा पूजा अर्चना किया जाता है।
 
गोरखपुर से 25 किमी दूर है समूचे भारत का सबसे विशाल शिवलिंग
 
गोरखपुर से 25 किमी दूर खजनी कस्‍बे के पास एक गांव है सरया तिवारी। यहां  पर महादेव का एक अनोखा शिवलिंग स्‍थापित है जिसे झारखंडी शिव कहा जाता है। मान्‍यता है कि यह शिवलिंग कई सौ साल पुराना है और यहां पर इनका स्वयं प्रादुर्भाव हुआ है। लोगों का मानना है कि इतना विशाल शिवलिंग पूरे भारत में सिर्फ यहीं पर है। शिव के इस दरबार में जो भी भक्‍त आकर श्रद्धा से कामना करता है, उसे भगवान शिव जरूर पूरी करते हैं।
 
नहीं हटा पाया शिव लिंग तो महमूद गजनवी ने खुदवा दिया इस पर कलमा 
 
मंदिर के पुजारी सुशील कुमार और श्रद्धालु राधेश्याम का कहना है कि यह शिवलिंग सिर्फ हिंदुओं के लिए हीं नहीं बल्कि मुस्लिमों के लिए भी अकीदत का केंद्र है। इसपर खुदा है मुस्लिमों का पवित्र शब्‍द कलमा खुदा हुआ है। उर्दू में 'लाइलाहाइल्लललाह  मोहम्मदमदुर्र् रसूलुल्लाह' लिखे इस शिवलिंग के बारे में बताया जाता है कि जब महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया और पूरे देश के मंदिरों को लूटता और तबाह करता इस गांव में आया तो उसने और उसकी सेना ने इस शिवलिंग को भी उखाड़ फेंकना चाहा।
सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है यह मंदिर
 
लाख कोशिशों के बाद भी इस शिवलिंग को गजनवी हटा नहीं पाया। थक हारकर उसने इस शिवलिंग पर उर्दू में कलमा खुदवा दिया और अपनी हार मान इस शिवलिंग के आगे झुकता हुआ वापस चला गया। तब से यह शिवलिंग दोनों धर्मों के लोगों के लिये आस्था का केंद्र बना हुआ है। पूरे सावन भर यहां पर लोग अपनी आस्था लेकर आते हैं और रमजान के महीने में मुसलमान भाई यहां पर आकर अल्‍लाह की इबादत करते हैं। आज यह मंदिर साम्प्रदायिक सौहार्द का एक मिसाल बन गया है।
 
पोखरे में नहाने से ठीक हो जाता है चर्म रोग 
 
पुजारी आनंद तिवारी, शहर काजी वलीउल्लाह और श्रद्धालु जेपी पांडे के मुताबिक इस मंदिर पर कई कोशिशों के बाद भी कभी छत नही लग पाया है। यहां के शिव खुले आसमान के नीचे रहते हैं। मान्‍यता है कि इस मंदिर के बगल मे स्थित पोखरे के जल को छूने से एक कुष्‍ठ रोग से पीड़ित राजा ठीक हो गए थे। तभी से अपने चर्म रोगों से मुक्ति पाने के लिये लोग यहां पर पांच मंगलवार और रविवार स्‍नान करते हैं और अपने चर्म रोगों से निजात पाते हैं।
झारखंडी बाबा सभी की कामनाओं को करते हैं पूरा 

भक्त राधेश्याम ने बताया कि यहां के लोग मानते हैं कि भगवान शिव इस जगह पर शिवरात्रि और सावन में आकर अपने सभी भक्‍तों के कष्टों को दूर करते हैं और उनकी मुरादों को पूरा करते हैं। शिव का यह दरबार अपने हर भक्‍त के लिये खुला है। यहां पर जाति और धर्म का सारी दीवारें आकर टूट जाती हैं और शेष रह जाती है सिर्फ भक्ति की शक्ति। इसमें डूबने वाला भले ही हिंदू हो या फिर मुस्लिम, सबकी कामनाओं को झारखंडी देव पूरा करते हैं।
 
पूजा करने से मिलती हैं कृपा
 
सावन माह भगवान धूर्जटी भूतभावन का माना जाता है। मान्‍यता है कि इस महीने में शिव को मनाना बेहद आसान होता है। इस महीने में भगवान अवघड़दानी की अराधना करने से उनकी कृपा मिल सकती है।

कारगिल विजय दिवस: भारत सरकार नहीं खोल रही पाकिस्‍तानी सैनिकों की डायरी का राज



(फाइल फोटोः 'फ्रॉम सरप्राइज टू रेकनिंग' का कवर पेज)

नई दिल्ली. 1962 में चीन से युद्ध में मिली हार की हेंडरसन ब्रुक्स रिपोर्ट को सार्वजनिक न करने के कारण समझ में आते हैं, लेकिन कारगिल में जीत के 15 साल बाद भी इसका वास्तविक सच अभी तक सामने नहीं आया है। दरअसल, कारगिल रिव्यू कमेटी (KRC) की रिपोर्ट के ज्यादातर अंश अभी भी सरकार ने सार्वजनिक नहीं किए हैं। यह रिपोर्ट एक किताब की शक्ल में प्रकाशित हो चुकी है, जिसके 22 भाग हैं और प्रत्येक भाग में 100 से ज्यादा पन्ने हैं। 7 जनवरी, 2000 में इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को सौंपा भी गया। रिपोर्ट में तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ की बातचीत और पाकिस्तानी सैनिकों की डायरियों के उल्लेख भी मौजूद हैं। 

इस रिव्यू कमिटी के एक सदस्य बीजी वर्गिस कहते हैं, ''कमिटी ने कारगिल युद्ध के तीन महीने से थोड़े ज्यादा समय में ही अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। यह रिपोर्ट कमिटी में शामिल कुछ बेहतरीन सैन्य सुरक्षा विशेषज्ञों ने तैयार की थी। उन्होंने हर तथ्य की पड़ताल की और उन्हें रिपोर्ट में शामिल किया। 22 भागों में यह रिपोर्ट प्रकाशित भी हुई। इसमें कारगिल से जुड़ी वे तमाम सूचनाएं और राज थे, जो लोगों को बताए जाने चाहिए थे।'' वर्गीस के अलावा कमिटी में लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) के के हजारी, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सतीश चंद्रा और दिवंगत के. सुब्रहमण्यम शामिल थे। 
किताब की शक्ल में छपी इस रिपोर्ट का शीर्षक है 'फ्रॉम सरप्राइज टू रेकनिंग'। इसमें जनरल परवेज मुशर्रफ (पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख) और उनके चीफ ऑफ स्टाफ ले. जनरल मोहम्मद अजीज खान के बीच हुई बातचीत का ब्योरा भी है। इस रिपोर्ट में पाकिस्तानी सैनिकों की उन डायरियों का भी उल्लेख है, जो इस बात का सबूत है कि कारगिल युद्ध की योजना पाकिस्तानी सेना द्वारा काफी सोच-समझ कर साजिशाना तौर पर बनाई गई थी। इसके अलावा, रिपोर्ट में न्यूजपेपर्स कटिंग, पकड़े गए पाकिस्तानी आतंकियों और सैनिकों से हुई पूछताछ में हुए खुलासे भी शामिल हैं। ये सभी सीक्रेट डाक्युमेंट्स हैं।आडवाणी। इस मौके पर जसवंत सिंह (दाएं) और जार्ज फर्नांडिस भी मौजूद थे।)
 
आगरा वार्ता की बातें भी रहस्य-
वर्गिस बताते हैं, ''2011 में जब मुशर्रफ आगरा समिट में हिस्सा लेने आए थे, तब उनकी भारतीय पीएम से क्या बातचीत हुई, यह भी अब तक कोई नहीं जान पाया, लेकिन हमने उसे भी इस रिपोर्ट में शामिल किया था।'' वर्गीस के मुताबिक, ''ये बेहद अहम दस्तावेज है, जिसके पन्ने अक्सर पाकिस्तान से वार्ता के दौरान पलटे जाते हैं, लेकिन आज तक केंद्र में सत्ता संभालने वाले राजनीतिक दल ने इसे देश की जनता के सामने नहीं रखा।'' वे सवाल उठाते हैं, "आखिर क्यों मुशर्रफ का टेप, न्यूजपेपर की क्लिपिंग्स सार्वजनिक नहीं की जा रही हैं? सेना के कॉलेजों में पढ़ने वाले अफसर क्या पढ़ेंगे?"
 
विजय दिवस के दो दिन पहले हुआ था गठन-
कारगिल रिव्यू कमिटी का गठन तत्कालीन केंद्र सरकार ने 24 जुलाई, 1999 को किया था। यानी विजय दिवस के ठीक दो दिन पहले। अगले 6 महीने में कमिटी ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी, जिसमें कई अहम मुद्दे शामिल किए गए थे। इसमें सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील स्थानों का प्रबंधन, खुफिया तंत्र, न्यूक्लियर पॉलिसी, काउंटर टेररिज्म और सुरक्षा तंत्र के पुनर्गठन के सुझाव शामिल थे।

खुदा का शुक्र है,,,

खुदा का शुक्र है के भाई नरेंदर मोदी सत्ता में आये और उनके सत्ता में आने से प्रधानमंत्री भवन में रोज़ा इफ्तार की दावत के नाम पर रोजेदारों को जो अपमानित किया जाकर इस्लाम का मज़ाक उड़ाया जाता था उस पर रोक लग गयी ,,अब प्रधानमंत्री भवन में कमसे कम नरेंदर मोदी राष्ट्रवादी के रहते तो रोज़ा इफ्तार नहीं होगा ,,,,,रोज़ेदार जो सियासी लोग होते है ,,जो मौक़ापरस्त होते है ,,जो मज़हब के सौदेबाज ठेकेदार होते है ,,वोह रोज़ा रखे या ना रखे ,,वोह नमाज़ पढ़े या न पढ़े लेकिन उन्हें सरकारी रोज़ा इफ्तारों का तमाशा ज़रूर करना पढ़ता था ,,,जो बेचारे रोज़दार मजबूर थे वोह दिखावे के तोर पर अपनी जेब में खुद की पिंड खजूर लेकर जाते देखे जाते थे ,,,,,यानी वोह घर पर रोज़ा इफ्तार नहीं करते केवल शक्ल दिखाने के लिए अपने दिन भर का रोज़ा दिन भर की इबादत केवल सियासी चालबाज़ी के कारन न्योछावर करके खराब करते है ,,,नरेंद्र मोदी के हम शुक्रगुज़ार है जो इन्होने सरकारी खज़ाने से हराम का माल खाकर रोज़ा इफ्तार की बुराई को जड़ से खत्म कर दिया ताके कई लोगों के रोज़े अब ज़िंदा रह सकेंगे ,,बधाई नरेदंर मोदी जी को एक बार फिर बधाई,,,,,,,,,,,,,,,,

द्रोपदी शस्त्र उठालो,

छोडो मेहँदी खड्ग संभालो
खुद ही अपना चीर बचा लो
चौपड़ बिछाये बैठे शकुनि,
मस्तक सब बिक जायेंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो,
अब गोविंद ना आयेंगे|
कब तक आस लगाओगी
तुम,बिक़े हुए अखबारों से,
कैसी रक्षा मांग रही हो
दुशासन दरबारों से|
स्वयं जो लज्जा हीन पड़े हैं
वे क्या लाज बचायेंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो
अब गोविंद ना आएंगे|
अब गोविंद ना आएंगे
अब गोविंद ना आएंगे ।

सुन ऐ मेरे दिल

तू इतना खुश क्यों है
सुन ऐ मेरे दिल
अभी सिर्फ मौसम सुहावना हुआ है
देख ले वोह तो
अभी भी नहीं बदले
ना सुबह बात की
ना शाम को बात की
देख ले ,,याद जितना चाहे उन्हें करता रहे
ऐ दिल चाहे जितना
उनके लिए धड़कता रहे
लेकिन मौसम बदला है
वोह अभी भी नहीं बदले
काश ऐसा मोजज़ा हो जाए
इस सुहावने मौसम की तरह
वोह भी बदल जाए
उनकी याद में खोया हुआ में रहूँ
वोह आकर मुझ से लिपट जाए
बढ़े प्यार से कहे
लो तुमने याद किया
और हम आ गए
बस इतना कहकर
वोह खिलखिलाए और फिर
मेरी बाहों में आधार से झूल जाए ,,,,,अख्तर

एक दिन

कैसे हो तुम
एक दिन
हाँ तुम्हारा एक दिन
बरसों सा लगता है
आ जाओ बस आ जाओ
छोड़ों ज़िद
एक दिन नहीं
दो दिन नहीं
एक पर एक क्षण भी नहीं
ज़िंदगी का बसेरा तुम्हारे बगैर

अच्छे दिन

ऐ अच्छे दिन का
लालच देने वालों
तुम जीते हम हारे
बस एक इल्तिजा है
यह जो अच्छे दिन
तुम हमे दे रहे हो
प्लीज़ यह तुम रख लो
हमे तो हमारे वही बुरे दिन
फिर से वापस लोटा दो यारो

तुम हो ,,,,,,,

मेरे हर अलफ़ाज़ में तुम हो
मेरे हर साज़ में तुम हो
मेरी हर याद में तुम हो
मेरी क़लम की नोक पर तुम हो
मेर्रे कागज़ ,,मेरी स्याही में तुम हो
मेरी तन्हाई में तुम हो
मेरी भीड़ में तुम हो
मेरी ज़ुबान पर तुम हो
मेरे दिल मेरे दिमाग में तुम हो
मेरी लेबटॉप के की बोर्ड पर
थिरकती उँगलियों पर तुम हो
हां बस तुम ही सच हो
बस तुम हो बस तुम हो ,,,,,,,,,,,,,,

क़ुरआन का सन्देश

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