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01 अप्रैल 2015

हनुमान जयंतीः इस गांव में नहीं होती पवनपुत्र की पूजा

उत्तराखंड का द्रोणागिरि गांव
उत्तराखंड का द्रोणागिरि गांव
चैत्र मास की पूर्णिमा को हनुमान जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 4 अप्रैल, शनिवार को है। हनुमान जयंती के अवसर हम आपको उस पर्वत के बारे में बता रहे हैं, जिसे हनुमानजी संजीवनी बूटी के लिए उठाकर ले गए थे। मान्यता है कि वह पर्वत उत्तराखंड के द्रोणागिरि नामक स्थान पर स्थित था। द्रोणागिरि के लोग आज भी हनुमानजी की पूजा इसलिए नहीं करते क्योंकि हनुमानजी उस स्थान से पर्वत उठाकर ले गए थे।

यहां वर्जित है हनुमानजी की पूजा करना
द्रोणागिरि गांव उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली के जोशीमठ प्रखण्ड में जोशीमठ नीति मार्ग पर है। यह गांव लगभग 14000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां के लोगों का मानना है कि हनुमानजी जिस पर्वत को संजीवनी बूटी के लिए उठाकर ले गए थे, वह यहीं स्थित था।
चूंकि द्रोणागिरि के लोग उस पर्वत की पूजा करते थे, इसलिए वे हनुमानजी द्वारा पर्वत उठा ले जाने से नाराज हो गए। यही कारण है कि आज भी यहां हनुमानजी की पूजा नहीं होती। यहां तक कि इस गांव में लाल रंग का झंडा लगाने पर भी पाबंदी है।

यहां स्थित है संजीवनी बूटी वाला पर्वत
श्रीलंका के सुदूर इलाके में श्रीपद नाम का एक पहाड़ है। मान्यता है कि यह वही पर्वत है, जिसे हनुमानजी संजीवनी बूटी के लिए उठाकर लंका ले गए थे। इस पर्वत को एडम्स पीक भी कहते हैं। यह पर्वत लगभग 2200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। श्रीलंकाई लोग इसे रहुमाशाला कांडा कहते हैं। इस पहाड़ पर एक मंदिर भी बना है।
हनुमानजी लंका से उठा लाए थे सुषेण वैद्य को
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस के अनुसार रावण के पुत्र मेघनाद व लक्ष्मण के बीच जब भयंकर युद्ध हो रहा था, उस समय मेघनाद ने वीरघातिनी शक्ति चलाकर लक्ष्मण को बेहोश कर दिया। हनुमानजी उसी अवस्था में लक्ष्मण को लेकर श्रीराम के पास आए। लक्ष्मण को इस अवस्था में देखकर श्रीराम बहुत दु:खी हुए।
तब जांबवान ने हनुमानजी से कहा कि लंका में सुषेण वैद्य रहता है, तुम उसे यहां ले आओ। हनुमानजी ने ऐसा ही किया। सुषेण वैद्य ने हनुमानजी को उस पर्वत और औषधि का नाम बताया और हनुमानजी से उसे लाने के लिए कहा, जिससे कि लक्ष्मण पुन: स्वस्थ हो जाएं। हनुमानजी तुरंत उस औषधि को लाने चल पड़े। जब रावण को यह बात पता चली तो उसने हनुमानजी को रोकने के लिए कालनेमि दैत्य को भेजा।
कालनेमि दैत्य ने रूप बदलकर हनुमानजी को रोकने का प्रयास किया, लेकिन हनुमानजी उसे पहचान गए और उसका वध कर दिया। इसके बाद हनुमानजी तुरंत औषधि वाले पर्वत पर पहुंच गए, लेकिन औषधि पहचान न पाने के कारण उन्होंने पूरा पर्वत ही उठा लिया और आकाश मार्ग से उड़ चले। अयोध्या के ऊपर से गुजरते समय भरत को लगा कि कोई राक्षस पहाड़ उठा कर ले जा रहा है। यह सोचकर उन्होंने हनुमानजी पर बाण चला दिया।
हनुमानजी श्रीराम का नाम लेते हुए नीचे आ गिरे। हनुमानजी के मुख से पूरी बात जानकर भरत को बहुत दु:ख हुआ। इसके बाद हनुमानजी पुन: श्रीराम के पास आने के लिए उड़ चले। कुछ ही देर में हनुमान श्रीराम के पास आ गए। उन्हें देखते ही वानरों में हर्ष छा गया। सुषेण वैद्य ने औषधि पहचान कर तुरंत लक्ष्मण का उपचार किया, जिससे वे पुन: स्वस्थ हो गए।

इस मंदिर में आते ही खड़े हो जाते हैं रोंगटे, ऊटपटांग हरकतें करते हैं लोग

मेंहदीपुर बालाजी में स्थापित हनुमानजा की प्रतिमा।
मेंहदीपुर बालाजी में स्थापित हनुमानजा की प्रतिमा।
चार अप्रैल शनिवार को हनुमान जंयती है। इस दिन गृहण भी है। हर साल इस दिन हनुमान मंदिरों पर भक्तों की भीड़ देखते ही बनती है, पर इस बार ऐसा नहीं होगा। शनिवार को सुबह 6.45 पर ही मंदिरों के पट बंद हो जाएंगे जो देर शाम 7.30 पर गृहण के मोक्ष हो जाने के बाद ही खुलेंगे। हम आपको बताने जा रहे हैं राजस्थान के रहस्यमयी हनुमान मंदिर- मेंहदीपुर बालाजी के बारे में।
जयपुर। यूं तो भारत में हनुमानजी के लाखों मंदिर हैं। हर मंदिर पर भक्तों की भीड़ उमड़ती है, पर राजस्थान के दौसा जिला स्थित घाटा मेंहदीपुर बालाजी की बात ही अलग है। मेंहदीपुर बालाजी को दुष्ट आत्माओं से छुटकारा दिलाने के लिए दिव्य शक्ति से प्रेरित हनुमानजी का बहुत ही शक्तिशाली मंदिर माना जाता है। यहां कई लोगों को जंजीर से बंधा और उल्टे लटके देखा जा सकता है। यह मंदिर और इससे जुड़े चमत्कार देखकर कोई भी हैरान हो सकता है। शाम के समय जब बालाजी की आरती होती है तो भूतप्रेत से पीड़ित लोगों को जूझते देखा जाता है।
जंजीर में बांधकर लाए जाते हैं पीड़ित
कहा जाता है कि कई सालों पहले हनुमानजी और प्रेत राजा अरावली पर्वत पर प्रकट हुए थे। बुरी आत्माओं और काले जादू से पीड़ित रोगों से छुटकारा पाने लोग यहां आते हैं। इस मन्दिर को इन पीड़ाओं से मुक्ति का एकमात्र मार्ग माना जाता है। मंदिर के पंडित इन रोगोंं से मुक्ति के लिए कई उपचार बताते हैं। शनिवार और मंगलवार को यहां आने वाले भक्तों की संख्या लाखों में पहुच जाती है। कई गंभीर रोगियों को लोहे की जंजीर से बांधकर मंदिर में लाया जाता है। यहां आने वाले पीडित लोगों को देखकर सामान्य लोगों की रूह तक कांप जाती है। ये लोग मंदिर के सामने ऐसे चिल्ला-चिल्ला के अपने अंदर बैठी बुरी आत्माओं के बारे में बताते हैं, जिनके बारे में इनका दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं रहता है। भूत प्रेत ऊपरी बाधाओं के निवारणार्थ यहां आने वालों का तांता लगा रहता है। ऐसे लोग यहां पर बिना दवा और तंत्र मंत्र के स्वस्थ होकर लौटते हैं।
बालाजी का मंदिर मेंहदीपुर नामक स्थान पर दो पहाड़ियों के बीच स्थित है, इसलिए इन्हें घाटे वाले बाबाजी भी कहा जाता है। इस मंदिर में स्थित बजरंग बली की बालरूप मूर्ति किसी कलाकार ने नहीं बनाई, बल्कि यह स्वयंभू है। यह मूर्ति पहाड़ के अखण्ड भाग के रूप में मंदिर की पिछली दीवार का कार्य भी करती है। इस मूर्ति के सीने के बाईं तरफ़ एक छोटा सा छेद है, जिससे हर समय जल की धारा निकलती रहती है। यह जल बालाजी के चरणों तले स्थित एक कुण्ड में एकत्रित होता रहता है, जिसे भक्तजन चरणामृत के रूप में अपने साथ ले जाते हैं। कहा जाता है कि यह मूर्ति लगभग 1000 साल पुरानी है।
कहा जाता है कि मुस्लिम शासनकाल में कुछ बादशाहों ने इस मूर्ति को नष्ट करने का प्रयास किया। हर बार ये बादशाह असफ़ल रहे। वे इसे जितना खुदवाते गए मूर्ति की जड़ उतनी ही गहरी होती चली गई। थक हार कर उन्हें अपना यह कुप्रयास छोड़ना पड़ा। ब्रिटिश शासन के दौरान सन 1910 में बालाजी ने अपना सैकड़ों वर्ष पुराना चोला स्वतः ही त्याग दिया। भक्तजन इस चोले को लेकर समीपवर्ती मंडावर रेलवे स्टेशन पहुंचे, जहां से उन्हें चोले को गंगा में प्रवाहित करने जाना था। ब्रिटिश स्टेशन मास्टर ने चोले को निःशुल्क ले जाने से रोका और उसका लगेज करने लगा, लेकिन चमत्कारी चोला कभी मन भर ज्यादा हो जाता और कभी दो मन कम हो जाता। असमंजस में पड़े स्टेशन मास्टर को अंततः चोले को बिना लगेज ही जाने देना पड़ा और उसने भी बालाजी के चमत्कार को नमस्कार किया। इसके बाद बालाजी को नया चोला चढ़ाया गया। एक बार फिर से नए चोले से एक नई ज्योति दीप्यमान हुई।बालाजी महाराज के अलावा यहां श्री प्रेतराज सरकार और श्री कोतवाल कप्तान ( भैरव) की मूर्तियां भी हैं। प्रेतराज सरकार जहां दंडाधिकारी के पद पर आसीन हैं वहीं भैरव जी कोतवाल के पद पर। यहां आने पर ही मालूम चलता है कि भूत और प्रेत किस तरह से मनुष्य को परेशान करते हैं। दुखी व्यक्ति मंदिर में आकर तीनों देवगणों को प्रसाद चढाना पड़ता है। बालाजी को लड्डू प्रेतराज सरकार को चावल और कोतवाल कप्तान (भैरव) को उड़द का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस प्रसाद में से दो लड्डू रोगी को खिलाए जाते हैं। शेष प्रसाद पशु पक्षियों को डाल दिया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि पशु पक्षियों के रूप में देवताओं के दूत ही प्रसाद ग्रहण कर रहे होते हैं। कुछ लोग बालाजी का नाम सुनते ही चैंक पड़ते हैं। उनका मानना है कि भूतप्रेतादि बाधाओं से ग्रस्त व्यक्ति को ही वहां जाना चाहिए। ऐसा सही नहीं है। कोई भी - जो बालाजी के प्रति भक्तिभाव रखने वाला है , इन तीनों देवों की आराधना कर सकता है। अनेक भक्त तो देश-विदेश से बालाजी के दरबार में मात्र प्रसाद चढ़ाने नियमित रूप से आते हैं।

राजस्थान के दलित ,,पीड़ित ,,शोषित ,,घुमन्तु ,,पिछड़े

दोस्तों राजस्थान के दलित ,,पीड़ित ,,शोषित ,,घुमन्तु ,,पिछड़े ,,अल्सपसंख्य्क समाज के लोगों को एक जुट कर एक झंडे के नीचे लाकर उन्हें उनका सियासी और सामजिक हक़ दिलाने का सपना देखने वाले युवा उत्साहित नेतृत्व गोपाल केशावत ,,शीघ्र ही बंजारा समाज के कैलाश बंजारा सहित कई दलित और अल्पसंख्यक नेताओं के साथ मिलकर एक महासम्मेलन करने के प्रयासों में जुट गए है ,,,गोपाल केशावत जिसने अपने समाज की दरिद्रता देखी है ,,अपने सहयोगी समाजों का संघर्ष उनके साथ ना इंसाफी देखी है ,,उस युवा ने अपने छात्र जीवन से ही सभी पिछड़े समाजो को एक जुट कर उनकी उपेक्षा के खिलाफ सियासी और सामाजिक तोर पर संघर्ष के बिगुल के बाद उन्हें इंसाफ दिलवाने का सपना देखा था जिसे साकार करने के प्रयासों में एक नई क्रान्ति की सोच के साथ वोह बंजारा समाज के नेतृत्व कैलाश बंजारा और दूसरे साथियों के साथ मिलकर जुट गए है ,,, तीन जुलाई उन्नीस सो अस्सी को राधिका पैलेस गाँव जहाज़पुर में श्री हरचंदा निवासी राधिका बाढा के परिवार में जन्मे गोपाल केशावत ने छात्र जीवन से ही संघर्ष क्या कई महत्वपूर्ण पदो पर रहे ,,,एम ऐ एल एल बी की परीक्षा उत्तीर्ण कर वकालत के व्यवसाय से जुड़कर लोगों को इंसाफ की राह दिखाई और खुद जीवन यापन के लिए रियल स्टेट और होटल व्यवसाय से भी जुड़ गए ,,इन्होने स्नातक विधानसभा क्षेत्र शाहपुरा बनेड़ा से किया ,,गोपाल केशावत ने राजथान के सभी बिखरे पढ़े घुमन्तु समाज को एक जुट किया ,,उनकी दरिद्रता ,,समस्याएं जानी ,,,उन्हें एक जुट किया ,,उनकी समस्याओं के समाधान का प्रयास किया और राजस्थान स्तर पर डी ऍन टी प्रकोष्ठ बनाया जिसे सामान्य रूप से ,,,विमुक्त घुमंतु अर्द्धघुमंतु जाति प्रकोष्ठ ,,,के नाम से जाना जाता है ,,गोपाल केशावत इस संघर्ष में अव्वल रहने से इस समाज का नेतृत्व बने और प्रदेश अध्यक्ष पद पर कार्यरत रह कर पुरे देश में राष्ट्रीय स्तर पर समाज को उनका हक़ दिलाने के लिए कैलाश बंजारा और साथियों के साथ मिलकर संघर्ष किया ,,किसान और मज़दूर के बेटे रहे इसलिए इस दर्द को भी उन्होंने जाना ,,कांग्रेस में भी गोपाल केशावत कुशल नेतृत्व होने से इस समाज के प्रदेश अध्यक्ष निर्वाचित हुए कई सम्मेलन ,,कई सेमिनार की गई ,,,पिछली अशोक गेहलोत सरकार में गेहलोत के नज़दीकी होने से गोपाल केशावत सरकार पर अपना दबाव बनाने में कामयाब हुए और राजस्थान में पहली बार राज्य विमुक्त घुमतु अर्द्धघुमंतु कल्याण बोर्ड गठित करवाया जिसके अध्यक्ष (राज्यमन्त्री दर्जा ) लेकर गोपाल अपनी क़ाबलियत के बल पर नियुक्त हुए ,,गोपाल केशावत दरिद्रों पर ,,घुमन्तुओं और बंजारों पर निरंतर योजनाबद्ध तरीके से हो रहे सामूहिक हमलों से आहत है ,,वोह कैलाश बंजारा के साथ मिलकर बंजारा समाज के लिए भी संघर्ष शील है ,,मंत्री दर्जा पद पर रहकर भी गोपाल केशावत का जीवन व्ही सादा और उच्च विचार वाला रहा ,,अपनों में अपनों के साथ उठे बैठे ,,दिल से दिल की बात कही ,,लोगों के दिल की बात सुनी और समाज में हर दिल अज़ीज़ बन गए ,,गोपाल केशावत हाल ही में राजस्थान में किसानों के हक़ के लिए संघर्ष करते वक़्त प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलेट के साथ चोटिल हुए ,,,,,गोपाल केशावत ने आयोग का चेयरमेन होने के नाते पिछड़े दलितों का दर्द नज़दीक से देखा है ,,केशावत देश और समाज को आगे लाने का एक ही फार्मूला मानते है जिसमे वोह कहते है के देश में दलित ,,शोषित ,,पीड़ित ,,,,पिछड़े ,,दरिद्र ,,अनुसूचित ,,अल्पसंख्यक एक होकर संघर्ष करे उन्हें सियासी और सामाजिक हक़ मिले तब कहि जाकर देश विकसित हो अटूट एक हो सकेगा और इसीलिए गोपाल केशावत अपने अनुभवों के आधार पर शीघ्र ही राजस्थान के इस तबके को एक जुट कर एक नए संघर्ष का बिगुल बजाने के प्रयासों में जुट गए है ,,,,,,,,,,,,बंजारा फाउंडेशन के कैलाश बंजारा और राजस्थान के कई समाजो के सारथी इनके इस संघर्ष में मददगार बनने को तय्यार है ,,,,गोपाल केशावत वर्ष दो हज़ार आठ से विधानसभा टिकिट की मांग कांग्रेस से कर रहे है उनका कहना है की घुमन्तु जातियों के हक़ सम्मान के अधिकारों के लिए वोह मरते दम तक संघर्ष करते रहेंगे ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

किसी भी धर्म में झूंठ और मज़ाक का कोई स्थान नहीं

अप्रैल फूल दिवस,,,,,,,, झूंठ जिसे हम मज़ाक ,,जिसे हम बुरा ना मानो होली कहते है ,,लेकिन किसी भी धर्म में झूंठ और मज़ाक का कोई स्थान नहीं है फिर भी हम धर्म के खिलाफ इस अंग्रेजी संस्कृति को हमारे देश में ज़िंदा किये हुए है ,,,,,अप्रेल फूल ,,एक झूंठ ,,एक जुमला सियासी लोगों ने सियासी वायदों के साथ सत्ता में आने के लिए जनता के साथ इस खेल को खेलना शुरू किया है और हमारे भारत में जहाँ झूंठ बोलना ,,झूंठा दिलासा देना ,,झूंठा वायदा करना ,,झूंठ को सच बनाकर पेश करना धार्मिक तोर पर धर्म से ख़ारिज हो जाने वाला अपराध है वहां सियासी लोग हमारे देश की जनता को बेवक़ूफ़ बनाकर ,,अप्रेल फूल बनाकर देश पर राज करते रहे है और राज कर रहे है इसके खिलाफ अगर जनता ने संघर्ष का बिगुल बजाकर सियासत की इस बुराई को जड़ से समाप्त नहीं किया ,,सरकार ने अगर क़ानून बनाकर ऐसे झूंठे वायदे बाज़ों को पद छीन कर जेल भेजने का क़ानून नहीं बनाया तो हमारी संस्कृति और हम तबाह हो जाएंगे ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
अप्रैल फूल दिवस पश्चिमी देशों में हर साल पहली अप्रैल को मनाया जाता है। कभी-कभी ऑल फूल्स डे के रूप में जाना जाने वाला यह दिन, 1 अप्रैल एक आधिकारिक छुट्टी का दिन नहीं है लेकिन इसे व्यापक रूप से एक ऐसे दिन के रूप में जाना और मनाया जाता है जब एक दूसरे के साथ व्यावाहारिक मजाक और सामान्य तौर पर मूर्खतापूर्ण हरकतें की जाती हैं। इस दिन दोस्तों, परिजनों, शिक्षकों, पड़ोसियों, सहकर्मियों आदि के साथ अनेक प्रकार की शरारतपूर्ण हरकतें और अन्य व्यावहारिक मजाक किए जाते हैं, जिनका उद्देश्य होता है बेवकूफ और अनाड़ी लोगों को शर्मिंदा करना.
पारंपरिक तौर पर कुछ देशों जैसे न्यूजीलैंड, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में इस तरह के मजाक केवल दोपहर तक ही किये जाते हैं और अगर कोई दोपहर के बाद किसी तरह की कोशिश करता है तो उसे "अप्रैल फूल" कहा जाता है।[1] ऐसा इसीलिये किया जाता है क्योंकि ब्रिटेन के अखबार जो अप्रैल फूल पर मुख्य पृष्ठ निकालते हैं वे ऐसा सिर्फ पहले (सुबह के) एडिशन के लिए ही करते हैं।[2] इसके अलावा फ्रांस, आयरलैंड, इटली, दक्षिण कोरिया, जापान रूस, नीदरलैंड, जर्मनी, ब्राजील, कनाडा और अमेरिका में जोक्स का सिलसिला दिन भर चलता रहता है। 1 अप्रैल और मूर्खता के बीच सबसे पहला दर्ज किया गया संबंध चॉसर के कैंटरबरी टेल्स (1392) में पाया जाता है। कई लेखक यह बताते हैं कि 16वीं सदी में एक जनवरी को न्यू ईयर्स डे के रूप में मनाये जाने का चलन एक छुट्टी का दिन निकालने के लिए शुरू किया गया था, लेकिन यह सिद्धांत पुराने संदर्भों का उल्लेख नहीं करता है।
उत्पत्ति,,,
लंदन में 1857 से "वॉशिंग दी लायंस" का टिकट.1698 में पहले पारंपरिक अप्रैल फूल्स प्रैंक को रिकॉर्ड किया गया।
चॉसर के कैंटरबरी टेल्स (1392) में "नन्स प्रीस्ट्स टेल" में 'सिन मार्च बिगन थर्टी डेज एंड टु ' का उल्लेख किया गया है।] चॉसर का मतलब संभवतः मार्च के 32 दिन के बाद से है यानी 2 मई,] जो इंग्लैण्ड के किंग रिचर्ड II की बोहेमिया की एन के साथ सगाई की सालगिरह की तारीख है, जो 1381 में हुई थी। हालांकि पाठक ऊपरी तौर पर इस लाइन का गलत मतलब "32 मार्च" अर्थात 1 अप्रैल के रूप में लगाते हैं।[ चॉसर की कहानी में अहंकारी मुर्गे शॉन्टेक्लीर को एक लोमड़ी द्वारा चालाकी से फंसा लिया जाता है।,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

पति को कुल्‍हाड़ी से काट कर मां ने बचाई बेटी की इज्‍जत

इंदौर. यहां की मारुति पैलेस कालोनी में एक मां ने अपनी बेटी की आबरू बचाने के लिए अपने पति की कुल्हाड़ी से हत्या कर दी। जानलेवा वार करने के छह घंटे बाद भी उसकी सांसें चलती रही थीं। तब तक मां अपनी बेटी के साथ हाथ में कुल्‍हाड़ी लेकर वहीं बैठी रही। इस तैयारी के साथ कि अगर वह दोबारा खड़ा हुआ तो फिर से वार कर देगी।
रवि की हत्या के आरोप में गिरफ्तार फहमीदा ने बताया कि उसकी गर्दन पर वार करने के बाद भी उसकी सांसें चल रही थीं। फहमीदा के मुताबिक, "तब मैं और मेरी बेटी उसके पास बैठे रहे। मुझे डर लग रहा था कि कहीं रवि फिर से न उठ जाए, इसलिए मैं अपने हाथ में कुल्हाड़ी लिए थी। कुल्हाड़ी के वार के लगभग छह घंटे बाद तक भी उसकी सांस धीरे-धीरे चल रही थी। फिर जाकर उसने दम तोड़ा।" रात भर लाश के पास गुजारने के बाद फहमीदा की बेटी सुबह थाने पहुंची और उसने अपनी मां द्वारा अपने पिता को मारे जाने की सूचना दी। पुलिस ने फहमीदा के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया है।
क्या है मामला?
कुछ साल पहले फहमीदा बी अपने पहले पति को तलाक देकर रवि के साथ रहने लगी थी। आरोप है कि रवि पहले पति से हुई फहमीदा की बेटी पर बुरी नजर रखता था। मंगलवार को जब उसने बेटी की इज्‍जत लूटने की कोशिश की, तो फहमीदा अपने गुस्से पर काबू नहीं रख सकी और उसने अपने पति की हत्या कर दी।
पहले आंखों में डाला मिर्च का घोल, फिर कुल्हाड़ी से किए वार
चंदन नगर के थाना प्रभारी विनोद दीक्षित ने बताया कि मंगलवार की शाम फहमीदा और उसकी बेटी घर का काम कर रही थी। तभी रवि आया और फहमीदा की बेटी के साथ गलत हरकत करने लगा। फहमीदा ने इसका विरोध किया तो उनके बीच झगड़ा होने लगा, लेकिन रवि ने बेटी को नहीं छोड़ा। तब गुस्से में आकर फहमीदा किचन में गई और वहां से एक बर्तन में पानी में मिर्ची घोलकर ले आई। उसने रवि की आंखों में यह पानी डाल दिया। इसके बावजूद रवि ने फहमीदा की बेटी को नहीं छोड़ा। तब फहमीदा घर के कोने में राखी कुल्हाड़ी लेकर आई और उसने पहले उसके सिर पर एक जोरदार वार किया और उसके बाद गर्दन पर।
'पहले बेटी जैसा मानता था रवि'
फहमीदा ने बताया कि रवि शुरू में उसकी बेटी को अपनी बेटी जैसा ही मानता था, मगर बाद में उसकी नज़रें बदल गईं। उसने एक-दो बार पहले भी बेटी के साथ गलत हरकत करने की कोशिश की थी, मगर जब उसने उसे छोड़ने की धमकी दी तो वह मान गया था। मगर कल जब उसने फिर से अपनी हैवानियत दिखाई तो वह अपने आप को रोक नहीं सकी।

भगवान श्री राम जी के वंश

चलो आज आपको भगवान श्री राम जी के वंश के बारे में बताता हूं ।।
ब्रह्माजी की उन्चालिसवी पीढ़ी में भगवाम श्रीराम का जन्म हुआ था ।।
हिंदू धर्म में श्री राम को श्रीहरि विष्णु का सातवाँ अवतार माना जाता है।
वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे - इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त,करुष, महाबली, शर्याति और पृषध।
श्री राम का जन्म इक्ष्वाकु के कुल में हुआ था और जैन धर्म के तीर्थंकर निमि भी इसी कुल के थे।
मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु से विकुक्षि,
निमि और दण्डक पुत्र उत्पन्न हुए।
इस तरह से यह वंश परम्परा चलते-चलते
हरिश्चन्द्र, रोहित, वृष, बाहु और सगरतक पहुँची।
इक्ष्वाकु प्राचीन कौशल देश के राजा थे और इनकी राजधानी अयोध्या थी।
रामायण के बालकांड में गुरु वशिष्ठजी द्वारा राम के कुल का वर्णन किया गया है जो इस प्रकार है ..........
१ - ब्रह्माजी से मरीचि हुए।
२ - मरीचि के पुत्र कश्यप हुए।
३ - कश्यप के पुत्र विवस्वान थे।
४ - विवस्वान के वैवस्वत मनु हुए.वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था।
५ - वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था।
इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुलकी स्थापना की।
६ - इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए।
७ - कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था।
८ - विकुक्षि के पुत्र बाण हुए।
९ - बाण के पुत्र अनरण्य हुए।
१०- अनरण्य से पृथु हुए
११- पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ।
१२- त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए।
१३- धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था।
१४- युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए।
१५- मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ।
१६- सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित।
१७- ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए।
१८- भरत के पुत्र असित हुए।
१९- असित के पुत्र सगर हुए।
२०- सगर के पुत्र का नाम असमंज था।
२१- असमंज के पुत्र अंशुमान हुए।
२२- अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए।
२३- दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए।
भागीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतारा था.भागीरथ के पुत्र ककुत्स्थ थे।
२४- ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए।
रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया,तब से श्री राम के कुल को रघु कुल भी कहा जाता है।
२५- रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए।
२६- प्रवृद्ध के पुत्र शंखण थे।
२७- शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए।
२८- सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था।
२९- अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए।
३०- शीघ्रग के पुत्र मरु हुए।
३१- मरु के पुत्र प्रशुश्रुक थे।
३२- प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए।
३३- अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था।
३४- नहुष के पुत्र ययाति हुए।
३५- ययाति के पुत्र नाभाग हुए।
३६- नाभाग के पुत्र का नाम अज था।
३७- अज के पुत्र दशरथ हुए।
३८- दशरथ के चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए।
इस प्रकार ब्रह्मा की उन्चालिसवी (39) पीढ़ी में श्रीराम का जन्म हुआ.....
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम।
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम। पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम।
भजु दीन बंधू दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम।
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम ।
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभुषणं।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर - धुषणं।
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम।
मम हृदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम।
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सावरों।
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।
एही भाँती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजी पूनी पूनी मुदित मन मन्दिर चली।
जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाए कहीं।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फ़र्क़न लगे।
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे ।

'गोरी चमड़ी' वाले बयान पर गिरिराज को शाह की वॉर्निंग, पर नहीं होगी कार्रवाई

फाइल फोटो- पीएम नरेंद्र मोदी के साथ गिरिराज सिंह
फाइल फोटो- पीएम नरेंद्र मोदी के साथ गिरिराज सिंह
नई दिल्ली. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर विवादास्पद बयान के मामले में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को बीजेपी ने सिर्फ चेतावनी देकर छोड़ दिया है। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने गिरिराज को वार्निंग दी है, लेकिन कांग्रेस द्वारा उन्हें हटाए जाने की मांग को शाह ने खारिज कर दिया है। कांग्रेस ने मांग की थी कि गिरिराज देश से माफी मांगें और बीजेपी उन्हें पद से हटाए। उधर मामला बढ़ने के बाद गिरिराज ने अपने बयान पर दुख जताया। बता दें कि गिरिराज ने कहा था, ''अगर राजीव गांधी किसी नाइजीरियाई महिला से शादी किए होते, जो गोरी चमड़ी वाली नहीं होती... तो क्या कांग्रेस पार्टी उनका नेतृत्व स्वीकार करती?''
नाइजीरियाई दूतावास ने दी चेतावनी
मामले पर बढ़ते बवाल को देखते हुए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और अरुण जेटली ने गिरिराज सिंह से बात की। वहीं, गिरिराज ने सफाई देते हुए कहा कि उन्होंने ऐसी बातें सार्वजनिक तौर पर नहीं, बल्कि ऑफ द रिकार्ड कीं।दूसरी तरफ नाइजीरिया के दूतावास ने उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराए जाने की बात कही है। नाइजीरिया के कार्यवाहक उच्चायुक्त दुबीसी वाइटस अमाकू ने कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि भारत और नाइजीरिया दोनों मित्र देश हैं और मंत्री का ऐसा नस्लभेदी बयान ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि वे नहीं जानते हैं कि प्रधानमंत्री इस मामले में क्या कदम उठाने जा रहे हैं, पर उम्मीद है कि वह इस मामले में उचित कदम उठाएंगे।
गिरिराज पर कार्रवाई से क्यों बच रही बीजेपी
इस बयान पर गिरिराज और बीजेपी की खूब आलोचना हो रही हो, लेकिन सूत्रों के मुताबिक बीजेपी गिरिराज पर कोई कार्रवाई नहीं करना चाहती है। सूत्रों का कहना है कि सिंह को किसी तरह की सजा का कोई डर नहीं है। इसकी कुछ वजह ये रहीं:
- गिरिराज अमित शाह के करीबी हैं और साथ ही पार्टी के कई अन्य नेताओं जिनमें पीएम मोदी भी शामिल हैं, से भी उनकी नजदीकी है। जब 2013 में बीजेपी में नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार बनाए जाने पर स्थिति साफ नहीं थी तब गिरिराज ने सबसे ज्यादा मोदी को सपोर्ट किया था।
- बिहार में बीजेपी-जेडीयू की गठबंधन सरकार में गिरिराज मंत्री थे। दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन उस वक्त खत्म हो गया, जब नीतीश कुमार ने मोदी को एनडीए की ओर से पीएम पद का कैंडिडेट बनाए जाने का विरोध किया। उस वक्त गिरिराज ने नीतीश का जमकर विरोध किया था। इसके बाद से वह बीजेपी के गुड बुक में हैं।
- गिरिराज सिंह बिहार के प्रभावशाली भूमिहार समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी गिरिराज सिंह का अच्छा खासा फायदा लेना चाहेगी। यही भी एक वजह है कि पार्टी उनपर कोई कार्रवाई करने से बच रही है। सूत्रों के मुताबिक, गिरिराज बीजेपी के बिहार प्लान में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।

क़ुरआन का सन्देश

  
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