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22 नवंबर 2014

शाही इमाम के बेटे की दस्तारबंदी शुरू, नहीं पहुंची कोई बड़ी राजनीतिक हस्‍ती

फोटो: दस्‍तरबंदी रस्‍म के दौरान अहमद बुखारी के साथ उनके पुत्र शाबान अहमद एवं अन्‍य।
 
नई दिल्‍ली. जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुखारी के छोटे बेटे शाबान अहमद की दस्‍तारबंदी (उत्तराधिकारी घोषित किए जाना) शाम 5.25 बजे मगरिब की नमाज के साथ शुरू हुई। इस दौरान खास तौर पर यहां आए ईरान के युवा कारी सैयद अली रज़ा ने कुरान पढ़ी। इसके बाद दस्तारबंदी की रस्‍में हुईं। शाबान बुखारी सेरेमनी में क्रीम रंग की शेरवानी और सफेद टोपी में अपने पिता शाही इमाम अहमद बुखारी के साथ पहुंचे थे। उनके साथ उनके चाचा तारीक बुखारी और हसन बुखारी थे। इस सेरेमनी में नाराज चल रहे याहया बुखारी भी पहुंचे। याद रहे कि इस सेरेमनी के आयोजन से पहले उन्होंने शाबान की दस्तरबंदी किए जाने के खिलाफ बयान दिए थे। वहीं, मौलाना नवाबुद्दीन नक्शबंदी और शेख अब्दुर रहमान मदीने से और अजमेर से मौलाना पहुंचे। नायब इमाम शाबान अहमद के लिए दस्तार चावड़ी बाजार की गली कूचा-ए-मीर आशिक में तैयार की गई।
 
नहीं पहुंची कोई बड़ी राजनीतिक हस्‍ती
कार्यक्रम के दौरान स्टेज पर करीब सौ लोग मौजूद रहे। इनमें शाही इमाम के परिवार के लोग, मुस्लिम धर्म के कई उलेमा मोहम्मद मियां और समर देहलवी, तारी उस्मान, असगर अली इमाम मेहदी सल्फी, मौलाना हबीबुर रहमान, मौलाना तारीक सल्फी, डा.परेवज मियां मौलाना हज कमेटी मौजूद रहे। इस दौरान राजनीतिक हलकों से कोई बड़ा नेता तो नहीं शामिल हुआ, लेकिन कारी मजहरी, उमेर इलियासी और कांग्रेस सांसद अशरारुल हक, विधायक शोएब इकबाल, पूर्व सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क, आम आदमी पार्टी के पूर्व प्रवक्ता फिरोज अहमद बख्त मंच पर दिखे। सेरेमनी के दौरान जामा मस्जिद में भारी भीड़ रही। जबकि बाहर भी कुछ एसा ही माहौल रहा। बुखारी के समर्थक और मुस्लिम समुदाय के लोग भी जामा मस्जिद मेेें भारी तादाद में मौजूद रहे।
 
सड़कें की गईं दुरुस्त 
पुरानी दिल्‍ली में मौजूद जामा मस्जिद इलाके में सड़कों की मरम्‍मत कर दी गई और अतिक्रमण को हटा दिया गया था। पूरी मस्जिद को रोशनी से सजाया गया। वहीं, गलियों में शाही इमाम बुखारी और उनके बेटे के लिए समर्थन और आशीर्वाद देते होर्डिंग लगाए गए। शाही इमाम और उनके भाई तारिक बुखारी ने ताजपेशी के कार्यक्रम को ऐतिहासिक बनाने के कोई कसर नहीं छोड़ी। सुबह से ही शाही इमाम के आवास पर मेहमानों की आवाजाही की गहमागहमी देखी गई। कार्यक्रम को लेकर इलाके के लोगों में भी काफी उत्‍सुकता है।
 
700 लोगों के लिए तैयार हो रहे लजीज पकवान
अहमद बुखारी ने डिनर के लजीज व्‍यंजनों को बनाने के लिए खानसामा इकबाल सिंह को बुलाया गया। डिनर करीब 700 लोगों के हिसाब से तैयार किया गया। मेन्यू में मटन कोरमा, मटन बिरयानी, कढ़ाई गोश्त, चिकन टिक्का और फिश फ्राई मेहमानों को परोसी गई। वहीं, खाने के बाद मुंह मीठा करने के लिए खीर और जर्दा था।
 
तीन हिस्‍सों में बांटा गया है कार्यक्रम
कार्यक्रम तीन हिस्‍सों में बांटा गया है। 22 नवंबर यानी आज दस्तारबंदी के बाद डिनर का आयोजन किया गया। इसके बाद आगामी 25 और 29 नवंबर को भी डिनर का कार्यक्रम रखा गया है। तारिक बुखारी के मुताबिक, 22 नवंबर के डिनर में मीना बाजार समेत आसपास के सभी बाजारों के नुमाइंदे और उलेमा शामिल होंगे। वहीं, 25 नवंबर के डिनर में शाही इमाम ने दिल्ली और दूसरे राज्यों से करीब छह हजार लोगों को दावत पर बुलाया है। इसके अलावा, तीसरा और आखिरी डिनर प्रोग्राम 29 नवंबर को रखा गया है। इसी डिनर में देश की कई सियासी हस्तियों के अलावा पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ को भी न्‍योता भेजा गया है। हालांकि, कार्यक्रम में शरीफ शामिल नहीं हो सकेंगे। उनके अलावा देश और दूसरे मुल्कों के मिनिस्टर, डिप्लोमैट्स और राजनेताओं को इस डिनर में शामिल होने का न्योता भेजा गया है।

हनुमान मंदिर में ईरानी महिलाओं ने अता की नमाज, उलेमाओं ने ठहराया जायज

फोटो: हनुमान मंदिर में नमाज अता करती दो ईरानी महिलाएं।
 
आगरा. ताजमहल का दीदार करने आई ईरानी महिलाओं ने गुरुवार को ताज व्यू चौराहे के पास हनुमान मंदिर में नमाज अता की। इस दौरान वहां फूल बेचने वाले ने उन्हें फर्श पर बिछाने के लिए अखबार दिया। यही नहीं, मंदिर के पुजारी ने भी उनकी मदद की। इसके बाद इस मामले को लेकर बहस छिड़ गई। हिंदू-मुस्लिम धर्म के लोग अपने-अपने तर्क दे रहे हैं। इसमें इस्लामी विद्वान मौलाना नदीमुल वाजदी का कहना है कि किसी भी पाक-साफ स्थान पर नमाज अता की जा सकती है। वहीं देवबंदी उलेमाओं ने भी इसे जायज ठहराया है।
 
ईरानी महिलाएं गुरुवार को ताजमहल का दीदार करने के लिए आगरा पहुंची थी। वह इसके बाद ताज व्‍यू चौराहे के पास पहुंची। शाम को अशर की नमाज का वक्‍त हो गया। उसने आस-पास मौजूद लोगों से फारसी भाषा में ही मस्जिद के लिए पूछा, लेकिन कोई उनकी बात नहीं समझ सका। कुछ देर वह भटकती रहीं। इसके बाद दोनों को हनुमान मंदिर दिखा। मंदिर के बाहर फूल बेचने वाले श्रवण इशारों से समझ गया कि उन्हें नमाज पढ़ना है। उसने महिलाओं को वहीं नमाज अता करने को कहा। 
 
कोई नहीं समझ पा रहा था दोनों की बात 
श्रवण ने बताया कि महिलाओं को बिलकुल उम्‍मीद नहीं थी कि मंदिर में नमाज अता करने के लिए जगह मिलेगी। जब उसने नमाज के लिए इशारा किया तो महिलाएं बेहद खुश हुईं। महिलाओं ने इशारा करके फर्श पर बिछाने को अखबार मांगा। उसने बताया कि उसने अखबार दिया और इसी को बिछाकर महिलाओं ने नमाज अता की।
 
पुजारी ने कहा- मंदिर सबके लिए है
मंदिर के पुजारी रामब्रज शास्‍त्री कहते हैं कि इबादत के तरीके भिन्‍न-भिन्‍न हो सकते हैं, लेकिन भगवान और अल्‍लाह एक हैं। वह ईरानी पर्यटकों का नाम भी नहीं जानते हैं। मंदिर सबके लिए है। धर्म के नाम पर यहां पर किसी को आने और इबादत करने से नहीं रोका जाना चाहिए। यही उन्‍होंने किया। नमाज जिस तरफ से महिलाएं अता कर रही थीं, उस ओर मंदिर का पट बंद था।
ईरानी पर्यटकों द्वारा आगरा के हनुमान मंदिर में नमाज अता करने को देवबंदी उलमा ने जायज करार दिया है। सहारनपुर स्थित देवबंद दारुल उलूम वक्फ के वरिष्ठ उस्ताद मौलाना मुफ्ती आरिफ कासमी का कहना है कि अगर नमाज पढ़ने वाले के सामने किसी तरह की कोई तस्वीर न हो तो ऐसी सूरत में कहीं पर भी नमाज पढ़ी जा सकती है। 

नमाज अदा करने को लेकर फतवों के शहर देवबंद के उलेमाओं का कहना है कि पूरी कायनात खुदा की देन है। नमाज अता करने के लिए जमीन की कोई बाध्यता नहीं होनी चाहिए और न ही है। उस किसी भी स्थान पर नमाज अता की जा सकती है, जो पाक साफ हो और नमाज अता करने वाले स्थान के आसपास किसी भी तरह की गंदगी न हो। 
 
उलेमाओं का कहना है कि किसी भी धर्म में ईश्वर का नाम लेने के लिए सबसे पहले सफाई पर ही विशेष जोर दिया गया है। सभी धर्मों में उन स्थानों पर साफ-सफाई पर विशेष तौर पर जोर दिया जाता है, जिन स्थानों पर इबादत की जाती है।
 
इस्लामी विद्वान मौलाना नदीमुल वाजदी और जामियातुल अनवरिया के मोहतमिम मौलाना नसीम अख्तर शाह कैसर ने भी ऐसी ही बातें कहीं। 
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