आपका-अख्तर खान

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16 अक्तूबर 2014

मेरी चाहत

मेरे सपने
मेरी चाहत
मेरी यादे
सब कुछ
तुमने
कबाड़े की
दुकान में
क्यों बेच डाली है
क़ब्रिस्तान में
दफना दिया होता
मेरी क़ब्र के पास ,,,अख्तर

बेच ही डाले

कबाड़ी वाले ने
तौलते हुए कहा
दो किलो है सर!
अरे, ध्यान से सही तौलो
ज्यादा है, गलत मत बोलो !
ठीक है सर
सवा दो किलो
अब तो ठीक न !!

और, इस तरह हमने
बेच ही डाले
उसके स्मृतियों के कागज़
रद्दी की बोली लगा कर!!
अब बचा रह गया है
मेरे शरीर के उपरले रैक में
उस छुटकू से मन में
वहां भी तो सहेजा था मैंने
उसकी गुलाबी पर कंटीली स्मृतियाँ!
दीपावली से पहले,
करनी है कोशिश
उसकी सफाई की भी...
आखिर यादें भी सडती हैं!
है न !!!!तुहिन-गूँज

बेशक

छुप छुप कर तेरी
सारी तस्वीरें देखता हूँ,
बेशक तू खूबसूरत
आज भी है,
पर चेहरे पर
वो मोहब्बत  नहीं,
जो में लाया करता था ।

ऐसे, ऐसे, ऐसे…

मैंने पूछा उनसे,
भुला दिया मुझको कैसे?
चुटकियाँ बजा के वो बोले
ऐसे, ऐसे, ऐसे…

क़ुरआन का सन्देश

 
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