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03 सितंबर 2014

,,मडिया की गुलामी तो देखिये

मडिया की  गुलामी तो देखिये अभी मुट्ठी में आने वाले दो चार छोटे देशो में आने जाने को ही विश्व स्तर के नेतागीरी के रूप में भांडों की तरह से प्रचारित करने की कोशिशों में जुट गए है ,,,,,,अमेरिका ,,चीन ,,,,आस्ट्रेलिया ,,ब्रिटेन ,,रशिया में बात होने के बाद तो यह प्रचार समझ में आता है लेकिन भारत के एक ज़िले के बराबर देशो में आने जाने से कौन विश्व नेता बन सकता है सभी जानते है लेकिन मिडिया को तो नमक का हक़  अदा करना है भाई ,,,वैसे खुदा से दुआ यही है के भारत अंतर्राष्ट्रीय विश्व नेता जल्दी ही बने लेकिन इसके लिए कोशिशें तेज़ करना होंगी ,,,, अभी मुट्ठी में आने वाले दो चार छोटे देशो में आने जाने को ही विश्व स्तर के नेतागीरी के रूप में भांडों की तरह से प्रचारित करने की कोशिशों में जुट गए है ,,,,,,अमेरिका ,,चीन ,,,,आस्ट्रेलिया ,,ब्रिटेन ,,रशिया में बात होने के बाद तो यह प्रचार समझ में आता है लेकिन भारत के एक ज़िले के बराबर देशो में आने जाने से कौन विश्व नेता बन सकता है सभी जानते है लेकिन मिडिया को तो नमक का हक़  अदा करना है भाई ,,,वैसे खुदा से दुआ यही है के भारत अंतर्राष्ट्रीय विश्व नेता जल्दी ही बने लेकिन इसके लिए कोशिशें तेज़ करना होंगी ,,,,

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह चाहे भारत को गुमराह कर जनता को बेवक़ूफ़ बना रहे थे ,,,लेकिन जिन योजनाओं का विरोध कर नरेंदर मोदी प्रधानमंत्री बने उन्होंने प्रधानमंत्री बनते है उन्ही की योजना नाम बदल कर चालु कर दी ,,,भाई यह बैंक में खाते तो मनमोहन सिंह भी खुलवा रहे थे ,,लेकिन उनका विरोध क्या अब वही योजना नरेंद्र मोदी साहब ने जनता पर थोप दी है ,,,खेर भाई बैंक में ज़ीरो बेलेंस पर खाते भी खुल जाएंगे लेकिन बैंक नियम जिसमे न्यूनतम राशि बैंक खातों में होना चाहिए ,,,ट्रांसेक्शन पर शुल्क लगेगा उसमे तो कोई बदलाव नहीं हुआ यानी जो राशि सरकार देगी वोह बैंक में ही जमा रखना होगी न्यूनतम बेलेंस के नाम पर वरना खाता क्लोज़ ,,और ट्रांजेक्शन शुल्क तो बैंक की जेब में अरबों रूपये मुफ्त जाएगा है ,,,अजीब बेवक़ूफ़ बनाने के धंधे है न भाई ,,,बाबा रामदेव जैसे बिना स्कूल कॉलेज गए लोग अगर सलाहकार रहेंगे तो योजना तो ऐसी ही बनाकर थोपी जायेगी जो बाद में आम जनता को खून के आंसू रुला दे ,,,इधर जनता को लाइनों में लगाओ ,,व्यस्त कर दो और खुद मनमानी कर गुलछर्रे उड़ाओ ,,,तुम क्या कर रहे हो राष्ट्रहित में है या नहीं जनता से सुझाव लिए बगैर लागू कर दो यही अच्छे दिनों का सपना है बेंको के अच्छे दिनों की शुरआत है ,,,,जनता को कामकाज लालच में उलझा कर मज़े करने के अच्छे दिनों की शुरुआत है ,,,अख्तर

तुम्हे मुझ से

तुम्हे मुझ से
ज़रा भी
मोहब्बत है अगर
तो आओ
मुझे ज़हर दे दो
वरना में
तुम्हारे बिन
हरगिज़ जी न सकूंगा
तड़पूँगा बेमौत मरूंगा ,,
इसलिए कहता हूँ
तुम्हे मुझ से
मोहब्बत है अगर
तो आओ
सुकून से ज़हर दे दो
तुम्हारे साथ जी न सका तो क्या
तुम्हारे साथ मर तो सकूंगा ,,,,,,

यह सड़क,,यह पानी

यह सड़क,,यह पानी ,,यह बिजली ,,यह रेलें , यह हवाई जहाज़ ,,यह फैक्ट्रियां ,,यह उद्द्योग ,,यह पुल ,,यह सिंचाई के साधन ,,यह विकास ,,यह टी वी ,,यह परमाणु बम ,,यह मोबाइल ,,,यह सोशल मिडिया ,,,गद्दार पाकिस्तान को धूल चटाना ,,,टांय टांय करने पर पाकिस्तान और बांग्लादेश के दो टुकड़े करके पटक देना ,,,यह विकास ,,,,कारगिल में बोफोर्स से देश की सुरक्षा ,,ना जाने क्या क्या ,,यह सब कांग्रेस की दें है दोस्तों लेकिन अंधे है अन्धो का क्या उन्हें कुच्छ दिखता ही नहीं ,,,जितना यह सच है ,,इतना सच यह भी है के भाई भतीजावाद ,,भ्रष्टाचार ,,,मिलावट ,,मुनाफाखोरी ,,,वायदाव्यापार ,,सभी तबाही के रास्ते कांग्रेस ने दिए ,,जब तक कांग्रेस ने देश को सुरक्षा मान सम्मान विकास दिया जनता ने उसे सर आँखों पर बिठाया और फिर ज़मीन पर पटक पटक कर मारा है ,,,कांग्रेस को देश और देश के हालात बिगाड़ने में ,,खुद को बिगड़ने में तो 65 साल लगे लेकिन भाई जादू की छड़ी घुमा कर सत्ता में आये लोग तो 65 में ही बिगड़ कर धूल हो गए है ,गुर्राने लगे है ,,,जनता को जनता नहीं फिर गुलाम समझने लगे है ,,चीन से डरे है ,,पाक्सितान को सर पर बिठाए है ,,,,,,,मुट्ठी में आजाने वाले देशो की तफ़रीह हो रही है ,,भ्रष्ट ,,बलात्कारी ,,अनपढ़ और चुनाव में जनता तिरस्कृत हारे हुए लोग जनता के सिरमौर बनाये गए है ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,अख्तर

तुमने डेढ़ बरस तक जो मुझसे प्यार किया


Enjoy Reading this.......

डियर नीतू ,

तुमने डेढ़ बरस तक जो मुझसे प्यार किया, उसका शुक्रिया. आशा है, पत्र मिलने तक तुमने नया प्रेमी पकड़ लिया होगा. उसके साथ अब डेटिंग पर भी जा रही होगी.

हर प्रेमी को बहुत स्ट्रगल करना पड़ता है. मैं भी स्ट्रगल कर रहा हूं. प्यार के ढाई आखर कमबख्त बड़े मुश्किल से पकड़ में आते हैं. मैंने भी तुम्हे मिस करने के बाद मुहल्ले की ही पूजा पर लंगर डालना शुरु कर दिया है.

प्रेम का मेरा यह चौथा प्रयास है. लेकिन इन प्रयासों ने मुझे एक सीख दी है. नीतू, तुम तो जानती हो कि प्रेम शुरु करते ही कमबख्त लव लेटर लिखने पड़ते हैं. पता है न, मैने तुम्हे कितने पत्र लिखे?

पहले के दो प्रेम-प्रकरणों में भी लेटरबाजी करनी पड़ी. बड़ा झंझट है प्रेम मार्ग में. इसीलिए तुम मेरे समस्त प्रेम पत्र लौटा देना. तुम्हें लिखे उन प्रेम पत्रों पर सफ़ेदा पोतकर नीतू की जगह पूजा लिख दूंगा. इससे मेरी मेहनत बच जाएगी. प्लीज़, मेरे प्रेम पत्र लौटा देना, क्योंकि उनकी फोटो कॉपी भी मेरे पास नही है.

नीतू , तुम मेरी वह फोटो भी वापस कर देना. तुम तो जानती हो कि वही एकमात्र फोटो ऐसी है, जिसमें मै ठीक-ठाक दिखता हूं. वह मेरे पहले प्यार वाले दिनों की फोटो है. बड़ी कीमती है. मेरे प्रेम पत्रों के साथ मेरी वह फोटी भी भेज देना, ताकि पूजा को भेज सकूं.

और हां, अपने प्यार कांड में डेढ़ वर्ष के दौरान मेरे द्वारा किए गए खर्च का हिसाब भेज रहा हूं. आशा है,:तुम शीघ्र ही इस खर्च का भुगतान कर भरपाई करा दोगी, ताकि तुम्हें भी नए प्यार के लिए मेरी ओर से एनओसी जारी हो सके और मैं भी नए प्यार पर खर्च करना शुरु कर दूं.

हिसाब इस प्रकार है:
चाट पकौड़ी 896 रुपए,
कोल्ड ड्रिंक्स 2938 रुपए,
स्नेक्स 5645 रुपए,
जूस 3845 रुपए,
फ़िल्म 1235 रुपए,
चैटिंग 1499 रुपए,
मोबाईल फोन वार्ता 2546 रुपए,
पेट्रोल खर्च 4255 रुपए,
गिफ़्ट 7850 रुपए.
सकल योग 30,708 रुपए
(अक्षर में : तीस हजार सात सौ आठ रुपए मात्र).

कृपया, ये रुपए मुझे शीघ्र भेजने की कृपा करना, ताकि मै अपनी पूजा के प्यार में इन रुपयों को कुरबान कर सकूं. और हां, यदि तुम्हारे पास मेरे द्वारा दिए गए गिफ़्ट पड़े हों तो मै उन्हें आधी कीमत पर खरीदने को तैयार हूं. तुम उनका हिसाब बनाकर मेरी मूल रकम
में से काटकर पुराने गिफ़्टों को भी भेज देना.

इस पत्र के साथ तुम्हारे पूरे चार किलो तीन सौ ग्राम के वज़न के प्रेम पत्रों का पुलिंदा संलग्न है, ताकि तुम्हे भी प्रेम पत्र लिखने में परेशानी न उठानी पड़े. तुम्हारी वह सुंदर फोटो भी मैं भेज रहा हूं,जो तुम अपने नए प्रेमी झाड़ूराम को दे सकती हो.

तुम अपना हिसाब भी बता देना. वैसे तुम्हारा खर्च तो कुछ भी नही आया होगा. तुम हमेशा अपना पर्स तो भूल जाती थी. कमबख्त प्यार मे लड़कों की ही जेब ढीली होती है.

खैर, बीते प्रेम पर कैसा अफ़सोस, जब नया भी पधार चुका है? आशा है, तुम मेरा हिसाब जल्दी से जल्दी साफ़ करके मुझे नए प्यार में कूदने में मदद दोगी.

तुम्हे सातवां प्रेम मुबारक हो.
तुम्हारा छठा पूर्व प्रेमी
पप्पू.

कल्याण सिंह की बर्खास्तगी की मांग

सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया सियासी पार्टी कल 4 अक्टूबर को राजस्थान के राजयपाल की शपथ ग्रहण करने वाले कल्याण सिंह का विरोध करते हुए ,,राष्ट्रपति को सम्बोधित कर कल्याण सिंह के संविधान विरोधी होने से उन्हें बर्खास्त करने की मांग को लेकर जिलेवार ज्ञापन देकर प्रदर्र्शन करेंगे ,,,,सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इण्डिया के प्रदेश अध्यक्ष मोहम्मद शफी का कहना है के हमारी पार्टी और संविधान के रक्षक है ,,संविधान की मर्यादाओं को बनाये रखने के लिए वचनबद्ध है ऐसे में संविधान की सुरक्षा का ज़िम्मा अगर राजस्थान में संविधान की मर्यादा तोड़ने वाले ,,शपथ तोड़ने वाले ,,इलाहबाद हाईकोर्ट को धोखा देने वाले सज़ायाफता आरोपी को अगर यह ज़िम्मेदारी मिल गयी तो राजस्थान में संविधान की मर्यादाएं तहस नहस होने का खतरा है ,,,,,पार्टी राष्ट्रपति महोदय से इस मामले में लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट ,,इलाहबाद हाईकोर्ट के फैसले और कल्याण सिंह के खिलाफ दर्ज एफ आई आर पर की गई कार्यवाहियों के मामले में राष्ट्रपति भवन के विधिविशेषज्ञों से रिपोर्ट तलब कर कल्याण सिंह की बर्खास्तगी की मांग करेगी ,,,,,,

पांच सितम्बर

पांच सितम्बर शिक्षक दिवस पर शायद नरेंद्र मोदी देश के सभी स्कूल पढ़ने वाले बच्चों को ,,,मुफ्त शिक्षा ,,,,यूनिफॉर्म ,,किताबें ,,,खाने की व्यवस्था सहित पूरी पढ़ाई सरकार की तरफ से बिना किसी निजी खर्च करवाने का तोहफा दे सकते है ,,शायद इसीलिए सभी स्कूली बच्चों को यह संदेश सुन्ना ज़रूरी है ,,,शायद भारत के सभी बच्चे अब हायर सेकेंडरी तक सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों में मुफ्त पढ़ सकेंगे ,,यही संदेश देने के लिए मोदी और उनकी सरकार उतावली सी लगती है ,,अच्छी बात है अगर वोह बच्चों के बारे में ऐसा सोचते है तो ,,वरना तो बच्चे है यह भगवान भी इन्हे जीत नहीं सका है ,,,,,,,,,,

तेरी आँखे.....

Salman Zafar
·
तेरी आँखे.....
उजाले का बदल इन में।
कि शायर की ग़ज़ल इन में।
मुहब्बत का महल इन में।
है गंगा का यह जल इन में।
यह ख्वाबों में दिखाई हैं।
इन्ही में पारसाई है।
तेरी आँखे..... तेरी आँखे...

क्यूँ भड़काऊ हिन्दू ,मुस्लिम

क्यूँ भड़काऊ हिन्दू ,मुस्लिम
के फसाद को भारत में
मैं विकास की बात करूँगा
अब तो अपने भारत में
मुस्लिम ,पाक परस्त बनें तो
गर्दन काट गिराएंगे
हिन्दू ,गर गद्दारी कर दे
उस का शीश हटाएँगे
कौन कह रहा भारत माता
के टुकड़े हो जाएँगे
टुकड़े करने वाले की
हम गर्दन काट गिराएंगे
ना जाने हम जाति पाती
अपना भारत अपना साथी
इसमें सिख रहे या मुस्लिम
मेरे भारत का है वासी
पर भारतमाता की खातिर
अपना रक्त चढ़ाना होगा
केवल बच्चे नहीं मियां जी
आगे भारत लाना होगा
इस तिकड़म में चाहें
पाकिस्तान चीन आँखे दिखलाए
सच्चा माँ का लाल वही है !
जो भारत पे मर मिट जाए
खून मिला कर देख लो हिंदी
रक्त सिन्धु का ही फैला है
कौन कह रहा भारत माँ का
रक्त हो गया अब मैला है !
स्वरचित ...मनोज कश्यप
(संयोजक) भाजपा मछुआरा प्रकोष्ठ
भारतीय जनता पार्टी

केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार, कहा-ऐसे तो 200 साल में भी साफ नहीं होगी गंगा




नई दिल्‍ली. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि गंगा की सफाई को लेकर केंद्र सरकार का जो एक्‍शन प्‍लान है, उससे आने वाले 200 सालों में भी ऐसा नहीं किया जा सकता। केंद्र की योजनाओं की आलोचना करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि वह तीन हफ्ते के अंदर गंगा की सफाई से जुड़ा चरणबद्ध प्‍लान पावर प्‍वाइंट प्रेजेेंटेशन बनाकर पेश करे।


कोर्ट ने कहा, "आपका एक्‍शन प्‍लान देखकर ऐसा लगता है कि गंगा 200 साल बाद भी साफ नहीं होगी। आपको ऐसे कदम उठाने चाहिए, जिससे गंगा को अपनी खोई हुई गरिमा वापस मिले और आने वाली पीढ़ी इसे देख सके। हमें नहीं लगता कि हम ऐसा होते देख पाएंगे भी कि नहीं।" केंद्र सरकार की ओर से 2500 किमी में फैली इस नदी की सफाई पर दिए गए हलफनामे को कोर्ट ने बहुत ज्‍यादा ब्‍यूरोक्रेटिक माना। कोर्ट ने कहा, ''हम मुद्दे को लेकर बनाई गई कमिटियों और दूसरी गहरी बातों में नहीं जाना चाहते। हम सिर्फ यह जानना चाहते हैं कि एक आम आदमी गंगा की सफाई की प्रक्रिया कैसे समझे। अच्‍छा यही होगा कि आप हमें एक पीपीटी प्रेजेंटेशन दिखा सकें।''

सरकार की ओर से बहस करते हुए सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने कहा था कि इलाहाबाद में गंगा सबसे ज्‍यादा प्रदूषित है। उन्‍होंने कहा कि जब वह इलाहाबाद गए, तो उन्‍हें डुबकी लगाने को कहा गया, लेकिन उन्‍होंने इसके प्रदूषित होने की वजह से इनकार कर दिया। बता दें कि सरकार ने अपने हलफनामे ने कहा था कि वह गंगा की सफाई को लेकर प्रतिबद्ध है और यह उसकी सर्वोच्‍च प्राथमिकता में शामिल है। हलफनामे के मुताबिक, आईआईटी के कुछ एक्‍सपट़र्स से इस संदर्भ में मदद मांगी गई है और साल के आ‍ख‍िर तक योजना को आखिरी रूप दे दिया जाएगा।

क़ुरआन का सन्देश

रामदेव जी रुणिचा के शासक



जन्म भाद्रपद शुक्ल द्वितीया वि.स. 1409
जन्म स्थान रुणिचा
मृत्यु वि.स. 1442
मृत्यु स्थान रामदेवरा
समाधी रामदेवरा
उत्तराधिकारी अजमल जी
जीवन संगी नैतलदे
राज घराना तोमर वंशीय राजपूत
पिता अजमल जी
माता मैणादे
धर्म हिन्दू

रामदेव जी राजस्थान के एक लोक देवता हैं। 15वी. शताब्दी के आरम्भ में भारत में लूट खसोट, छुआछूत, हिंदू-मुस्लिम झगडों आदि के कारण स्थितियाँ बड़ी अराजक बनी हुई थीं। ऐसे विकट समय में पश्चिम राजस्थान के पोकरण नामक प्रसिद्ध नगर के पास रुणिचा नामक स्थान में तोमर वंशीय राजपूत और रुणिचा के शासक अजमाल जी के घर चैत्र शुक्ला पंचमी वि.स. 1409 को बाबा रामदेव पीर अवतरित हुए (द्वारकानाथ ने राजा अजमल जी के घर अवतार लिया, जिन्होंने लोक में व्याप्त अत्याचार, वैर-द्वेष, छुआछूत का विरोध कर अछूतोद्धार का सफल आन्दोलन चलाया।

परिचय,,,,,,
हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक बाबा रामदेव ने अपने अल्प जीवन के तेंतीस वर्षों में वह कार्य कर दिखाया जो सैकडो वर्षों में भी होना सम्भव नही था। सभी प्रकार के भेद-भाव को मिटाने एवं सभी वर्गों में एकता स्थापित करने की पुनीत प्रेरणा के कारण बाबा रामदेव जहाँ हिन्दुओ के देव है तो मुस्लिम भाईयों के लिए रामसा पीर। मुस्लिम भक्त बाबा को रामसा पीर कह कर पुकारते हैं। वैसे भी राजस्थान के जनमानस में पॉँच पीरों की प्रतिष्ठा है जिनमे बाबा रामसा पीर का विशेष स्थान है।
पाबू हडू रामदे ए माँगाळिया मेहा।
पांचू पीर पधारजौ ए गोगाजी जेहा।।
बाबा रामदेव ने छुआछूत के खिलाफ कार्य कर सिर्फ़ दलितों का पक्ष ही नही लिया वरन उन्होंने दलित समाज की सेवा भी की। डाली बाई नामक एक दलित कन्या का उन्होंने अपने घर बहन-बेटी की तरह रख कर पालन-पोषण भी किया। यही कारण है आज बाबा के भक्तो में एक बहुत बड़ी संख्या दलित भक्तों की है। बाबा रामदेव पोकरण के शासक भी रहे लेकिन उन्होंने राजा बनकर नही अपितु जनसेवक बनकर गरीबों, दलितों, असाध्य रोगग्रस्त रोगियों व जरुरत मंदों की सेवा भी की। यही नही उन्होंने पोकरण की जनता को भैरव राक्षक के आतंक से भी मुक्त कराया। प्रसिद्ध इतिहासकार मुंहता नैनसी ने भी अपने ग्रन्थ "मारवाड़ रा परगना री विगत" में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा है- भैरव राक्षस ने पोकरण नगर आतंक से सुना कर दिया था लेकिन बाबा रामदेव के अदभूत एवं दिव्य व्यक्तित्व के कारण राक्षस ने उनके आगे आत्म-समर्पण कर दिया था और बाद में उनकी आज्ञा अनुसार वह मारवाड़ छोड़ कर चला गया। बाबा रामदेव ने अपने जीवन काल के दौरान और समाधि लेने के बाद कई चमत्कार दिखाए जिन्हें लोक भाषा में परचा देना कहते है। इतिहास व लोक कथाओं में बाबा द्वारा दिए ढेर सारे परचों का जिक्र है। जनश्रुति के अनुसार मक्का के मौलवियों ने अपने पूज्य पीरों को जब बाबा की ख्याति और उनके अलौकिक चमत्कार के बारे में बताया तो वे पीर बाबा की शक्ति को परखने के लिए मक्का से रुणिचा आए। बाबा के घर जब पांचो पीर खाना खाने बैठे तब उन्होंने बाबा से कहा की वे अपने खाने के बर्तन (सीपियाँ) मक्का ही छोड़ आए है और उनका प्रण है कि वे खाना उन सीपियों में खाते है तब बाबा रामदेव ने उन्हें विनयपूर्वक कहा कि उनका भी प्रण है कि घर आए अतिथि को बिना भोजन कराये नही जाने देते और इसके साथ ही बाबा ने अलौकिक चमत्कार दिखाया जो सीपी जिस पीर कि थी वो उसके सम्मुख रखी मिली।
इस चमत्कार (परचा) से वे पीर इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने बाबा को पीरों का पीर स्वीकार किया। आख़िर जन-जन की सेवा के साथ सभी को एकता का पाठ पढाते बाबा रामदेव ने भाद्रपद शुक्ला एकादशी वि.स . 1442 को जीवित समाधी ले ली। श्री बाबा रामदेव जी की समाधी संवत् 1442 को रामदेव जी ने अपने हाथ से श्रीफल लेकर सब बड़े बुढ़ों को प्रणाम किया तथा सबने पत्र पुष्प् चढ़ाकर रामदेव जी का हार्दिक तन मन व श्रद्धा से अन्तिम पूजन किया। रामदेव जी ने समाधी में खड़े होकर सब के प्रति अपने अन्तिम उपदेश देते हुए कहा 'प्रति माह की शुक्ल पक्ष की दूज को पूजा पाठ, भजन कीर्तन करके पर्वोत्सव मनाना, रात्रि जागरण करना। प्रतिवर्ष मेरे जन्मोत्सव के उपलक्ष में तथा अन्तर्ध्यान समाधि होने की स्मृति में मेरे समाधि स्तर पर मेला लगेगा। मेरे समाधी पूजन में भ्रान्ति व भेद भाव मत रखना। मैं सदैव अपने भक्तों के साथ रहूँगा। इस प्रकार श्री रामदेव जी महाराज ने समाधि ली।' आज भी बाबा रामदेव के भक्त दूर- दूर से रुणिचा उनके दर्शनार्थ और अराधना करने आते है। वे अपने भक्तों के दु:ख दूर करते हैं, मुराद पूरी करते हैं. हर साल लगने मेले में तो लाखों की तादात में जुटी उनके भक्तो की भीड़ से उनकी महत्ता व उनके प्रति जन समुदाय की श्रद्धा का आकलन आसानी से किया जा सकता है।
जन्म,,,,,
राजा अजमल जी द्वारकानाथ के परमभक्त होते हुए भी उनको दु:ख था कि इस तंवर कुल की रोशनी के लिये कोई पुत्र नहीं था और वे एक बांझपन थे। दूसरा दु:ख था कि उनके ही राजरू में पड़ने वाले पोकरण से ३ मील उत्तर दिशा में भैरव राक्षस ने परेशान कर रखा था। इस कारण राजा रानी हमेशा उदास ही रहते थे। श्री रामदेव जी का जन्‍म bhadra चैत सुदी पंचम को विक्रम संवत् 1409 को सोमवार के दिन हुआ जिसका प्रमाण श्री रामदेव जी के श्रीमुख से कहे गये प्रमाणों में है जिसमें लिखा है सम्‍वत चतुर्दश साल नवम चैत सुदी पंचम आप श्री मुख गायै भणे राजा रामदेव चैत सुदी पंचम को अजमल के घर मैं आयों जो कि तुवंर वंश की बही भाट पर राजा अजमल द्वारा खुद अपने हाथो से लिखवाया गया था जो कि प्रमाणित है और गोकुलदास द्वारा कृत श्री रामदेव चौबीस प्रमाण में भी प्रमाणित है (अखे प्रमाण श्री रामदेव जी) अमन घटोडा
सन्तान ही माता-पिता के जीवन का सुख है। राजा अजमल जी पुत्र प्राप्ति के लिये दान पुण्य करते, साधू सन्तों को भोजन कराते, यज्ञ कराते, नित्य ही द्वारकानाथ की पूजा करते थे। इस प्रकार राजा अजमल जी भैरव राक्षस को मारने का उपाय सोचते हुए द्वारका जी पहुंचे। जहां अजमल जी को भगवान के साक्षात दर्शन हुए, राजा के आखों में आंसू देखकर भगवान में अपने पिताम्बर से आंसू पोछकर कहा, हे भक्तराज रो मत मैं तुम्हारा सारा दु:ख जानता हूँ। मैं तेरी भक्ती देखकर बहुत प्रसन्न हूँ, माँगो क्या चाहिये तुम्हें मैं तेरी हर इच्छायें पूर्ण करूँगा।
भगवान की असीम कृपा से प्रसन्न होकर बोले हे प्रभु अगर आप मेरी भक्ति से प्रसन्न हैं तो मुझे आपके समान पुत्र चाहिये याने आपको मेरे घर पुत्र बनकर आना पड़ेगा और राक्षस को मारकर धर्म की स्थापना करनी पड़ेगी। तब भगवान द्वारकानाथ ने कहा- हे भक्त! जाओ मैं तुम्हे वचन देता हूँ कि पहले तेरे पुत्र विरमदेव होगा तब अजमल जी बोले हे भगवान एक पुत्र का क्या छोटा और क्या बड़ा तो भगवान ने कहा- दूसरा मैं स्वयं आपके घर आउंगा। अजमल जी बोले हे प्रभू आप मेरे घर आओगे तो हमें क्या मालूम पड़ेगा कि भगवान मेरे धर पधारे हैं, तो द्वारकानाथ ने कहा कि जिस रात मैं घर पर आउंगा उस रात आपके राज्य के जितने भी मंदिर है उसमें अपने आप घंटियां बजने लग जायेगी, महल में जो भी पानी होगा (रसोईघर में) वह दूध बन जाएगा तथा मुख्य द्वार से जन्म स्थान तक कुमकुम के पैर नजर आयेंगे वह मेरी आकाशवाणी भी सुनाई देगी और में अवतार के नाम से प्रसिद्ध हो जाउँगा।
श्री रामदेव जी का जन्म संवत् १४०९ में भाद्र मास की दूज को राजा अजमल जी के घर हुआ। उस समय सभी मंदिरों में घंटियां बजने लगीं, तेज प्रकाश से सारा नगर जगमगाने लगा। महल में जितना भी पानी था वह दूध में बदल गया, महल के मुख्य द्वार से लेकर पालने तक कुम कुम के पैरों के पदचिन्ह बन गए, महल के मंदिर में रखा संख स्वत: बज उठा। उसी समय राजा अजमल जी को भगवान द्वारकानाथ के दिये हुए वचन याद आये और एक बार पुन: द्वारकानाथ की जय बोली। इस प्रकार ने द्वारकानाथ ने राजा अजमल जी के घर अवतार लिया।
बाल लीला में माता को परचा,,,,
भगवान नें जन्म लेकर अपनी बाल लीला शुरू की। एक दिन भगवान रामदेव व विरमदेव अपनी माता की गोद में खेल रहे थे, माता मैणादे उन दोनों बालकों का रूप निहार रहीं थीं। प्रात:काल का मनोहरी दृश्य और भी सुन्दरता बढ़ा रहा था। उधर दासी गाय का दूध निकाल कर लायी तथा माता मैणादे के हाथों में बर्तन देते हुए इन्हीं बालकों के क्रीड़ा क्रिया में रम गई। माता बालकों को दूध पिलाने के लिये दूध को चूल्हे पर चढ़ाने के लिये जाती है। माता ज्यों ही दूध को बर्तन में डालकर चूल्हे पर चढ़ाती है। उधर रामदेव जी अपनी माता को चमत्कार दिखाने के लिये विरमदेव जी के गाल पर चुमटी भरते हैं इससे विरमदेव को क्रोध आ जाता है तथा विरमदेव बदले की भावना से रामदेव जी को धक्का मार देते हैं। जिससे रामदेव जी गिर जाते हैं और रोने लगते हैं। रामदेव जी के रोने की आवाज सुनकर माता मैणादे दूध को चुल्हे पर ही छोड़कर आती है और रामदेव जी को गोद में लेकर बैठ जाती है। उधर दूध गर्म होन के कारण गिरने लगता है, माता मैणादे ज्यांही दूध गिरता देखती है वह रामदेवजी को गोदी से नीचे उतारना चाहती है उतने में ही रामदेवजी अपना हाथ दूध की ओर करके अपनी देव शक्ति से उस बर्तन को चूल्हे से नीचे धर देते हैं। यह चमत्कार देखकर माता मैणादे व वहीं बैठे अजमल जी व दासी सभी द्वारकानाथ की जय जयकार करते हैं।
बाल लीला में कपड़े के घोड़े को आकाश में उड़ाना,,,,
एक बार बालक रामदेव ने खिलोने वाले घोड़े की जिद करने पर राजा अजमल उसे खिलोने वाले के पास् लेकर गये एवं खिलोने बनाने को कहा। राजा अजमल ने चन्दन और मखमली कपडे का घोड़ा बनाने को कहा। यह सब देखकर खिलोने वाला लालच में आ ग़या और उसने बहुत सारा कपडा अपनी पत्नी के लिये रख लिया और उस में से कुछ ही कपडा काम में लिया। जब बालक रामदेव घोड़े पर बैठे तो घोड़ा उन्हें लेकर आकाश में चला ग़या। राजा खिलोने वाले पर गुस्सा हुए तथा उसे जेल में डालने के आदेश दे दिये। कुछ समय पश्चात, बालक रामदेव वापस घोड़े के साथ आये। खिलोने वाले ने अपनी गलती स्वीकारी तथा बचने के लिये रामदेव से गुहार की। बाबा रामदेव ने दया दिखाते हुए उसे माफ़ किया। अभी भी, कपडे वाला घोड़ा बाबा रामदेव की खास चढ़ावा माना जाता है।
रूणिचा की स्थापना,,,,,,
संवत् १४२५ में रामदेव जी महाराज ने पोकरण से १२ कि०मी० उत्तर दिशा में एक गांव की स्थापना की जिसका नाम रूणिचा रखा। लोग आकर रूणिचा में बसने लगे। रूणिचा गांव बड़ा सुन्दर और रमणीय बन गया। भगवान रामदेव जी अतिथियों की सेवा में ही अपना धर्म समझते थे। अंधे, लूले-लंगड़े, कोढ़ी व दुखियों को हमेशा हृदय से लगाकर रखते थे।
बोहिता को परचा व परचा बावड़ी
एक समय रामदेव जी ने दरबार बैठाया और निजीया धर्म का झण्डा गाड़कर उँच नीच, छुआ छूत को जड़ से उखाड़कर फैंकने का संकल्प किया तब उसी दरबार में एक सेठ बोहिताराज वहां बैठा दरबार में प्रभू के गुणगान गाता तब भगवान रामदेव जी अपने पास बुलाया और हे सेठ तुम प्रदेश जाओ और माया लेकर आओ। प्रभू के वचन सुनकर बोहिताराज घबराने लगा तो भगवान रामदेव जी बोले हे भक्त जब भी तेरे पर संकट आवे तब मैं तेरे हर संकट में मदद करूंगा। तब सेठ रूणिचा से रवाना हुए और प्रदेश पहुँचे और प्रभू की कृपा से बहुत धन कमाया। एक वर्ष में सेठ हीरो का बहुत बड़ा जौहरी बन गया। कुछ समय बाद सेठ को अपने बच्चों की याद आयी और वह अपने गांव रूणिचा आने की तैयारी करने लगा। सेठजी ने सोचा रूणिचा जाउंगा तो रामदेवजी पूछेंगे कि मेरे लिये प्रदेश से क्या लाये तब सेठ जी ने प्रभू के लिये हीरों का हार खरीदा और नौकरों को आदेश दिया कि सारे हीरा पन्ना जेवरात सब कुछ नाव में भर दो, मैं अपने देश जाउंगा और सेठ सारा सामान लेकर रवाना हुआ। सेठ जी ने सोचा कि यह हार बड़ा कीमती है भगवान रामदेव जी इस हार का क्या करेंगे, उसके मन में लालच आया और विचार करने लगा कि रूणिचा एक छोटा गांव है वहां रहकर क्या करूंगा, किसी बड़े शहर में रहुँगा और एक बड़ा सा महल बनाउंगा। इतने में ही समुद्र में जोर का तुफान आने लगा, नाव चलाने वाला बोला सेठ जी तुफान बहुत भयंकर है नाव का परदा भी फट गया है। अब नाव चल नहीं सकती नाव तो डूबेगी ही। यह माया आपके किस काम की हम दोनों मरेंगे।
सेठ बोहिताराज भी धीरज खो बैठा। अनेक देवी देवताओं को याद करने लगा लेकिन सब बेकार, किसी भी देवता ने उसकी मदद नहीं की तब सेठजी को श्री रामदेव जी का वचन का ध्यान आया और सेठ प्रभू को करूणा भरी आवाज से पुकारने लगा। हे भगवान मुझसे कोई गलती हुयी हो जो मुझे माफ कर दीजिये। इस प्रकार सेठजी दरिया में भगवान श्री रामदेव जी को पुकार रहे थे। उधर भगवान श्री रामदेव जी रूणिचा में अपने भाई विरमदेव जी के साथ बैठे थे और उन्होंने बोहिताराज की पुकार सुनी। भगवान रामदेव जी ने अपनी भुजा पसारी और बोहिताराज सेठ की जो नाव डूब रही थी उसको किनारे ले लिया। यह काम इतनी शीघ्रता से हुआ कि पास में बैठे भई वीरमदेव को भी पता तक नहीं पड़ने दिया। रामदेव जी के हाथ समुद्र के पानी से भीग गए थे।
बोहिताराज सेठ ने सोचा कि नाव अचानक किनारे कैसे लग गई। इतने भयंकर तुफान सेठ से बचकर सेठ के खुशी की सीमा नहीं रही। मल्लाह भी सोच में पड़ गया कि नाव इतनी जल्दी तुफान से कैसे निकल गई, ये सब किसी देवता की कृपा से हुआ है। सेठ बोहिताराज ने कहा कि जिसकी रक्षा करने वाले भगवान श्री रामदेव जी है उसका कोई बाल बांका नहीं कर सकता। तब मल्लाहों ने भी श्री रामदेव जी को अपना इष्ट देव माना। गांव पहुंचकर सेठ ने सारी बात गांव वालांे को बतायी। सेठ दरबार में जाकर श्री रामदेव जी से मिला और कहने लगा कि मैं माया देखकर आपको भूल गया था मेरे मन में लालच आ गया था। मुझे क्षमा करें और आदेश करें कि मैं इस माया को कहाँ खर्च करूँ। तब श्री रामदेव जी ने कहा कि तुम रूणिचा में एक बावड़ी खुदवा दो और उस बावड़ी का पानी मीठा होगा तथा लोग इसे परचा बावड़ी के नाम से पुकारेंगे व इसका जल गंगा के समान पवित्र होगा। इस प्रकार रामदेवरा (रूणिचा) मे आज भी यह परचा बावड़ी बनी हुयी है।
पांच पीरों से मिलन व परचा,,,,,
चमत्कार होने से लोग गांव गांव से रूणिचा आने लगे। यह बात मौलवियों और पीरों को नहीं भाई। जब उन्होंने देखा कि इस्लाम खतरे में पड़ गया और मुसलमान बने हिन्दू फिर से हिन्दू बन रहे हैं और सोचने लगे कि किस प्रकार रामदेव जी को नीचा दिखाया जाय और उनकी अपकीर्ति हो। उधर भगवान श्री रामदेव जी घर घर जाते और लोगों को उपदेश देते कि उँच-नीच, जात-पात कुछ नहीं है, हर जाति को बराबर अधिकार मिलना चाहिये। पीरों ने श्री रामदेव जी को नीचा दिखाने के कई प्रयास किये पर वे सफल नहीं हुए। अन्त में सब पीरों ने विचार किया कि अपने जो सबसे बड़े पीर जो मक्का में रहते हैं उनको बुलाओ वरना इस्लाम नष्ट हो जाएगा। तब सब पीर व मौल्वियों ने मिलकर मक्का मदीना में खबर दी कि हिन्दुओं में एक महान पीर पैदा हो गया है, मरे हुए प्राणी को जिन्दा करना, अन्धे को आँखे देना, अतिथियों की सेवा करना ही अपना धर्म समझता है, उसे रोका नहीं गया तो इस्लाम संकट में पड़ जाएगा। यह खबर जब मक्का पहुँची तो पाँचों पीर मक्का से रवाना होने की तैयारी करने लगे। कुछ दिनों में वे पीर रूणिचा की ओर पहुँचे। पांचों पीरों ने भगवान रामदेव जी से पूछा कि हे भाई रूणिचा यहां से कितनी दूर है, तब भगवान रामदेवजी ने कहा कि यह जो गांव सामने दिखाई दे रहा है वही रूणिचा है, क्या मैं आपके रूणिचा आने का कारण पूछ सकता हूँ ? तब उन पाँचों में एक पीर बोला हमें यहां रामदेव जी से मिलना है और उसकी पीराई देखनी है। जब प्रभु बोले हे पीरजी मैं ही रामदेव हूँ आपके समाने खड़ा हूँ कहिये मेरे योग्य क्या सेवा है।
श्री रामदेव जी के वचन सुनकर कुछ देर पाँचों पीर प्रभु की ओर देखते रहे और मन ही मन हँसने लगे। रामदेवजी ने पाँचों पीरों का बहुत सेवा सत्कार किया। प्रभू पांचों पीरों को लेकर महल पधारे, वहां पर गद्दी, तकिया और जाजम बिछाई गई और पीरजी गद्दी तकियों पर विराजे मगर श्री रामदेव जी जाजम पर बैठ गए और बोले हे पीरजी आप हमारे मेहमान हैं, हमारे घर पधारे हैं आप हमारे यहां भोजन करके ही पधारना। इतना सुनकर पीरों ने कहा कि हे रामदेव भोजन करने वाले कटोरे हम मक्का में ही भूलकर आ गए हैं। हम उसी कटोरे में ही भोजन करते हैं दूसरा बर्तन वर्जित है। हमारे इस्लाम में लिखा हुआ है और पीर बोले हम अपना इस्लाम नहीं छोड़ सकते आपको भोजन कराना है तो वो ही कटोरा जो हम मक्का में भूलकर आये हैं मंगवा दीजिये तो हम भोजन कर सकते हैं वरना हम भोजन नहीं करेंगे। तब रामदेव जी ने कहा कि हे पीर जी राम और रहीम एक ही है, इसमें कोई भेद नहीं है, अगर ऐसा है तो मैं आपके कटोरे मंगा देता हूँ। ऐसा कहकर भगवान रामदेव जी ने अपना हाथ लम्बा किया और एक ही पल में पाँचों कटोरे पीरों के सामने रख दिये और कहा पीर जी अब आप इस कटोरे को पहचान लो और भोजन करो। जब पीरों ने पाँचों कटोरे मक्का वाले देखे तो पाँचों पीरों को अचम्भा हुआ और मन में सोचने लगे कि मक्का कितना दूर है। यह कटोरे हम मक्का में छोड़कर आये थे। यह कटोरे यहां कैसे आये तब पाँचों पीर श्री रामदेव जी के चरणों में गिर पड़े और क्षमा माँगने लगे और कहने लगे हम पीर हैं मगर आप महान् पीर हैं। आज से आपको दुनिया रामापीर के नाम से पूजेगी। इस तरह से पीरों ने भोजन किया और श्री रामदेवजी को पीर की पदवी मिली और रामसापीर, रामापीर कहलाए।
विवाह,,,,,
बाबा रामदेव जी ने संवत् १४२५ में रूणिचा बसाकर अपने माता पिता की सेवा में जुट गए इधर रामदेव जी की माता मैणादे एक दिन अपने पति राजा अजमल जी से कहने लगी कि अपना राजकुमार बड़ा हो गया है अब इसकी सगाई कर दीजिये ताकि हम भी पुत्रवधु देख सकें। जब बाबा रामदेव जी (द्वारकानाथ) ने जन्म (अवतार) लिया था उस समय रूक्मणी को वचन देकर आये थे कि मैं तेरे साथ विवाह रचाउंगा। संवत् १४२६ में अमर कोट के ठाकुर दल जी सोढ़ की पुत्री नैतलदे के साथ श्री रामदेव जी का विवाह हुआ।
समाधी,,,,
संवत् १४४२ को रामदेव जी ने अपने हाथ से श्रीफल लेकर सब बड़े बुढ़ों को प्रणाम किया तथा सबने पत्र पुष्प् चढ़ाकर रामदेव जी का हार्दिक तन मन व श्रद्धा से अन्तिम पूजन किया। रामदेव जी ने समाधी में खड़े होकर सब के प्रति अपने अन्तिम उपदेश देते हुए कहा प्रति माह की शुक्ल पक्ष की दूज को पूजा पाठ, भजन कीर्तन करके पर्वोत्सव मनाना, रात्रि जागरण करना। प्रतिवर्ष मेरे जन्मोत्सव के उपलक्ष में तथा अन्तर्ध्यान समाधि होने की स्मृति में मेरे समाधि स्तर पर मेला लगेगा। मेरे समाधी पूजन में भ्रान्ति व भेद भाव मत रखना। मैं सदैव अपने भक्तों के साथ रहुँगा। इस प्रकार श्री रामदेव जी महाराज ने समाधी ली।

वीर तेजाजी कोन थे ,,,,,,,,,,,

तेजाजी राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात प्रान्तों में लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं। किसान वर्ग अपनी खेती की खुशहाली के लिये तेजाजी को पूजता है। तेजाजी के वंशज मध्यभारत के खिलचीपुर से आकर मारवाड़ मे बसे थे। नागवंश के धवलराव अर्थात धौलाराव के नाम पर धौल्या गौत्र शुरू हुआ। तेजाजी के बुजुर्ग उदयराज ने खड़नाल पर कब्जा कर अपनी राजधानी बनाया। खड़नाल परगने में 24 गांव थे।
तेजाजी ने ग्यारवीं शदी में गायों की डाकुओं से रक्षा करने में अपने प्राण दांव पर लगा दिये थे। वे खड़नाल गाँव के निवासी थे। भादो शुक्ला दशमी को तेजाजी का पूजन होता है। तेजाजी का भारत के जाटों में महत्वपूर्ण स्थान है। तेजाजी सत्यवादी और दिये हुये वचन पर अटल थे। उन्होंने अपने आत्म - बलिदान तथा सदाचारी जीवन से अमरत्व प्राप्त किया था। उन्होंने अपने धार्मिक विचारों से जनसाधारण को सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया और जनसेवा के कारण निष्ठा अर्जित की। जात - पांत की बुराइयों पर रोक लगाई। शुद्रों को मंदिरों में प्रवेश दिलाया। पुरोहितों के आडंबरों का विरोध किया। तेजाजी के मंदिरों में निम्न वर्गों के लोग पुजारी का काम करते हैं। समाज सुधार का इतना पुराना कोई और उदाहरण नहीं है। उन्होंने जनसाधारण के हृदय में हिन्दू धर्म के प्रति लुप्त विश्वास को पुन: जागृत किया। इस प्रकार तेजाजी ने अपने सद्कार्यों एवं प्रवचनों से जन - साधारण में नवचेतना जागृत की, लोगों की जात - पांत में आस्था कम हो गई।
तेजाजी का जन्म एवं परिचय
खरनाल नागौर में तेजाजी का मंदिर
सुरसुरा अजमेर में तेजाजी का धाम
लोक देवता तेजाजी का जन्म नागौर जिले में खड़नाल गाँव में ताहरजी (थिरराज) और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ला, चौदस संवत 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता गाँव के मुखिया थे। यह कथा है कि तेजाजी का विवाह बचपन में ही पनेर गाँव में रायमल्जी की पुत्री पेमल के साथ हो गया था किन्तु शादी के कुछ ही समय बाद उनके पिता और पेमल के मामा में कहासुनी हो गयी और तलवार चल गई जिसमें पेमल के मामा की मौत हो गई। इस कारण उनके विवाह की बात को उन्हें बताया नहीं गया था। एक बार तेजाजी को उनकी भाभी ने तानों के रूप में यह बात उनसे कह दी तब तानो से त्रस्त होकर अपनी पत्नी पेमल को लेने के लिए घोड़ी 'लीलण' पर सवार होकर अपनी ससुराल पनेर गए। रास्ते में तेजाजी को एक साँप आग में जलता हुआ मिला तो उन्होंने उस साँप को बचा लिया किन्तु वह साँप जोड़े के बिछुड़ जाने कारण अत्यधिक क्रोधित हुआ और उन्हें डसने लगा तब उन्होंने साँप को लौटते समय डस लेने का वचन दिया और ससुराल की ओर आगे बढ़े। वहाँ किसी अज्ञानता के कारण ससुराल पक्ष से उनकी अवज्ञा हो गई। नाराज तेजाजी वहाँ से वापस लौटने लगे तब पेमल से उनकी प्रथम भेंट उसकी सहेली लाछा गूजरी के यहाँ हुई। उसी रात लाछा गूजरी की गाएं मेर के मीणा चुरा ले गए। लाछा की प्रार्थना पर वचनबद्ध हो कर तेजाजी ने मीणा लुटेरों से संघर्ष कर गाएं छुड़ाई। इस गौरक्षा युद्ध में तेजाजी अत्यधिक घायल हो गए। वापस आने पर वचन की पालना में साँप के बिल पर आए तथा पूरे शरीर पर घाव होने के कारण जीभ पर साँप से कटवाया। किशनगढ़ के पास सुरसरा में सर्पदंश से उनकी मृत्यु भाद्रपद शुक्ल 10 संवत 1160, तदनुसार 28 अगस्त 1103 हो गई तथा पेमल ने भी उनके साथ जान दे दी। उस साँप ने उनकी वचनबद्धता से प्रसन्न हो कर उन्हें वरदान दिया। इसी वरदान के कारण तेजाजी भी साँपों के देवता के रूप में पूज्य हुए। गाँव गाँव में तेजाजी के देवरे या थान में उनकी तलवारधारी अश्वारोही मूर्ति के साथ नाग देवता की मूर्ति भी होती है। इन देवरो में साँप के काटने पर जहर चूस कर निकाला जाता है तथा तेजाजी की तांत बाँधी जाती है। तेजाजी के निर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है। तेजाजी का जन्म धौलिया गौत्र के जाट परिवार में हुआ। धैालिया शासकों की वंशावली इस प्रकार है:- 1.महारावल 2.भौमसेन 3.पीलपंजर 4.सारंगदेव 5.शक्तिपाल 6.रायपाल 7.धवलपाल 8.नयनपाल 9.घर्षणपाल 10.तक्कपाल 11.मूलसेन 12.रतनसेन 13.शुण्डल 14.कुण्डल 15.पिप्पल 16.उदयराज 17.नरपाल 18.कामराज 19.बोहितराव 20.ताहड़देव 21.तेजाजी
तेजाजी के बुजुर्ग उदयराज ने खड़नाल पर कब्जा कर अपनी राजधानी बनाया। खड़नाल परगने में 24 गांव थे। तेजाजी का जन्म खड़नाल के धौल्या गौत्र के जाट कुलपति ताहड़देव के घर में चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ सत्रह सौ तीस को हुआ। तेजाजी के जन्म के बारे में मत है-
जाट वीर धौलिया वंश गांव खरनाल के मांय।
आज दिन सुभस भंसे बस्ती फूलां छाय।।
शुभ दिन चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ पहचान।
सहस्र एक सौ तीस में प्रकटे अवतारी ज्ञान।।
तेजाजी का हळसौतिया
जेठ के महिने के अंत में तेज बारिश होगई। तेजाजी की माँ कहती है जा बेटा हळसौतिया तुम्हारे हाथ से कर-
गाज्यौ-गाज्यौ जेठ'र आषाढ़ कँवर तेजा रॅ
लगतो ही गाज्यौ रॅ सावण-भादवो
सूतो-सूतो सुख भर नींद कँवर तेजा रॅ
थारोड़ा साथिड़ा बीजॅं बाजरो।
सूर्योदय से पहले ही तेजाजी बैल, हल, बीजणा, पिराणी लेकर खेत जाते हैं और स्यावड़ माता का नाम लेकर बाजरा बीजना शुरू किया -
उठ्यो-उठ्यो पौर के तड़कॅ कुँवर तेजा रॅ
माथॅ तो बांध्यो हो धौळो पोतियो
हाथ लियो हळियो पिराणी कँवर तेजा रॅ
बॅल्यां तो समदायर घर सूं नीसर्यो
काँकड़ धरती जाय निवारी कुँवर तेजा रॅ
स्यावड़ नॅ मनावॅ बेटो जाटको।
भरी-भरी बीस हळायां कुँवर तेजा रॅ
धोळी रॅ दुपहरी हळियो ढाबियो
धोरां-धोरां जाय निवार्यो कुँवर तेजा रॅ
बारह रॅ कोसां री बा'ई आवड़ी।।
तेजाजी का भाभी से संवाद
नियत समय के उपरांत तेजाजी की भाभी छाक (रोटियां) लेकरआई। तेजाजी बोले-
बैल्या भूखा रात का बिना कलेवे तेज।
भावज थासूं विनती कठै लगाई जेज।।
देवर तेजाजी के गुस्से को भावज झेल नहीं पाई और काम से भी पीड़ित थी, उसने चिढने के लहजे में कहा-
मण पिस्यो मण पोयो कँवर तेजा रॅ
मण को रान्यो खाटो खीचड़ो।
लीलण खातर दल्यो दाणों कँवर तेजा रॅ
साथै तो ल्याई भातो निरणी।
दौड़ी लारॅ की लारॅ आई कँवर तेजा रॅ
म्हारा गीगा न छोड़ आई झूलै रोवतो।
ऐहड़ा कांई भूख भूखा कँवर तेजा रॅ
थारी तो परण्योड़ी बैठी बाप कॅ
भाभी का जवाब तेजाजी के कले जे में चुभ गया। तेजाजी नें रास और पुराणी फैंकदी और ससुराल जाने की कसम खा बैठे-
ऐ सम्हाळो थारी रास पुराणी भाभी म्हारा ओ
अब म्हे तो प्रभात जास्यां सासरॅ
हरिया-हरिया थे घास चरल्यो बैलां म्हारा ओ
पाणिड़ो पीवो नॅ थे गैण तळाव रो।
तेजाजी का माँ से संवाद
खेत से तेजाजी सीधे घर आये। तेजाजी नें कहा-माँ मेरी शादी कहाँ और किसके साथ हुई। तेजाजी की माँ को खरनाल और पनेर की दुश्मनी याद आ गई पर अब बताने को मजबूर होकर माँ बोली-
ब्याव होतां ही खाण्डा खड़कग्या बेटा बैर बढ़गो।
थारां बाप कै हाथा सूं छोरी को मामों मरगो।
थारो मामोसा परणाया पीळा-पोतड़ा।
गढ़ पनेर पड़ॅ ससुराल कँवर तेजा रॅ
रायमल जी री पेमल थारी गौरजां।
उस समय के रिवाज के अनुसार तेजाजी का विवाह उनके ताऊ बक्सारामजी ने तय किया। मामा ने शादी की मुहर लगाई। तेजाजी का विवाह रायमल की बेटी के साथ पीले पोतड़ों में होना बताया।
बहिन राजल को ससुराल से लाना
तेजाजी की भाभी ने कहा कि ससुराल जाने से पहले बहिन राजल को लाओ-
पहली थारी बैनड़ नॅ ल्यावो थे कंवर तेजा रॅ।
पाछै तो सिधारो थारॅ सासरॅ।।
उधर तेजा की बहिन राजल को भाई के आने के सगुन होने लगे वह अपनी ननद से बोली-
डांई-डांई आँख फरुखे नणदल बाई ये
डांवों तो बोल्यो है कंवलो कागलो
कॅ तो जामण जायो बीरो आसी बाई वो
कॅ तो बाबो सा आणॅ आवसी
बहिन के ससुराल में तेजाजी की खूब मनुहार हुई। रात्रि विश्राम के पश्चात सुबह तेजाजी बहिन के सास से बोले-
बाईसा नॅ पिहरिये भेजो नी सास बाईरा
मायड़ तो म्हानॅ लेबानॅ भेज्यो
चार दिना की मिजमानी घणा दिनासूं आया
राखी री पूनम नॅ पाछा भेजस्यां
सीख जल्दी घणी देवो सगी म्हारा वो
म्हानॅ तो तीज्यां पर जाणों सासरॅ
भाई-बहिन रवाना होकर अपने गांव खरनाल पहुंचते हैं। सभी को चूरमा व पतासे बांटे जाते हैं।
तेजल आयो गांव में ले बैनड नॅ साथ
हरक बधायं बँट रही बड़े प्रेम के साथ
तेजाजी का पनेर जाना
तेजाजी अपनी मां से पनेर जाने की अनुमती मांगते हैं। वह मना करती है। तेजाजी के दृढ़ निश्चय के आगे मां की एक न चली। भाभी कहती है कि पंडित से शुभ मूहूर्त निकलवा कर ससुराल रवाना होना। पंडित शुभ मूहूर्त के लिये पतड़ा देख कर बताता है कि श्रावण व भादवा के महिने अशुभ हैं-
मूहूर्त पतड़ां मैं कोनी कुंवर तेजा रॅ
धोळी तो दिखॅ तेजा देवली
सावण भादवा थारॅ भार कंवर तेजा रॅ
पाछॅ तो जाज्यो सासरॅ
पंडित की बात तेजाजी ने नहीं मानी। तेजाजी बोले मुझे तीज से पहले पनेर जाना है। शेर को कहीं जाने के लिए मूहूर्त की जरुरत नहीं पड़ती-
गाड़ा भरद्यूं धान सूं रोकड़ रूपया भेंट
तीजां पहल्यां पूगणों नगर पनेरा ठेठ
सिंह नहीं मोहरत समझॅ जब चाहे जठै जाय
तेजल नॅ बठै रुकणुं जद शहर पनेर आय
लीलण पर पलाण मांड सूरज उगने से पहले तेजाजी रवाना हुये। मां ने कलेजे पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया-
माता बोली हिवड़ॅ पर हाथ रख
आशीष देवूं कुलदीपक म्हारारै
बेगा तो ल्याज्यो पेमल गोरड़ी
बरसात का मौसम था। रास्ते में कई नाले और बनास नदी पार की। रास्ते में बालू नाग मिला जिसे तेजाजी ने आग से बचाया। तेजाजी को नाग ने कहा-
"शूरा तूने मेरी जिन्दगी बेकार कर दी। मुझे आग में जलने से रोककर तुमने अनर्थ किया है। मैं तुझे डसूंगा तभी मुझे मोक्ष मिलेगा।"
कुंवर तेजाजी ने नाग से कहा-
"नागराज! मैं मेरे ससुराल जा रहा हूँ। मेरी पेमल लम्बे समय से मेरा इन्तजार कर रही है। मैं उसे लेकर आऊंगा और शीघ्र ही बाम्बी पर आऊंगा, मुझे डस लेना।"
कुंवर तेजाजी पत्नी को लेकर मरणासन्न अवस्था में भी वचन पूरा करने के लिये नागराज के पास आये। नागराज ने तेजाजी से पूछा कि ऐसी जगह बताओ जो घायल न हुई हो। तेजाजी की केवल जीभ ही बिना घायल के बची थी। नागराज ने तेजाजी को जीभ पर डस लिया।
तेजाजी के मंदिर
तेजाजी के भारत मे अनेक मंदिर हैं। तेजाजी के मंदिर राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, गजरात तथा हरयाणा में हैं। प्रसिद्ध इतिहासकार श्री पी.एन. ओक का दावा है कि ताजमहल शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजो महालय है| आगरा मुख्यतः जाटों की नगरी है| जाट लोग भगवान शिव को तेजाजी के नाम से जानते हैं| The Illustrated Weekly of India के जाट विशेषांक (28 जून, 1971) के अनुसार जाट लोगों के तेजा मंदिर हुआ करते थे| अनेक शिवलिंगों में एक तेजलिंग भी होता है जिसके जाट लोग उपासक थे| इस वर्णन से भी ऐसा प्रतीत होता है कि ताजमहल भगवान तेजाजी का निवासस्थल तेजोमहालय था। श्री पी.एन. ओक अपनी पुस्तक Tajmahal is a Hindu Temple Palace में 100 से भी अधिक प्रमाण एवं तर्क देकर दावा करते हैं कि ताजमहल वास्तव में शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजोमहालय है।
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