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05 मार्च 2015

आल इण्डिया तहरीके एहले सुन्नत

आल इण्डिया तहरीके एहले सुन्नत की तरह से आगामी पन्द्राह मार्च को हजीरे वाले बाबा पुरानी सब्ज़ी मंडी क्षेत्र में बाद नमाज़े ईशा ईद मिलाददुन्नबी कॉन्फ्रेंस का आयोजन रखा गया जिसके आयोजक मौलाना फज़ले हक़ होंगे ,,इस कॉन्फ्रेंस में मुफ्ती शेर मोहम्मद रिज़वी जानशीन मुफ़्ती ऐ आज़म जोधपुर ,,,,ओबैदुल्ल्ला खान आज़मी पूर्व राजयसभा सदस्य मुख्य वक्ता होंगे जबकि सदारत मौलाना फज़ले हक़ करेंगे ,कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए छ मार्च बरोज़ जुमा शाम साढ़े छ बजे जंगलीशाह बाबा दरगाह पर एक बैठक आयोजित की गयी है जिसमे को कॉम के गुमराह नौजवान जो नशे और बुरे आमालो में पढ़े है उन्हें कैसे आम राह पर लाकर दीन के रास्ते पर चलाये इस पर भी विचार विमर्श होगा ,,,,तहरीक के जमील क़ादरी ,,एजाज़ अहमद अज्जु भाई ,,,,अब्दुल वहीद मुन्ना भाई सभी साथियों से इस कार्यक्रम को सफल बनाने की अपील की है ,,,,,,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

हज़रत जंगलीशाह बाबा रहमतुल्लाह कोटा के सालाना उर्स ग्यारह ,,,बाराह मार्च को होंगे

हज़रत जंगलीशाह बाबा रहमतुल्लाह कोटा के सालाना उर्स ग्यारह ,,,बाराह मार्च को होंगे ,,उर्स के पूर्व जायरीनों को बुलाने ,,उन्हें ठहराने ,,मशहूर कव्वालों को बुलाने की सभी तय्यरियां पूरी कर ली गयी है ,,,,,,,,,,,नायब गद्दीनशीन फ़ारूक़ हौंडा ने बताया के दरगाह की रंग रोगन की पूरी व्यवस्थाये अंतिम चरणो में है जबकि मशहूर कव्वालों ने अपनी सहमति दे दी है ,,,कोटा जंगलीशाह बाबा का मज़ार सोफिया स्कूल के पास स्थित है ,,, जानशीन अलहाज अज़ीज़ जावा और रशीद जावा ने बताया के हज़रत जंगलीशाह बाबा की वफ़ात एक सो इक्कीस साल में हुई ,,बाबा ने इक्कावन हज किये जिनमे चार हज उन्होंने पैदल यात्रा कर किये थे ,,,अलहाज रशीद जावा ने बताया के जानशीन अज़ीज़ जावा के वालिद बाबा साहब के प्रमुख खिदमतगार थे और अज़ीज़ जावा छोटे होने से उन्हें बाबा साहब ने अपनी गोद में खूब खिलाया था ,,,,,बाबा जंगलीशाह का मज़ार वर्ष उन्नीस सो पैतालीस से बना है जिसे आज़ादी के तुरंत बाद उन्नीस सो सैतालीस में पक्का बनाया गया और वर्ष दो हज़ार एक में इस मज़ार के गुंबद वगेरा सोंद्र्य्कर्त करवाये गए ,,बाबा जंगलीशाह मज़ार की ज़मीन पर एक क़लन्दरी मस्ज्दि बनी है जबकि गरीबों के शादी ब्याह कार्यक्रमों के लिए महफ़ीलखाना बना हुआ है जहां सस्ते दामों में बहतरीन कार्यक्रम के प्रस्ताव है लेकिन इस मामले में अब व्यवसायीकरण होने से कई मुरीद और ज़ायरीन दुखी है ,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

ऐ साधु संतो ,,,,ऐ मोलवी मुल्लाओं

ऐ साधु संतो ,,,,ऐ मोलवी मुल्लाओं ,,,ऐ सियासी लोगों ,,,,,,,,,,,ऐ ओवेसी ,,साक्षी ,,योगी नफरत का खेल बंद करो लो आओ प्यार की होली खेलो ,,,सद्भावना का गुलाल उड़ाओ ,,,,खुशहाली भाईचारे की छटा बिखेरो और दिल से कहो होली मुबारक हो मुबारक हो ,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

होली



आधिकारिक नाम     होली
अन्य नाम     फगुआ, धुलेंडी, दोल
अनुयायी     हिन्दू, भारतीय, भारतीय प्रवासी
प्रकार     धार्मिक, सामाजिक
उद्देश्य     धार्मिक निष्ठा, उत्सव, मनोरंजन
आरम्भ     अत्यंत प्राचीन
तिथि     फाल्गुन पूर्णिमा
अनुष्ठान     होलिका दहन व रंग खेलना
उत्सव     रंग खेलना, गाना-बजाना, हुड़दंग
समान पर्व     होला मोहल्ला, याओसांग इत्यादि

होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रंगों का त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। यह प्रमुखता से भारत तथा नेपाल में मनाया जाता हैं ! यह त्यौहार कई अन्य देशों जिनमें अल्पसंख्यक हिन्दू लोग रहते हैं वहां भी धूम धाम के साथ मनाया जाता हैं![1] पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते है। दूसरे दिन, जिसे धुरड्डी, धुलेंडी, धुरखेल या धूलिवंदन कहा जाता है, लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं। एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद स्नान कर के विश्राम करने के बाद नए कपड़े पहन कर शाम को लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं, गले मिलते हैं और मिठाइयाँ खिलाते हैं।[2]

राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है।[3] राग अर्थात संगीत और रंग तो इसके प्रमुख अंग हैं ही, पर इनको उत्कर्ष तक पहुँचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है। फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहते हैं। होली का त्योहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है। इस दिन से फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है। खेतों में सरसों खिल उठती है। बाग-बगीचों में फूलों की आकर्षक छटा छा जाती है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मनुष्य सब उल्लास से परिपूर्ण हो जाते हैं। खेतों में गेहूँ की बालियाँ इठलाने लगती हैं। किसानों का ह्रदय ख़ुशी से नाच उठता है। बच्चे-बूढ़े सभी व्यक्ति सब कुछ संकोच और रूढ़ियाँ भूलकर ढोलक-झाँझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत व रंगों में डूब जाते हैं। चारों तरफ़ रंगों की फुहार फूट पड़ती है।[4] होली के दिन आम्र मंजरी तथा चंदन को मिलाकर खाने का बड़ा माहात्म्य है।[5]



होली भारत का अत्यंत प्राचीन पर्व है जो होली, होलिका या होलाका[6] नाम से मनाया जाता था। वसंत की ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण इसे वसंतोत्सव और काम-महोत्सव भी कहा गया है।
राधा-श्याम गोप और गोपियो की होली

इतिहासकारों का मानना है कि आर्यों में भी इस पर्व का प्रचलन था लेकिन अधिकतर यह पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था। इस पर्व का वर्णन अनेक पुरातन धार्मिक पुस्तकों में मिलता है। इनमें प्रमुख हैं, जैमिनी के पूर्व मीमांसा-सूत्र और कथा गार्ह्य-सूत्र। नारद पुराण औऱ भविष्य पुराण जैसे पुराणों की प्राचीन हस्तलिपियों और ग्रंथों में भी इस पर्व का उल्लेख मिलता है। विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ स्थान पर स्थित ईसा से ३०० वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी इसका उल्लेख किया गया है। संस्कृत साहित्य में वसन्त ऋतु और वसन्तोत्सव अनेक कवियों के प्रिय विषय रहे हैं।

सुप्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटक अलबरूनी ने भी अपने ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में होलिकोत्सव का वर्णन किया है। भारत के अनेक मुस्लिम कवियों ने अपनी रचनाओं में इस बात का उल्लेख किया है कि होलिकोत्सव केवल हिंदू ही नहीं मुसलमान भी मनाते हैं। सबसे प्रामाणिक इतिहास की तस्वीरें हैं मुगल काल की और इस काल में होली के किस्से उत्सुकता जगाने वाले हैं। अकबर का जोधाबाई के साथ तथा जहाँगीर का नूरजहाँ के साथ होली खेलने का वर्णन मिलता है। अलवर संग्रहालय के एक चित्र में जहाँगीर को होली खेलते हुए दिखाया गया है।[7] शाहजहाँ के समय तक होली खेलने का मुग़लिया अंदाज़ ही बदल गया था। इतिहास में वर्णन है कि शाहजहाँ के ज़माने में होली को ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी (रंगों की बौछार) कहा जाता था।[8] अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के बारे में प्रसिद्ध है कि होली पर उनके मंत्री उन्हें रंग लगाने जाया करते थे।[9] मध्ययुगीन हिन्दी साहित्य में दर्शित कृष्ण की लीलाओं में भी होली का विस्तृत वर्णन मिलता है।

इसके अतिरिक्त प्राचीन चित्रों, भित्तिचित्रों और मंदिरों की दीवारों पर इस उत्सव के चित्र मिलते हैं। विजयनगर की राजधानी हंपी के १६वी शताब्दी के एक चित्रफलक पर होली का आनंददायक चित्र उकेरा गया है। इस चित्र में राजकुमारों और राजकुमारियों को दासियों सहित रंग और पिचकारी के साथ राज दम्पत्ति को होली के रंग में रंगते हुए दिखाया गया है। १६वी शताब्दी की अहमदनगर की एक चित्र आकृति का विषय वसंत रागिनी ही है। इस चित्र में राजपरिवार के एक दंपत्ति को बगीचे में झूला झूलते हुए दिखाया गया है। साथ में अनेक सेविकाएँ नृत्य-गीत व रंग खेलने में व्यस्त हैं। वे एक दूसरे पर पिचकारियों से रंग डाल रहे हैं। मध्यकालीन भारतीय मंदिरों के भित्तिचित्रों और आकृतियों में होली के सजीव चित्र देखे जा सकते हैं। उदाहरण के लिए इसमें १७वी शताब्दी की मेवाड़ की एक कलाकृति में महाराणा को अपने दरबारियों के साथ चित्रित किया गया है। शासक कुछ लोगों को उपहार दे रहे हैं, नृत्यांगना नृत्य कर रही हैं और इस सबके मध्य रंग का एक कुंड रखा हुआ है। बूंदी से प्राप्त एक लघुचित्र में राजा को हाथीदाँत के सिंहासन पर बैठा दिखाया गया है जिसके गालों पर महिलाएँ गुलाल मल रही हैं।[10]
कहानियाँ
मुख्य लेख : होली की कहानियाँ
भगवान नृसिंह द्वारा हिरण्यकशिपु का वध

होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के दर्प में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है।[11] प्रतीक रूप से यह भी माना जता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता है।[12]

प्रह्लाद की कथा के अतिरिक्त यह पर्व राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है।[13] कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी खु़शी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था।[14]
परंपराएँ

होली के पर्व की तरह इसकी परंपराएँ भी अत्यंत प्राचीन हैं और इसका स्वरूप और उद्देश्य समय के साथ बदलता रहा है। प्राचीन काल में यह विवाहित महिलाओं द्वारा परिवार की सुख समृद्धि के लिए मनाया जाता था और पूर्ण चंद्र की पूजा करने की परंपरा थी। वैदिक काल में इस पर्व को नवात्रैष्टि यज्ञ कहा जाता था। उस समय खेत के अधपके अन्न को यज्ञ में दान करके प्रसाद लेने का विधान समाज में व्याप्त था। अन्न को होला कहते हैं, इसी से इसका नाम होलिकोत्सव पड़ा। भारतीय ज्योतिष के अनुसार चैत्र शुदी प्रतिपदा के दिन से नववर्ष का भी आरंभ माना जाता है। इस उत्सव के बाद ही चैत्र महीने का आरंभ होता है। अतः यह पर्व नवसंवत का आरंभ तथा वसंतागमन का प्रतीक भी है। इसी दिन प्रथम पुरुष मनु का जन्म हुआ था, इस कारण इसे मन्वादितिथि कहते हैं।[15]
होलिका दहन

होली का पहला काम झंडा या डंडा गाड़ना होता है। इसे किसी सार्वजनिक स्थल या घर के आहाते में गाड़ा जाता है। इसके पास ही होलिका की अग्नि इकट्ठी की जाती है। होली से काफ़ी दिन पहले से ही यह सब तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। पर्व का पहला दिन होलिका दहन का दिन कहलाता है। इस दिन चौराहों पर व जहाँ कहीं अग्नि के लिए लकड़ी एकत्र की गई होती है, वहाँ होली जलाई जाती है। इसमें लकड़ियाँ और उपले प्रमुख रूप से होते हैं। कई स्थलों पर होलिका में भरभोलिए[16] जलाने की भी परंपरा है। भरभोलिए गाय के गोबर से बने ऐसे उपले होते हैं जिनके बीच में छेद होता है। इस छेद में मूँज की रस्सी डाल कर माला बनाई जाती है। एक माला में सात भरभोलिए होते हैं। होली में आग लगाने से पहले इस माला को भाइयों के सिर के ऊपर से सात बार घूमा कर फेंक दिया जाता है। रात को होलिका दहन के समय यह माला होलिका के साथ जला दी जाती है। इसका यह आशय है कि होली के साथ भाइयों पर लगी बुरी नज़र भी जल जाए।[16] लकड़ियों व उपलों से बनी इस होली का दोपहर से ही विधिवत पूजन आरंभ हो जाता है। घरों में बने पकवानों का यहाँ भोग लगाया जाता है। दिन ढलने पर ज्योतिषियों द्वारा निकाले मुहूर्त पर होली का दहन किया जाता है। इस आग में नई फसल की गेहूँ की बालियों और चने के होले को भी भूना जाता है। होलिका का दहन समाज की समस्त बुराइयों के अंत का प्रतीक है। यह बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय का सूचक है। गाँवों में लोग देर रात तक होली के गीत गाते हैं तथा नाचते हैं।
सार्वजनिक होली मिलन

होली से अगला दिन धूलिवंदन कहलाता है। इस दिन लोग रंगों से खेलते हैं। सुबह होते ही सब अपने मित्रों और रिश्तेदारों से मिलने निकल पड़ते हैं। गुलाल और रंगों से सबका स्वागत किया जाता है। लोग अपनी ईर्ष्या-द्वेष की भावना भुलाकर प्रेमपूर्वक गले मिलते हैं तथा एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। इस दिन जगह-जगह टोलियाँ रंग-बिरंगे कपड़े पहने नाचती-गाती दिखाई पड़ती हैं। बच्चे पिचकारियों से रंग छोड़कर अपना मनोरंजन करते हैं। सारा समाज होली के रंग में रंगकर एक-सा बन जाता है। रंग खेलने के बाद देर दोपहर तक लोग नहाते हैं और शाम को नए वस्त्र पहनकर सबसे मिलने जाते हैं। प्रीति भोज तथा गाने-बजाने के कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।

होली के दिन घरों में खीर, पूरी और पूड़े आदि विभिन्न व्यंजन पकाए जाते हैं। इस अवसर पर अनेक मिठाइयाँ बनाई जाती हैं जिनमें गुझियों का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। बेसन के सेव और दहीबड़े भी सामान्य रूप से उत्तर प्रदेश में रहने वाले हर परिवार में बनाए व खिलाए जाते हैं। कांजी, भांग और ठंडाई इस पर्व के विशेष पेय होते हैं। पर ये कुछ ही लोगों को भाते हैं। इस अवसर पर उत्तरी भारत के प्रायः सभी राज्यों के सरकारी कार्यालयों में अवकाश रहता है, पर दक्षिण भारत में उतना लोकप्रिय न होने की वज़ह से इस दिन सरकारी संस्थानों में अवकाश नहीं रहता।
विशिष्ट उत्सव
मुख्य लेख : देश विदेश की होली

भारत में होली का उत्सव अलग-अलग प्रदेशों में भिन्नता के साथ मनाया जाता है। ब्रज की होली आज भी सारे देश के आकर्षण का बिंदु होती है। बरसाने की लठमार होली[17] काफ़ी प्रसिद्ध है। इसमें पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं और महिलाएँ उन्हें लाठियों तथा कपड़े के बनाए गए कोड़ों से मारती हैं। इसी प्रकार मथुरा और वृंदावन में भी १५ दिनों तक होली का पर्व मनाया जाता है। कुमाऊँ की गीत बैठकी[18] में शास्त्रीय संगीत की गोष्ठियाँ होती हैं। यह सब होली के कई दिनों पहले शुरू हो जाता है। हरियाणा की धुलंडी में भाभी द्वारा देवर को सताए जाने की प्रथा है। बंगाल की दोल जात्रा[19] चैतन्य महाप्रभु के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। जलूस निकलते हैं और गाना बजाना भी साथ रहता है। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र की रंग पंचमी[20] में सूखा गुलाल खेलने, गोवा के शिमगो[21] में जलूस निकालने के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन तथा पंजाब के होला मोहल्ला[22] में सिक्खों द्वारा शक्ति प्रदर्शन की परंपरा है। तमिलनाडु की कमन पोडिगई[23] मुख्य रूप से कामदेव की कथा पर आधारित वसंतोतसव है जबकि मणिपुर के याओसांग[24] में योंगसांग उस नन्हीं झोंपड़ी का नाम है जो पूर्णिमा के दिन प्रत्येक नगर-ग्राम में नदी अथवा सरोवर के तट पर बनाई जाती है। दक्षिण गुजरात के आदिवासियों के लिए होली सबसे बड़ा पर्व है, छत्तीसगढ़ की होरी में लोक गीतों की अद्भुत परंपरा है और मध्यप्रदेश के मालवा अंचल के आदिवासी इलाकों में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है भगोरिया[25], जो होली का ही एक रूप है। बिहार का फगुआ[26] जम कर मौज मस्ती करने का पर्व है और नेपाल की होली[27] में इस पर धार्मिक व सांस्कृतिक रंग दिखाई देता है। इसी प्रकार विभिन्न देशों में बसे प्रवासियों तथा धार्मिक संस्थाओं जैसे इस्कॉन या वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में अलग अलग प्रकार से होली के शृंगार व उत्सव मनाने की परंपरा है जिसमें अनेक समानताएँ और भिन्नताएँ हैं।

यह है वह रिपोर्ट, जिसके छपने की वजह से 15 मिनट तक गालियां देते रहे विराट कोहली


नई दिल्ली. भारतीय टीम के उप कप्तान विराट कोहली ने बीते सोमवार को हिंदुस्तान टाइम्स के एक पत्रकार को गाली दी थी। इसके पीछे गर्लफ्रेंड अनुष्का शर्मा और खुद के बारे में छपी एक खबर को कारण बताया था। विराट कोहली कथित तौर पर पंद्रह मिनट तक गालियां देते रहे। हालांकि, जैसे ही उनको पता चला कि खबर किसी और की थी, उन्होंने एक अन्य पत्रकार के माध्यम से हिंदुस्तान टाइम्स के उस पत्रकार से माफी मांग ली थी। हालांकि, अखबार की ओर से कोहली के खिलाफ बीसीसीआई के पास शिकायत दर्ज कराई गई है। पूरे मामले को लेकर एक अन्य अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने गुरुवार को एक न्यूज रिपोर्ट छापी। इसके मुताबिक, कोहली ने जिस पत्रकार की वजह से हिंदुस्तान टाइम्स के जर्नलिस्ट को गाली दी, दरअसल वह उनका पत्रकार था। इंडियन एक्सप्रेस ने वह रिपोर्ट भी छापी है, जिसकी वजह से कोहली नाराज थे।
विराट कोहली और अनुष्का शर्मा। (फाइल फोटो)
विराट कोहली और अनुष्का शर्मा। (फाइल फोटो)
इंडियन एक्सप्रेस के नेशनल स्पोर्ट्स एडिटर संदीप द्विवेदी ने 19 जुलाई 2014 को 'In India’s jumbo touring party, the ‘G’ in WAGs too' हेडिंग के साथ एक खबर छापी थी। रिपोर्ट में बताया गया था कि इंग्लैंड टूर पर विराट कोहली गर्लफ्रेंड अनुष्का शर्मा के साथ एक ही होटल में रह रहे थे। रिपोर्ट में लिखा गया था कि विराट और अनुष्का शर्मा के साथ रहने की इजाजत बीसीसीआई ने दी है। साथ ही, बताया गया था कि बीसीसीआई ने इस शर्त पर इजाजत दी थी कि विराट और अनुष्का शादी करने वाले हैं, इसलिए दोनों एक साथ होटल में रह सकते हैं। इस रिपोर्ट के बाद ही अनुष्का शर्मा को वापस भारत लौटना पड़ा था। बता दें कि इंग्लैंड टूर पर गौतम गंभीर, मुरली विजय, चेतेश्वर पुजारा सहित अन्य खिलाड़ी अपनी वाइफ के साथ गए थे।
'बहन की गाली दी'
मर्डोक ओवल मैदान पर दोपहर का समय। मैं मर्डोक यूनिवर्सिटी के दो कर्मचारियों से भारतीय मीडिया के बारे में राय जानने की कोशिश कर रहा था। इन दोनों में से एक कर्मचारी मीडिया की व्यवस्था के लिए नियुक्त किया गया था। बातचीत के साथ-साथ मैं नेट पर पसीना बहा रही भारतीय टीम पर भी निगाह रखे हुए था। इसी दौरान विराट कोहली सहित भारतीय टीम के खिलाड़ी अभ्यास समाप्त करके लौटे। तभी मैंने विराट को कुछ कहते हुए देखा, जो ड्रेसिंग रूम के ठीक सामने खड़े थे। विराट कोहली अपनी बात को जारी रखते हुए हम लोगों की ओर इशारा कर रहे थे। मुझे लगा, मेरे पीछे खड़ी भीड़ से उन्हें कोई प्रॉब्लम है, इसलिए मैंने उन पर ध्यान नहीं दिया और यूनिवर्सिटी के कर्मचारियों से बातचीत जारी रखी। इसी दौरान यूनिवर्सिटी के एक कर्मचारी ने मुझे बताया कि शायद विराट मेरी तरफ इशारा कर रहे हैं। जब मैं विराट की ओर मुड़ा तो मुझे अहसास हुआ कि विराट कोहली मुझसे ही कुछ कह रहे थे। विराट से कुछ ही दूरी पर होने के कारण मुझे उनकी आवाज सुनाई दी। उन्होंने मुझे बहन की गाली दी और कुछ अन्य अपशब्द भी कहे।
'पंद्रह मिनट तक बकते रहे अपशब्द'
इसके बाद जब विराट ने अपनी बीच की उंगली से भद्दा इशारा किया तो मेरा संदेह दूर हो गया। मैं विराट के गुस्से का निशाना था। मुझे इस घटना पर विश्वास नहीं हो रहा था। विराट के इस रवैये के कारण मैं बुरी तरह शर्मसार हो गया। विराट इतने पर भी चुप नहीं हुए। हद तो तब हो गई जब उन्होंने मुझे दूसरी ओर देखते देख दोबारा गाली दी और कहा, 'हां, तुम्हीं हो।' यह पूरी तरह से चौंकाने वाली घटना थी। मैं इस घटना के पीछे के कारण का अंदाजा लगा पाने में पूरी तरह असफल रहा। मैं समझ नहीं पा रहा था कि वह बिना किसी कारण मेरे साथ ऐसा बर्ताव क्यों कर रहे हैं? विराट किट हाथ में लिए ड्रेसिंग रूम के अंदर जाते समय मुझे मां की गाली दे रहे थे। इस घटना से मेरे अलावा विराट के साथी खिलाड़ी और अन्य जर्नलिस्ट भी हैरान थे। मेरे साथ के जर्नलिस्ट ने मुझसे जानना चाहा कि ऐसा क्या हो गया, क्यों विराट गाली दे रहे हैं। यह पूरा घटनाक्रम 15 मिनट तक चला। 10 मिनट बाद विराट कोहली ड्रेसिंग रूम के बाहर निकले और मेरी ओर हाथ हिलाकर कहा, "मैं कन्फ्यूज था।" मैंने उनके इस बर्ताव पर भी कुछ नहीं कहा।
सीधे तौर पर नहीं मांगी माफी
इसके बाद विराट कोहली ने सुमित घोष (एक बांग्ला डेली के रिपोर्टर) को बुलाया और कुछ कहा। सुमित मेरे घनिष्ठ मित्रों में से हैं। सुमित मेरे पास आए और कहा, "विराट अपने व्यवहार के लिए शर्मिंदा हैं। उन्होंने आपको किसी दूसरे अंग्रेजी अखबार का रिपोर्टर समझ लिया था। यह गलती से हुआ।" इस पर मैंने सुमित से कहा, "विराट के व्यवहार से ऐसा नहीं लगता, वह इंटरनेशनल खिलाड़ी हैं। वह तो मुझे सीधे तौर पर जानते भी नहीं हैं।" मैंने सुमित से कहा, ''जाओ, उनसे कहो, वह इंटरनेशनल खिलाड़ी हैं। उन्हें पता होना चाहिए कि कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए। वह कैसे किसी को नीचा दिखा सकते हैं या गाली दे सकते हैं?'' मैं एक बार फिर दोहराना चाहूंगा, "विराट ने मुझसे डायरेक्टली माफी नहीं मांगी।"

क़ुरआन का सन्देश

 
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