राजकोट। मंगलवार को पाकिस्तान के पेशावर शहर के स्कूल पर हमला
कर आतंकवादियों ने 132 बच्चों सहित 142 लोगों की हत्या कर दी थी। पाकिस्तान
के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने इस घटना को ‘नेशनल ट्रेजडी’ बताकर तीन दिवस
का राष्ट्रीय शोक घोषित किया है। पाकिस्तान पर आई इस संकट की घड़ी में फिर
एक बार समाज सेवक अब्दुल सत्तार ईदी ने महती भूमिका निभाई।
पेशावर की आर्मी स्कूल में हुए हमले का समाचार मिलते ही ईदी फाउंडेशन
की दर्जनों एंबुलेंस व सैकड़ो समाजसेवी घटनास्थल पर अपनी जान की परवाह किए
बिना पहुंच चुके थे। स्कूल में फंसे बच्चे और अन्य लोगों को हॉस्पिटल तक
पहुंचाने और तात्कालिक उपचार देने में फाउंडेशन की एंबुलेंस और समाजसेवी
सुबह 10 से देर रात तक घटनास्थल पर मौजूद रहे।
अब्दुल सत्तार ईदी:
‘अब्दुल सत्तार ईदी’ यह नाम पाकिस्तान में पूरी अदब के साथ लिया जाता है। अब्दुल सत्तार पाक आवाम के दिलों पर इस तरह राज करते हैं कि उनके अनेकों नाम हैं.. ‘फरिश्ता’, ‘फादर टेरेसा’ तो ‘दूसरे गांधी’। पाकिस्तान में इनकी समाजसेवी संस्था की प्रतिष्ठा इतनी ऊंची है कि अगर संस्था का वाहन किसी फायरिंग क्षेत्र में भी पहुंच जाए तो वहां गोलीबारी रुक जाती है। दंगे-फसाद थम जाते हैं।
‘अब्दुल सत्तार ईदी’ यह नाम पाकिस्तान में पूरी अदब के साथ लिया जाता है। अब्दुल सत्तार पाक आवाम के दिलों पर इस तरह राज करते हैं कि उनके अनेकों नाम हैं.. ‘फरिश्ता’, ‘फादर टेरेसा’ तो ‘दूसरे गांधी’। पाकिस्तान में इनकी समाजसेवी संस्था की प्रतिष्ठा इतनी ऊंची है कि अगर संस्था का वाहन किसी फायरिंग क्षेत्र में भी पहुंच जाए तो वहां गोलीबारी रुक जाती है। दंगे-फसाद थम जाते हैं।
बड़े से बड़े उपद्रव भरे माहौल में भी कोई इनकी संस्था के वाहन तक पर
हमला नहीं करता। इस महान शख्सियत का जन्म गुजरात के जूनागढ़ जिले के बांटवा
गांव में हुआ। मानवता के लिए अब्दुल सत्तार ईदी की कटिबद्धता यह है कि
उनकी महानतम समाजसेवा के लिए पाकिस्तान सरकार द्वारा उन्हें अब तक 16 बार
नोबल पुरस्कार के लिए नामांकित किया जा चुका है। उन्हें वर्ष 1996 में भारत
की ओर से गांधी शांति पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।अब्दुल सत्तार का जन्म गुजरात के जूनागढ़ जिले के बांटवा गांव में हुआ। सन्
1947 में आजादी के बाद हुए भारत-पाकिस्तान बंटवारे पर अब्दुल सत्तार
सपरिवार पाकिस्तान पहुंच गए। वर्ष 1951 में उन्होंने एक छोटी सी
डिस्पेंसरी खोली। इस समय भी जब उनकी कमाई लगभग न के बराबर थी, तब भी वे
असहाय लोगों की मदद किया करते थे।एक बार कराची में फ्लू की महामारी फैल गई। इस समय लोगों की मदद के लिए
सत्तार साहब ने टेंट लगाया और कई दिनों तक लोगों का मुफ्त इलाज किया। इतना
ही नहीं उनकी इस सेवा-भाव को देखते हुए लोगों ने बाद में उन्हें काफी पैसा
दिया। सत्तार साहब ने इन पैसों का उपयोग भी अपने सुख के लिए नहीं, बल्कि
दूसरों की भलाई के लिए ही किया। इन पैसों से उन्होंने ‘ईदी फाउंडेशन’ नामक
संस्था की स्थापना की। आज यह फाउंडेशन पाकिस्तान सहित दुनिया भर के 13
देशों में कार्यरत है।