आपका-अख्तर खान

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22 मार्च 2015

जी हाँ दोस्तों में बात कर रहा हूँ ,,,ज़मीनी हक़ीक़त से जुड़कर ,,,,भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में ,,,,हर दिल अज़ीज़ ,,भाई एम आई पटेल साहब की

हौसलों की उड़ान हो अगर ,,,तो तपती  धुप में भी ,,,आसमानो पर होगे ,,,पंख कितने ही बढ़े हो ,,उनसे आसमानो पर उड़ा नहीं जाता ,,,,जी हाँ दोस्तों में बात कर रहा हूँ ,,,ज़मीनी हक़ीक़त से जुड़कर ,,,,भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में ,,,,हर दिल अज़ीज़ ,,भाई एम आई पटेल साहब की ,,,जो हर वक़्त हर लम्हा ,,अपने कार्यकर्ताओं के साथ ,,,,उनके दुःख सुख में शामिल नज़र आते है ,,,,,,भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के राष्ट्रीय सचिव होने की ,,,हैसियत से एम आई पटेल की  ज़िम्मेदारी पूरा देश पूरा हिंदुस्तान है ,,,खुद का मुंबई में रियल स्टेट  फाइनेंस सहित दूसरे बढे कारोबारों के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी के साथ साथ एम आई पटेल कांग्रेस की ज़िम्मेदारियाँ पूरी ईमानदारी के साथ वक़्त ब वक़्त निभाते है ,,,,,,,,,,पुरे हिन्दुस्तान में कांग्रेस के पक्ष में ,,,माहोल बनाने के प्रयासों में जुटे ,,,,एम आई पटेल अल्सपंख्य्क राष्ट्रीय महा सचिव के नाते भी ,,,,बिखरे लोगों को एक साथ जोड़कर ,,,, कांग्रेस के प्रति उनकी गलत फ़हमिया दूर कर ,,,दिल से कहो कांग्रेस  फिर से ,, के ,बुलंद नारे और बुलंद इरादों के साथ ,,,कांग्रेस से जोड़ने में कामयाब हो रहे है ,,,एम आई पटेल के लिए कहते है ,,,,के कोई भी नाराज़ कार्यकर्ता अगर इनसे नाराज़गी का संकल्प ले ले ,, गुस्साए हालातों में अपनी शिकायते लेकर,,, एम आई पटेल के पास पहुंचे,, तो ऐसा गुस्साए कार्यकर्ता भी एम आई पटेल के मुखर आचरण ,,भाईचारा व्यवहार ,,हंसमुख स्वभाव और मददगार शख्सियत के आगे नतमस्तक होकर सॉरी सॉरी कहते हुए मुस्कुराता हुआ साथ बाहर आता है ,,,दुश्मनो को अपना बनाना ,,गुस्साए लोगों को गले लगाना ,,बिछड़ों को मिलाना  ,,,रोतों  हुओ को हंसाना ,,परेशान लोगों की मदद कर बिना किसी प्रतीफल के उन्हें बसाने का हुनर ,,,,उन्हें हंसाने का जादू ,,,,एम आई पटेल की  शख्सियत में होने से ,,,मुंबई हो या फिर दिल्ली,,,, सभी जगह इनकी जय जय कार है ,,,,,भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एम आई पटेल को  अल्पसंख्यक विभाग के महासचिव की ज़िम्मेदारी दी है ,,,,जिसे सोशल मिडिया के ज़रिये वोह  पुरे भारत में,, घूम घूम कर सहजता ,,सरलता से कांग्रेस की नीतियों का परचम लेकर बखूबी निभा रहे है ,,,,,,,,,,एम आई पटेल मुंबई की राजनीति में ,,,अपने व्यवसायिक ज़िम्मेदारियों के साथ साथ ,,,,पूरी तरह से सक्रिय है ,,समाज सेवा इनका धर्म है ,,,तो पार्टी को मज़बूत करना इनका कर्म है ,,,,,,,एम आई  पटेल का जन्म दिन एक जून को जब आता है ,,,तो इस दिन ,,,यह खुद और इनके प्रशंसक कुछ नया ,,कुछ बेहतर कर इस दिन को सभी के साथ ,,,खुशियां बाँट कर मनाते है ,,,,,,,,,,भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के अल्पसंख्यक विभाग के महासचिव ,,,एम आई पटेल ज़ीरो से हीरो बने है ,,,वोह उन्न्निस सो बियासी से राजनीति में मुखर होकर सक्रिय हुए,,, मुंबई कांग्रेस माइनॉरिटी सेल के सचिव की हैसियत से विकट परिस्थितियों में कट्टरपंथियों से लोहा लेकर पटेल ने पार्टी और विभाग को स्थापित किया,,, एक  नयी पहचान दिलवाई ,,,,फिर आप युवक कांग्रेस में सचिव रहे ,,,स्लम सेल मुंबई कांग्रेस में महासचिव ,,रहने  के बाद ,,,प्रदेश कांग्रेस डेलीगेट पद पर दो बार  निर्वाचित हुए ,,एम आई पटेल महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी माइनॉरिटी सेल के महासचिव रहे ,,और विभिन्न पदों पर ज़िंदाबाद रहकर ,,सक्रिय रहकर अब देश की कांग्रेस के साथ माइनॉरिटी के लोगों को जोड़ने के सफलतम कारोबार में जुटे है ,,,,,,,,
आप मुख्य कार्यकारी मजिस्ट्रेट मुंबई के पद पर नियुक्त हुए,,संजय गांधी योजना क्रियान्वयन समिति ,,बेस्ट पैसेंजर एडवायज़री समिति ,,राशनिंग विजिलेंस कमेटी ,,शिक्षा समिति मुंबई महानर पालिका ,,,, रहे फिर आप वार्ड एक सो आठ से भारी वोटो से कॉर्पोरेटर निर्वाचित हुए ,,आप कंस्ट्रक्शन प्रोटेक्शन कमेटी के चेयरमेन रहे फिर मुंबई स्लम कमेटी के चेयरमेन सरकार द्वारा नियुक्त किये गए ,,,स्वास्थ्य समिति में निर्वाचित होने के बाद आप महाराष्ट्र हज कमेटी के सदस्य नियुक्त हुए ,,,आप मुंबई पालिका स्टेंडिंग कमेटी सदस्य ,,रहे एम आई पटेल को दोबारा वर्ष उन्नीस सो बानवे में वार्ड एक सो छियालीस से कॉर्पोरेटर निर्वाचित किया गया ,,,अनेक समितियों में सदस्य रहने के साथ साथ आप मुंबई स्कूल कमेटी के चेयरमेन निर्वाचित हुए जबकि  आप मुंबई शिक्षा समिति के चेयरमेन रहने के साथ साथ फिर से दुबारा हज कमेटी के सदस्य नियुक्त हुए ,,आप प्रतीपक्ष के उप नेता रहे जबकि उपभोक्ता परिषद के सदस्य सरकार द्वारा नियुक्त किये गए ,,,आपकी प्रशासनिक क्षमता को देख कर सरकार ने इन्हे विशेष कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किए इसके बाद पटेल को राशनिंग विजिलेंस कमेटी का सदस्य नियुक्त किया गया ,,पटेल के पास बहुत पद ,,बहुत ज़िम्मेदारियाँ रही लेकिन हर  ज़िम्मेदारी कोई इन्होने ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से निभाई ,,यही वजह है के महत्वपूर्ण पदों पर रहने के बाद भी इनकी छवि बेदाग़ ,,ईमानदारी नेतृत्व की रही ,,,,इनके कार्यकाल में दलित ,,शोषित ,,उत्पीड़ित ,,,अल्पसंख्यक ,,सहित हर वर्ग हर तबके के लोग इनसे जुड़कर इनके कामकाज से प्रभावित होकर इन्हे ज़िंदाबाद कहते रहे ,,,,,,,,,,एम आई पटेल आज भी कांग्रेस की रीती नीतियों के साथ इस्लाम के खिदमते ख़ल्क़ और ईमानदारी के सिद्धांतो पर चलते हुए,,, लोगों की खिदमत में जुटे है ,,,,,कांग्रेस को ,,देश को ,,समाज को एम आई पटेल से बहुत उम्मीदे है जिन की कसौटियों पर आप खरे उतरे है अब कांग्रेस इन्हे फिर बढ़ी ज़िम्मेदारी देने जा रही है ,,खुदा एम आई पटेल को मुबारक करे,,, कामयाब करे क्योंकि गरीब झोंपड़ पट्टी बस्तियों से लेकर पांच सितारा संस्कृति में रह रहे लोगों को इंसाफ दिलाने उनके लिए संघर्ष करने वाली शख्सियत का नाम एम आई पटेल है जिसे उनके हमदर्दों ने जनता का भी पटेल बना दिया है ,,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

पूजन गौरी का करूं

गणगौर "राजस्थान का एक अनुपम प्रीत,पिया और प्रणय त्यौहार" कुछ दोहे**
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पूजन गौरी का करूं, साजन हिया बसाय ।
गण मिलाय गण सौंपदे,जनम सफल हो जाय।।
साजन थारी ओढनी, मान प्रीत रो रूप ।
धरती बण'र सहेजलूँ ,सेळी सेळी घूप ।।
जोबण गमकै साहिबा,मोर गया रे आम ।
चोखा हांसी कणकती,करदे तू चितराम।।
हार इतरतो सांस पे,अधर धूजता आज ।
कटि रमता सोर्'या करे,नाभितल कोहराम।।
सेज तळै गाबा गिरे,लग लग धूजे देह ।
कळश बिजोरा है तणै,बरसा बादळ मेह।।
-गोविन्द हाँकला

23 मार्च शहीद दिवस के मौके पर विशेष- शहीदों की फांसी का यादगार अविस्मरणीय क्षण- कुलदीप नैयर


   23 मार्च का दिन उन आम दिनों की तरह ही शुरू हुआ, जब सुबह के वक्त राजनैतिक बंदियों को उनकी कोठरियों से बाहर निकाला जाता था। आम तौर पर वे सारा दिन बाहर रहते थे और सूरज छुपने के बाद ही वापिस अंदर जाते थे। लेकिन आज, जब वार्डन चरत सिंह शाम को करीब चार बजे सामने आए और उन्हें अंदर जाने के लिए कहा तो वे सभी हैरान हो गए।
      वापिस अपनी कोठरियों में बंद होने के लिए यह बहुत जल्दी था। कभी-कभी तो वार्डन की झिड़कियों के बावजूद भी सूरज छुपने के काफी समय बाद तक वे बाहर रहते थे। लेकिन इस बार वह न सिर्फ कठोर बल्कि दृढ़ भी था। उसने यह नहीं बताया कि क्यों। उसने सिर्फ यही कहा कि ''ऊपर से आर्डर हैं।''
      बंदियों को चरत सिंह की आदत पड़ चुकी थी। वह उन्हें अकेला छोड़ देता था और कभी भी यह नहीं जांचता था कि वे क्या पढ़ते थे। हालांकि चोरी छुपे अंग्रेजों के खिलाफ कुछ किताबें जेल में लाई जाती थीं, उन्हें उसने (चरत सिंह) कभी जब्त नहीं किया था। वह जानता था कि बंदी बच्चे थे। वे सियासत से गहरा ताल्लुक रखते थे किताबें उन्हें जेल में गड़बड़ी फैलाने के लिए उकसांएगी नहीं।
      उसकी माता-पिता जैसी देखभाल उन्हें दिल तक छू गई थी। वे सभी उसकी इज्जत करते थे और उसे 'चरत सिंह' कह कर पुकारते थे उन्होंने अपने से कहा कि अगर वह उनसे अंदर जाने को कह रहा था, तो कोई न कोई वजह जरूर होगी। एक-एक करके वे सभी आम दिनों से चार घंटे पहले ही अपनी-अपनी कोठरियों में चले गए।
      जिस तरह से वे अपनी सलाखों के पीछे से झांक रहे थे, वे अब भी हैरान थे। तभी उन्होंने देखा कि बरकत नाई एक के बाद एक कोठरियों में जा रहा था। उसने फुसफुसाया कि आज भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी चढ़ा दिया जाएगा। उन्होंने (बंदियों), उससे कहा कि क्या वह भगत सिंह का कंघा, पेन, घड़ी या कुछ भी उनके लिए ला सकता था ताकि वे उसे यादगार के तौर पर अपने पास रख सकें।
   हमेशा मुस्कुराने वाला, बरकत आज उदास था। वह भगत सिंह की कोठरी में गया और एक कंघा व पैन लेकर वापिस आया। सभी उस पर कब्जा करना चाहते थे। सब में से दो ही किस्मत वाले थे, जिन्हें भगत सिंह की वह चीजें मिलीं। वे सभी खामोश हो गए, कोई बात करने के बारे में सोच तक नहीं रहा था। सभी अपनी कोठरियों के बाहर से जाते रास्ते पर देख रहे थे, जैसे कि वे यह उम्मीद कर रहे थे कि भगत सिंह उस रास्ते से गुजरेंगे। वे याद कर रहे थे कि एक दिन जब वे (भगत सिंह) जेल में आए तो एक राजनैतिक बंदी ने उनसे पूछा कि क्रांतिकारी अपना बचाव क्यों नहीं करते। भगत सिंह ने जवाब दिया, उन्हें 'शहीद' हो जाना चाहिए, क्योंकि वे एक ऐसे काम की नुमाइंदगी कर रहे थे जो सिर्फ उनके बलिदान के बाद ही मजबूत होगा, अदालत में बचाव के बाद नहीं। आज शाम वे सभी क्रांतिकारियों की एक झलक पाने के लिए बेकरार थे। लेकिन  वे शाम की खामोशी में, अपने कानों में एक आवाज सुनने का इंतजार करते रह गए।
   फांसी से दो घंटे पहले, भगत सिंह के वकील मेहता को उनसे मिलने की इजाजत दे दी गई। उनकी दरखास्त थी कि वे अपने मुवक्किल की आखिरी इच्छा जानना चाहते हैं और इसे मान लिया गया। भगत सिंह अपनी कोठरी में ऐसे आगे-पीछे घूम रहे थे जैसे कि पिंजरे में एक शेर घूम रहा हो। उन्होंने मेहता का एक मुस्कुराहट के साथ स्वागत किया और उनसे पूछा कि क्या वे उनके लिए 'दि रैवोल्यूशनरी लेनिन' नाम की किताब लाए हैं। भगत सिंह ने मेहता को इसकी खबर भेजी थी क्योंकि अखबार में छपे इस किताब के पुनरावलोकन ने उन पर गहरा असर डाला था।
   जब मेहता ने उन्हें किताब दी, वे बहुत खुश हुए और तुरंत पढ़ना शुरू कर दिया जैसे कि उन्हें मालूम था कि उनके पास ज्यादा वक्त नहीं था। मेहता ने उनसे पूछा कि क्या वे देश को कोई संदेश देना चाहेंगे। अपनी निगाहें किताब से बिना हटाए, भगत सिंह ने कहा, ''मेरे दो नारे उन तक पहुंचाएं-'साम्राज्यवाद खत्म हो' (डाऊन विद इम्पीरिलिज्म) और 'इंकलाब जिंदाबाद' (लॉग लिव रैवोल्यूशन)।''
   मेहता    : ''आज तुम कैसे हो?''
   भगत सिंह : ''हमेशा की तरह खुश हूं।''
   मेहता    : ''क्या तुम्हें किसी चीज की इच्छा है?''
   भगत सिंह : ''हां, मैं दुबारा से इस देश में पैदा होना चाहता हूं ताकि इसकी                       सेवा कर सकूं।''   
   भगत सिंह ने उसे कहा कि पंडित नेहरू और बाबू सुभाषचंद्र बोस ने जो रुचि उनके मुकदमे में दिखाई उसके लिए दोनों का धन्यवाद करें। मेहता राजगुरु से मिले, उन्होंने कहा, ''हमें जल्दी ही मिलना चाहिए।'' सुखदेव ने मेहता को याद दिलाया कि वे जेलर से वह कैरमबोर्ड वापिस ले लें, जो कि कुछ महीने पहले मेहता ने उन्हें दिया था।
   मेहता के जाने के तुरंत बाद अधिकारियों ने उन्हें बताया कि उन तीनों की फांसी का वक्त ग्यारह घंटे घटाकर कल सुबह छह बजे की जगह आज शाम सात बजे कर दिया गया है। भगत सिंह ने मुश्किल से किताब के कुछ ही पन्ने पढे थे।
   ''क्या आप मुझे एक अध्याय पढ़ने का वक्त भी नहीं देंगे?'' भगत सिंह ने पूछा। बदले में उन्होंने (अधिकारी), उनसे फांसी के तख्ते की तरफ जाने को कहा।
      तीनों के हाथ बंधे हुए थे, वे संतरियों के पीछे लंबे-लंबे डग भरते हुए सूली की
तरफ बढ़ रहे थे। उन्होंने जाना-पहचाना क्रांतिकारी गीत गाना शुरू कर दिया:               
            कभी वो दिन भी आएगा कि जब आजाद हम होंगे;                 
            ये अपनी ही जमीं होगी ये अपना आसमां होगा।
            शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले;
            वतन पर मिटने वालों का यही नाम-ओ-निशां होगा॥
      एक-एक करके तीनों का वज़न किया गया। उन सबका वजन बढ़ गया था। फिर तीनों नहाए और उन्होंने कपड़े पहने, मगर मुंह नहीं ढके।
      चतर सिंह ने भगत सिंह के कान में फुसफुसाया वाहे गुरु से प्रार्थना कर लें। वे हंसे और कहा, ''मैंने अपनी पूरी जिंदगी में भगवान को कभी याद नहीं किया, बल्कि भगवान को दुखों और गरीबों की वजह से कोसा जरूर है। अगर अब मैं उनसे माफी मांगूगा तो वे कहेंगे कि '' यह डरपोक है जो माफी चाहता है क्योंकि इसका अंत करीब आ गया है।''
      भगत सिंह ने ऊंची आवाज़ में एक भाषण दिया, जिसे कैदी अपनी कोठरियों से भी सुना सकते थे। ''असली क्रांतिकारी फौजें गांवों और कारखानों में हैं, किसान और मजदूर। लेकिन हमारे नेता उन्हें नहीं संभालते और न ही संभालने की हिम्मत कर सकते हैं। एक बार जब सोया हुआ शेर जाग जाता है, तो जो कुछ हमारे नेता चाहते हैं वह उसे पाने के बाद भी नहीं रुकता हैं''
      ''अब मुझे यह बात आसान तरीके से कहने दें। आप चिल्लाते हैं 'इंकलाब जिंदाबाद', मैं यह मानता हूं कि आप इसे दिल से चाहते हैं। हमारी परिभाषा के अनुसार, जैसे कि असेंबली बम कांड के दौरान, हमारे वक्तव्य में कहा गया था, क्रांति का मतलब है वर्तमान सामाजिक व्यवस्था को पूरी तरह से उखाड़ फेंकना और इसकी जगह समाजवाद को लाना... इसी काम के लिए हम सरकारी व्यवस्था से निबटने के लिए लड़ रहे हैं। साथ ही हमें लोगों को यह भी सिखाना है कि सामाजिक कार्यक्रमों के लिए सही माहौल बनाए। संघर्ष से हम उन्हें सबसे बेहतर तरीके से शिक्षित और तैयार कर सकते हैं।
      ''पहले अपने निजीपन को खत्म करें। निजी सुख-चैन के सपनों को छोड़ दें। फिर काम करना शुरू करें। एक-एक इंच करके तुम्हें आगे बढ़ना चाहिए। इसके लिए हिम्मत, लगन और बहुत दृढ़ संकल्प की जरूरत है। कोई भी हार या किसी भी तरह का धोखा आपको हताश नहीं कर सकता। आपको किसी भी दिक्कत या मुश्किल से हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। तकलीफों और बलिदान से आप जीत कर सामने आएंगे और इस तरह की जीतें, क्रांति की बेशकीमती दौलत होती हैं।''
      सूली बहुत पुरानी थी, मगर हट्टे-कट्टे जल्लाद नहीं। जिन तीनों आदमियों को फांसी की सज़ा सुनाई गई थी, वे अलग-अलग लकड़ी के तख्तों पर खडे थे, जिनके नीचे गहरे गङ्ढे थे। भगत सिंह बीच में थे। हर एक के गले पर रस्सी का फंदा कस कर बांध दिया गया। उन्होंने रस्सी को चूमा। उनके हाथ और पैर बंधे हुए थे। जल्लाद ने रस्सी खींच दी और उनके पैरों के नीचे से लकड़ी के तख्ते हटा दिए। यह एक जालिम तरीका था।
      उनके दुर्बल शरीर काफ़ी देर तक सूली पर लटकते रहे फिर उन्हें नीचे उतारा गया और डाक्टर ने उनकी जांच की। उसने तीनों को मरा हुआ घोषित कर दिया। जेल के एक अफसर पर उनकी हिम्मत का इतना असर हुआ कि उसने उन्हें पहचानने से इंकार कर दिया। उसे उसी वक्त नौकरी से निलम्बित कर दिया गया था। उसकी जगह यह काम एक जूनियर अफसर ने किया। दो अंग्रेज अफसरों ने, जिनमें से एक जेल का सुपरिटेंडेंट था फांसी का निरीक्षण किया और उनकी मृत्यु को प्रमाणित किया।
      अपनी कोठरियों में बंद कैदी शाम के धुंधलके में अपनी कोठरियों के सामने गलियारे में किसी आवाज का इंतजार कर रहे थे, पिछले दो घंटों में वहां से कोई नहीं गुजरा था। यहां तक कि तालों को दुबारा जांचने के लिए वार्डन भी नहीं।
      जेल के घड़ियाल ने छह का घंटा बजाया जब उन्होंने थोड़ी दूरी पर, भारी जूतों की आवाज़ और जाने-पहचाने गीत, ''सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है'' की आवाज सुनी। उन्होंने एक और गीत गाना शुरू कर दिया, ''माई रंग दे मेरा बसंती चोला।'' और इसके बाद वहां 'इन्कलाब जिंदाबाद' और 'हिंदुस्तान आजाद हो' के नारे लगने लगे। सभी कैदी भी जोर-जोर से नारे लगाने लगे। उनकी आवाज इतनी जोर से थी कि वे भगत सिंह के भाषण का कुछ हिस्सा सुन नहीं पाए।
      अब, सब कुछ शांत हो चुका था। फांसी के बहुत देर बाद, चरत सिंह आया और फूट-फूट कर रोने लगा। उसने अपनी तीस साल की नौकरी में बहुत सी फांसियां देखी थीं लेकिन किसी को भी हंसते-मुस्कराते सूली पर चढ़ते नहीं देखा था, जैसा कि उन तीनों ने किया था। देश के तीन फूलों को तोड़कर कुचल दिया गया था। मगर कैदियों को इस बात का कुछ अंदाजा हो गया कि उनकी बहादुरी-गाथा ने अंग्रेजी हुकूमत का          समाधि- लेख लिख दिया था।

तीन नौजवान अब फर्श पर पड़े तीन जिस्म थे, जो अपने आखिरी कर्म का इंतजार कर रहे थे। लगातार निगाह गड़ाए, सैंकड़ों लोग जेल की मोटी-मोटी दीवारों के बाहर इंतजार कर रहे थे। अधिकारियों के सामने अब मुसीबत थी इन मृत शरीरों से निजात पाने की। जब अधिकारियों ने यह बात समझ ली कि अगर बाहर जमा लोगों ने धुंआ या आग की चमक देख ली तो वे हमला कर देंगे, तो उन्होंने जेल के अंदर अंतिम संस्कार करने का विचार छोड़ दिया।
      अधिकारियों ने जेल की पिछली दीवार का एक हिस्सा तोड़ दिया। जब एक हम अंधेरा हो गया तो वहां एक ट्रक लाया गया और उनके शवों को उसमें बोरों की तरह फेंक दिया गया। पहले, संस्कार की जगह रावी नदी का किनारा रखा गया था। लेकिन नदी का पानी काफ़ी उथला था। तब सतलुज पर जाने का फैसला लिया गया। जब ट्रक फिरोजपुर सतलुज के पास जा रहा था, तो सफेद पोश सिपाही उसके आगे-पीछे थे। मगर यह योजना भी बेकार हो गई।
      शवों का संस्कार ठीक तरह से नहीं हुआ था। गांधासिंहवाला गांव के लोग चिताओं को जलते देख सकते थे। बहुत से लोग दौड़ते हुए वहां पहुंच गए। शव जैसे थे, वैसे ही छोड़कर सिपाही अपनी गाड़ियों की तरफ भागे और वापिस लाहौर भाग गए। गांववालों ने बड़ी इज्जत के साथ उनके अवशेषों को इकट्ठा कर लिया।
      फांसी की खबर लाहौर और पंजाब के दूसरे शहरों में जंगल की आग की तरह फैल गई नौजवानों ने सारी रात 'इंकलाब जिंदाबाद' और 'भगत सिंह जिंदाबाद' के नारे लगाते हुए जुलूस निकाले। फलों की दुकानें और सब्जी मंडी बंद रही। गवर्नमेंट कॉलेज को छोड़कर सभी स्कूल और कॉलेज बंद रहे। सरकारी बिल्डिंगों और सिविल लाईंस जहां अफसर रहते थे, इनकी रखवाली के लिए पुलिस टुकड़ियां तैनात कर दी गई थीं।
      लगभग दोपहर तक, जिला मजिस्ट्रेट का जारी किया गया नोटिस लाहौर की दीवारों पर चिपका दिया गया था कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का अंतिम संस्कार हिंदू और सिक्ख धर्मों के मुताबिक सतलुज नदी के किनारे कर दिया गया था। हांलाकि इस बात को कई सभाओं में चुनौती दी गई और कहा गया कि शवों का संस्कार ठीक से नहीं किया गया था। मजिस्ट्रेट ने इकरारनामा जारी किया मगर किसी ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया।
      इस वक्त तक तीनों के अवशेष लाहौर पहुंच चुके थे। नीलागुम्बद से उनकी शोक यात्रा शुरू हुई, यह जगह, वहां से ज्यादा दूर नहीं थी जहां सांडर्स को गोली मारी गई थी। तीन मील से भी लंबे जुलूस में हजारों हिंदू, मुसलमानों और सिक्खों ने हिस्सा लिया। बहुत से लोगों ने काली पट्टियां बांधी हुई थीं और औरतों ने काली साड़ियां पहनी हुई थीं।
      इस जुलूस के लोग 'इंकलाब जिंदाबाद' और 'भगत सिंह जिंदाबाद' जैसे नारे लगा रहे थे। सारी जगह काले झण्डों से पटी पड़ी थी। 'दि मॉल' से गुजरते हुए जुलूस अनारकली बाजार के बीच में रुक गया। इस एलान के बाद कि भगत सिंह की बहिन फिरोजपुर से तीनों के अवशेष लेकर लाहौर आ चुकी हैं, सारी भीड़ चुप हो गई थी।
      तीन घंटों बाद फूलों से सजे तीन ताबूत, जिनके आगे भगत सिंह के माता-पिता थे, जुलूस में शामिल हुए। तेज चीखों से आसमान गूंज उठा। लोग फूट-फूट कर रो रहे थे।
      अचरज, जुलूस रावी नदी के किनारे ही पहुंचा, जहां चौबीस घंटे पहले अधिकारी उनका अंतिम संस्कार करना चाहते थे। लाहौर में एक बहुत बड़ी सभा हुई जिसमें फांसी की आलोचना की गई और इसे गैरकानूनी करार दिया गया। जिस तरह से अधिकारियों ने शवों का अंतिम संस्कार किया था, उस पर भी रोष जताया गया। एक मशहूर उर्दू अखबार के संपादक मौलाना जफर अली खान ने एक कविता पढ़ी, जिसमें कहा गया था कि किस तरह जले हुए शवों को खुले आसमान के नीचे छोड़ दिया गया था।
जैसे ही फांसी की खबर फैली सारा देश शोक में डूब गया।अपना दुःख जाहिर करने के लिए लोग जुलूस निकालने लगे और अपना काम काज बंद कर दिया। पूरा देश रो रहा था, नौजवानों के गले ' भगतसिंह जिंदाबाद' के गगन-भेदी नारों से बैठ गए थे। श्रद्धांजलियां दी जा रही थीं।शोकसभाएं हो रही थीं। लेकिन-
     रवि हुआ अस्त,ज्योति के पत्र
      लिखा रहा गया,वीर भगसिंह का,
      वह अपराजेय समर।
वह समर आज भी शेष है, आगे बढ़ो नौजवानो।

23 मार्च शहीद दिवस पर विशेष : निर्णायक संघर्षों के साथी बने रहेंगे भगत सिंह

भगत सिंह निर्णायक संघर्षों के साथी हैं। वह कल भी एक बेहतर मागदर्शक थे, आज भी है। संघर्ष हमारे व्यक्तिगत जीवन में बदलाव के लिए हो या राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन के लिए, शहीदेआजम हमेशा हमारे साथ कदम ताल करने के लिए तैयार खड़े दिखते हैं। उनका इंकलाब सड़ी-गली समाज-व्यवस्था में सब कुछ बदलने की बात करता है। खुद के व्यक्तिगत जीवन में वह कभी निराश नहीं रहे।
अपनी गिरफ्तारी से लेकर 23 मार्च 1931 को फांसी पर चढ़ाये जाने तक कभी उदास नहीं दिखे। जेल में अपनी क्रांतिकारी बातों से वह साथियों को हिम्मत देते रहे। तरह-तरह की यातनाओं का सामना करते हुए उन्होंने जीने का फलसफा कुछ यूं ढूंढ निकाला कि जिंदगी अपने दम पर जी जाती है, गैर के कंधे पर तो सिर्फ जनाजे उठते हैं। उन्हें उन रास्तों से प्यार था जो उन्होंने चुने थे।
उस जमाने का अखबार 'पीपुल्स' लिखता है कि केवल क्षणिक उत्तेजना के चलते जिंदगी में इस तरह का रास्ता चुनने वाला इतनी कठिन अग्नि-परीक्षा नहीं दे सकता।... उनका अदम्य उत्साह, उच्च आदर्श, किसी के आगे सिर न झुकने वाली निर्भीकता सदियों तक न जाने कितने लोगों को रास्ता दिखाती रहेगी। आज भारतीय समाज में जिंदगी के दोराहे पर खड़े युवाओं के लिए भगत सिंह से बेहतर साथी और मागदर्शक कौन हो सकता है, जिनके विचार हमेशा ऊर्जा देते रहेंगे। थक-हारकार बैठ जाना भगत सिंह नहीं जानते थे। उनकी जिदंगी इंकलाब के लिए चेतना के बंद दरवाजों पर लगातार दस्तक देती दिखती  है, लाहौर षड्यंत्र में जेल से छूटते ही वो काकोरी दिवस मनाने की तैयारी करने लगे। उन्होंने काकोरी कांड में शामिल युवकों के चित्र इकट्ठे कर मैजिक लालटेन के जरिये स्लाईड बनाकर लाहौर के ब्रेडला हाल में जब कांति की हिमायत की तो घबराये ब्रिटिश हुक्मरानों ने निषेधाज्ञा जारी कर दी थी। साफ है, असफलता से घबराकर बैठ जाना भगत सिंह नहीं जानते थे। वह हमेशा नये रास्ते तलाशकर आगे बढ़ते रहे। उनका जीवन संदेश देता है कि राहें और भी हैं, दस्तक तो दो।
भगत सिंह व्यवस्था परिवर्तन के समर्थक थे। उनका संघर्ष सत्ता के गलियारों में चक्कर लगाकर बेदम नहीं होता, बल्कि परिवर्तन की राह थामे आम जन के जीवन में इन्कलाब का बीज बोना चाहता है। परिवर्तन के छ्द्म नारों के बोझ तले दबे, हालात से बेजार और न उम्मीद हो चुके लोगो को ये भरोसा दिलाता है, कि क्रांति का मतलब केवल खूनी लड़ाइया और व्यक्तिगत वैर निकालना नहीं है। क्रांति का मतलब उस व्यवस्था को पूरी तरह से खत्म करना है, जो अन्याय और शोषण पर टिकी रहते हुए सिर्फ अपना हित पोषण करती है। उनके षब्दों में... जब तक ये काम हम नहीं करेंगे, तब तक मानव मुक्ति और शांति की बातें केवल ढोंग साबित होंगी।

क़ुरआन का सन्देश

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