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29 मार्च 2015

अलीगढ़ में जन्‍मी गणेश जैसी बच्‍ची, देखने वालों की लगी भीड़

राजस्थान के कई राजा नहीं चाहते थे अपनी रियासत का भारत के साथ विलय

राजस्थान के कई राजा नहीं चाहते थे अपनी रियासत का भारत के साथ विलय
30 मार्च को राजस्थान अपना 65 वां स्थापना दिवस मनाने जा रहा है। राजस्थान का अपना गौरवमयी इतिहास स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है।देश की आजादी के बाद रियासतों का जब भारत में विलय किया जा रहा था उस समय राजस्थान के विलय में क्या-क्या समस्याएं आई। किस कारण से राजस्थान का भारत में विलय सात चरणों में हुआ।
जयपुर। राजस्थान 30 मार्च 1949 को भारत का एक ऐसा प्रांत बना, जिसमें तत्कालीन राजपूताना की ताकतवर रियासतें विलीन हुई। भरतपुर के जाट शासक ने भी अपनी रियासत का विलय राजस्थान में किया था। राजस्थान शब्द का अर्थ है- 'राजाओं का स्थान' क्योंकि यहां गुर्जर, राजपूत, मौर्य, जाट आदि ने पहले राज किया था। भारत के संवैधानिक इतिहास में राजस्थान का निर्माण एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी।
ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत को आजाद करने की घोषणा करने के बाद जब सत्ता हस्तांतरण का काम चल रहा था तब यह सोचा जा रहा था कि आजाद भारत का राजस्थान प्रांत बनना और राजपूताना के तत्कालीन हिस्से का भारत में विलय एक मुश्किल काम होगा। आजादी की घोषणा के साथ ही राजपूताना के देशी रियासतों के मुखियाओं में स्वतंत्र राज्य में भी अपनी सत्ता बरकरार रखने की होड़ सी लगी थी। उस समय वर्तमान राजस्थान की भौगालिक स्थिति को देखें तो राजपूताना के इस भूभाग में कुल बाईस देशी रियासतें थी। इनमें एक रियासत अजमेर मेरवाडा प्रांत को छोड़ कर शेष देशी रियासतों पर देशी राजा महाराजाओं का ही राज था। अजमेर-मेरवाडा प्रांत पर ब्रिटिश शासकों का कब्जा था। इस कारण यह तो सीघे ही स्वतंत्र भारत में आ जाती, मगर शेष इक्कीस रियासतों का विलय कर राजस्थान' नामक प्रांत बनाया जाना था।
सत्ता की होड़ के चलते यह बडा ही दूभर काम लग रहा था। इन देशी रियासतों के शासक अपनी रियासतों के स्वतंत्र भारत में विलय को दूसरी प्राथमिकता दे रहे थे। उनकी मांग थी कि वे सालों से खुद अपने राज्यों का शासन चलाते आ रहे हैं, उन्हें इसका दीर्घकालीन अनुभव है, इस कारण उनकी रियासत को 'स्वतंत्र राज्य' का दर्जा दे दिया जाए। 18 मार्च 1948 को शुरू हुई राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया कुल सात चरणों में एक नवंबर 1956 को पूरी हुई। इसमें भारत सरकार के तत्कालीन देशी रियासत और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और उनके सचिव वीपी मेनन की भूमिका महत्वपूर्ण थी।आजादी के बाद कई राजा नहीं चाहते थे राजस्थान का विलय भारत के साथ हो

राजस्थान के कई राजा नहीं चाहते थे अपनी रियासत का भारत के साथ विलय

  • bhaskar news

  • Mar 30, 2015, 00:05 AM IST
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राजस्थान की विरासत के फाइल फोटो...
पहला चरण- 18 मार्च 1948
सबसे पहले अलवर, भरतपुर, धौलपुर, व करौली रियासतों का विलय कर तत्कालीन भारत सरकार ने फरवरी 1948 मे अपने विशेषाधिकार का उपयोग कर मत्स्य यूनियन के नाम से पहला संघ बनाया। यह राजस्थान के निर्माण की दिशा में पहला कदम था। उस समय अलवर व भरतपुर के शासकों पर राष्टृविरोधी गतिविधियों में लिप्त होने का आरोप था। इस कारण सबसे पहले उनके राज करने के अधिकार छीन लिए गए व उनकी रियासत का कामकाज देखने के लिए प्रशासक नियुक्त कर दिया गया। इसी की वजह से राजस्थान के एकीकरण की दिशा में पहला संघ बन पाया। यदि प्रशासक न होते और राजकाज का काम पहले की तरह राजा ही देखते तो इनका विलय असंभव था क्योंकि इन राज्यों के राजा विलय का विरोध कर रहे थे।
18 मार्च 1948 को मत्स्य संघ असतित्व में आया और धौलपुर के तत्कालीन महाराजा उदयसिंह को इसका राजप्रमुख मनाया गया। इसकी राजधानी अलवर रखी गयी थी। मत्स्य संघ नामक इस नए राज्य का क्षेत्रफल करीब तीस हजार किलोमीटर था। जनसंख्या लगभग 19 लाख और सालाना-आय एक करोड83 लाख रूपए थी। जब मत्स्य संघ बनाया गया तभी विलय-पत्र में लिख दिया गया कि बाद में इस संघ का राजस्थान में विलय कर दिया जाएगा।
दूसरा चरण 25 मार्च 1948
राजस्थान के एकीकरण का दूसरा चरण 25 मार्च 1948 को स्वतंत्र देशी रियासतों कोटा, बूंदी, झालावाड, टौंक, डूंगरपुर, बांसवाडा, प्रतापगढ, किशनगढ और शाहपुरा को मिलाकर बने राजस्थान संघ के बाद पूरा हुआ। राजस्थान संघ में विलय हुई रियासतों में कोटा बड़ी रियासत थी, इस कारण इसके तत्कालीन महाराजा महाराव भीमसिंह को राजप्रमुख बनाया गया। बूंदी के तत्कालीन महाराजा बहादुर सिंह राजस्थान संघ के राजप्रमुख भीमसिंह के बडे भाई थे, इस कारण उन्हें यह बात अखरी कि छोटे भाई की राजप्रमुखता में वे काम कर रहे है। उनके मन में यह बात बैठ गई।
तीसरा चरण 18 अप्रैल 1948
बूंदी के महाराज बहादुर सिंह नहीं चाहते थें कि उन्हें अपने छोटे भाई भीमसिंह की राजप्रमुखता में काम करना पडे, मगर बडे राज्य की वजह से भीमसिंह को राजप्रमुख बनाना तत्कालीन भारत सरकार की मजबूरी थी। जब बात नहीं बनी तो बूंदी के महाराव बहादुर सिंह ने उदयपुर रियासत को मनाया और राजस्थान संघ में विलय के लिए राजी कर लिया। इसके पीछे मंशा यह थी कि बडी रियासत होने के कारण उदयपुर के महाराणा को राजप्रमुख बनाया जाएगा और बूंदी के महाराव बहादुर सिंह अपने छोटे भाई महाराव भीम सिंह के अधीन रहने की मजबूरी से बच जाएगे और इतिहास के पन्नों में यह दर्ज होने से बच जाएगा कि छोटे भाई के राज में बडे भाई ने काम किया। 18 अप्रेल 1948 को राजस्थान के एकीकरण के तीसरे चरण में उदयपुर रियासत का राजस्थान संघ में विलय हुआ और इसका नया नाम हुआ संयुक्त राजस्थान संघ'। माणिक्य लाल वर्मा के नेतृत्व में बने इसके मंत्रिमंडल में उदयपुर के महाराणा भूपाल सिंह को राजप्रमुख बनाया गया, कोटा के महाराव भीमसिंह को वरिष्ठ उप राजप्रमुख बनाया गया।

दिल्ली में INLD के पूर्व विधायक भरत सिंह की गोली मारकर हत्या

दिल्ली में INLD के पूर्व विधायक भरत सिंह की गोली मारकर हत्या
नई दिल्ली. दिल्ली के नजफगढ़ इलाके से पूर्व विधायक भरत सिंह की देररात गोली मारकर हत्या कर दी गई। रविवार रात कुछ अज्ञात लोगों ने उन्हें गोली मार दी। हमले में भरत सिंह तीन लोग घायल हुए। इसके बाद उन्हें इलाज के लिए मेदांता अस्पताल जाया गया। जहां देर रात डॉक्टरों ने भरत सिंह को मृत घोषित कर दिया।
पुलिस इसे गैंगवार का मामला मान रही है। पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सभी तीन घायलों को गुड़गांव स्थित मेदांता अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने भरत सिंह को मृत घोषित कर दिया। अधिकारी ने बताया कि दो अन्य घायल भरत सिंह के निजी सुरक्षा अधिकारी हैं। घटना रघुनंदन वाटिका में हुई जहां वे एक निजी समारोह में शामिल होने गए थे।
भरत सिंह ने नजफगढ़ से 2008 में निर्दलीय विधानसभा चुनाव जीता था। बाद में वे आईएनएलडी में शामिल हो गए थे। 2013 और 2015 में उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ा पर जीत हासिल नहीं कर सके। भरत सिंह पर 2012 में भी कुछ बदमाशों ने हमला किया था। उस समय हमलावरों ने उन पर दक्षिण पश्चिमी दिल्ली स्थित उनके कार्यालय के बाहर हमला किया था। उस हमले में उनके एक रिश्तेदार को भी गोली लगी थी। उस मामले में पुलिस ने चार लोगों को गिरफ्तार किया था जिन पर मुकदमा चल रहा है ।

भाजपा सरकार द्वारा किसानो की ज़मीन हथियाने के लिए बनाया गया भूमि अधिग्रहण बिल से कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी बेहद खफा है

भाजपा सरकार द्वारा किसानो की ज़मीन हथियाने के लिए बनाया गया भूमि अधिग्रहण बिल से कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी बेहद खफा है ,, उन्होंने कोटा प्रवास के दौरान किसानो की ओलाव्रष्टी से हुई दुर्गति और मदद के नाम पर ऊंट के मुंह में जीरा देने की आलोचना करते हुए भूमि अधिग्रहण बिल पर विरोध की मंशा ज़ाहिर की थी ,,जिसे राजस्थान सरकार के पूर्व दिग्गज मंत्री ,,,विकास पुरुष कहे जाने वाले शांति कुमार धारीवाल ने समझा और उसी वक़्त कोटा शहर ,,देहात के कांग्रेस अध्यक्षों को भूमि अधिग्रण बिल पर विराट रैली करने के निर्देश दिए ,,शांन्ति धारीवाल ने इस दौरान गाँव गाँव का दौरा कर किसानों का दर्द जाना ,,समझा और उन्हें कांग्रेस के हाथ किसानो के साथ रहने का भरोसा भी दिलाया ,,,,शान्ति कुमार धारीवाल के निर्देशों पर भाजपा सरकार को कांग्रेस की एक जुटता और ताक़त दिखाने के लिए आगामी तीन अप्रेल को कांग्रेस के कार्यकर्ता सुबह ग्यारह बजे एरोड्रम सर्किल जाम करेंगे ,,सभी जानते है शानति कुमार धारीवाल की हुंकार सबसे अलग हठ कर हज़ारो हज़ार की तादाद वाली होती है ,,इसलिए तीन अप्र्रैल को होने वाले इस प्रदर्शन को लेकर प्रशासन की नींद उड़ गयी है ,,,कोटा देहात और शहर के दोनों अध्यक्ष अपनी कार्यकारिणी के साथ मिलकर किसानो से इस प्रदर्शन में शामिल होने का आह्वान कर रहे है ,,,,अनुमान के मुताबिक़ दस हज़ार का टारगेट इस प्रदर्शन में भीड़ जुटाने का रखा गया है जिसमे पांच हज़ार तो कमसे कम शामिल होंगे ,,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

राजस्थान के कर्मचारियों और अधिकारीयों के हक़ के लिए संघर्ष शील ,क्रांतिकारी विचारधारा वाले हारून खान

राजस्थान अधिकारी कर्मचारी महासंघ के संस्थापक प्रदेश अध्यक्ष हारून खान अपने एक दिवसीय दौरे पर आगामी पांच अप्रेल को कोटा आएंगे ,,,हारून खान कोटा में अल्पसंख्यक अधिकारी कर्मचारी संघ की कोटा इकाई की बैठक भी लेंगे ,,,राजस्थान के कर्मचारियों और अधिकारीयों के हक़ के लिए संघर्ष शील ,क्रांतिकारी विचारधारा वाले हारून खान का जन्म आठ जून उन्नीस सो अड़सठ को अलवर में हुआ ,,पहले यह जालोर रहे अब जयपुर में निवासित है ,,कर्मचारी महासंघ में कई तरह के भेदभाव ,,देखकर हारून खान ने सिक्ख ,,ईसाई ,,मुस्लिम ,, बौद्ध और जेन बंधुओ को लामबंध किया ,,राजस्थान में घूम कर उन्हें हक़ों के लिए संघर्ष के लिए महासंघ बनाने का आह्वान किया ,,हारून खान की ही ताक़त थी के राजस्थान के तीस हज़ार के लगभग कर्मचारियों और अधिकारीयों को इन्होने एक जुट किया और सभी ने हारुन खान के नेतृत्व में भरोसा जताया और हारून खान को ज़िंदाबाद कहा ,,हारुन खान भी अपने साथी कर्मचारियों को उनका हक़ दिलाने के लिए पुरे राजस्थान के दौरे पर रहे उन्होंने कर्मचारियों अधिकारीयों की समस्याएं जानी ,,सुझाव लिए और राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत को बताकर इनकी समस्या समाधान के लिए उदार रुख अपनाने की बात कही जिसे सहजता से राजस्थान सरकार ने स्वीकार किया और ट्रांसफर ,,पोस्टिंग खासकर आर ऐ एस अधिकारीयों को बेहतर विभागों में उनकी कार्य गुणवत्ता के हिसाब से पोस्टिंग देने की बात स्वीकारी गई और आज कई अधिकारी ,,कर्मचारी महत्वपूर्ण विभागों में तैनात है ,,,हारून खान किसी पार्टी ,,किसी व्यक्ति से नहीं जुड़े है वोह तो कर्मचारियों के हक़ की लड़ाई के लिए संघर्ष कर रहे है ,,राजस्थान की वर्तमान मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा सिंधिया को भी उन्होंने कर्मचारियों अधिकारीयों का दर्द बताया है जिसे उन्होंने भी स्वीकार कर समस्याओं के समाधान के प्रति सकारात्मक रुख बताया है ,,,,,,,,हारुन खान ने प्रदेश व्यापी दौरे के कर्मचारियों के पारिवारिक हाल ,,सुक्ख दुःख जाने है और हारून खान की खासीयत रही है के वोह पुरे राजस्थान में दूरदराज़ इलाक़ो में भी अपने पारिवारिक काम छोड़कर कर्मचारी साथियों के पारिवारिक सुख दुःख के साक्षी बनते है ,,,हारून खान ने राजस्थान के सभी कर्मचारियों अधिकारियो से मशवरा कर राजस्थान के सदस्य कर्मचारियों के खेल कूद ,,मनोरंजन ,,चिकित्सा ,स्वास्थ ,,पारिवारिक मामलात ,शिक्षा सभी में कंधे से कंधा मिलाकर साथ निभाने के वचन को निभाया है ,,अभी राजस्थान के दो दर्जन से भी अधिक बच्चे जिनके माता पिता नहीं रहे है उन यतीम बच्चो की ज़िम्मेदारी हारून खान के अधिकारी कर्मचारी महासंघ ने ली है ,,जिनकी प्रारम्भिक पढ़ाई से लेकर उच्च शिक्षा तक यानी रोज़गार उपलब्ध होने तक उनका सारे खर्च का ज़िम्मा कर्मचारी अधिकारी महासंघ द्वारा उठाया जा रहा है ,,हारुन खान समाज में भी सकारात्मक कार्यों से जुड़े है ,,अच्छे वक्ता है ,,अच्छे इंसान है ,, लोगों के सुखः दुःख में शामिल होकर दर्द बांटते है इसीलिए कर्मचारी अधिकारी महासंघ के सदस्यों के आलावा उनके परिसजन ,,राजस्थान के दूसरे कर्मचारी अधिकारी महासंघ इन्हे ज़िंदाबाद कहते है ,,इनसे मिलकर खुश होते है ,,इनसे अपना दुःख दर्द बांटते है ,,,,,,,,,,,हारून खान की शख्सियत को सलाम सेल्यूट ,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

भाई रामखिलाड़ी मीणा राजस्थान के है लेकिन अभी वर्तमान में आल इण्डिया रेडियों में असिस्टेंट न्यूज़ डाइरेक्टर के पद पर कार्यरत है

दोस्तों हरियाली के ग्राउंड में मुस्कुराता यह चेहरा रामखिलाड़ी मीणा सच में राम के खिलाड़ी है ,,इनमे धर्म के प्रति मान सम्मान है तो अपने आचरण में भी धार्मिक शिक्षा मर्यादाओं के तहत प्यार ,,सद्भाव ,,मदद का जज़्बा ,,शांतिपूर्ण स्वभाव इनकी आदत बन गयी ,,भाई रामखिलाड़ी मीणा राजस्थान के है लेकिन अभी वर्तमान में आल इण्डिया रेडियों में असिस्टेंट न्यूज़ डाइरेक्टर के पद पर कार्यरत है ,,,जहां समाचार भारती के विधि नियमों से यह को ऑर्डिनेट कर तीखी खबरों का लेखन और सम्पादन करते है और इनकी खबरों की निष्पक्षता ,,,प्रचार प्रसार के तोर तरीकों को सभी अधीनस्थ खूब सराहते है ,,इनमे नीडरता ,,निर्भीकता का जज़्बा है ,,साफ़ गोई है लेकिन फिर भी यह लोगों के जज़्बात को समझते है ,,इनकी कोशिश होती है के इनके आचरण से किसी को तकलीफ ना हो बल्कि कुछ ना कुछ उन्हें मिल ही जाए ,,,,,रामखिलाड़ी मीणा का बचपन सवाईमाधोपुर गंगापुर सीटी के पास स्थित एक गांव जीवली में किसान की गोद में गुज़रा ,,फिर इसी गांव से इन्होने ने प्रारम्भिक प्राइमरी शिक्षा पास की ,,,कम उम्र पढ़ाई का जज़्बा पैदल सर्दी गर्मी बरसात में पांच किलोमीटर दूर जाना ,,पैरों में फफोले पढ़ जाते थे लेकिन पढ़ाया के प्रति उत्साह ऐसा के हमेशा क्लास में अव्वल रहे ,,दसवी के बाद जयपुर शहर में आये भाइयों का कहना था के अलग अलग पढ़ेंगे इसलिए एक जगह नहीं रह सके ,,इनके एक भाई राजस्थान प्रशासनिक सेवा में वरिष्ठ अधिकारी है ,,,,रामखिलाड़ी मीणा ने राजस्थान युनिवर्सीटी से ग्रेजुएट कर फिर एम ऐ किया ,,,इनका शोक लिखने का था इसलिए अख़बारों में लिखते रहे और लेखन के शोक ने इन्हे दिल्ली पहुंचा दिया जहां इन्होने मास कम्युनिकेशन का डिप्लोमा किया ,,दिल्ली में रहकर इन्हे होसला मिला ,,पत्रकारों ,,लेखक और दूसरे ज़िम्मेदार लोगों से मिलने का अवसर मिला ,,इनके पास सर्विस के कई ऑफर थे लेकिन इनका मक़सद अपनी लेखनी से लोगों की खिदमत करना था ,,,,रामखिलाड़ी मीणा ने यु पी एस सी से सुचना सहायक की परीक्षा पास की और फिर इन्हे सबसे पहले राजस्थान की उद्योग नगरी कोटा में भारत सरकार के सुचना कार्यालय में नियुक्त किया गया ,,इनके आचरण ,,इनके स्वभाव ,,चुटकुलेबाजी ,,जांबाजी ,,याराना निभाने की क़ूवत ने इन्हे हर दिल अज़ीज़ बना दिया ,,कोटा के सभी अख़बार नियमित रूप से केंद्र के इनके प्रेस नोट का इन्तिज़ार करते थे ,,कोई इंटरनेट नहीं ,,मोबाईल नहीं लेकिन फिर भी इनका सुचना तंत्र सरकार की सभी घोषणाओं और केंद्रीय मंत्रियों की खबरों को सभी अख़बारों में पहुंचाने में सक्षम था ,,फोटु उस वक़्त ब्लॉक बनाकर भेजे जाते थे इसलिए कार्यालय से लगभग संबंधित फोटो ब्लॉग मिल जाते थे ,,,पुरे तेरा साल में रामखिलाड़ी मीणा कोटा के सभी छोटे बढ़े पत्रकारों के पारिवारिक सदस्य बन चुके थे ,,कई बार सियासी मीटिंगों में जो यह प्रेसनोट में नहीं लिख सकते थे आधी रात को भी अगर इन्हे जगाया गया तो इन्होें संबंधित जानकारी देकर अपनी ज़िम्मेदारी निभाई घर पर पत्नी को निर्देश थे के कोई भी फोन हो में सो रहा हूँ तो भी मुझे जगा कर बात करना इसीलिए पत्रकार रामखिलाड़ी मीणा को अपनी धरोहर समझते रहे लेकिन यह धरोहर अब प्रमोशन होने के बाद दिल्ली में आल इण्डिया रेडियों सर्विस में सहायक निदेशक समाचार पद का काम बखूबी निभा रहे है ,,,,कोटा से इतनी दूर होने पर भी इनका रिश्ता कोटा से आज भी जुड़ा है ,,इनकी यदि ,,इनकी हंसी ठिठोली ,,इनकी पत्रकारों को खबर वक़्त पर पहुंचाने की तकनीक आज भी यादों में शामिल है लेकिन सोशल मिडिया के हम सब शुक्रगुज़ार है जो इस माध्यम से इस हर दिल अज़ीज़ शख्सियत से मुलाक़ात होती रहती है ,,अंदाज़ वही ,,कामकाज के तरीके वही ,,गेरो को जल्द अपना बनाना इनकी फितरत है और इसमें वोह कामयाबी से लोगों के खिदमतगार बने है दिल्ली में भी आप का अधिनष्ठ स्टाफ इनसे सुखी है ,,,तो भाई ऐसे है हमारे राम खिलाडी मीणा साहब ,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

बहू रोए जा रही थी

बहू रोए जा रही थी। सास ने पुचकारते हुए पूछा- क्यों बेटी, रो क्यों रही है..?
बहू: क्या मैं चुड़ैल जैसी दिखती हूं..?
सास: नहीं, बिल्कुल नहीं।
बहू: क्या मेरी आंखें मेंढ़की की तरह हैं..?
सास: नहीं तो।
बहू: क्या मेरी नाक पकोड़े जैसी है..?
सास: नहीं..!
बहू: क्या मैं भैंस जैसी मोटी और काली हूं..?
सास: नहीं बेटी, यह सब किसने कहा तुमसे..?

बहू: फिर सारे मोहल्ले के लोग क्यों कहते फिरते हैं कि तू तो अपनी सास जैसी दिखती है.?
सास बेहोश

क़ुरआन का सन्देश

  

दुनिया में कोई कुछ भी चाहले ,,लेकिन होता वही है जो मंजूरे खुदा होता है ,,,इज़्ज़त ,,ज़िल्लत सभी तो खुदा के हाथ में है ,,फिर हम क्यों किसी की चिंता करते है

दुनिया में कोई कुछ भी चाहले ,,लेकिन होता वही है जो मंजूरे खुदा होता है ,,,इज़्ज़त ,,ज़िल्लत सभी तो खुदा के हाथ में है ,,फिर हम क्यों किसी की चिंता करते है ,,क्यों किसी को खुदा से बढ़ा समझते है ,,यह कहावत कोटा में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के एक दिवसीय दोरे समय देखने को मिली ,,एक तो प्रबंधन मिडिया मैनेजमेंट की लापरवाही से सोनिया गांधी की प्रमुख धार्मिक आस्था लोगों तक जग ज़ाहिर नहीं हो सकी ,,कोटा में जयपुर सहित पुरे देश और कोटा के पत्रकार थे ,लेकिन एक गलती हुई के कांग्रेस के पत्रकार रिपोर्टर की हैसियत से प्रेस ब्रीफिंग इंचार्ज कोई नहीं था नतीजन ,,कोटा प्रवास के दौरान दलबीजी के पास चौथ माता मंदिर पर रुक कर जब सोनिया गांधी ने आस्था से सर झुकाया और मन ही मन किसानो की क्षतिपूर्ति की दुआ की तो किसी ने इसे खबर नहीं बनाया ,,जबकि यह आस्था ,,मंदिर की चोखट पर सर झुकाना एक महत्वपूर्ण खबर बनाई जा सकती थी ,,,इधर कोटा में राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य क्रांति तिवारी मेडम सोनिया से मिलना चाहते थे ,,,उन्होंने जुगाड़ कर प्रदेश कांग्रेस कमेटी में अपना पास भी बनवाने का जुगाड़ किया ,,लेकिन बाद में क्रान्ति तिवारी का सोनिया तक पहुंचने का पास फेल हो गया ,,क्रान्ति निराश और हताश थे ,,लेकिन क़ुदरत का करिश्मा कोन रोक सकता है ,,दलबीजी के पास जैसे ही सोनिया उतरी अचानक क्रान्ति तिवारी सामने रहे ,,उन्होंने कोटा के किसानो की व्यथा बताई और मिडिया और क़िस्मत से मिडिया सोनिया मेडम के साथ इस खबर को टीवी और प्रिंट मिडिया की प्रमुख खबर बनाई ,,,पूरा राजस्थान ,,पूर्व मंत्री ,,,विधायक ,,,प्रदेश कांग्रेस कमेटी के ,,दिग्गज प्रभारी ,,प्रबनधन में लगे लोग सामने थे लेकिन देश भर में जो वीडियो जो क्लिपिंग खबर में दिखाई गई वोह सिर्फ और सिर्फ क्रान्ति तिवारी से मेडम की बात होते हुए थी ,,,तो जनाब इसे कहते है क़ुदरत का खेल ,,एक तरफ क्रान्ति तिवारी मेडम के साथ किसानो के हमदर्द बनकर उभरे तो दूसरे कई दिग्गज अपना सर खुजाते देखे गए ,,सोनिया गांधी के इस दौरे में उपेक्षा से कई दिग्गज कोंग्रेसियों का तो ब्लड प्रेशर हाई हो गया तो कई की तबियत खराब हो गई ,,,,,,,,लेकिन कोटा दौरे से जाते ही जब राजस्थान के सी पी जोशी को वरिष्ठ प्रवक्ता बनाया गया तो सियासी कहानी कुछ और ही क़िस्से सुनाती नज़र आई ,,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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