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11 मई 2015

आरएसएस का यूएस पर निशाना पूछा, क्या लोकतंत्र का वैश्विक ठेकेदार है अमेरिका dainikbhaskar.com May 11, 2015, 21:59 PM IST Print Decrease Font Increase Font Email Google Plus Twitter Facebook COMMENTS आरएसएस का यूएस पर निशाना पूछा, क्या लोकतंत्र का वैश्विक ठेकेदार है अमेरिका नई दिल्ली. संघ के मुखपत्र अर्गेनाइजर में छपे एक लेख में आरएसएस ने अमेरिका पर जमकर निशाना साधा है। ग्रीनपीस और फोर्ड फाउंडेशन नाम के दो इंटरनेशनल एनजीओ के बचाव में आईं अमेरिकी की दलीलों के खिलाफ आरएसएस ने सोमवार को तीखी प्रतिक्रिया दी। आरएसएस ने दोनों एनजीओ पर भारतीय कानून के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए अमेरिका द्वारा दोनों संगठनों का बचाव करने पर सवाल उठाए हैं। 'अमेरिका को भारत की संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए' आरएसएस के मुखपत्र ‘आर्गेनाइजर’ में छपे 'द अन-सिविल इंटरवेंशन' नाम के लेख में कहा गया है कि अमेरिका को भारत की संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए। आरएसएस ने सवाल करते हुए अमेरिका से पूछा है कि क्या वह लोकतंत्र का वैश्विक ठेकेदार है? इसके साथ ही सवाल किया गया है कि क्या अमेरिका ऐसे तथाकथित गैर लाभकारी और गैर राजनीतिक एनजीओ को अपने देश में कानूनों के उल्लंघन की इजाजत देगा? 'अमेरिकी एजेंसियों के तौर पर काम करते हैं एनजीओ' आरएसएस ने कहा कि ग्रीनपीस और फोर्ड फाउंडेशन जैसे एनजीओ के बचाव में उतरकर और भारत से स्पष्टीकरण की मांग करके अमेरिका ने अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं। अमेरिका ने खुद के लोकतांत्रिक अधिकारों के वैश्विक ठेकेदार मानने की आशंकाओं की पुष्टि कर दी है। इसके साथ ही अमेरिका की कार्रवाई से यह भी साबित हो जाता है कि कि ऐसे एनजीओ अमेरिकी एजेंसियों के तौर पर कार्य करते हैं। 'विदेश नीति में हस्तक्षेप के साधन हैं एनजीओ' अर्गेनाइजर में छपे लेख में कहा गया है, 'यदि अमेरिका इस काम के लिए या किसी देश के अधिकार आधारित मुद्दे उठाने के लिए विदेशी फंड के मुद्दे पर साफ होकर सामने आना चाहता है तो उसे अपने देश की संप्रभुता और सांस्कृतिक लोकाचार का सम्मान करना होगा। आरएसएस ने कहा है कि ऐसा न होने पर एनजीओ-वाद हमेशा ही सिविल सोसाइटी के नाम पर विदेश नीति में हस्तक्षेप का एक साधन माना जाएगा.' 'शक पैदा करता है एनजीओ का कामकाज' आरएसएस ने कहा कि इन दोनों एनजीओ (ग्रीनपीस और फोर्ड फाउंडेशन) का कामकाज उनकी गैर लाभकारी और गैर राजनीतिक संस्था होने और उनके कामकाज को लेकर शक पैदा करता है। ऐसे एनजीओ और संस्थाओं को विदेशी फंडिंग को लेकर की जा रही भारत की कार्रवाई ने अमेरिका को परेशानी में डाल दिया है। आरएसएस ने साफ कहा है कि, 'अमेरिका का बिना सोचे समझे दोनों अंतरराष्ट्रीय एनजीओ के बचाव में उतरना और सबसे बड़े लोकतंत्र से इस बारे में स्पष्टीकरण की मांगना ही इन एनजीओ के अमेरिकी एजेंसी होने की उन आशंकाओं की पुष्टि करता है। संपादकीय में कहा गया कि आठ हजार से ज्यादा एनजीओ तीन साल तक रिटर्न दाखिल न करने को लेकर विदेशी अंशदान (नियामक) कानून (एफसीआरए) के तहत लाइसेंस रद्द होने की कानूनी कार्रवाई का सामना कर रहे हैं और एनजीओ पेशे में लगे फोर्ड फाउंडेशन और ग्रीनपीस जैसे अग्रणी संगठनों पर उनके फंड को लेकर सवाल उठाए गए हैं।


आरएसएस का यूएस पर निशाना पूछा, क्या लोकतंत्र का वैश्विक ठेकेदार है अमेरिका
 
नई दिल्ली. संघ के मुखपत्र अर्गेनाइजर में छपे एक लेख में आरएसएस ने अमेरिका पर जमकर निशाना साधा है। ग्रीनपीस और फोर्ड फाउंडेशन नाम के दो इंटरनेशनल एनजीओ के बचाव में आईं अमेरिकी की दलीलों के खिलाफ आरएसएस ने सोमवार को तीखी प्रतिक्रिया दी। आरएसएस ने दोनों एनजीओ पर भारतीय कानून के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए अमेरिका द्वारा दोनों संगठनों का बचाव करने पर सवाल उठाए हैं।
'अमेरिका को भारत की संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए'
आरएसएस के मुखपत्र ‘आर्गेनाइजर’ में छपे 'द अन-सिविल इंटरवेंशन' नाम के लेख में कहा गया है कि अमेरिका को भारत की संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए। आरएसएस ने सवाल करते हुए अमेरिका से पूछा है कि क्या वह लोकतंत्र का वैश्विक ठेकेदार है? इसके साथ ही सवाल किया गया है कि क्या अमेरिका ऐसे तथाकथित गैर लाभकारी और गैर राजनीतिक एनजीओ को अपने देश में कानूनों के उल्लंघन की इजाजत देगा?
'अमेरिकी एजेंसियों के तौर पर काम करते हैं एनजीओ'
आरएसएस ने कहा कि ग्रीनपीस और फोर्ड फाउंडेशन जैसे एनजीओ के बचाव में उतरकर और भारत से स्पष्टीकरण की मांग करके अमेरिका ने अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं। अमेरिका ने खुद के लोकतांत्रिक अधिकारों के वैश्विक ठेकेदार मानने की आशंकाओं की पुष्टि कर दी है। इसके साथ ही अमेरिका की कार्रवाई से यह भी साबित हो जाता है कि कि ऐसे एनजीओ अमेरिकी एजेंसियों के तौर पर कार्य करते हैं।
'विदेश नीति में हस्तक्षेप के साधन हैं एनजीओ'
अर्गेनाइजर में छपे लेख में कहा गया है, 'यदि अमेरिका इस काम के लिए या किसी देश के अधिकार आधारित मुद्दे उठाने के लिए विदेशी फंड के मुद्दे पर साफ होकर सामने आना चाहता है तो उसे अपने देश की संप्रभुता और सांस्कृतिक लोकाचार का सम्मान करना होगा। आरएसएस ने कहा है कि ऐसा न होने पर एनजीओ-वाद हमेशा ही सिविल सोसाइटी के नाम पर विदेश नीति में हस्तक्षेप का एक साधन माना जाएगा.'
'शक पैदा करता है एनजीओ का कामकाज'
आरएसएस ने कहा कि इन दोनों एनजीओ (ग्रीनपीस और फोर्ड फाउंडेशन) का कामकाज उनकी गैर लाभकारी और गैर राजनीतिक संस्था होने और उनके कामकाज को लेकर शक पैदा करता है। ऐसे एनजीओ और संस्थाओं को विदेशी फंडिंग को लेकर की जा रही भारत की कार्रवाई ने अमेरिका को परेशानी में डाल दिया है। आरएसएस ने साफ कहा है कि, 'अमेरिका का बिना सोचे समझे दोनों अंतरराष्ट्रीय एनजीओ के बचाव में उतरना और सबसे बड़े लोकतंत्र से इस बारे में स्पष्टीकरण की मांगना ही इन एनजीओ के अमेरिकी एजेंसी होने की उन आशंकाओं की पुष्टि करता है। संपादकीय में कहा गया कि आठ हजार से ज्यादा एनजीओ तीन साल तक रिटर्न दाखिल न करने को लेकर विदेशी अंशदान (नियामक) कानून (एफसीआरए) के तहत लाइसेंस रद्द होने की कानूनी कार्रवाई का सामना कर रहे हैं और एनजीओ पेशे में लगे फोर्ड फाउंडेशन और ग्रीनपीस जैसे अग्रणी संगठनों पर उनके फंड को लेकर सवाल उठाए गए हैं।

पाकिस्तान के पूर्व अफसर ने 1.60 अरब रुपए लेकर बताया था लादेन का पता


पाकिस्तान के पूर्व अफसर ने 1.60 अरब रुपए लेकर बताया था लादेन का पता
इस्लामाबाद. पाकिस्तान खुफिया ब्यूरो के एक पूर्व अफसर ने 1.60 अरब रुपए (डॉलर के आज के भाव के हिसाब से) के बदले में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए को अल कायदा के कुख्यात आतंकवादी ओसामा बिन लादेन के ठिकाने का पता दिया था। लादेन मारे जाने से पहले पाकिस्तान के एबटाबाद में छुप कर रहता था। दावा किया जाता रहा है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई उसे पनाह दिए हुए थी। हालांकि, पाकिस्तान इस आरोप से इनकार करता रहा है। मई, 2011 में अमेरिकी नेवी सील के ऑपरेशन में उसकी हत्या कर दी गई थी। लादेन ने 2001 में अमेरिका पर इतिहास का सबसे बड़ा आतंकी हमला करवाया था।
पाकिस्तान के अखबार डॉन के मुताबिक, 'अगस्त, 2010 में पाकिस्तानी खुफिया तंत्र के एक पूर्व अफसर ने इस्लामाबाद में सीआईए के स्टेशन चीफ जोनाथन बैंक से संपर्क साधा था। उस अफसर ने अपनी तरफ से यह पेशकश की थी कि 2001 में अमेरिका की तरफ से लादेन के सिर पर रखे गए इनाम के एवज में वह आतंकी का पता बता सकता है।' अमेरिकी खोजी पत्रकार और लेखक सेमर एम हर्श के हवाले से डॉन ने लिखा, 'पाकिस्तान शख्स पहले फौजी था। आजकल वह वॉशिंगटन में रहता है और सीआईए के लिए बतौर सलाहकार काम करता है।' अभी तक यह बात सामने आई है कि पाकिस्तान के एक डॉक्टर ने लादेन का पता ढूंढने में अमेरिका की मदद की है। डॉक्टर इसी मामले में पाकिस्तानी जेल में है।
'पाकिस्तान को सब पता था'
हर्श ने दावा किया है कि पाकिस्तानी पूर्व अफसर की सूचना के आधार पर अमेरिका ने लादेन के कंपाउंड पर सेटेलाइट के जरिए नजर रखना शुरू किया। बाद में अमेरिका ने पाकिस्तान को भी लादेन को मारने की योजना में शामिल कर लिया था। जबकि पाकिस्तान आज तक यही कहता रहा है कि उसे लादेन के अपने यहां छुपे होने या उसके मारे जाने तक उसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी।

देश में 21 यूनिवर्सिटी फर्जी, इनमें न लें एडमिशन, UGC ने जारी की सूची


देश में 21 यूनिवर्सिटी फर्जी, इनमें न लें एडमिशन, UGC ने जारी की सूची
ग्वालियर. देश में 21 यूनिवर्सिटी फर्जी हैं। यूजीसी ने वेबसाइट पर इनकी सूची जारी कर छात्रों को इनमें एडमिशन न लेने के लिए आगाह किया है। कारण, ऐसी यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने वाले छात्रों की डिग्री मान्य नहीं होगी। लिहाजा, किसी भी नौकरी के लिए उसका उपयोग नहीं हो सकेगा। सूची में देश के नौ राज्यों में संचालित यूनिवर्सिटी के नाम हैं। इनमें सर्वाधिक नौ यूनिवर्सिटी उत्तरप्रदेश में है। नागपुर में भी राजा अरेबिक नाम की ऐसी एक यूनिवर्सिटी है।
मध्यप्रदेश -केसरवानी विद्यापीठ, जबलपुर
दिल्ली -कमर्शियल यूनिवर्सिटी लिमिटेड, दरियागंज
>यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी
>वोकेशन यूनिवर्सिटी
>एडीआर-सेंट्रिक ज्यूरिडिकल यूनिवर्सिटी, एडीआर हाउस
>इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड इंजीनियरिंग
बिहार : मैथिली यूनिवर्सिटी, दरभंगा
कर्नाटक : बडागानवी सरकार वर्ल्ड ओपन यूनिवर्सिटी एजुकेशन सोसाइटी, बेलगाम
केरल : सेंट जॉन, कृष्णट्‌टम
तमिलनाडु : डीडीबी संस्कृत यूनिवर्सिटी, पुत्तुर, त्रिची
पश्चिम बंगाल : इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ आल्टरनेटिव मेडिसिन, कोलकाता
उत्तरप्रदेश : वाराणसेय संस्कृत यूनिवर्सिटी, वाराणसी यूपी/ जगतपुरी, दिल्ली
>महिला ग्राम विद्यापीठ/यूनिवर्सिटी, इलाहाबाद
>गांधी हिंदी विद्यापीठ, इलाहाबाद
>नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ इलेक्ट्रो कम्प्लेक्स होमियोपैथी, कानपुर
>नेताजी सुभाषचंद्र बोस यूनिवर्सिटी (ओपन यूनिवर्सिटी), अचलताल, अलीगढ़
>उप्र यूनिवर्सिटी, मथुरा
>महाराणा प्रताप शिक्षा निकेतन यूनिवर्सिटी, प्रतापगढ़
>इंद्रप्रस्थ शिक्षा परिषद, इंस्टीट्यूशनल एरिया, खोड़ा माकनपुर, नोएडा
>गुरुकुल यूनिवर्सिटी,वृंदावन, मथुरा

घूस देने से मना किया तो सिपाही ने महिला को पत्‍थर मारा


काली कमाई का मुंह काला, जयललिता बरी: जज बोले- आय से 10% अधिक संपत्ति चलेगा

बेंगलुरु. अन्नाद्रमुक प्रमुख जे. जयललिता आय से ज्यादा संपत्ति के 19 साल पुराने मामले में सोमवार को कर्नाटक हाईकोर्ट से बरी हो गईं। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के जस्टिस सी.आर. कुमारस्‍वामी ने स्पेशल कोर्ट द्वारा दोषी करार दी गईं जयललिता और तीन अन्य की संपत्ति जब्त करने के आदेश को भी रद्द कर दिया। उन्‍हें 39 साल पुराने एक केस और स्‍पेशल कोर्ट का फैसला कमजोर होने के आधार पर हाईकोर्ट ने बरी किया। जस्टिस कुमारस्वामी ने कोर्ट आते ही दस सेकंड में फैसला सुना दिया। हालांकि, उनका पूरा फैसला 919 पेज का है।
फैसले की 5 बड़ी बातें
1. हाईकोर्ट ने कहा- जयललिता की आय से अधिक संपत्ति 8.12% थी। यह 10% से कम है जो स्वीकार्य सीमा में है।
2. आंध्र प्रदेश सरकार तो आय से अधिक संपत्ति 20% होने पर भी उसे जायज मानती है, क्योंकि कई बार हिसाब बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता है।
3. जो संपत्तियां खरीदी गईं, उसके लिए आरोपियों ने नेशनलाइज्ड बैंकों से बड़ा कर्ज लिया था। निचली अदालत ने इस पर विचार नहीं किया।
4. यह भी साबित नहीं होता कि अचल संपत्तियां काली कमाई से खरीदी गईं। आय के स्रोत वैध पाए गए हैं।
5. निचली अदालत का फैसला कमजोर था। वह कानून की नजरों में नहीं टिकता।
हाईकोर्ट ने दिया कृष्णानंद अग्निहोत्री केस का हवाला
जस्टिस कुमारस्वामी ने अपने फैसले में कहा- ‘कृष्णानंद अग्निहोत्री केस के मुताबिक यह स्थापित नियम है कि जब आय से अधिक संपत्ति का अनुपात 10% तक हो तो आरोपी बरी होने का हकदार है। यही नहीं, आंध्र प्रदेश सरकार तो यह सर्कुलर जारी कर चुकी है कि अगर आय से अधिक संपत्ति 20% तक हो तो वह भी स्वीकार्य सीमा कहलाएगी। इस तरह 10% से 20% तक की ज्यादा संपत्ति भी आंकड़ों की बढ़ा-चढ़ा कर गणना होने के कारण स्वीकार्य मान ली गई है।’ बता दें कि कृष्णानंद अग्निहोत्री के खिलाफ मध्यप्रदेश सरकार ने 1976 में आय से अधिक संपत्ति का केस चलाया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चूंकि ऐसी संपत्ति 10% से भी कम है, इसलिए अग्निहोत्री को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अग्निहोत्री इनकम टैक्स अफसर थे। 1949 से 1962 के बीच अग्निहोत्री की आमदनी 1.27 लाख थी। इस दाैरान उनकी संपत्ति में 11 हजार रुपए का इजाफा हुआ। जाे कुल आमदनी से 10% से कम पाया गया। लिहाजा वे बरी हो गए।
हाईकोर्ट का फॉर्मूला : कहा- 8.12% ही ज्यादा थी जयललिता की आय से अधिक संपत्ति
हाईकोर्ट जज ने कहा- जयललिता के कपड़ों, चप्पल और अन्य चीजों का मूल्य मायने नहीं रखता, फिर भी मैं इसे संपत्ति के आकलन में से कम नहीं करूंगा। लेकिन प्रॉसिक्यूशन ने आरोपी की निजी संपत्ति, कंपनियों की संपत्ति, कंस्ट्रक्शन का 27.79 करोड़ का खर्च और सुधाकरण की 1995 में हुई शादी का 6.45 करोड़ रुपए का खर्च कुल संपत्ति के मूल्य में शामिल कर लिया। कुल संपत्ति 66.44 करोड़ रुपए की बताई गई। अगर हम कंस्ट्रक्शन और शादी के बढ़ा-चढ़ा कर पेश किए गए खर्च काे घटा दें तो संपत्ति का मूल्य 37.59 करोड़ रुपए आता है। आरोपियों की निजी आय और कंपनियों की आमदनी मिलाकर 34.76 करोड़ रुपए होती है। अंतर 2.82 करोड़ रुपए का है। यह आमदनी के मुकाबले 8.12% ही ज्यादा बैठता है।
‘सबूत नहीं मिले कि संपत्तियां काली कमाई से खरीदी गईं’
जस्टिस कुमारस्वामी ने कहा- निचली अदालत ने जयललिता द्वारा सुधाकरण की शादी का खर्च 3 करोड़ रुपए बताया लेकिन ऐसा कोई सबूत नहीं है जो कहता हो कि खर्च 3 करोड़ रुपए का हुआ था। निचली अदालत ने इंडियन बैंक से जयललिता द्वारा लिए गए कर्ज को उनकी आमदनी में शामिल नहीं किया। यह भी साबित नहीं होता कि अचल संपत्तियां काली कमाई से खरीदी गईं। जबकि ये संपत्तियां खरीदने के लिए नेशनलाइज्ड बैंकों से बड़ा कर्ज लिया गया था। आय के स्रोत वैध पाए गए हैं। इसलिए ये नहीं कहा जा सकता कि साजिश कर आमदनी इकट्ठा की गई थी।
मुकदमे में लगाए गए थे ये आरोप
1996 में तत्कालीन जनता पार्टी के नेता और अब भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने मुकदमा दायर कर आरोप लगाया था कि जयललिता ने 1991 से 1996 तक सीएम पद पर रहते हुए 66.44 करोड़ रुपए की बेहिसाब संपत्ति इकट्ठा की थी। जब मामला बेंगलुरू की स्पेशल कोर्ट में पहुंचा तो प्रॉसिक्यूशन ने जयललिता की संपत्ति का ब्योरा दिया। कहा- जयललिता, शशिकला और बाकी दो आरोपियों ने 32 कंपनियां बनाईं जिनका कोई कारोबार नहीं था। ये कंपनियां सिर्फ काली कमाई से संपत्तियां खरीदती थीं। इन कंपनियों के जरिए नीलगिरी में 1000 एकड़ और तिरुनेलवेली में 1000 एकड़ की जमीन खरीदी गई। जयललिता के पास 30 किलोग्राम साेना, 12 हजार साड़ी थीं। उन्होंने दत्तक बेटे वी.एन. सुधाकरण की शादी पर 6.45 करोड़ रुपए खर्च किए। अपने आवास पर एडिशनल कंस्ट्रक्शन पर 28 करोड़ रुपए लगाए।
जयललिता की ये थी सफाई
स्पेशल कोर्ट ने अपने फैसले में सुधाकरण की शादी पर हुए खर्च को 6.45 करोड़ रुपए के बजाय 3 करोड़ रुपए करार दिया। लेकिन जब मामला हाईकोर्ट में पहुंचा तो जयललिता के वकील बी. कुमार ने बताया कि सुधाकरण की शादी पर 29 लाख रुपए ही जयललिता ने खर्च किए थे। एडिशनल कंस्ट्रक्शन पर 13 करोड़ रुपए नहीं, सिर्फ 3 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। प्रॉसिक्यूशन ने हर तरह के खर्च और संपत्ति की राशि बढ़ाचढ़ाकर बताई। कुल संपत्ति तय करते वक्त खेती के चलते 5 साल में हुई 50 लाख रुपए की आमदनी को नजरअंदाज किया गया। बचाव पक्ष के वकीलों ने यह भी कहा कि जयललिता जिन कंपनियों का हिस्सा नहीं थीं, उनके कारोबार के लिए उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
फैसले के बाद जयललिता बोलीं- मैं खरा सोना, सरकारी वकील ने कहा- नहीं रखने दी दलीलें
आय से अधिक संपत्ति मामले में हाईकोर्ट से बरी होने के बाद एआईएडीएमके प्रमुख जयललिता ने अपने खिलाफ इस मामले को विपक्षी दल डीएमके की साजिश बताया है। उधर, सरकारी वकील का कहना है कि उनके पास पूरे सबूत थे, लेकिन उन्‍हें जयललिता के खिलाफ दलीलें रखने का पूरा मौका ही नहीं दिया गया।
सरकारी वकील का दावा- जयललिता के खिलाफ दलीलें पेश करने का मौका नहीं मिला
अन्नाद्रमुक प्रमुख जे. जयललिता के कर्नाटक हाईकोर्ट से महज 10 सेकंड में बरी हो जाने के मामले में नया मोड़ आता दिख रहा है। इस मामले में स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर बी.वी. आचार्य हाईकोर्ट के फैसले से नाखुश नजर आ रहे हैं। आचार्य ने बेहिसाब संपत्ति रखने के मामले में जयललिता के खिलाफ कर्नाटक सरकार की तरफ से पैरवी की थी। आचार्य ने सोमवार को फैसले के बाद कहा, "कर्नाटक सरकार इस मामले में अकेली प्रॉसिक्यूटिंग एजेंसी थी। लेकिन हाईकोर्ट में हमें दलीलें रखने का उचित मौका नहीं मिला।"
‘पब्लिक प्रॉसिक्यूटर के बिना चलती रही कार्यवाही’
आचार्य ने कहा, "कर्नाटक सरकार और सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त पब्लिक प्रॉसिक्यूटर के तौर पर मुझे हाईकोर्ट में मौखिक दलीलें रखने का मौका नहीं मिला। इससे प्रॉसिक्यूशन के केस के साथ गंभीर रूप से पक्षपात हुआ। हमारा केस कमजोर हाे गया। आरोपियों के वकील तो दो महीने तक दलीलें रखते रहे। उस वक्त कर्नाटक सरकार की तरफ से कोई पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ही नहीं था। इस वजह से पूरी कार्यवाही कानूनन नियुक्त पब्लिक प्रॉसिक्यूटर के बिना ही हो गई। मुझे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 22 अप्रैल को स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर बनाया गया। आदेश में कहा गया था कि मुझे एक दिन में लिखित दलीलें पेश करनी होंगी। लिहाजा, मौखिक दलीलें देने का मौका ही नहीं था।"
‘हमारे पास थे पर्याप्त सबूत’
हाईकोर्ट के फैसले के बाद बेंगलुरु में मीडिया को दिए बयानों में आचार्य ने यह भी कहा कि जयललिता के खिलाफ आरोप साबित करने के लिए प्रॉसिक्यूशन के पास पर्याप्त सबूत थे। नेचुरल जस्टिस के मुताबिक, कर्नाटक सरकार को इस मामले में अपना पक्ष रखने का पूरा मौका मिलना चाहिए था। यह भी समझ नहीं आया कि कोर्ट ने इस बारे में कैसे नहीं सोचा कि प्रॉसिक्यूशन का पक्ष जाने बगैर अपील पर सुनवाई नहीं हो सकती थी।
जयललिता के खिलाफ केस से कब जुड़े आचार्य
जयललिता के खिलाफ बेहिसाब संपत्ति रखने का केस दिसंबर 2003 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर तमिलनाडु से कर्नाटक ट्रांसफर कर दिया गया। 19 फरवरी 2005 को आचार्य स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर बन गए। 2011 में वे एडवोकेट जनरल बना दिए गए। अगस्त 2012 में उन्होंने इस केस के प्रॉसिक्यूटर के रूप में इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपनी बीमारी और लोकायुक्त में अपने खिलाफ दर्ज ‘फर्जी’ मामलों को इसकी वजह बताया। फरवरी 2013 में कर्नाटक सरकार ने भवानी सिंह को प्रॉसिक्यूटर बनाया। लेकिन एक द्रमुक सांसद की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने सिंह की नियुक्ति रद्द कर दी। इस तरह आचार्य दोबारा इस केस में सरकारी वकील बन गए।
जयललिता ने कहा- मैं खरा सोना
‘अम्मा’ के नाम से मशहूर जया ने कहा, "यह मुझे व्यक्तिगत और राजनीतिक रूप से बर्बाद करने लिए डीएमके द्वारा रची गई साजिश थी। तमिलनाडू के लोगों ने मेरे प्रति जो प्यार और विश्वास दिखाया है, मैं उसके लिए लोगों और भगवान को धन्यवाद देती हूं। दरअसल, मेरा बरी होना तमिलनाडु की ही जीत है। मैं फैसले से पूरी तरह संतुष्ट हूं, क्योंकि मेरे खिलाफ जो आरोप लगाए गए थे, वे बदले की राजनीति से प्रेरित थे। इस लड़ाई में धर्म की जीत हुई है। मैं उन 233 पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए दुखी हूं, जिन्होंने मुझे सजा सुनाए जाने के बाद जान दे दी थी। इस फैसले के बाद मुझे ऐसा लग रहा है जैसे सोना आग में तपकर और भी निखर जाता है, वैसे मैं भी हो गई। यह फैसला उन लोगों के लिए करारी हार है जो मेरी और एमजीआर की इमेज खराब करना चाहते थे।"
सुब्रमण्यम स्वामी बोले, फैसला उम्मीदों के विपरीत
तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के आय से ज्यादा संपत्ति मामले में बरी होने पर शिकायतकर्ता और वकील सुब्रमण्यम स्वामी ने दैनिक भास्कर डॉट कॉम से कहा कि हाईकोर्ट का फैसला उम्मीद के विपरीत है। स्वामी ने कहा, "अभी मैंने फैसले की कॉपी नहीं देखी है और इसके बाद ही पता चल पाएगा कि आखिर क्या कमियां रह गईं। उन्होंने कहा कि सेशंस कोर्ट ने सबूतों के आधार पर ही जयललिता को सजा दी थी और अब हाईकोर्ट ने बरी कर दिया। हाईकोर्ट के फैसले में कोई टेक्निकल ग्राउंड भी हो सकता है, यह पूरा फैसला पढ़ने के बाद ही पता चलेगा।" उनसे जब यह पूछा गया कि क्या वह इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे तो स्वामी ने कहा कि पहले हम कर्नाटक सरकार के फैसले का इंतजार करेंगे और अगर कर्नाटक सरकार सुप्रीम कोर्ट नहीं जाती है तो फिर वे सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।
करुणानिधि ने कहा, यह अंतिम फैसला नहीं
जया के कट्टर राजनीतिक विरोधी और डीएमके चीफ करुणानिधि ने कहा, "आज जो भी फैसला सुनाया गया है वह अंतिम नहीं है। उन्होंने कहा कि जया के खिलाफ पूरे सबूत पेश नहीं किए गए। करुणानिधि ने कहा, "मेरा यकीन महात्मा गांधी के उन शब्दों में है, जिनके अनुसार किसी भी अदालत के फैसले से बड़ी चीज हमारी अंतरात्मा की आवाज होती है।

सलमान की ज़मानत पर हंगामा

दोस्तों सलमान की ज़मानत पर हंगामा है शायद इसलिए के उसके खिलाफ योन शोषण का इलज़ाम नहीं था इसी लिए तो नारयण स्वामी की अंतरिम ज़मानत होने पर कोई नहीं चीखा ,,किसी के पेट में दर्द नहीं हुआ ,,शायद इज़्ज़त लूटने वालों को यह लोग ज़मानत मिलजाने को सामजिक मान्यता देते हो ,,लेकिन ज़मानत ज़मानत में फ़र्क़ तो देखिये इस सोशल मिडिया पर अफ़सोस ,,,,,,अख्तर

हज सब्सिडी की हकीकत

हज सब्सिडी की हकीकत
सब्सिडी हाजियों को या एयर इंडिया को
हज सब्सिडी के ज़रिये फ़िरक़ा परस्त लोग काफी वक़्त से मुसलमानो को शर्मशार करतें रहें हैं ।
लेकिन क्या वाक़ई सब्सिडी हाजियों को दी जाती है ?
आइये ज़रा कुछ हिसाब किताब निकलतें हैं ।।
🔻कैलकुलेशन ऑफ़ सब्सिडी🔻
फिलहाल मक्का शरीफ से इंडिया के लिये हाजियों का कोटा एक लाख छत्तीस हज़ार (1,36,000) का है ।
पिछले साल हमारी गवर्नमेंट ने सालाना बजट में 691 करोड़ हज सब्सिडी के तौर पर मंज़ूर किये थे ।
691 करोड़ ÷ 1.36 lakh = 50.8 हज़ार
यानी एक हाजी के लिए 50000 रुपये ।।
◀ अब ज़रा खर्च जोड़ लेते हैं ▶
एक हाजी को हज के लिए गवर्नमेंट को एक लाख अस्सी हज़ार (1,80,000) देने पड़ते हैं ।
जिसमे चौतीस हज़ार (34,000) लगभग 2100 रियाल मक्का पहुँचने के बाद खर्च के लिए वापस मिलतें हैं ।
1.8 लाख - 34000 = 1.46 लाख
यानि हमें हमारी गवर्नमेंट को एक लाख छियालीस हज़ार (1,46,000) रुपये अदा करने पडतें हैं ।।
मुम्बई से जद्दाह रिटर्न टिकट 2 महीने पहले बुक करतें हैं तो कुछ फ्लाइट का किराया 25000 रुपये से भी कम होगा । फिर भी 25000 रुपये मान लेतें हैं । (irctc पर चेक कर लीजिये)
खाना टैक्सी/बस का बंदोबस्त हाजियों को अलग से अपनी जेब से करना होता है ।
गवर्नमेंट को अदा किये एक लाख छियालीस हज़ार रुपये (1,46,000) में से होने वाला खर्च ___
फ्लाइट = 25,000
मक्का में रहना(25दिन) = 50,000
मदीना में रहना(15दिन) = 20,000
अन्य खर्चे = 25,000
कुल खर्च हुआ =1,20,000
😧 कन्फ्यूज़न 😧
मतलब एक हाजी से लिये 1,46,000 रुपये और खर्च आया 1,20,000 रुपये मतलब एक हाजी अपनी जेब से गवर्नमेंट 26,000 देता है ।
अब असल मुद्दा ये है की जब हाजी सारा रुपया अपनी जेब से खर्च करता है और उसके ऊपर भी 26,000 रुपये और गवर्नमेंट के पास चला जाता है ।
मतलब लगभग एक है से सब्सिडी मिला कर गवर्नमेंट के पास 76,000 हज़ार हो जाता है तो ये पैसा जाता कहाँ है ।।
26,000+50,000 × 1,36,000= 10,33,60,00,000 (दस अरब तेतीस करोड़ साठ लाख रुपया)
याद रहे की एयर इंडिया कंपनी फिलहाल 2100 करोड़ के घाटे में चल है ।।
बिला शुबहा ये रुपया एयर इंडिया कंपनी और पॉलिटिशियन के जेब में जाता है । I
और शर्मिंदा मुसलमानो को किया जाता है ।।

विक्रम वाल्मीकि की पेनी निगाह रामगंजमंडी टारगेट फतेह पर

राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव और कोटा देहात कांग्रेस के प्रभारी विक्रम बाल्मीकि आज कांग्रेस सदस्य्ता अभियान की निगरानी और प्रबंधन के लिए कोटा में थे ,,,,,विक्रम बाल्मीकि देहात कांग्रेस के प्रभारी होने के नाते अगस्त में संभावित आगामी नगरपालिका चुनाव के दौरान रामगंजमंडी नगरपालिका में कांग्रेस विजय पताका फहराने के लिए प्रयासरत है ,,विक्रम वाल्मीकि की पेनी निगाह रामगंजमंडी टारगेट फतेह पर है ,,वालमीकि इस नगरपालिका क्षेत्र में किलेबंदी कर कांग्रेस को सुर्खरू करना चाहते है इसके लिए उन्होंने कोटा में भी कई मोअज़्ज़िज़ लोगों से चर्चा कर हालात जाने है ,,,वालमीकि के साथ प्रदेश कांग्रेस कमेटी अल्पसंख्यक विभाग कोटा संभाग के चेयरमेन एडवोकेट अख्तर खान अकेला ,,,बंजारा फाउंडेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष कैलाश बंजारा ,,,,वक़्फ़ कमेटी कोटा के संभाग को ओर्डीनेटर तबरेज़ पठान ,,,से भी चर्चा की ,,,प्रदेश कांग्रेस कमेटी के क्रांतितिवारी के नेतृत्व में रामगंजमंडी नगरपालिका क्षेत्र के कई दर्जन कार्यकर्ताओें ने वाल्मीकि को रामगंजमंडी नगरपालिका का भूगोल ,,अर्थशास्त्र ,,और राजनीति शास्त्र बताया ,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

क़ुरआन का सन्देश

 
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