अलवर. डेढ़
साल पहले भी पहाड़ पिघला था। तब उसने ‘लीला’ को समेट लिया था। हजारों की
‘जीवन लीला’ खत्म कर दी। अब फिर पहाड़ पिघला। इस बार ‘लीला’ की राह दिखा
दी। अठारह महीने से हठ ठाने बैठे एक शख्स को उसकी जिंदगी लौटा दी। यह
किस्सा है, विजेंद्र कंवर और उनकी पत्नी लीला का। भीकमपुरा की लीला को उसके
परिजन मृत मान चुके थे, पर पति विजेंद्र की उम्मीद जिंदा थी।
अलवर, राजस्थान के भीकमपुरा के विजेंद्र ड्राइवर हैं। वे 12 जून 2013
को बस लेकर चारधाम यात्रा पर उत्तराखंड गए थे। साथ में पत्नी लीला आैर 30
यात्री थे। ये लोग केदारनाथ में थे, तभी 16 जून को पहाड़ पिघलकर ढह गया।
आपदा ऐसी कि कई दुनिया से बिछड़ गए। कई अपने साथ वालों से। विजेंद्र की
लीला भी बिछड़ गईं। सबने उन्हें मरा हुआ मान लिया पर विजेंद्र ने उम्मीद
नहीं छोड़ी।
डेढ़ साल तक खोजा फिर मिली पत्नी
लीला की तस्वीर लिए डेढ़ साल तक विजेंद्र ने पहाड़ों का कोना-कोना छान
मारा। लोगों से पूछते फिरते रहे। मंगलवार को उत्तरकाशी जिले के किसी गांव
में लोगों ने बताया कि इस तस्वीर जैसी एक पागल महिला पास के गंगोली गांव
में दिखी है। दौड़े-भागे पहुंचे। देखा तो वह लीला ही थी। वे उन्हें साथ ले
आए। अब इलाज की तैयारी कर रहे हैं।
प्रशासन ने मृत मान दिए थे दस लाख
उत्तराखंड में गुम हुए लोगों को प्रशासन मृत मान चुका है और मुआवजा दिया जा चुका है। इनमें लीला भी शामिल है। लीला के परिजनों को गत साल दस लाख रुपए का मुआवजा दिया गया था।
उत्तराखंड में गुम हुए लोगों को प्रशासन मृत मान चुका है और मुआवजा दिया जा चुका है। इनमें लीला भी शामिल है। लीला के परिजनों को गत साल दस लाख रुपए का मुआवजा दिया गया था।
तलाश में लग गए छह लाख : विजेंद्र
विजेंद्र का कहना है कि लीला को तलाशने में छह लाख रुपए खर्च हुए हैं। इसका हिसाब बनाकर वह प्रशासन को देगा। उधर, एसडीएम संजय शर्मा ने बताया लीला के मिलने की सूचना सरकार को दी जाएगी और जांच के बाद वसूली की कार्रवाई की जाएगी।
विजेंद्र का कहना है कि लीला को तलाशने में छह लाख रुपए खर्च हुए हैं। इसका हिसाब बनाकर वह प्रशासन को देगा। उधर, एसडीएम संजय शर्मा ने बताया लीला के मिलने की सूचना सरकार को दी जाएगी और जांच के बाद वसूली की कार्रवाई की जाएगी।
बस हंसती है, कुछ बोलती नहीं लीला
लीला से मिलने वे लोग भी आ रहे हैं जिनके अपने उत्तराखंड त्रासदी में गुम हो गए थे। इन लोगों ने लीला को अपने परिजनों की फोटो भी दिखाई। हालांकि लीला बस हंसती है, कुछ बोल नहीं रही।
लीला से मिलने वे लोग भी आ रहे हैं जिनके अपने उत्तराखंड त्रासदी में गुम हो गए थे। इन लोगों ने लीला को अपने परिजनों की फोटो भी दिखाई। हालांकि लीला बस हंसती है, कुछ बोल नहीं रही।
इस तरह खोजा पत्नी को : हर गांव-पहाड़ पर तलाशा
16 जून 2013 को देवभूमि पर आई आफत के बीच लीला गुम हो गई। त्रासदी के
बाद विजेंद्र ने शवों में पत्नी को खाेजा। मृत लोगों की सूची खंगाली।
लोगों को पत्नी का फोटो दिखाकर पूछता-इन्हें कहीं देखा तो नहीं? बच्चों की
देखभाल के लिए बीच में घर भी लौटता तो कुछ ही समय के लिए। मंगलवार को उसे
लोगों से पता चला कि उत्तरकाशी के गांगोली गांव में एक विक्षिप्त सी महिला
घूम रही है।
विजेन्द्र लीला की बहन और अन्य परिजनों को लेकर वहां पहुंच गया। खोज
की तो लीला येमारी डेम के पास हाथ तापती मिली। एकबारगी तो पहचान में नहीं
आई। लेकिन जब बहन मानकंवर ने आवाज लगाई तो पलटकर मुस्कुराने लगी। बुधवार
को विजेन्द्र उसे लेकर घर लौट आया।
पांच बच्चों की मां, अब खुद बच्ची सी हो गई
लीला (47) के पांच बच्चे हैं। चार लड़कियों की शादी हो चुकी है। सबसे छोटा 14 साल का लड़का है, जिसकी पढ़ाई चल रही है। पागलपन से लीला बच्ची सी हो गई हैं। लोग उनसे बात करते है। लीला सबको देख हंसती है, कुछ बोलती नहीं हैं।
लीला (47) के पांच बच्चे हैं। चार लड़कियों की शादी हो चुकी है। सबसे छोटा 14 साल का लड़का है, जिसकी पढ़ाई चल रही है। पागलपन से लीला बच्ची सी हो गई हैं। लोग उनसे बात करते है। लीला सबको देख हंसती है, कुछ बोलती नहीं हैं।
त्रासदी के बाद उत्तराखंड में पागलों की संख्या बढ़ी है। ज्यादातर ऐसे
हैं जो सदमे से पागल हुए हैं। सरकार अगर सभी पागलों का फोटो अखबारों में
छपवा दे तो हो सकता उनके घरवाले उन्हें पहचान लें। और वे भी अपने घर पहुंच
जाएं।-विजेंद्र सिंह कंवर, लीला के पति