उज्जैन। ब्रह्मवैवर्तपुराण के
अनुसार शनि देव शिवजी और पार्वती को पुत्र प्राप्ति की खबर सुनकर उनके घर
आए। वहां उन्होंने पूरे समय अपना मुंह नीचे की ओर झुकाया हुआ था। यह देख
पार्वती जी ने उनसे कहा कि आप मेरी या मेरे बालक की तरफ देख क्यों नहीं रहे
हो? मैं इसका कारण जानना चाहती हूं। यह सुनकर शनिदेव बोले माता मैं आपके
सामने कुछ कहने लायक नहीं हूं, लेकिन ये सब कर्मों के कारण है। मैं बचपन से
ही श्रीकृष्ण का भक्त था।
मेरे पिता चित्ररथ ने मेरा विवाह कर दिया वह सती-साध्वी नारी बहुत
तेजस्विनी हमेशा तपस्या में लीन रहने वाली थी। एक दिन वह ऋतुस्नान के बाद
मेरे पास आई। उस समय मैं ध्यान कर रहा था। मुझे ब्रह्मज्ञान नहीं था। उसने
अपना ऋतुकाल असफल जानकर मुझे शाप दे दिया। तुम अब जिसकी तरफ दृष्टि करोगे
वह नष्ट हो जाएगा। इसलिए मैं हिंसा और अनिष्ट के डर से आपके और बालक की तरफ
नही देख रहा हूं।
यह सुनकर माता पार्वती के मन में कौतूहल हुआ, उन्होंने शनिदेव से कहा
कि आप मेरे बालक की तरफ देखिए। वैसे भी कर्मफल के भोग को कौन बदल सकता है।
तब शनि ने बालक के सुंदर मुख की तरफ देखा और बालक का मस्तक उसके शरीर से
अलग हो गया।
माता पार्वती विलाप करने लगी। यह देखकर वहां उपस्थित सभी देवता,
देवियां, गंधर्व और शिव आश्चर्यचकित रह गए। देवताओं की प्रार्थना पर
श्रीहरि गरुड़ पर सवार होकर उत्तर दिशा की और गए और वहां से एक हाथी का सिर
लेकर आए। सिर बालक के धड़ पर रखकर उसे जोड़ दिया। तब से भगवान गणेश का सिर
हाथी रूपी हो गया।
तब भगवान शंकर के कहने पर विष्णुजी एक हाथी का सिर काटकर लाए और वह सिर उन्होंने उस बालक के धड़ पर रखकर उसे जीवित कर दिया। तब भगवान शंकर व अन्य देवताओं ने उस गजमुख बालक को अनेक आशीर्वाद दिए। देवताओं ने गणेश, गणपति, विनायक, विघ्नहरता, प्रथम पूज्य आदि कई नामों से उस बालक की स्तुति की। इस प्रकार भगवान गणेश का प्राकट्य हुआ।
यह सुनकर श्रीनारायण ने कहा नारद एक समय की बात है। शंकर ने माली और सुुमाली को मारने वाले सूर्य पर बड़े क्रोध में त्रिशूल से प्रहार किया। सूर्य भी शिव के समान तेजस्वी और शक्तिशाली था। इसलिए त्रिशूल की चोट से सूर्य की चेतना नष्ट हो गई। वह तुरंत रथ से नीचे गिर पड़ा। जब कश्यपजी ने देखा कि मेरा पुत्र मरने की अवस्था में हैं। तब वे उसे छाती से लगाकर फूट-फूटकर विलाप करने लगे। उस समय सारे देवताओं में हाहाकार मच गया। वे सभी भयभीत होकर जोर-जोर से रुदन करने लगे। अंधकार छा जाने से सारे जगत में अंधेरा हो गया। तब ब्रह्मा के पौत्र तपस्वी कश्यप जी ने शिव जी को शाप दिया वे बोले जैसा आज तुम्हारे प्रहार के कारण मेरे पुत्र का हाल हो रहा है। ठीक वैसे ही तुम्हारे पुत्र पर भी होगा। तुम्हारे पुत्र का मस्तक कट जाएगा।यह सुनकर भोलेनाथ का क्रोध शांत हो गया। उन्होंने सूर्य को फिर से जीवित कर दिया। सूर्य कश्यप जी के सामने खड़े हो गए। जब उन्हें कश्यप जी के शाप के बारे में पता चला तो उन्होंने सभी का त्याग करने का निर्णय लिया। यह सुनकर देवताओं की प्रेरणा से भगवान ब्रह्मा सूर्य के पास पहुंचे और उन्हें उनके काम पर नियुक्त किया।
ब्रह्मा, शिव और कश्यप आनंद से सूर्य को आशीर्वाद देकर अपने-अपने भवन चले गए। इधर सूर्य भी अपनी राशि पर आरूढ़ हुए। इसके बाद माली और सुमाली को सफेद कोढ़ हो गया, जिससे उनका प्रभाव नष्ट हो गया। तब स्वयं ब्रह्मा ने उन दोनों से कहा-सूर्य के कोप से तुम दोनों का तेज खत्म हो गया है। तुम्हारा शरीर खराब हो गया है। तुम सूर्य की आराधना करो। उन दोनों ने सूर्य की आराधना शुरू की और फिर से निरोगी हो गए।
देवी पार्वती ने एक बार शिवजी के गण नन्दी के द्वारा उनकी आज्ञा पालन
में त्रुटि के कारण अपने शरीर के उबटन से एक बालक का निर्माण कर उसमें
प्राण डाल दिए और कहा कि तुम मेरे पुत्र हो। तुम मेरी ही आज्ञा का पालन
करना और किसी की नहीं। देवी पार्वती ने यह भी कहा कि मैं स्नान के लिए जा
रही हूं। कोई भी अंदर न आने पाए। थोड़ी देर बाद वहां भगवान शंकर आए और देवी
पार्वती के भवन में जाने लगे।
यह देखकर उस बालक ने विनयपूर्वक उन्हें रोकने का प्रयास किया। बालक का
हठ देखकर भगवान शंकर क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से उस बालक
का सिर काट दिया। देवी पार्वती ने जब यह देखा तो वे बहुत क्रोधित हो गई।
उनकी क्रोध की अग्नि से सृष्टि में हाहाकार मच गया। तब सभी देवताओं ने
मिलकर उनकी स्तुति की और बालक को पुनर्जीवित करने के लिए कहा।
तब भगवान शंकर के कहने पर विष्णुजी एक हाथी का सिर काटकर लाए और वह सिर उन्होंने उस बालक के धड़ पर रखकर उसे जीवित कर दिया। तब भगवान शंकर व अन्य देवताओं ने उस गजमुख बालक को अनेक आशीर्वाद दिए। देवताओं ने गणेश, गणपति, विनायक, विघ्नहरता, प्रथम पूज्य आदि कई नामों से उस बालक की स्तुति की। इस प्रकार भगवान गणेश का प्राकट्य हुआ।
गणेशजी का सिर कटने के पीछे की ये अनोखी कहानी, कम ही लोग जानते हैं
- धर्म डेस्क
- Jan 15, 2015, 12:57 PM IST
ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार एक बार नारद जी ने श्री नारायण से पूछा
कि प्रभु आप बहुत विद्वान है और सभी वेदों को जानने वाले हैं। मैं आप से ये
जानना चाहता हूं कि जो भगवान शंकर सभी परेशानियों को दूर करने वाले माने
जाते हैं। उन्होंने क्यों अपने पुत्र गणेश की के मस्तक को काट दिया।
पार्वती के अंश से उत्पन्न हुए पुत्र का सिर्फ एक ग्रह की दृष्टि के कारण
मस्तक कट जाना
बहुत आश्चर्य की बात है।
यह सुनकर श्रीनारायण ने कहा नारद एक समय की बात है। शंकर ने माली और सुुमाली को मारने वाले सूर्य पर बड़े क्रोध में त्रिशूल से प्रहार किया। सूर्य भी शिव के समान तेजस्वी और शक्तिशाली था। इसलिए त्रिशूल की चोट से सूर्य की चेतना नष्ट हो गई। वह तुरंत रथ से नीचे गिर पड़ा। जब कश्यपजी ने देखा कि मेरा पुत्र मरने की अवस्था में हैं। तब वे उसे छाती से लगाकर फूट-फूटकर विलाप करने लगे। उस समय सारे देवताओं में हाहाकार मच गया। वे सभी भयभीत होकर जोर-जोर से रुदन करने लगे। अंधकार छा जाने से सारे जगत में अंधेरा हो गया। तब ब्रह्मा के पौत्र तपस्वी कश्यप जी ने शिव जी को शाप दिया वे बोले जैसा आज तुम्हारे प्रहार के कारण मेरे पुत्र का हाल हो रहा है। ठीक वैसे ही तुम्हारे पुत्र पर भी होगा। तुम्हारे पुत्र का मस्तक कट जाएगा।यह सुनकर भोलेनाथ का क्रोध शांत हो गया। उन्होंने सूर्य को फिर से जीवित कर दिया। सूर्य कश्यप जी के सामने खड़े हो गए। जब उन्हें कश्यप जी के शाप के बारे में पता चला तो उन्होंने सभी का त्याग करने का निर्णय लिया। यह सुनकर देवताओं की प्रेरणा से भगवान ब्रह्मा सूर्य के पास पहुंचे और उन्हें उनके काम पर नियुक्त किया।
ब्रह्मा, शिव और कश्यप आनंद से सूर्य को आशीर्वाद देकर अपने-अपने भवन चले गए। इधर सूर्य भी अपनी राशि पर आरूढ़ हुए। इसके बाद माली और सुमाली को सफेद कोढ़ हो गया, जिससे उनका प्रभाव नष्ट हो गया। तब स्वयं ब्रह्मा ने उन दोनों से कहा-सूर्य के कोप से तुम दोनों का तेज खत्म हो गया है। तुम्हारा शरीर खराब हो गया है। तुम सूर्य की आराधना करो। उन दोनों ने सूर्य की आराधना शुरू की और फिर से निरोगी हो गए।