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06 मार्च 2015

योगेंद्र यादव का नाम था सलीम, दंगों में हुई थी दादा की मौत


नई दिल्ली. आम आदमी की पार्टी के संस्थापक सदस्य योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी की पीएसी (राजनीतिक मामलों की समिति) से बाहर कर दिया गया है। यह प्रस्ताव पार्टी की बैठक में बहुमत से पारित किया गया। पार्टी प्रवक्ता कुमार विश्वास ने कहा की दोनों को नई जिम्मेदारी दी जाएगी।
योगेंद्र यादव का नाम था सलीम, दंगों में हुई थी दादा की मौत
2014 लोकसभा चुनाव में योगेंद्र यादव ने पार्टी के लिए बढ़-चढ़ कर प्रचार किया था। देश के जाने-माने सेफोलॉजिस्ट और आम आदमी की पार्टी के थिंक टैंक रहे योगेंद्र यादव का बचपन में नाम सलीम था। हिंदू होते हुए भी उनके पिता देवेन्द्र सिंह की एक अलग सोच थी सामाजिक एकता के वह हिमायती थे। उन्हें ये नाम उनके पिता ने धर्मनिरपेक्ष प्रतिक्रिया स्वरूप दिया था।1936 के सांप्रदायिक दंगों में उनके दादा राम सिंह की हत्या हो गई थी।
योगेंद्र यादव के पिता अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और दादा भी एक स्कूल में टीचर थे। योगेंद्र की पत्नी मधूलिका बैनर्जी दिल्ली यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। पांच साल की उम्र में जब कुछ हिंदू लड़कों ने उन्हें परेशान करना शुरू किया तो उनका नाम सलीम से बदलकर योगेंद्र कर दिया गया।
आम आदमी पार्टी से जुड़ने से पहले यादव पंजाब विश्वविद्यालय में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर रह चुके हैं। एक चुनाव विश्लेषक के तौर पर वे दूरदर्शन सहित कई चैनलों पर चर्चा किया करते थे। साथ ही वे सीएसडीएस लोकनीति रिसर्च प्रोग्राम के संस्थापक भी हैं। योगेंद्र 2009 आम चुनाव में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी को सलाह दिया करते थे। यादव 2010 में राइट टू एजूकेशन लागू करने के राष्ट्रीय सलाहकार परिषद में भी रहे। इसके बाद वे अन्ना के आंदोलन से जुड़े।

अजीब परंपरा: शवों को कब्र से निकालकर गांव में टहलाते हैं परिवार के लोग


सुलावेसी। इंडोनेशिया के दक्षिण सुलावेसी प्रांत के तोराजा गांव की अजीबोगरीब परंपरा है। तोराजा के नाम से ही पहचाने जाने वाले इस गांव में लोग परिजनों की मौत के बाद भी उनसे जिंदा इंसान की तरह पेश आते हैं। वो समय-समय पर कब्र से शवों को बाहर भी निकालते हैं। इसके बाद उन्हें नहलाकर साफ-सुथरा करते हैं और नए कपड़े पहनाते हैं। इस दौरान गांव में इनका जुलूस भी निकाला जाता है। इतना ही नहीं, मृत बच्चों के शव भी ताबूत से बाहर निकाले जाते हैं।
फोटो: माईनेने परंपरा निभाते तोराजा गांव के लोग।
फोटो: माईनेने परंपरा निभाते तोराजा गांव के लोग।
इनके यहां शवों जमीन में दफनाने की परंपरा नहीं है। ये शवों को ताबूत में रखकर गुफाओं में रखते हैं या फिर पहाड़ियों पर टांग देते हैं। छोटे बच्चों के शव ताबूत में बंद कर पेड़ों पर टांगने की परंपरा है। जब शव निकाले जाते हैं, तब टूटे हुए ताबूत की मरम्मत भी कराई जाती है। कई बार ताबूत बदल भी दिया जाता है। इसके बाद गांव के लोग अपने परिजनों के शव को तय रास्ते से पूरे गांव में टहलाते हैं। गांव की इस परंपरा को 'माईनेने' कहा जाता है। ये परंपरा हर साल निभाई जाती है। इसे शवों की सफाई का कार्यक्रम माना जाता है।
तोराजा गांव के लोगों की पुरानी मान्यता के मुताबिक, मृत व्यक्ति की आत्मा उसके पैतृक गांव में जरूर लौटती है। इसलिए अगर किसी व्यक्ति की मौत सफर के दौरान हुई है, तो उसके परिजन उसकी मौत के स्थान पर जाते हैं और शव को अपने साथ घर लाते हैं। पहले यहां के लोग इसी डर से दूर की यात्राएं नहीं करते थे, क्योंकि अगर किसी वजह से बाहर उनकी मौत हो गई, तो उनकी आत्मा के लिए अपने गांव लौटना मुश्किल हो जाएगा।

क़ुरआन का सन्देश

 
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